जनपद के दो विकास खण्डों में पड़ने वाले भाठ क्षेत्र की भौगलिक परिस्थतियां काफी दुरूह हैं। भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर अनुभव होता है कि यहां रहने वाले ग्रामीण किसी दैवीय आपदा के कारण 18 वीं सदी का पशुवत जीवन जी रहे हैं भाठ क्षेत्र आजादी के छः दशक बाद भी सड़क, पानी, शिक्षा एवं चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। सड़क न हो पाने के कारण लगभग 80 हजार से एक लाख की आबादी जिसमें मूलतः खरवार, गोड़, अगरिया, पनिका, बैगा (अनुसूचित जनजाति) तथा चमार, बियार, बैसवार एवं कोल (अनुसूचित जाति) के लोग है वे विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैैं। नक्सल प्रभावित इस जनपद में अपनी उपेक्षा के कारण आदिवासियों/वनवासियों का रूख नक्सल गतिविधियों की ओर बढ़ रहा है। भाठ क्षेत्र में जो वर्तमान में कहीं--कहीं डब्ल्युबीएम सड़के हैं, सम्बन्धितों के भ्रष्टाचार के कारण स्थिति यह है कि पशु भी रास्तों पर नहीं चल सकता। बीमार ग्रामीणों को उनके परिजन खटिये पर लादकर 30 से 40 किमी पहाड़ो के दुर्गम रास्तों से पैदल यात्रा के बाद ही प्राथमिक इलाज करा पाते हैं। गम्भीर रूप से बीमार सकैड़ों ग्रामीणों की जान इस 30 से 40 किलोमीटर की यात्रा करने में ही निकल गयी। गर्भवती महिलाओं की स्थिति गम्भीर होने पर उन्हे उपरोक्त परिस्थितियों में ही चिकित्सा उपलब्ध करायी जा सकती है। ऐसी परिस्थितियों में गर्भवती महिलाओं एवं प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु दर गम्भीर चुनौती खड़ा करती है जबकि आदिवासी एवं अनुसूचित जाति के लोगों का विकास केन्द्र एवं सरकार के मुख्य एजेण्डे में शामिल हैं। ऐसे में लगभग 40 किलोमीटर के विस्तार में फैले इस क्षेत्र में सड़को का न होना जनपद सोनभद्र के इस दुरूह भाठ क्षेत्र के विकास के पहिए की गति को बयां करता है।
40 किमी विस्तार क्षेत्र में फैले भाठ क्षेत्र में बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है जबकि सोनभद्र के दक्षिणांचल में लगभग 10000 मे.वा. बिजली का उत्पादन किया जाता है। भाठ क्षेत्र में रहने वाले 50 प्रतिशत आदिवासियों/वनवासियों की पैत्रिक भूमि रिहन्द जलाशय के डूब क्षेत्र में आने के कारण उनकी पीढ़ियों को भूमि रिहन्द जलाशय के लिए अधिग्रहित कर ली गयी। मुआवजे स्वरूप उन्हे तत्कालीन सरकार द्वारा चन्द रूपयों में मुआवजा दिया गया एवं भाठ क्षेत्र के दुरूह भौगोलिक परिस्थितियों में बसने के लिए भूमि उपलब्ध करायी गयी। आज रिहन्द जलाशय के जल से दर्जनों तापीय विद्युत परियोजना एवं जल विद्युत परियोजनाएं हजारों मे.वा. बिजली उत्पादन कर रही है। राष्ट्रहित में रिहन्द जलाशय के किनारे रिहन्द जलाशय के लिए जिनकी उपजाऊ भूमियों का अधिग्रहण कौड़ियों के भाव किया गया उन्हे बन्जर, पथरीली एवं पहाड़ों में स्थित भूमियों पर बया गया है जहां वो तिल-तिल कर मर रहे है। भाठ क्षेत्र में बिजली लोगों के लिए सपने जैसी बात लगती है। आज भी भाठ क्षेत्र से गुजरने वाली दसों हजार मे.वा. की पारेषण टावर भाठ क्षेत्र के किसने से गुजरकर पूरे भारत को रोशन कर रही है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही है। भाठ क्षेत्र के आदिवासी एवं वनवासी बिजली कैसे होती है ऐसी अनुभूति भी नहीं कर पा रहे हैं। लोक तान्त्रिक व्यवस्था में मानवीय अधिकारों का हनन की इससे बड़ी मिशाल और क्या हो सकती है जिनका सर्वस्य राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन के लिए समर्पित हुआ हो उन्हे बिजली के दो जलते बल्ब भी देखना मयस्सर नहीं हो पा रहा है।
भाठ क्षेत्र में मूलतः आदिवासी एवं अनुसूचित जाति के लोग निवास करते हैं जिनमें हजारों बच्चे निकट स्कूल न हो पाने के कारण स्कूल का मुंह भी नहीं देख पा रहे है। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बाद लकड़ियों एवं लड़कों की आगे की शिक्षा के लिए पूरे क्षेत्र में कोई विद्यालय नहीं है। क्षेत्र की भौगोलिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के कारण बच्चे की आगे की शिक्षा नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। दुरूह भौगोलिक परिस्थितियों के कारण शिक्षक उस क्षेत्र में पठन-पाठन का कार्य नहीं करा पाते जिस कारण सरकार की विभिन्न शिक्षा के प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित योजनाएं परिस्थितियों के कारण ध्वस्त हो रही हैं।
भाठ क्षेत्र में चिकित्सा व्यवस्था शून्य है कोई भी प्राथमिक उपचार केन्द्र या अन्य अस्पताल भाठ क्षेत्र में नहीं कार्यरत है। ऐसी परिस्थिति में गम्भीर रूप से बीमार लोगों को उनके परिजन खटिया पर लादकर 30 से 40 किलोमीटर की यात्रा सात से आठ घण्टे में तय कर अनपरा, रेनुकूट एवं अनपरा, रेनुकूट, अनपरा जैसे स्थानों पर उन्हे इलाज मिल पाता है। अविलम्ब चिकित्सा सुविधा न उपलब्ध होने के कारण मातृ प्रसव मृत्यु, अकाल मौतों तथा चिकित्सा के अभाव में मृतकों की संख्या काफी अधिक है।
40 किलोमीटर विस्तार क्षेत्र में फैले भाठ क्षेत्र में रोजगार के साधन शून्य है। केन्द्र सरकार की महत्वकांक्षी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना इस क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों एवं सम्बन्धित अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार का साधन मात्र बनकर रह गयी है। नरेगा की मूल भावनाओं के विपरीत मानव दिवस/मानव श्रम की अधिकता वाले कार्यों की जगह आपूर्ति आधारित कार्य ज्यादा किये जा रहे हैं। नरेगा के तहत बनाये जा रहे चेक डैम एवं अन्य कार्यों में निर्माण के आधार पर अवैध रूप से वन क्षेत्र से पत्थर, बोल्डर एवं सोलिंग की कागजों पर आपूर्ति प्राप्त कर करोड़ों रूपये का घोटाला किया जा रहा है।
अनपरा, सोनभद्र
7398337266
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