बुधवार, 7 सितंबर 2011

औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से निकल रहे है मौत के धुएँ !!

 उर्जान्चल में विभिन्न औद्यागिक संस्थानों की चिमनियों से निष्कासित धूयें के साथ-साथ सल्फर डाइ-आWक्साइड गैस यहाँ के पर्यावरण में जी रहे जीवनदायी वृक्ष एवं पौधों की पत्तियों में प्रवे’ा कर एवं जल में घुलकर मुख्यत: सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयनों में बदल जाती है। सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयन पत्तियों की को’िाकाओं को लिये विष का कार्य करते है। पत्तियों की को’िाकाओं में सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयनों की अधिक सान्ध्रता को’ाकला एवं हिरितलव कों को नष्ट करती है तथा जीवद्रव्य कुंचन करती है एवं पर्णमध्भोतक को नष्ट करती है। इसके प्रभाव से पौधों की पत्तियों के किनारे और और ’िाराओं के मध्य का स्थान सूख जाता है। इसकी उच्च सान्द्रता में पौधों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके अतिरिक्त वायु में उपस्थित नमी का अव’ाोषण कर यह मनुष्यों एवं जीवों के श्वसन नली के रास्ते फेफड़ों में जाकर फेफडों की को’िाकाओं को काफी क्षति पहुँचाती है। यही नहीं सल्फर डाइ-आWक्साइड गैस पत्थरों, स्टील, कागजों इत्यादि पर भी अपना बुरा प्रभाव छोड़ती है। 
उर्जान्चल के औधोगिक संस्थानों की चिमनियों से निकलने वाले धूयें का मुख्य कारण यहा उत्पन्न हो रहे विघुत उत्पादन के लिये कोयले का अत्यधिक दहन हैं। यहाँ पृथ्वी की भीतरी सतहों से प्राप्त ईधन पदार्थों जैसे:-कोयलें में नाइट्रोंजन आWक्साइड मात्रा अधिक होती है। नाइट्रोजन आWक्साइड मुख्यत: वायु प्रदूषण का कार्य करती है। वातावरण में इन गैसों की आव’यकता से अधिक हानि यहाँ के लोगों के  आँखों को होती है। इनकी अधिकता से फेफड़ों एवं हृदय सम्बन्धी रोग होने की सम्भावना बनी रहती है। इसके आलाव अ’ाुद्ध वायु के सेवन से शरीर में विभिन्न प्रकार के व्याधि उत्पन्न हो रहे है। जिसमें प्राय: सिरदर्द, आलस्य, भूख की कमी, एनीमिया, खांसी, दमा, टी.बी. फेफड़ों का कैन्सर और फेफड़ों से सम्बन्धित अनेक रोग हो जाते है। 

वायु में फैले अनेक धातुओं के कण एवं राख वि’ोष रूप से तन्त्रिका तन्त्र (नर्वस सिस्टम) के रोग उत्पन्न करते है। वही कैडमियम श्वसन-विष का कार्य करता है और रक्त-दाब बढ़ाकर हृदय-सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। आर्सेनिक यहाँ के औद्योगिक संस्थानों में प्रयोग किये जाने से यह उर्जान्चल के पौधों को विषाक्त कर देता है। जिससे इसे खाने वाले पशुओं की मृत्यु हो जाती है। वातावरण में फ्लूराइड्स की सान्द्रता बढ़ने से पत्तियों के सिरों और किनारों पर हरिमाहीनता अथवा Åतक क्षय रोग उत्पन्न होता है तो दूसरी ओर इनकी की बढ़ती मात्रा आँख क रोग, खांसी के रोग एवं सीनें की दर्द उत्पन्न करती है। प्रदूषित वायु मनुष्य में एग्जीमा, मुहाँसें एवं एन्थ्रेक्स इत्यादि रोग भी उत्पन्न करती है।

उर्जान्चल में विभिन्न औद्यागिक संस्थानों के बढ़ते प्रदूषण से लगता है कि जल्दी ही यह क्षेत्र दे’ा का सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से प्रथम श्रेणी में आ जायेगा। दे’ा के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने सर्वप्रथम यहा रिहन्द बाँध के लोकार्पण के समय कहा था कि " यह स्थान एक दिन दे’ा स्वीटजरलैण्ड बनेगा पर यहा के औधोगिक संस्थानों ने इसे स्वीटजरलैण्ड बनने के बजाय इसे सहारा का मरूस्थल बनाने में जरूर मदद की है। 

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