कहीं भट्टा परसौल न बन जाए बभनी क्षेत्र
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विस्थापन के दर्द को लेकर शायद सेानभद्र में एक और संघर्ष की बुनियाद पड़ने वाली है। यदि विस्थापितों की समस्याओं का समाधान कर लिया जाएगा तो बभनी इलाके को एक और भट्टा परसौल बनाने से बचाया जा सकता है। इसकी प्रमुख वजह धारा बीस (वन भूमि) की जमीनें जिस पर पुरखों से काबिज आदिवासी एवं वनवासी साबित होंगी। इन जमीनों का मुआवजा अधिग्रहण के लिये तय न किए जाने को लेकर पावर प्लांट के निर्माण में प्रभावित हो रहे परिवारों की वजह से पेंच फंस सकता है। अंदर ही अंदर ग्रामीणों द्वारा आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है।
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन द्वारा बभनी में बनाए जाने वाले 1980 मेगावाट के पावर प्लांट के निर्माण की प्रक्रिया भले ही बड़ी तेजी से अमल में लाई जाती हो, लेकिन यहां से विस्थापित होने वाले भी बिना मुआवजा मिले उसी तेजी से घरों के उजाड़े जाने को लेकर लामबंद हो रहे हैं। बभनी के कई ग्राम पंचायतों में करीब तीन सौ एकड़ धारा बीस की जमीनें भी निर्माण के दायरे में आ रही हैं। इन जमीनों पर रिहंद से विस्थापित होकर आए करीब पंद्रह सौ आदिवासी वर्षों से काबिज हैं। बाप दादा की इन जमीनों पर उनका घर, कुआं, खेत, बागीचा और खलिहान है। केंद्र सरकार ने धारा बीस की जमीनों पर काबिज लोगों को अधिकार देने के लिए वनाधिकार कानून लागू किया है। इस कानून के तहत यहां काबिज लोगों ने वनाधिकार समितियों के सामने अपने-अपने दावे भी कर दिए हैं। जिन्हें अब इन जमीनों का अधिकार पत्र देने की तैयारी चल रही है।
इसी बीच पावर प्लांट के निर्माण के लिए भी प्रशासन पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहा है। धारा बीस की जमीनों पर काबिज तथा विस्थापित होने वालों का कहना है कि प्रशासन द्वारा उनकी जमीनों का जब मुआवजा तय ही नहीं होगा तो वे जाकर आखिर बसेंगे कहां। इन जमीनों पर काबिज लोगों को न्याय दिलाने के लिए तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी कमर कस ली है। इसके अलावा इलाके में पड़ने वाले पर्यावरण प्रदूषण को भी लेकर लोगों में उबाल है। सोनभद्र में रिहंद बांध के विस्थापन के बाद लोग आज भी सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। बभनी में बनाए जाने वाले 1800 मेगावाट के पावर प्लांट के निर्माण की प्रक्रिया भले ही बड़ी तेजी से अमल में लाई जाती हो, लेकिन यहां से विस्थापित होने वाले भी बिना मुआवजा मिले उसी तेजी से घरों के उजाड़े जाने को लेकर लामबंद हो रहे हैं।