बुधवार, 25 जनवरी 2012

भौतिकी की छात्रा को मिला गोल्ड मेडल


ओबरा परियोजनाकर्मी की बेटी मीनू सिंह ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अंतर्गत संचालित महाविद्यालयों में भौतिक विज्ञान द्वितीय एमएससी में गोल्ड मेडल प्राप्त कर नगर एवं जनपद का गौरव बढ़ाया है। अटूट दूर-दृष्टि एवं कड़ी मेहनत के बल पर परियोजनाकर्मी देवानंद सिंह की पुत्री मीनू सिंह ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा संचालित 287 महाविद्यालय में ओबरा पीजी कालेज की एमएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा में 12 सौ में 854 अंक प्राप्त कर भौतिक विज्ञान में यूनिवर्सिटी टाप कर महाविद्यालय के गौरव को ऊंचा किया। बचपन से ही मृदुल एवं शांत स्वभाव की मीनू पहली कक्षा से ही अपने मेहनत के बल पर माता पिता सहित शिक्षकों का दिल जीतती रही। पढ़ाई के अलावा मीनू सिंह घर के काम काज में भी मां का हाथ बंटाने में गुरेज नहीं करती है।ओबरा पीजी कालेज के प्राचार्य डा. एचएन सिंह ने बताया कि मीनू सिंह जितनी अच्छी पढ़ाई में है, उससे भी अधिक संस्कारपूर्ण छात्रा है। मीनू सिंह ने गोल्ड मेडल पाकर महाविद्यालय का नाम गौरवान्वित किया है। महाविद्यालय परिवार उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता है। वहीं एमएससी द्वितीय वर्ष भौतिकी टाप टेन लिस्ट में ओबरा कालेज के महताब आलम पुत्र शमशुल आलम, अंजुम फातमा पुत्री अतिकुल्हक खान, जुगनू पुत्र अजय सिंह ने छठवां, सातवां व आठवां स्थान पाकर महाविद्यालय का नाम गौरवान्वित किया।

करोड़ो के कीमती जमीन पर हो रहे कब्जे को लेकर प्रशासन का मौन परदे के पीछे अनुबंध की पुष्टि


उर्जानचल के मध्य रेणुकूट से लेकर शक्तिनगर तक के वन विभाग के जमीनों की बेशकीमती भूमि पर करोड़पति व्यवसायियों द्वारा बेरोकटोक अवैध निर्माण किया जा रहा है। जिला प्रशासन को इसकी जसूचना होने के बाद भी कोई कार्यवाही नही करने से परदे के पीछे हुए किसी अनुबंध की पुष्टि होती है। एक ओर गरीब एवं आवासहीनों को अनिवार्य जरूरत के लिए भी अनुपयोगी व पहाड़ी जैसे जगहों पर बनाये जा रहे झोपडियों को तोडने के लिए प्रशासन कोई कसर नही छोड रही है। वहीं क्षेत्र में जिला प्रशासन के नाक के नीचे करोडों की बहुमूल्य भूमि पर धडल्ले से चल रहे निर्माण के प्रति प्रशासन की रहमदिली सदेंह के दायरे में है। जबकि व्यवासायियों द्वारा प्रशासन के साथ शायद गुप्त समझौते के चलते करोड़ो की भूमि हथियाने का यह कारोबार फल-फू ल रहा है एवं बीना किसी अनुमति के दो-दो मजिंल की इमारतों तक का निर्माण किया जा चुका है। महत्वपूर्ण है कि यदि गरीबों बेघरों को छोटी-मोटी झोपडियंा बनाने पर विभाग के अधिकारी ढेरों अनापत्ति प्रमाण पत्रों की मांग करते है वहीं वन विभाग के अन्तर्गत पड़ने वाली भूमियों के बीचों-बीच करोड़ो के कीमती जमीन पर हो रहे कब्जे को लेकर प्रशासन का मौन साधे रहना सोचनीय है। अवैध कब्जा कर रहे एक व्यवसायी के अनुसार निर्माण पूरी तरह से अवैध है, इसके लिए किसी प्रकार की अनुमति नही ली गई है।

दर्जनों नौनिहाल अशिक्षा के दलदल में जाने पर मजबूर

  • अनिवार्य शिक्षा गारंटी योजना पर प्रश्नचिह्न लगा रहा ग्रामसभा चंदुआर
  • हजार आबादी वाले ग्रामसभा में प्राथमिक विद्यालय 
  • शिक्षा व्यवस्था नदारद, अभिभावक परेशान
  • अनुमोदन के बाद ही जा सकेंगे शिक्षकः बीएसए

चार हजार आबादी वाले चंदुआर ग्राम सभा में प्राथमिक विद्यालय होने के बावजूद शिक्षकों के अभाव में यहां के दर्जनों नौनिहालों का बचपन अशिक्षा के दलदल में फंसता जा रहा है। गरीब-आदिवासी समुदाय की अधिकता वाले इस ग्राम सभा के बच्चे स्कूल जाने के बजाए कोयला और कबाड़ बीनने में लगे हुए है। ग्राम प्रधान ने इस संबंध में कई दफा प्रस्ताव बनाकर बेसिक शिक्षा विभाग को दिया। बावजूद अब तक एनसीएल द्वारा बनाए गए प्राथमिक भवन में शिक्षकों की तैनाती नहीं हो सकी है। गौरतलब है कि तीन सौ की आबादी वाले गांवों में भी प्राथमिक स्कूल खोलने का नियम है अगर ग्राम सभा प्रस्ताव पारित कर विकास खंड के माध्यम से बेसिक शिक्षा विभाग को दे दे। लेकिन देश को रोशन करने वाले ऊर्जांचल के कई गांवों में जिला प्रशासन सहित शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से आरईटी (शिक्षा का अधिकार) कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है। यहां की अधिकांश आबादी जो दो जून की रोटी की जुगत में ही दिन-रात लगी रहती है ऐसे लोगों को अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करना संभव नहीं हो पाता। ग्राम प्रधान रामकिशुन भारती ने बताया कि जनवरी से लेकर अब तक आधे दर्जन से भी अधिक दफा एनसीएल द्वारा बनाए गए भवन में शिक्षा-व्यवस्था शुरू करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया लेकिन शिक्षा महकमे के कान पर जूं तक नहीं रेंगा। अनपरा। बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश सिंह ने बताया कि चंदुआर में एनसीएल द्वारा बनवाए गए प्राथमिक विद्यालय को अभी बेसिक शिक्षा समिति द्वारा अनुमोदन नहीं मिला है। बेसिक शिक्षा समिति का पदेन अध्यक्ष जिला पंचायत अध्यक्ष होता है। जब तक इसे शिक्षा समिति द्वारा अनुमोदन नहीं किया जाएगा। शिक्षक भेजना संभव नहीं होगा।

बुधवार, 18 जनवरी 2012

अनपरा ‘सी’ के लाईटप में ही हुई थी, बड़ी दुर्घटना


लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट

अनपरा ‘सी’ (लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट) में लाईटम के दौरान जब बायलर नं. 1 को पावर लोड दिया गया तो उसका स्टीम पाईप अचानक फट जाने भयंकर आग लग गई थी, जिससे परियोजना के अन्दर अचानक श्रमिको के बिच भगदड़ मच गई थी। घटना में 6 लोग घायल हो गए थे। बताना है कि मौके पर मौजूद 3 श्रमिको के साथ 3 वरिष्ठ अधिकारीयों के भी आग की चपेट में आने से 4 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गए जिन्हें तुरन्त वाराणसी रेफर किया गया था, तथा दो की हालत सामान्य है। घायलों में लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट के डीजीएम आनन्द बाग समेत कुल तीन अधिकारियों के गम्भीर रूप से घायल हो जाने की बात की पुष्टि की गई थी। बताना है कि लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट के लाईटप के दौरान जब बायलर एक पर जब लोड दिया गया तब उसके स्टीम पाईपों में से जबरजस्त धमाके से आग लग गई। जिससे उसके निर्माण में शुरू-शुरू में ही भारी दुर्घटना घट जाने से लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट अधिकारियों के उपर सवालिया निषान लग गया है। क्योंकि यदि ऐसी दुर्घटना घटती हैं तो लाईटप से पहले सारी चिजों की जाँच करने के पष्चात भी ऐसी दुर्घटना होने से श्रमिको एवं लैंको थर्मल पावर पा्रेजेक्ट अधिकारियों में भविष्य में होने वाले किसी बड़ी अप्रिय दुर्घटना घट जाने का डर समाया रहता है। 

प्रशासन द्वारा की जा रही, कुओं की अनदेखी


अनपरा थाना क्षेत्र के अन्तर्गत ग्राम परासी के वार्ड संख्या 13 में लाखों रूपये सरकार की लागत से बने कुएँ की सफाई में ढिलाई बर्ती जा रही है। जो स्थानीय निवासियों के निराषा का कारण है। गर्मी के दिनों भारी पेयजल की किल्लत की मार से इन कुओं की उपयोगिता को समझा जा सकता है। परन्तु प्रषासन द्वारा इनकी अनदेखी ने आज इस हाल पर लाकर खड़ज्ञ कर दिया है कि गन्दगी के चलते इनके जल में अनेक प्रकार संक्रामक रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु इसमें उत्पन्न हो गये है। जिनकी सफाई किए बगैर इनके जल का प्रयोग मुनासिब नहीं है। आज जहाँ लोग पानी की एक-एक बँूद के लिए तरस रहे है। वहीं प्रषासन मात्र जगह-जगह कुओं का षिलान्यास करने में ही लगी है तथा इनके रखरखाव की उचित व्यवस्था के ऊपर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। यदि इनके षिलान्यास के साथ-साथ इनके अनुरक्षण का बजट भी उक्त ग्राम पंचायतों में कर दिया जाये तो इन कुओं की महत्ता बढ़ जायेगी। 

जल स्त्रोतों का नहीं हो रहा हैं, संरक्षण


परिक्षेत्र में गिरते जल स्त्रोंतो को रोकने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाया जा रहा है। जिससे भीषण गर्मी में लागों का विभिन्न प्रकार के कठिनाईयों से सामना करना पड़ रहा है। इस समय क्षेत्र में प्रचण्ड गर्मी पड़ रही है और ऐसे में इन दिनों अनपरा थाना क्षेत्र के ग्राम परासी, अनपरा, कुलडोमरी, बासी, रेहटा, एवं औड़ी आदि क्षेत्रों में पानी के लिए भारी उथल-पुथल मची है। ग्रामीणों में पेयजल के लिए मारा-मारी हो रही है, क्षेत्र में पेयजल की समस्या गम्भीर होने के कारण मानवीय जीवन के समक्ष भी गम्भीर संकट खड़ा हो गया हैं, पेयजल की प्र्याप्त सुविधा न होने के कारण लोग कई किलोमीटर दूर से पानी लाकर पीने को मजबूर हैं गर्मियों में स्थिति भयावह हो जाती है भूमि के अन्दर से एवं हैण्डपम्प, कुओं का पानी सूख जाने के कारण जीवन दुरूह हो जाता है। लेकिन इसे रोकने के लिए प्रषासनिक स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण ग्रामीणों में प्रषासन के लिए रोष व्याप्त है और ग्रामीणों को पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। 

आज के समय शिक्षा में कम्प्यूटर ज्ञान महत्वपूर्णः-संजय यादव


आई-टेक कम्प्यूटर एजूकेशन सोसाइटी के डिबुलगंज शाखा का उद्घाटन ब्लांक प्रमुख संजय यादव के कर कमलों द्वारा किया गया। प्रमुख जी ने आज के समय मे कम्प्यूटर षिक्षा को महत्वपूर्ण बताया तथा आई-टेक कम्प्यूटर सोसाइटी के पदाधिकारियों के इस कृत की सराहना किया कि डिबुलगंज क्षेत्र में कोई प्रशिक्षण संस्थान नहीं था इस संस्थान द्वारा प्रशिक्षण केन्द्र प्रारम्भ करना सराहनीय कार्य है। उक्त समारोह डाॅ.अ.आ.बा.शि. संस्थान के प्रधानाचार्य धनेष कुमार पाण्डेय, चन्द्रषेखर शर्मा, अरून गिरि, रामचन्दर जायसवाल, पाठक जी, मनोज यादव (ब्लाक को-आर्डिनेटर) जयप्रकाष भारती, बबीता श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहें।

हाई-वे पर सफर जानलेवा!


वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर प्राईवेट (निजी) वाहनों में सुरक्षा मानकों के खुलेआम अनदेखी की जा रही है। जहाँ वाहनों में उनकी क्षमता से अधिक यात्रियों को भर कर यात्रा की जा रही है। वहीं वाहनों में तो लोग पिदे लटक कर यात्रा करने से भी गुरेज नहीं कर रहें है। वाहनों के चालक भी जल्दी-जल्दी अधिक पैसा कमानें की फिराक में वाहनों की निर्धारित गति के साथ भी समझौता कर रहे है। मजेदार बात यह है कि ये सब हो रहा है, ठीक पुलिस प्रषासन के सामने। यात्रियों की सुरक्षा अब भगवान भरोसे ही है।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

आदिवासी/वनवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आकाल/जल संकट से प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल सुविधाओं की किल्लत।


जनपद सोनभद्र (उ.प्र) के दो विकास खण्डो में पड़ने वाले भाठ क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां काफी दुरूह हैं। भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर ऐसा अनुभव होता है कि यहां रहने वाले लगभग एक लाख आदिवासी ग्रामीण किसी दैवीय आपदा के कारण 18 वीं सदी का पषुवत जीवन जी रहे हैं। भाठ क्षेत्र आजादी के छः दशक बाद भी सड़क, बिजली, पानी, षिक्षा एवं चिकित्सा जैसी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।

म्योरपुर विकास खण्ड में एनसीएल की पांच परियोजनाएं स्थित हैं। म्योरपुर विकास खण्ड के सुदूर गांवों का विकास एनसीएल की ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों में प्राथमिकता में सम्मिलित किया जाना चाहिए क्योंकि उपरोक्त क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां दुरूह होने के साथ-साथ पूरा क्षेत्र गम्भीर पेयजल संकट से विगत कई वर्षों से जूझ रहा है। विगत पांच वर्षों में पूरा क्षेत्र सूखे के गम्भीर चपेट में है जिससे कृषि एवं अन्य अजीविका के साधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। हर वर्ष सैकड़ो पशु पानी-चारे के अभाव में काल कलवित हो जाते हैं।

भाठ क्षेत्र में पेयजल की समस्या गम्भीर होने के कारण मानवीय जीवन के समक्ष भी गम्भीर संकट खड़ा हो गया हैं। गर्मियों के मौसम में पशुओं एवं मानवीय जीवन को जीवन्त रखने के लिए भाठ क्षेत्र के लोग अपने परिवार एवं पशुओं के साथ खुले आसमान के नीचे रिहन्द सागर के किनारे अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं। पेयजल की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण लोग कई किलोमीटर दूर से नालों एवं चोहड़ों से पानी लाकर पीने को मजबूर हैं गर्मियों में स्थिति भयावह हो जाती है तथा नालों एवं चोहड़ों में पानी सूख जाने के कारण जीवन दुरूह हो जाता है। विगत वर्षोें में सैकड़ों की संख्या में पशुओं ने पानी एवं चारे के अभाव में दम तोड़ दिया है।

केन्द्र एवं राज्य सरकार के कार्यक्रमों के तहत वहां पेयजल के लिए हैण्डपम्प, बन्धी, कुओं आदि का निर्माण कराया गया है जो कि परिस्थितियों के हिसाब से नाकाफी है तथा राज्य सरकार द्वारा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की उपेक्षा से उन्हे अपेक्षित सहायता/विकास का भागीदार नहीं बनाया जा सका है। ऐसी परिस्थिति में क्षेत्र में स्थित भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों को अपने ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक विकास के कार्यक्रम में उक्त क्षेत्रों के समक्ष खड़ी गम्भीर संकट पेयजल समस्या के समाधान के लिए अपने स्तर पर गम्भीर प्रयास किया जाना चाहिए। 

उपरोक्त क्षेत्रों में व्याप्त गम्भीर पेयजल संकट को देखते हुए क्षेत्र में कार्यरत एनसीएल, एनटीपीसीए हिण्डालको आदि की ओर से व्यापक सर्वे कराकर चिन्हित स्थानों पर हैण्डपम्प लगवाने का कार्यक्रम अपने ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत प्राथमिकता में सम्मिलित करने का प्रयास करने से उक्त समस्या के निवारण के लिये सराहनीय कदम साबित होंगे।

क्योंकि इस जल संकट का सर्वाधिक प्रभाव लाखों आदिवासियों-दलितों के आम जनजीवन पर पड़ा है। ज्यादातर म्योरपुर विकास खण्ड में स्थित आदिवासी/वनवासी बाहुल्य ग्राम सभा रणहोर, कुलडोमरी, पाटी, बेलहत्थी, सिन्दूर, औड़ी, रानीताली, मकरा, मुर्धवा एवं चोपन विकास खण्ड की ग्राम सभा बैरपुर, कनहरा, परसोई, पनारी, जुगैल में व्याप्त जल संकट, क्षेत्रों में पर्याप्त पेयजल व्यवस्था न होने के कारण तथा जल स्तर के नीचे चले जाने के कारण ग्रामीणों को गम्भीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ना जाने कब इन्हें इस समस्या से निजात कौन दिलायेगा। 

गिरीवासियों के उद्धार के नाम पर ठेंगा दिखाता कल्याण विभाग

  • दर-दर भटकने को मजबूर है, गरीब आदिवासी।
  • अधिकारियों के द्वारा दिये गये वादें के सिवा कुछ भी नहीं बचा है।
  • काम भी नहीं कर सकते, पेट की भूख शान्त करने के लिये उसे रोजाना भीख मांगना पड़ता है।

 गरीब आदिवासियों के उद्धार के लिये जहाँ सरकार एक से बढ़कर एक योजनायें उपलब्ध करा रही है। वहीं उर्जान्चल परिक्षेत्र में ठण्डी, गर्मी बरसात जैसे मौसमों की परवह किये बगैर सारे थपेडों को झेलते हूए, इन गिरिवासियों की रोज की दिनचर्या इनके उद्धार के लिये सरकार द्वारा चलाये गये सारी योजनाओं को झूठा साबित कर रहा है। तपिष धूप थरथराती जमीन पर हाथ में लाठी के सहारे नंगे पाव चलकर लोगों से पेट की भूख का गुहार लगाना इन आदिवासियों की रोजमर्रा का जीवन बन चुका है। इन गरीब आदिवासियों के उद्धार के लिये कल्याण विभाग से लाखों रूपये पास हाते है। परन्तु उद्धार के लिये इस कार्य में लगे समाजसेवी भी इन गरीबों को ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आ रहे है। जिनके आगे-पिछे कोई है भी तो वे किसी तरह कोई ना कोई काम करके अपने परिवार की जिम्मेदारी को सम्भाल ले रहे है। जिनका कुछ नहीं बचा है। वें लोगों के सहारे पर ही आश्रित है। 

औड़ी मोड़ नेहरू चैक पर हुई भेंट में एक बुढि़या का बयान जो दाँतों तले उंगलिया दबाने को मजबूर कर देता है। उसने बताया कि वह वल्लभ पंत सागर (रिहन्द बाँध) की एक विस्थापित है। घर में एकलौता लड़का था। जमीन हड़पनें के बाद उनके पास अधिकारियों के द्वारा दिये गये वादें के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। वक्त ने करवट फेरा उन्हें अपनी ही जमीन से खदेड़ दिया गया। कुछ दिनों बाद लड़का बिमारी का शिकार हुआ और इस दुनिया से चल बसा। घर में बस वह और उसके उम्र के सेवानिवृत्त के कगार पर खड़े पति है। जो काम भी नहीं कर सकते, पेट की भूख शान्त करने के लिये उसे रोजाना भीख मांगना पड़ता है। बता दे यह आष्चर्य नही है। शक्तिनगर से राबर्टसगंज तक सैकड़ों ऐसे गरीब मिल जायेंगे। जो पेट की भूख को शान्त करने के लिये। जगह-जगह लोगों से गुहार लगाते दिख जायेंगे। वहीं दूसरी तरफ पिछले एक दषक से सर्वाजनिक स्थानों एवं राजमार्ग पर विक्षिप्त (पागल) युवक/युवतिया भी लोगों के मदद पर ही निर्भर है। क्या इनका भी कभी उद्धार होगा ? सोचने की बात है। 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

बिजली विभाग के खिलाफ उर्जान्चलवासियों का विषाल धरना प्रदर्षन


मांगे निम्नवत हैः- 
  1. ऊर्जांचल के समस्त विस्थापित ग्राम सभाओं को विषेष जोन का दर्जा प्रदान किया जाय। 
  2. विभिन्न परियोजनाओं के आवासीय परिसरों की भांति निर्बाध 24 घंटे विद्युत सप्लाई व्यवस्था सुनिष्चित करायी जाय। 
  3. विभिन्न विद्युत परियोजनओं/कोयला परियोजनाओं के 5 किमी की परिधी में आने वाले समस्त विस्थापित ग्राम सभाअेा औड़ी, अनपरा, परासी, कुलडोमरी, पिपरी, बेलवादह, बांसी, रेहटा, ककरी, गरबन्धा में षत्प्रतिषत विद्युतीकरण सुनिष्चित कराया जाय।
  4. ऊर्जांचल परिक्षेत्र में अनवरत विद्युत सप्लाई सुनिष्चित करने तथा जर्जर व्यवस्थाओं के बदलने हेतु विद्युत सम्बन्धित आवष्यकताएं (ट्रांसफाम्रर युक्त ट्राली इत्यादि) की उपलब्धता सुनिष्चित कराई जाय।
  5. जिसकी जिम्मेदारी एनसीएल, एनटीपीसी एवं उत्पादन निगम की परियोजनाओं तथा साडा को सौपी जाय।
  6. बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर डिबुलगंज से षक्तिनगर तक रोड साईड में लाईट लगवाने की व्यवस्था सुनिष्चित कराई जाय।
  7. ऊर्जांचल परिक्षेत्र में विद्युत विभाग-विरतण का कार्यालय स्थापित कराया जाय जिसमें उपखण्ड स्तर के अधिकारी की उपस्थिती सुनिष्चित कराई जाय। 
  8. ग्राम पंचायत में बिजली बिल में की गई वृद्धि वापस कराने एवं पूर्व के लिए गये अधिषुल्क को समायोजित करने की बात कहीं।


ऊर्जांचल में स्थापित लगभग दस हजार मेगावाट की उत्पादनरत् बिजली परियेाजनाओं से प्रदेष एवं राष्ट्र रोषन हो रहा है, किन्तु जिनकी जमीनों पर इन परियोजनाओं का निर्माण हुआ है, वे विस्थापित ग्रामीण क्षेत्र, आज भी पूर्णतः विद्युत दुव्र्यवस्था के षिकार है। परियोजनाओं की आवासीय परिसरों में जहां 24 घंटे निर्बाध्य बिजली आपूर्ति हो रही है, वही अनेक विस्थापित ग्राम सभाएं रोषनी के लिए तरस रही है। निकटवर्ती प्रभावित क्षेत्रों को भी महज कुछ ही घंटे बिजली उपलब्ध है। सम्पूर्ण क्षेत्र, एनसीएल, एनटीपीसी, उत्पादन निगम, रेनूसागर हिंडालकों एवं लैंको की परियोजनओं के चलते गम्भीर प्रदुषण से प्रभावित है, स्थिती इतनी भयावह है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंतत्र बोर्ड द्वारा क्षेत्र को देष का नौवां देष का सर्वाधिक प्रदूषित जोन घोषित किया गया है। प्रदूषण एवं बिमारियांे से जूझ रहे निवासियों का बिजली आपूर्ति से बेहद क्षुब्ध एवं आक्रोषित होना इनके लिए स्वाभाविक है। प्रषासनिक उदासीनता के चलते अनेको बार इस पर हुई वार्ताओं का परिणाम कुछ नहीं निकला। जिसके तहत स्थानीय जनता एवं ऊर्जांचल विद्युत संघर्ष समिति आंदोलन हेतु बाध्य हो गयी। ऊर्जांचल वासी अपनी मागों को लेकर आगामी 5 अगस्त 2011 को सम्पूर्ण बंदी एवं विषाल धरना प्रदर्षन का आयोजन ग्राम औड़ी के नेहरू चैक पर करने के लिए संगठीत हो गये है। इस विषय पर उर्जान्चल विद्युत संघर्ष समिति ने पत्रक के माध्यम से बताया कि उक्त दिन और समय पर स्थानीय लोग अपने-अपने प्रतिष्ठान बन्द करके एवं दैनिक कार्यों से विरत होकर मजबूत एकता का परिचय देते हुए अधिक से अधिक संख्या में धरना स्थल पर उपस्थित होकर आंदोलन को सफल बनाने का प्रयास करेगें। कार्यक्रम का आयेाजन ऊर्जांचल संघर्ष समिति द्वारा किया जाएगा। आगे उन्होनंे बताया कि सात सूत्रिय मांगों के तहत उन्होनंे बताया कि उक्त बिंदू पर ऊर्जांचल समिति अपनी मांग रखने के लिए सदैव तत्पर है। 

बिजली बिल तो हुआ ही दुगुना, देने होंगे बकाया भी


राज्य में बिजली की स्थिति सुधरने के लिए सरकार ने जो कदम उठाये हों, पर उर्जान्चल के लोगों को एक झटका देने वाला कदम तो उठ चुका है और यहा के उपभोक्ताओं को अपनी जेबें कुछ अधिक ही ढीली करनी पड़ रही है। बिजली के चार्ज अब उपभोक्ताओं पर ज्यादा थोप दिया गया है। पहले अगर 1 यूनिट के 402 रूपये देने पड़ते थे तो अब ये सीधे 1400 रूपये पर जा टिका है। फिक्स्ड चार्ज भी कुछ इसी अनुपात में बढ़ा दिया गया है। यानी बिजली विभाग ने उपभोक्ताओं की जेबें पूरी तरह से हलकी करने का मन बना लिया है। उर्जान्चल के अधिकांश बिजली उपभोक्ताओं को एक और परेशानी से गुजरना पड़ता है, वो ये कि अधिकांश लोगों को बिजली बिल घर नही पहुँचाया जाता है। लोगों को जमा करने वाले काउंटर पर जाकर सैकड़ो की संख्यां में बिखरे पड़े बिलों में से खुद ढूँढ कर जमा करना पड़ता है। कुल मिलाकर उर्जान्चल की स्थिति ये है कि बिजली रहे या न रहे, बिल तो आप पर हैवी लादा ही जायेगा, और जब सरकार का मन होगा, दर बढाकर बकाया भी वसूल करने लगेगी। 

सोमवार, 9 जनवरी 2012

तीन दषकों बाद मिला अनपरा तापीय परियोजना के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित हजारों विस्थापितों को न्याय।

  • 200 करोड़ रूपये पायेंगे। अताप के विस्थापित।
  • 18 वें दिन समाप्त हुआ विस्थापितों का धरना/भूख हड़ताल ।
  • विस्थापितों के जीत से क्षेत्र में हर्ष व्याप्त। 
जनपद सोनभद्र, उ.प्र. में उ.प्र. सरकार की अनपरा तापीय परियोजना के लिये हुए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों एवं आदिवासियों द्वारा अपने पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट की मांग के समर्थन में किये जा रहे शान्ति पूर्ण प्रदर्षन पर 06 सितम्बर 2011 को उ.प्र. पुलिस एवं निगम के निजी सुरक्षा कर्मियों द्वारा आदीवासी किसानों पर बर्बर लाठीचार्ज करना अन्ततः उ.प्र. सरकार एवं अनपरा तापीय परियोजना को भारी पड़ा।
 उ.प्र.सरकार की अनपरा तापीय परियोजना के लिये 1978 से 1984 तक हुए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों जिसमें 90 प्रतिषत अनुसूचित जनजाति एवं जाति के 2412 परिवार है तथा लगभग 25000 हजार दलित आदिवासी प्रभावित है। जिनकी भूमि एवं भवन का अधिग्रहण 1978 से 1982 तक परियोजना के निर्माण हेतु किया गया था। तत्कालीन उत्तर प्रदेष सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों को स्थायी सेवायोजन देने हेतु बनाई गई उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम-1987 के आधार पर 50 प्रतिषत से ज्यादा भूमि अधिग्रहण की गई हो उनको अनिवार्य रूप से परियोजना में स्थायी सेवायोजन देने का प्राविधान बनाया गया था। जिसके आधार पर 1987 से 1994 तक कुल 304 परियोजना प्रभावित परिवारों के सदस्यों को परियोजना में सेवायोजन दिया गया। शेष भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों को परियोजना का भविष्य में परियोजना का विस्तार होने पर उन्हें परियोजना में सेवायोजित करने की बातें कही गई थी। 
  
वर्तमान समय में अधिग्रहित भूमि पर अनपरा परियोजना की निर्माणाधीन ‘सी’ एवं ‘डी’ का निर्माण कार्य प्रगती पर है। उन परियोजनाओं में अपने लिये पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट की मांग को लेकर भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के सदस्यों एवं स्थानीय राजनितिक एवं विस्थापित संगठनों द्वारा विगत 2-3 सालों से बार-बार धरना प्रदर्षन कर उ.प्र. सरकार से उनके लिये प्रभावी पहल किये किये जाने के लिये आग्रह किया जा रहा है। इसी सन्दर्भ में 06.09.2011 को परियोजना प्रबन्धन, जिला प्रषासन द्वारा स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं विस्थापित संगठनों को वार्ता हेतु अनपरा ‘डी’ परियोजना में बुलाया गया था। जहा पर हुए लाठीचार्ज में पंकज मिश्रा, राकेष कुमार बैसवार, रमन धरिकार, बिफनी धरिकार, पारस नाथ बैसवार सहित दर्जनों अनुसूचित जनजाति एवं जाति के पुरूषों एवं महिलाओं को चोटें आई। लाठीचार्ज की घटना से विस्थापित भड़क गये तथा अपनी तीन दषकों से पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन की मांग को लेकर पंकज मिश्रा एवं हरेदव सिंह के नेतृत्व में सामूहिक भूख हड़ताल पर बैठ गये जिसमें उन्होंने अपने पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास, स्थायी सेवायेाजन, 25 अक्टूबर 1980 से पूर्व उनके कब्जे में रही वन भूमि पर पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास लाभ वनाधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को दिये गये वनाधिकार पर निगम एवं निजी कम्पनियों के अतिक्रमण पर रोक लगाने आदि से मांगों से सम्बन्धित एक ज्ञापन जिलाधिकारी, सोनभद्र को सौपकर अपने आन्दोलन की शुरूआत की, जैसे-जैसे आन्दोलन गति पकड़ता गया हजारों लोग आन्दोलन के समर्थन में ऊतर आये तथा जनपद के कोने-कोने से आन्दोलन को समर्थन मिलने लगा।

अन्ततः 16.09.2011 तक भूख हड़ताल पर बैठे विस्थापित प्रतिनिधियों से अनपरा तापीय परियोजना के विदेषी अतिथि गृह में 5 धण्टों तक चली बैठक में सीमडी, निगम एवं जिलधिकारी, सोनभद्र ने जहाँ सरकार का पक्ष रखा वही दूसरी ओर विस्थापितों की ओर से पंकज मिश्रा ने बिन्दूवार तथ्य रखे। अन्ततः सरकार को विस्थापितों के जायज मांग के आगे झूकना पड़ा। अन्त में सैद्धन्तिक समिति बनी की उ.प्र. सरकार द्वारा अंगीकृत किये गये राष्ट्रीय पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति 2003 के आधार पर 02.06.2011 को बनाये गये उ.प्र. सरकार की नई भूमि अधिग्रहण की नई नीति-2011 के समस्त लाभ पिछले तीन दषकों से पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट के आस की बाट जोह रहे दलित-आदिवासी किसानों को दिया जायेगा। 

इस आष्वासन के बाद आन्दोलनकारियों ने अपने सामूहिक उपवास कों वापस ले लिया, जबकि मांगों को लिखित रूप से स्वीकार किये जाने तक अपना धरना अनपरा ‘डी’ मुख्य मार्ग पर अनवरत जारी रखा। अन्ततः धरना स्थल पर आज उपजिलाधिकारी, दुद्धी द्वारा उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. के मुख्यालय द्वारा अनपरा परियोजना के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन के सम्बन्ध में की गई घोषणा के बाबत दिये गये पत्र तथा जिलाधिकारी, सोनभद्र द्वारा वनाधिकार अधिनियम के तहत जारी वन भूमि, 25 अक्टूबर 1980 से पहले किसानों/आदिवासियों के कब्जे में रही वन भूमि पर पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ दिये जाने के सन्दर्भ में कृत कार्यवाही का पत्र सौपा गया। जिसके उपरान्त विस्थापितों का अनवरत जारी आठ्ठारवें दिन के बाद धरना समाप्त हुआ।