गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तेल के दाम ऊचाईयों की ओर अग्रसर।

सोनभद्र अरब देषों में अस्थिरता के चलते कच्चे तेल के दाम नई ऊचाईयों की ओर अग्रसर हैं। जिसके चलते जहाँ एक ओर महंगाई काबू में नही आ रहीं है। वही आॅयल सब्सिडी का बोझ बढ़ने से सरकार के राजकोषीय घाटे के बढ़ने का खतरा है। इससे निपटने के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम तो बढ़ाये जाते रहे है लेकिन आम लोगों र्का इंधन कहे जाने वाले केरोसिंन पर दी जा रही रियायत सरकार को भारी पड़ रही है। विडंबना यह है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरित होने वाले केरोसिन का बड़ा हिस्सा जरूरत मंदांे के बजाय डीजल मे मिलावट करने के लिए पेट्रोल पंपों और खुले बाजार में विक्रय के लिए कालाबाजारियों के पास पहुंच रहा है। 

उत्तर प्रदेष के सोनभद्र जैसे जिलों में तो आपूर्ति विभाग के अधिकारियों और केरोसिन माफिया के गठजोड़ ने एक फुलप्रुफ नेटवर्क स्थापित कर लिया है जिसके अतंर्गत तेल के इस खेल में प्रतिमाह लाखों के वारे-न्यारे हो रहे है। वैसे तो सोनभद्र की पहचान यहां स्थापित उद्योगों के चलते रही है लेकिन जिले का म्योरपुर विकास खण्ड बेहद औद्योगिंक सघनता का क्षेत्र है। यहा बिजली उत्पादन और कोयला खनन में संलग्न लगभग आधा दर्जन परियोजनाएं स्थापित है जिनमें हजारों की संख्या में कर्मचारी-अधिकारी कार्यरत है जो षतप्रतिषत गैस कनेक्सन धारक है और भोजन पकाने के लिए इनके घरों में एलपीजी का ही इस्तेमाल होता है हांलाकि यह सभी कर्मी राषन कार्ड धारक भी है जिसके चलते वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अतंर्गत मिलने वाले सभी समानों को लेने की पात्रता रखते है लेकिन आवष्यकता न होने के कारण लगभग नब्बे फिसदी से अधिक परियोजना कर्मचारी व अधिकारी केरोसिन लेने में रूचि नहीं दिखाते और यही से तेल का वह खेल ष्षुरू होता है जो वर्षों से जारी है जो ‘पीडीएस’ में राष्ट्रीय स्तर पर जारी भष्ट्राचार की एक बानगी भी है। आष्र्चय की बात है कि इन हजारेां कर्मचारी कार्ड धारकों द्वारा अपने हिस्से का केरोसिन न लेने के बाद भी जिलापूर्ति विभाग की देख-रेख मंे गोदाम से उसकी पूरी मात्रा का उठान प्रतिमाह किया जाता है लेकिन लाखों की कीमत का यह तेल जाता कहा  है इसे बताने के लिए कोई जिम्मेदार तैयार नहीं है इन राषन कार्डों में तो केरोसिन वितरण संबंधी कोई विवरण दर्ज नहीं है लेकिन आपूर्ति विभाग से अभिलेखों में सब कुछ दुरूस्त दिखाया जाता है सूत्रों से पता चला है आपूर्ति विभाग के अधिकारियों और कोटेदारों द्वारा आपसी मिली भगत से सरकारी सब्सिडी वाले इस सस्ते तेल को पेेट्रोल पंम्पों पर बेच दिया जाता है जहा इसे महंगे डीजल में मिला दिया जाता है साथ ही इसे खुले बाजार में भी बेचा जाता है जिसे गरीब लोग लगभग तीन गुने कीमत पर खरीदते है। इससे होने वाली मोटी कमाई ने संबंधित सरकारी कर्मियों व कोटेदारों की खाल इतनी मोटी कर दी है कि सवाल करने वाले लोगों को वे धमकाने तक से बाज नहीं आते है। 

इस दौरान आवष्यकता इस बात की है कि व्यापक जांच कराकर गैर जरूरत मंदों के लिए आवंटित केरोसिन कोटे को सोनभद्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्रांे के लिए आवंटित किया जाय। इससे जहाँ गरीबों के घर रोषन होगे वहीं काली कमाई के चलते बना भष्ट जिला आपूर्ति विभाग केरोसिन माफिया और कोटेदारों का नापाक गठजोड़ टूटेगा। यह भष्ट्राचार से जुड़ा मसला तो है ही साथ ही अपराध से भी जुड़ा है क्योकिं  प्रेट्रो पदार्थों के काला बाजारियों मिलावट खोरों के मनेाबल के बढ़ने देने का दुष्परिणाम यूपी में एम. मजंनाथ और महाराष्ट के एडीएम सेानावणे की हत्या के तौर पर देखा जा चुका है साथ ही पत्रकार जे डी ही हत्या भी इसी संदर्भ में की गयी थीं। बेहतर होगा षासन वक्त रहते चेत जाए। नहीं तो इस कालाबाजारी व भष्ट्राचार के खिलाफ उठने वाले हर आवाज को ऐसे ही दबा दिया जायेगा।

विरोध प्रदर्शन को सामंती तरिके से दबाने का उदाहरण सिर्फ उ0प्र0 में ही संभव है। -पंकज कुमार मिश्रा

यह बात तब की है जब वर्ष 2008-2009 में प्रदेष में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस समय उ0प्र0 सरकार की दमनकारी नितियाँ अपने चरम पर है। देश के लोकतान्त्रिक परिदृष्य को धता बताते हुए तानाशाही अब मौलिक स्वरूप को प्राप्त कर चुकी है। इसका ताजातरीन उदाहरण सोनभद्र में पिछले कुछ सालों में विस्थापित हुए आदिवासी-दलितो के एक विरोध प्रदर्शन की कार्यवाही के रूप में दिखायी दिया।  प्रदेश की मुखीया के पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरोध करना आदिवासियों दलितो के नेता पंकज मिश्रा को महंगा पड़ा। सोनभद्र में भारी संख्या में आदिवासीयो/दलितो ने प्रदेश सरकार के प्रतिकात्मक पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरेाध प्रदर्शन किया। लेकिन लोकतांत्रिक रूप में किए गए विरोध स्थानीय पुलिस ने धारा 144 और अन्य कई धाराओ में आदिवासीयो के नेता और समाजसेवी पंकज कुमार मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया। जमीदारी उन्मूलन के बावजूद भी सन् 1952 से वन विभाग, खनन विभाग, और अन्य सरकारी विभागो के झंझावातो के बीच जुझते हुए आदिवासीयो/दलितो को पंकज कुमार मिश्रा के रूप में उजाले की एक लकीर मिली थी। लेकिन लोकतान्त्रिक तरिके से विरोध प्रदर्शन को सामंती तरिके से दबाने का उदाहरण सिर्फ उ0प्र0 में ही संभव है।