गुरुवार, 1 सितंबर 2011

बड़ती जा रही है, विस्थापित परिवारों की समस्या

जनपद सोनभद्र आदिवासी/वनवासी बाहुल्य जनपद है। यहां उद्योगों के लिए पर्याप्त खनिज एवं अन्य संसाधन उपलब्ध होने के कारण कई ताप विद्युतगृह, कोयला परियोजना, सीमेण्ट परियोजना एवं अन्य औद्योगिक संस्थान स्थापित हैं। जनपद सोनभद्र स्थित विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं के लिए दशकों पूर्व यहां के स्थानीय मूल निवासियों जिसमें मुख्यतः अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति के लोगों की हजारों एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी।   

उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद द्वारा 1978 से 1984 के बीच 3130 मे.वा. की प्रस्तावित अनपरा तापीय विद्युत परियोजना के लिए कुल 5076 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें कुल सात ग्राम सभा के किसानों की 3106.487 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल 1307 परिवार प्रभावित हुए जिनमें से 80 प्रतिशत लोगों की 100 प्रतिषत भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण से सर्वाधिक प्रभावित अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग रहे तथा परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण में 898 लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित हुए।
   
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट 1948 की धारा 79 (सी) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए उ.प्र.रा.वि.परिषद अपने अधीन सभी कार्यालयों/परियोजनाओं/कार्यस्थलों एवं विद्युत उपसंस्थानों हेतु भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय-1987 बनाया गया। जिस नियमावली के आधार पर अनपरा परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवारों के सदस्यों में से 304 लोगों का स्थायी सेवायोजन 1994 तक प्रदान किया गया। शेष बचे विस्थापितों को परियोजना के विस्तार होने एवं सेवायोजन के लिए रिक्तियों की उपलब्धता होने पर सेवायोजित करने के बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी।

सन 1994 तक प्रस्तावित 3130 मे.वा. में सिर्फ 1630 मे.वा. उत्पादन क्षमता वाली अनपरा-अ एवं ब परियोजना का ही निर्माण हो पाया। शेष परियोजना 2007 तक अधर में लटकी रही तथा विस्थापितों को परियोजनाओं के आने पर सेवायोजन उपलब्ध कराने की बात परियोजना द्वारा कही गयी। इसी बीच 2007 में तत्कालीन सरकार द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की गयी भूमि में से कुछ भूमि निजी कम्पनी मेसर्स लेन्को अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड, अनपरा को 35 वर्ष की लीज अनुबन्ध पर 1200 मे.वा. क्षमता के विद्युतगृह निर्माण एवं संचालन के लिए दे दिया गया। अनपरा-डी परियोजना का निर्माण भी वर्तमान समय में उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। परियोजनाओं के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों में अपनी स्थायी सेवायोजन की आस जगी तथा सेेवायोजन को लेकर अपनी बात विस्थापितों ने मुखर की एवं आन्दोलन किया। स्थिति गम्भीर होने पर प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद प्रबन्धन एवं विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच प्रशासन की उपस्थिति में 29.01.2008. को स्थानीय प्रशासन की उपस्थिति में वार्ता हुई जिसमें पहली बार प्रबन्धन द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित सदस्य की नियुक्ति प्रथम संशोधन विनियमावली-1994 के विनिमय-4 में हुए संशोधनों का हवाला देकर शेष बचे विस्थापितों/प्रभावित परिवार के सदस्यों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने के सम्बन्ध में बैठक की कार्यवृत्त बिन्दु संख्या-2 में निम्नवत संशोधन का उल्लेख किया है-

बिन्दु संख्या-2
अनपरा परियोजना में शेष बचे विस्थापितों को समायोजित किया जाये
तथा संविदा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाये।

निगम स्तरीय नीति विषयक मामला है। भूमि अध्याप्ति नियमावली, 1987 के प्राविधानों के अधीन अर्ह विस्थापितों को सेवायोजन प्रदान किया जा चुका है तथा 169 विस्थापितों को नौकरी के एवज में रूप्या एक लाख व्यक्ति तथा 55 व्यक्ति जिनके मकान गये थे उन्हे रूपया 25000 प्रति व्यक्ति की दर से क्षतिपूर्ति मण्डलायुक्त, विन्ध्याचल के माध्यम से भुगतान करवाया जा चुका है। शेष बचे विस्थापितों को उ.प्र.रा.वि.प. (भूमि अध्याप्ति) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) विनियामवली, 1994 के विनियम-4 के अधीन भूमि अध्याप्ति हेतु की गयी विज्ञप्ति के दिनांक सात वर्ष के पश्चात सेवायोजन प्रदान नहीं किया जा सकता है। समिति के सदस्यों ने इस पर प्रतिरोध व्यक्त किया तथा अनुरोध किया कि अनपरा-सी एवं डी के निर्माण के पूर्व शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन हेतु उक्त प्राविधान में संशोधन के लिए उत्पादन निगम से अनुरोध किया जाये। उक्त समस्या के निदान हेतु निगम (मु.) के सक्षम अधिकारी से विस्थापितों की वार्ता हेतु अनुरोध किया जायेगा। परियोजना प्रबन्धन द्वारा स्पष्ट किया गया कि संविदा श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का  भुगतान किया जा रहा है।

संशोधन का हवाला देकर प्रबन्धन द्वारा शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने की बात कही गयी है। परन्तु प्रबन्धन द्वारा जिस संशोधन का हवाला दिया जा रहा है वह उन व्यक्तियों पर प्रभावी होगा जिनकी भूमि अध्यापित हेतु विज्ञप्ति उक्त नियमावली में संशोधन के प्रभावी होने के बाद होगा। जबकि अनपरा तापीय परियोजना के लिए भूमि अध्याप्ति हेतु विज्ञप्ति 1978 से शुरू हुई तथा भूमि अधिग्रहण की समस्त प्रक्रियाएं 1984 तक पूरी कर ली गयी। यहां उल्लेखनीय है कि परियोजना में 1989 से 1994 तक विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जो भूमि अध्याप्ति की विज्ञप्ति के सात वर्ष पश्चात दिया गया हैै। जो स्वत स्पष्ट करता है कि उक्त संशोधन अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन देने में प्रभावी नहीं है। सन 1997-1998-1999 में कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम ब तापीय परियोजना, अनपरा द्वारा इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को दिये गये जिसमें यह कहा गया कि आपकी भूमि अनपरा तापीय परियोजना परिक्षेत्र में पड़ रही है इसलिए जब भी परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरीयता क्रम में नौकरी दी जायेगी। वर्ष 2002 में विस्थापितों द्वारा अपने सेवायोजन की मांग को लेकर किये गये आन्दोलन के पश्चात तत्कालीन आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा प्रकरण पर बैठक की गयी तथा बैठक के उपरान्त अपनी रिपोर्ट श्री आर.बी. भास्कर प्रमुख सचिव, ( ऊर्जा) उ.प्र. शासन, लखनऊ को भेजी जिसमें 169 परिवारों को सेवायोजन के बदले एक मुश्त एक लाख की राशि तथा जिनके मकान प्रभावित हुए हैं एवं जिनकी एक एकड़ से कम भूमि अधिग्रहित की गयी है उन्हे मानवीय दृष्टिकोण से 25 हजार रूपया 55 परिवारों को दिये जाने की बात कही गयी। आयुक्त द्वारा विस्थापित, प्रबन्धन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच करायी गयी बैठक में भी प्रबन्धन द्वारा विस्थापित परिवारों के सेवायोजन से सम्बन्धित प्राविधानों में किसी प्रकार के संशोधन की बात का उल्लेख नहीं किया न ही आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा भेजे गयी शासन को अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की उक्त नियमावली में संशोधन की बात कही गयी। परन्तु अनपरा-सी एवं डी परियोजना के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों को सेवायोजन न देकर राज्य सरकार द्वारा बल पूर्वक विस्थापितों/प्रभावित परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि जिन शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया गया उनमें से 80 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति/जनजाति के है जिनकी शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सार्वजनिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रहित में 30 वर्ष पूर्व ही अधिग्रहित की जा चुकी है। परन्तु राज्य सरकार द्वारा उनको विस्थापन के उपरान्त मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रखा है जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विस्थापितों के समक्ष जीविकोपार्जन का कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण भूखों मरने की स्थिति है, सरकार की उपेक्षा के कारण विस्थापितों में गहराता आक्रोश निश्चित ही गम्भीर चिन्ता का विषय है। क्षे़त्र में विस्थापितों का आन्दोलन कभी भी हिंसक हो सकता है जिससे इस उद्योग बाहुल्य जनपद की विधि व्यवस्था एवं राज्य/केन्द्र की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

पंकज कुमार मिश्रा द्वारा सचिव, सहयोग (गैर सरकारी संगठन), औड़ी, अनपरा, सोनभद्र की तरफ से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका सिविल मिस.रिटपीटिशन संख्या-26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा अपने 14/05/2009 के आदेश में उक्त प्रकरण पर बिना कोई हस्तक्षेप किये बगैर न्यायालय द्वारा अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। न्यायालय के उक्त आदेश को हमारी संस्था द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी जा रही है।
   
सोनभद्र में इन आदिवासियों/अनुसूचित जाति/जनजाति के विस्थापित परिवार के मौलिक अधिकारों के हनन की बात को विस्थापितों द्वारा प्रखरता से उठाये जाने से सोनभद्र में एक राज्यव्यापी आन्दोलन के दिशा में बढ़ने में बल मिल रहा है। जिससे सोनभद्र में आदिवासी/अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों की हक की लड़ाई को मजबूती मिलेगी।

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