गुरुवार, 1 सितंबर 2011

सहयोग (गैर सरकारी संगठन) द्वारा विगत दो वर्षों से अनपरा तापीय परियोजना एवं एनसीएल की परियोजनाओं के विस्थापितों के पुर्नवास-मुआवजा एवं अन्य समस्याओं के निराकरण हेतु किये गए पहल।


सहयोग (गैर सरकारी संगठन) द्वारा विगत दो वर्षों से अनपरा तापीय परियोजना एवं एनसीएल की परियोजनाओं के विस्थापितों के पुर्नवास-मुआवजा एवं अन्य समस्याओं के निराकरण हेतु पहल किया जा रहा है। इस सन्दर्भ में सहयोग के प्रयास से विगत दो वर्ष में आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा कई बार परियोजनाओं के साथ बैठक कर विस्थापितों की समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास किया गया जिसमें एनसीएल, हिण्डाल्को इण्डस्ट्रीज रेनुसागर परियोजना में कुछ विस्थापितों को सेवायोजन दिलाया जा सका।परन्तु अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों के मामले में कोई सार्थक पहल एवं कार्यवाही न हो पाने के कारण सहयोग द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में सिविल मिस.रिटपिटिशन (जनहित याचिका) संख्या 26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी जिस पर 14/05/2009 को मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवायी करते हुए अपने संक्षिप्त आदेश में याचिका को खारिज कर दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को सहयोग द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (सिविल) सी.सी. न. 14744/2009, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल कर चुनौती दी गयी। माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली खण्ड पीठ ने मामले की सुनवायी करते हुए 09 अक्तूबर, 2009 को उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस प्रकरण से सम्बन्धित बिन्दुवार तथ्य निम्नवत हैं-

1.    उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा 1978 से 1984 के बीच 3130 मे.वा. की प्रस्तावित अनपरा तापीय विद्युत परियोजना के लिए कुल 5076 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें कुल सात ग्राम सभा के किसानों की 3106.487 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल 1307 परिवार प्रभावित हुए जिनमें से 80 प्रतिशत लोगों की 100 प्रतिशत भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण से सर्वाधिक प्रभावित (80 प्रतिशत) अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग रहे तथा परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण में 898 लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित हुए।

2.    उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट 1948 की धारा 79 (सी) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए उ.प्र.रा.वि.परिषद अपने अधीन सभी कार्यालयों/परियोजनाओं/कार्यस्थलों एवं विद्युत उपसंस्थानों हेतु भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय-1987 बनाया गया। जिस नियमावली के आधार पर अनपरा परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवारों  के सदस्यों में से 304 लोगों का स्थायी सेवायोजन 1994 तक प्रदान किया गया। शेष बचे विस्थापितों को परियोजना के विस्तार होने एवं सेवायोजन के लिए रिक्तियों की उपलब्धता होने पर सेवायोजित करने के बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी। महत्वपूर्ण है कि जिन लोगों को परियोजना द्वारा भूमि के बदले सेवायोजन दिया गया उसमें भी आदिवासियों/वनवासियों/अनुसूचित जाति/जनजाति परिवार के सदस्यों को अपेक्षाकृत कम लोगों को सेवायोजन दिया गया तथा सामान्य एवं पिछड़ी जाति/अन्य पिछड़ी जाति के प्रभावी लोगों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जबकि सामान्य एवं पिछड़ी जाति के लोगों की अपेक्षा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग अधिक प्रभावित हुए तथा उनके समक्ष आजीविका के अन्य विकल्प नहीं मौजूद थे परन्तु तत्कालीन अधिकारियों द्वारा भेदभाव करते हुए उन्हे लाभ से वंचित रखा गया।

3.    संशोधन का हवाला देकर प्रबन्धन द्वारा शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने की बात कही गयी है। परन्तु प्रबन्धन द्वारा जिस संशोधन का हवाला दिया जा रहा है वह उन व्यक्तियों पर प्रभावी होगा जिनकी भूमि अध्यापित हेतु विज्ञप्ति उक्त नियमावली में संशोधन के प्रभावी होने के बाद अधिग्रहण हेतु विज्ञापित की गयी हो। अनपरा तापीय परियोजना के लिए भूमि अध्याप्ति हेतु विज्ञप्ति 1978 से शुरू हुई तथा भूमि अधिग्रहण की समस्त प्रक्रियाएं 1984 तक पूरी कर ली गयी। यहां उल्लेखनीय है कि परियोजना में 1989 से 1994 तक विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जो भूमि अध्याप्ति की विज्ञप्ति के सात वर्ष पश्चात दिया गया हैै जो स्वतः स्पष्ट करता है कि उक्त संशोधन अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन देने में प्रभावी नहीं है।

4.    वर्ष 1997-1998-1999 में कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम ब तापीय परियोजना, अनपरा द्वारा इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को दिये गये जिसमें यह कहा गया कि आपकी भूमि अनपरा तापीय परियोजना परिक्षेत्र में पड़ रही है इसलिए जब भी परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरिष्ठता क्रम में नौकरी दी जायेगी।

5.    वर्ष 2002 में विस्थापितों द्वारा अपने सेवायोजन की मांग को लेकर किये गये आन्दोलन के पश्चात तत्कालीन आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा प्रकरण पर बैठक की गयी तथा बैठक के उपरान्त अपनी रिपोर्ट श्री आर.बी. भास्कर प्रमुख सचिव, ( ऊर्जा) उ.प्र. शासन, लखनऊ को भेजी जिसमें 169 परिवारों को सेवायोजन के बदले एक मुश्त एक लाख की राशि तथा जिनके मकान प्रभावित हुए हैं एवं जिनकी एक एकड़ से कम भूमि अधिग्रहित की गयी है उन्हे मानवीय दृष्टिकोण से 25 हजार रूपया 55 परिवारों को दिये जाने की बात कही गयी। आयुक्त द्वारा विस्थापित, प्रबन्धन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच करायी गयी बैठक में भी प्रबन्धन द्वारा विस्थापित परिवारों के सेवायोजन से सम्बन्धित प्राविधानों में किसी प्रकार के संशोधन की बात का उल्लेख नहीं किया न ही आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा भेजे गयी शासन को अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की उक्त नियमावली में संशोधन की बात कही गयी।

6.    वर्ष 2007 में वर्तमान सरकार द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन हेतु अधिग्रहित की गयी भूमि में से लगभग 300 एकड़ भूमि निजी कम्पनी मेसर्स लेन्को अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड को 30 वर्ष के लीज अनुबन्ध पर दे दिया जो अधिग्रहण के प्राविधानों का उल्लंघन था तथा परियोजना के विस्थापितों के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए राज्य सरकार ने निजी कम्पनी को विस्थापितों को दिये जाने वाले रोजगार एवं अन्य सुविधाओं के सम्बन्ध में अनुबन्ध में किसी भी प्रकार का कोई प्राविधान नहीं रखा।

7.    अनपरा-सी एवं डी परियोजना के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों को सेवायोजन न मिलने की स्थिति में उनके द्वारा किये जा रहे आन्दोलनों केा राज्य सरकार द्वारा बल पूर्वक दबाने एवं विस्थापितों/प्रभावित परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। जबकि उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा नयी परियोजनाओं के आने पर सृजित होने वाले स्थायी रोजगार की उपलब्धता पर विस्थापितों को प्राथमिकता के आधार पर स्थायी सेवायोजन देने की बात प्रबन्धन द्वारा लिखित रूप से दी गयी थी। उ.प्र.रा.वि.परिषद (भूमि अध्यापित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय 1987 के प्राविधानों में निहित है। महत्वपूर्ण है कि जिन शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया गया उनमें से 80 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति/जनजाति के है जिनकी शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सार्वजनिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रहित में 30 वर्ष पूर्व ही अधिग्रहित की जा चुकी है। परन्तु राज्य सरकार द्वारा उनको विस्थापन के उपरान्त मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रखा है जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विस्थापितों के समक्ष जीविकोपार्जन का कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण भूखों मरने की स्थिति है, सरकार की उपेक्षा के कारण विस्थापितों में गहराता आक्रोश निश्चित ही गम्भीर चिन्ता का विषय है। क्षे़त्र में विस्थापितों का आन्दोलन कभी भी हिंसक हो सकता है जिससे इस उद्योग बाहुल्य जनपद की विधि व्यवस्था एवं राज्य/केन्द्र की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

8.    पंकज मिश्रा, सचिव, सहयोग (गैर सरकारी संगठन), औड़ी, अनपरा, सोनभद्र की तरफ से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका सिविल मिस.रिटपीटिशन संख्या-26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा अपने 14/05/2009 के आदेश में उक्त प्रकरण पर बिना कोई हस्तक्षेप किये बगैर न्यायालय द्वारा अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। न्यायालय के उक्त आदेश को हमारी संस्था द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती गयी है।

9.    माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एस.एल.पी.(िसविल) सी.सी.न.14744/2009, सहयोग बनाम उत्तर प्रदेश एवं अन्य में 09 अक्तूबर, 2009 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस.नरसिम्हा द्वारा विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिये जाने के सम्बन्ध में दलीलें रखने पर न्यायालय द्वारा उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है।

1 टिप्पणी: