बुधवार, 21 दिसंबर 2011

काषी मोड़ से अनपरा बाजार जाने वाली खस्ताहाल सड़क


अनपरा स्थित चैराहे काषी मोड़ से इस क्षेत्र के सबसे बड़े बाजार अनपरा से रेनूसागर जाने वाली सड़क काफी खस्ताहाल होने के चलते इस रास्ते पर आये दिन दुर्घटनाओं में इजाफा होता जा रहा है। सड़क कई जगहों पर बड़े-बड़े गढ्ढों में तबदील होने के चलते राहगिरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चार चक्के की वाहन तो किसी तरीके से निकलने में सफल हो जाते है परन्तु दो चक्के वाहनों पर चलने वालों को उस रास्ते से गुजरने पर उन्हें आजादी से पूर्व की कहानी याद आने लगती है। यह क्षेत्र प्रदेष में विद्युत नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। इस सड़क को निर्माण अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण के समय में ही बनाया गया था। परियोजना द्वारा इस सड़क की उपयोगिता न समझते हुए इसका अनुरक्षण करवाना बन्द कर दिया गया है। जिसके कारण सड़क पर जगह-जगह पर बड़े-बड़े गढ्ढों में तबदील हो गयी है। यदि समय रहते इसका रख रखाव किया जाता तो आज सड़क की स्थिति दयनीय न हुयी होती, इस सड़क के बीचो बीच परियोजना द्वारा स्ट्रीट लाइट लगाया है, परन्तु उसमें लाइट जलना भी अब बन्द हो चुका  है, लाइट न जलने से राहगिरों की कई बार छिनैटी हो चुकी है। रेनूसागर पावर कम्पनी द्वारा गढ्ढों में तबदील सड़क पर गिट्टी व मोरम से गढ्ढे को ढका गया था। मुसलाधार बारिस के चलते गिट्टी-मोरम के बह जाने से सड़क पुनः गढ्ढे में तबदील हो चुकी है। इस सड़क से तापीय परियोजना के कर्मचारियों को भी गुजरना पड़ता है। कालोनी व लोगों का चैबीसों घण्टा इस सड़क से आना-जाना जारी रहता है।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

सोनभद्र का दर्द !


उत्तर प्रदेष के सर्वाधिक पिछड़े इलाकोे मे से एक का अवलोकन करना हो तो सोनांचल का नाम भी आज खासा महत्वपूर्ण हो चला है। एक बार तो किसी को भी सुनने मे हैरानी होगी की यह वही इलाका है जहां पर सघन वन क्षेत्र के बीच ढेर सारी विद्युत इकाईयां है हिण्डालको इण्डस्ट्रीज, जे0पी0 सिमेन्ट और यहां पर खनीज तथा लवण के साथ आयुर्वेदिक जड़ी वुटीयों का भी भरा पुरा भण्डार है। लेकिन इन तमाम वरियताओं के बावजूद भी इस इलाके को आज भी आजादी से पहले वाले काल मे रहना पड़ रहा है। 

लगभग 6788 वर्ग किलोमीटर मे फैला हुआ सोनभद्र 3782 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है जहां हिण्डालको, जे0पी0 ग्रुप के अलावा एन.सी.एल. की कोयला खदाने, एन.टी.पी.सी., ओबरा, अनपरा जैसी बृहद ताप विद्युत परियोजनाएं भी इसी वन क्षेत्र के बीच बनाई गयी है। कालान्तर मे अनपरा परियोजना का दो चरणों के बाद तिसरे चरण मे बिस्तार भी हुआ लेकिन उस विस्तार मे कई महा घोटालों का समन्वय भी सरकारी लिपापोती के बाद स्थापित हुआ। 

चार राज्यों के सिमाओं से सटा उत्तर प्रदेष के मस्तक का तिलक या फिर अपने ऊर्जा उत्पादन के कारण ऊर्जांचल के नाम से भी जाना गया आजादी के फौरन बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यहां पर रिहन्द जलाषय और रिहन्द बांध परियोजना का नींव रखी तो उनका सपना था की यहां से समस्त उत्तर भारत को विद्युत आपूर्ति की जा सके इसी कारण यहां समसय-समय पर अन्य विद्युत इकाईयों का निर्माण भी हुआ लेकिन उस निर्माण मे इस इलाके के सभ्यता को भी छिन्न-भिन्न कर दिया।  परियोजनाओं के निर्माण के लिए यहां मूलनिवासी गरीब अदिवासियों की सारी जमीने हथिया ली गयी लेकिन इसके बदले न तो जमीन का मूआवजा मिला न तो नौकरी ही मिली और सिर्फ मिला तो बेवसी के आसूं और ऐतिहासिक अन्याय है 

दुर से देखने पर चमक-दमक और चकाचैध का नाजारा पेष करने वाली इन औद्योगिक इकईयों को जंगलों का सिना चीर कर और पहाड़ोे को तरास कर बनाया गया। उस समय और बाद मे हर बार नई परियोजनाओं के बनने के साथ इन इलाके के आदिचासियों के सामने सब्जबाज दिखाये गये और हर बार उनके सपनो को परवान चढने के पहले ही तोड़ दिया गया। 

इन आदिवासियों के पूर्नवास, नौकरी, मूआवजे और अधिकार इन सब बिन्दुओं के बावत जब संबंधित अधिकारी से हमने जबाव मांगने की कोषिस की तो उन्हाने ने अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए अपने अधिकारो के स्मर्थता का बयान किया और मामले को षासन स्तर से सुलझाने की ताकीद करने के अलावा उनके पास आदिवासियों के पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट पर कोई ठोस जवाब नही है। 

सोनभद्र आज भी अधिकारियों जन प्रतिनिधियों, समाज सेवकों और निजी संस्थानों के लिए सोने की चिडि़याॅ के समान है लेकिन इन सोने की चिडि़याॅ के बच्चे आज भी दाने-दाने को मोहताज है चिराग तले अंधरे के इस सबसे बड़े उदाहरण के पिछे व्यवस्था का घिनौना चेहरा है, न जाने इन आदिवासियों को आजादी कब मिलेगी लेकिन भय है तो सिर्फ बगावत का जो देष के औद्यौगिक बिकास के पहिये की गति को विराम न लगा दे। 

स्मय पर नहीं जल पा रहे है सोनभद्र के कई हाई मास्ट लैम्प

सोनभद्र में बिजली की स्थिति के बारे में कहा जा सकता है कि ‘‘को नहीं जानत है.....’’ शाम होने के बाद जिला प्रषासन द्वारा जगह-जगह चैराहों पर लगाये गये हाई मास्क लैम्प की स्थिति देखकर लगता है कि सरकार के इतने मंहगे उपकरण को सिर्फ थोड़ी सी उदासीनता के कारण धूल फाकनी पड़ रही है। अक्सर ही लोगों का कहना है कि सरकार ने लैम्प तो लगाया पर उसके विद्युत आपूर्ति एवं उसके बिजली की व्यवस्था पर चुप्पी ही साध ली है पिपरी के ही हाई मास्क लैम्प को ले ली जाय तों वहा लैम्प लगे लगभग 8 माह हो गया है परन्तु अभी तक उसके कनेक्षन के विषय में कुछ भी नहीं किया गया है। ग्राम पंचायत औड़ी में लगे हाई मास्क लैम्प के सामने भी यही बात फसी तो ग्राम प्रधान रीता देवी एवं ग्राम पंचायत सदस्य शक्ति आनन्द के प्रयास से ग्राम पंचायत के कोष से उक्त कार्य हेतु धन एवं बिजली के बिल के लिये भी व्यवस्था की गई। 

शक्ति आनन्द
ग्राम पंचायत सदस्य शक्ति आनन्द का कहना था कि यदि प्रषासन के पास इसका कोई प्रबन्ध नहीं है तो सम्बन्धित नगर पंचायते एवं ग्राम पंचायते इसकी व्यवस्था के लिये प्रयास करें। सरकार बिजली का लाख रोना रोये पर हाई मास्क लैम्प को समुचित बिजली न मिल पाने के पीछे विभाग के अयोग्य कर्मचारियों की भी भूमिका कम नही है। जो कि अपने स्तर पर मेजर डिसीजन लेने से कतराते है। जिससे आम जन मानस को परेषानियो का सामना करना पड़ता है। जहाँ तक जिला मुख्यालय में लगे अनेकों हाई मास्ट लैम्प की बात है,कुछ तो लगने के बाद ही अजीबोगरीब स्थिति में पहुँच गए। कुछ अब दिन में ही रौशनी कर रहे हैं और देर रात ये बंद भी हो जाते हैं। इनके असमय जलने ना जलने के पीछे बिजली विभाग के कर्मचारी तो जिम्मेवार हैं ही, अधिकारी भी लापरवाह हैं। जानकार बताते हैं कि इन लैम्प के समय से जलने के लिए इसमें ‘टाइमर’ लगा हुआ है, पर सम्बंधित कर्मचारी इसे हाथ से घुमा-घुमा कर अंदाजा से ही सेट करते हैं। इस काम के लिए शायद बिजली विभाग में एक भी योग्य कर्मचारी नहीं है। पहले से बिजली के खम्भों पर दिन में भी जलते हजारों बल्ब से उर्जा की बर्बादी तो आम बात थी ही, अब हाई मास्ट लैम्प के जरिये भी बिजली विभाग उर्जा की बड़ी बर्बादी करने में लग गया है।

सुविधाविहीन है उर्जान्चल के बस स्टैंड

उर्जान्चल में कई स्थानों के बस स्टैंड कहने को तो बस स्टैंड है, पर हकीकत तो ये है कि विभिन्न दिशाओं में जाने वाली अधिकाँश सवारियां बस स्टैंड के बाहर पान दुकानों एवं चाय की दुकानों को बस स्टैण्ड बना चुकी है व सवारिया हमेषा वही खड़ी मिलती है। बस स्टैंड के सामने की पान दुकानों एवं चाय की दुकाने ही सवारियों को बिठाने और उतारने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। अगर बस स्टैंड में यात्रियों के लिए मौजूद सुविधाओं की बात की जाय तो यहाँ ऐसा कुछ नही है। दुकानें भी नहीं उपलब्ध है तथा पुरुष तथा महिला यात्रियों के न तो यहाँ बैठने की व्यवस्था है और न ही कोई बाथरूम, यात्रीगण अपने बैग और ब्रीफकेश पर बैठकर काम चलाते हैं। यहाँ बाथरूम नहीं रहने से लोग यत्र-तत्र दीवार पर पेशाब करते नजर आ सकते हैं। दुखद स्थिति यह है कि वही आपको सटे चाय की दुकान मिलेगी जहाँ लोग बैठकर चाय की चुस्कियों के बीच आने वाली सवारी का इन्तजार करते रहते हैं। 

बताया जाता है कि प्रतिवर्ष बस स्टैंड का टेंडर होता है, प्रशासन भी टेंडर करवाने के बाद अपनी जिम्मेवारी की इतिश्री मान लेती है। यात्रियों की परेशानी से किसी को कोई लेना देना नहीं होता है। आवश्यकता है जिला प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की ताकि उर्जान्चल के बस स्टैंड की सेहत में सुधार आ सके

नशे की गिरफ्त में आ रहे उर्जांचल के युवा व बच्चे

उर्जांचल के युवाओं में नशे का क्रेज दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। क्रेज इतना कि अब स्कूली बच्चे भी इसकी जद में आ रहे है। सिगरेट व जर्दा वाले पाउच तो आम बात हैं, भांग गांजा व शराब का सेवन भी अधिकतर युवाओं की पसंद बन गयी है। स्कूली बच्चे और कुछ युवाओं ने तो नशे की ऐसी-ऐसी सामग्रियों का ईजाद कर लिया है कि अगर इनके अभिभावकों को ये बातें पता चले तो उनके पाँव तले जमीन खिसक जायेगी। अभिभावक सोच भी नहीं सकते कि इनके बच्चे ह्वाईटनर, इरेजर, कफ सीरफ, थिनर, सुलेशन और बोनफिक्स, आयोडेक्स जैसी चीजें भी नशे के लिए प्रयोग कर रहे हैं जो घर के लोगों की नजरों से आसानी से बच जाते हैं। इनमे से कुछ चीजें सूंघने के काम में आती हैं। नशे की आदत से उर्जान्चल के कुछ युवा इतने मजबूर हो चुके हैं कि वे अब नशे की सूई तक लेने लगे हैं। ये दवाइयों की दूकान से मार्फिन, टेडिजोसिक, फोट्रीन, कैलमपोज व पैक्सम के अलावा लारजेक्टिल खरीद कर इसे नशे के रूप में उपयोग में ला रहे हैं। माना जाता है कि इन दवाईयों का प्रयोग वे ही करते हैं जिनपर हेरोईन भी अपना असर नहीं दिखा पाती है।

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

25 हजार आदिवासियों के पुनर्वास और पुर्नस्थापन

  1. अनपरा थर्मल पावर और उप्र विद्युत निगम ने कहा सुप्रीम कोर्ट से
  2. मिर्जापुर में 1978 से 1984 से के बीच हुआ था अधिग्रहण
25 हजार आदिवासियों के पुनर्वास और पुर्नस्थापन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश विद्युत निगम व अनपरा थर्मल पावर ने राज्य सरकार की नीति के तहत जमीन के बदले प्लाट और मुआवजा देने को कहा है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि दोनों प्रतिवादी उन आदिवासियों के परिवार के सदस्यों को नौकरी देने से इनकार कर रहे हैं जिनकी पूरी जमीन अधिग्रहीत की गई थी जबकि राज्य सरकार की नीति के तहत ऐसे मामले में नौकरी देने का प्रावधान है।

गौरतलब है कि मिर्जापुर के दुद्धी में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार की ओर से 1978 से 1984 से दौरान किया गया था। इसके बाद से आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन का विवाद जारी है।
 

PANKAJ MISHRA
याचिकाकर्ता पंकज मिश्रा व सहयोग सोसाइटी के अनुसार केंद्र की ओर से साल 2003 में पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन की नीति जारी की गयी थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से 2011 में इस नीति को लागू किया गया जबकि मिर्जापुर में 25 साल पहले अधिग्रहण किया गया। अब भूमि की एवज में आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन को लेकर गंभीर नहीं है। राज्य सरकार के दोनों प्राधिकरण परिवारों को जमीन के बदले प्लाट देने और मुआवजा देने को तैयार हैं लेकिन जिन परिवारों की पूरी जमीन का अधिग्रहण किया गया है। उन्हें नौकरी देने से इंकार कर रहे हैं जबकि यह प्रावधान राज्य सरकार की नीति में शामिल है। राज्य के प्राधिकरण सरकार की नीति का पालन नहीं कर रहे हैं।

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

अनपरा तापीय परियोजना के विश्थापित प्रकरण की विस्तृत रिपोर्ट

उ.प्र. के जनपद सोनभद्र में स्थित उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की अनपरा तापीय परियोजना के लिए 1978-84 में भूमि अर्जन अधिनियम 1894 के तहत अधिग्रहित की गयी भूमि से विस्थापित/प्रभावित 2412 (1099 भू-विस्थापित एवं 1313 मकान प्रभावित) परिवारों (आदिवासी/वनवासी/अनुसूचित जाति/जनजाति के लगभग 25 से 30 हजार) के पुर्नवास, पुर्नबसाहट एवं सेवायोजन एवं अन्य समस्याओं पर उ.प्र. सरकार द्वारा पहल न कर बल पूर्वक उनके मौलिक अधिकारों के हनन करने तथा वनाधिकार अधिनियम 2006 एवं नियम 2007 के तहत जनजाति परिवारों को दिये गये वनाधिकार की भूमि पर उ.प्र. सरकार की अनपरा तापीय ‘डी’ परियोजना एवं निजी औद्योगिक घरानों द्वारा अतिक्रमण एवं हस्तक्षेप किये जाने से विस्थापित प्रतिनिध एवं विस्थापित क्षुब्द है। उत्तर प्रदेष जनपद सोनभद्र आदिवासी/वनवासी बाहुल्य जनपद है। जनपद सोनभद्र में मूलतः पीढि़यों से वनों एवं वन सम्पदाओं पर आधारित आदिवासी/वनवासी अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं। यहां उद्योगों के लिए पर्याप्त खनिज एवं अन्य संसाधन उपलब्ध होने के कारण गोविन्द बल्लभ पन्त सागर पर रिहन्द डैम, एनटीपीसी, राज्य सरकार एवं कई निजी विद्युतगृह, कोल इण्डिया की सबसे अधिक लाभ देने वाली अनुषंगी इकाई एनसीएल की कोयला खदान परियोजनाएं, हिण्डाल्को इण्डस्ट्रीज लिमिटेड, रेनुकूट, केसीआई, रेनुकूट, सीमेण्ट परियोजना एवं अन्य औद्योगिक संस्थान स्थापित हैं। जनपद सोनभद्र में स्थित विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं के लिए दशकों पूर्व यहां के स्थानीय मूल निवासियों जिसमें मुख्यतः अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति के लोगों की हजारों एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी तथा उन्हे अपनी पुश्तैनी भूमि से दो से तीन बार विस्थापित किया गया। उनसे अधिग्रहित की भूमियों पर वर्तमान में संचालित हो रही औद्योगिक परियोजनाएं देश के औद्योगिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा रही है तथा पूरा क्षेत्र ”पावर हब“ के नाम से जाना जाता है। लगभग 10 हजार मे.वा. का उत्पादन इस क्षेत्र में स्थापित विभिन्न विद्युत परियोजनाएं कर रही हैं तथा आने वाले पांच सालों में निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित बिजली परियोजनाओं से लगभग 25 से 30 हजार मे.वा. बिजली का उत्पादन क्षेत्र की विद्युत परियोजनाओं से किया जायेगा।

70 के दशक में 3130 मे.वा. की अनपरा तापीय परियोजना के लिए आदिवासियों/वनवासियों की भूमि परियोजना के निर्माण हेतु अधिग्रहित की गयी परन्तु सरकारी उपेक्षा के कारण विस्थापनोपरान्त मिलने वाले लाभ से उन्हे वंचित रहना पड़ा जिसमें मुख्यतः अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग प्रभावित हो रहे हैं जिनके समक्ष आजीविका का साधन शून्य होने की स्थिति में भुखमरी/पिछड़ेपन जैसी गम्भीर समस्याएं खड़ी हैं। इस नक्सल प्रभावित जनपद में आदिवासियों/वनवासियों की पीड़ा उनके साथ हुए भेदभाव को दर्शाता है जिसमें उनके जीवन यापन के मूलभूत आधार को राष्ट्रहित में अधिग्रहित किया गया परन्तु अधिग्रहण से प्रभावित विस्थापितों/प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापन एवं पुर्नबसाहट की उपयुक्त व्यवस्था न होने के कारण आज आदिवासी/वनवासी स्वयं को सरकारी उपेक्षा के कारण छला महसूस करता है तथा धीरे-धीरे उसका झुकाव नक्सल विचारधारा की ओर बढ़ता जा रहा है। सभ्य समाज के लिए उपरोक्त परिस्थितियां चिन्तनीय विषय है जिसके लिये हर स्तर पर प्रयास कर आदिवासियों/वनवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़कर उनके मौलिक अधिकारों को दिलवाना केन्द्र एवं राज्य सरकार तथा सामाजिक संस्थाओं की नैतिक जिम्मेदारी है। 

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा 1978 से 1984 के बीच 3130 मे.वा. की प्रस्तावित अनपरा तापीय विद्युत परियोजना के लिए कुल 5076 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें कुल सात ग्राम सभा के किसानों की 3106.487 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल 1307 परिवार प्रभावित हुए जिनमें से 80 प्रतिशत लोगों की 100 प्रतिशत भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण से सर्वाधिक प्रभावित (80 प्रतिशत) अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग रहे तथा परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण में 898 लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित हुए। 

उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट 1948 की धारा 79 (सी) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए उ.प्र.रा.वि.परिषद अपने अधीन सभी कार्यालयों/परियोजनाओं/कार्यस्थलों एवं विद्युत उपसंस्थानों हेतु भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय-1987 बनाया गया। जिस नियमावली के आधार पर अनपरा परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवारों  के सदस्यों में से 304 लोगों का स्थायी सेवायोजन 1994 तक प्रदान किया गया। शेष बचे विस्थापितों को परियोजना के विस्तार होने एवं सेवायोजन के लिए रिक्तियों की उपलब्धता होने पर सेवायोजित करने के बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी। महत्वपूर्ण है कि जिन लोगों को परियोजना द्वारा भूमि के बदले सेवायोजन दिया गया उसमें भी आदिवासियों/वनवासियों/अनुसूचित जाति/जनजाति परिवार के सदस्यों को अपेक्षाकृत कम लोगों को सेवायोजन दिया गया तथा सामान्य एवं पिछड़ी जाति/अन्य पिछड़ी जाति के प्रभावी लोगों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जबकि सामान्य एवं पिछड़ी जाति के लोगों की अपेक्षा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग अधिक प्रभावित हुए तथा उनके समक्ष आजीविका के अन्य विकल्प नहीं मौजूद थे परन्तु तत्कालीन अधिकारियों द्वारा भेदभाव करते हुए उन्हे लाभ से वंचित रखा गया।

वर्ष 1994 तक प्रस्तावित 3130 मे.वा. में सिर्फ 1630 मे.वा. उत्पादन क्षमता वाली अनपरा-अ एवं ब परियोजना का ही निर्माण हो पाया। शेष परियोजना 2007 तक अधर में लटकी रही तथा विस्थापितों को परियोजनाओं के आने पर सेवायोजन उपलब्ध कराने की बात परियोजना द्वारा कही गयी। इसी बीच 2007 में वर्तमान राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की गयी भूमि में से 300 एकड़ भूमि निजी कम्पनी मेसर्स लेन्को अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड, अनपरा को 35 वर्ष की लीज अनुबन्ध पर 1200 मे.वा. क्षमता अनपरा ”सी“ विद्युतगृह के निर्माण एवं संचालन के लिए दे दिया गया। वर्ष 2008 से  अनपरा-डी परियोजना (एक हजार मे.वा.) का निर्माण भी उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा कराया जा रहा है। परियोजनाओं के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों में अपनी स्थायी सेवायोजन की आस जगी तथा स्थायी सेेवायोजन को लेकर अपनी बात विस्थापितों ने मुखर की एवं आन्दोलन किया। स्थिति गम्भीर होने पर प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद प्रबन्धन एवं विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच प्रशासन की उपस्थिति में 29.01.2008. को वार्ता हुई जिसमें पहली बार प्रबन्धन द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित सदस्य की नियुक्ति प्रथम संशोधन विनियमावली-1994 के विनिमय-4 में हुए संशोधनों का हवाला देकर शेष बचे विस्थापितों/प्रभावित परिवार के सदस्यों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने के सम्बन्ध में बैठक की कार्यवृत्त बिन्दु संख्या-2 में निम्नवत संशोधन का उल्लेख किया है-
अनपरा परियोजना में षेश बचे विस्थापितों को समायोजित किया जाये तथा संविदा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाये।
‘‘ विषयगत बिन्दु निगम स्तरीय नीति विषयक मामला है। भूमि अध्याप्ति नियमावली, 1987 के प्राविधानों के अधीन अर्ह विस्थापितों को सेवायोजन प्रदान किया जा चुका है तथा 169 विस्थापितों को नौकरी के एवज में रूपया एक लाख व्यक्ति तथा 55 व्यक्ति जिनके मकान गये थे उन्हे रूपया 25000 प्रति व्यक्ति की दर से क्षतिपूर्ति मण्डलायुक्त, विन्ध्याचल के माध्यम से भुगतान करवाया जा चुका है। शेष बचे विस्थापितों को उ.प्र.रा.वि.प. (भूमि अध्याप्ति) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) विनियामवली, 1994 के विनियम-4 के अधीन भूमि अध्याप्ति हेतु की गयी विज्ञप्ति के दिनांक सात वर्ष के पश्चात सेवायोजन प्रदान नहीं किया जा सकता है। समिति के सदस्यों ने इस पर प्रतिरोध व्यक्त किया तथा अनुरोध किया कि अनपरा-सी एवं डी के निर्माण के पूर्व शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन हेतु उक्त प्राविधान में संशोधन के लिए उत्पादन निगम से अनुरोध किया जाये। उक्त समस्या के निदान हेतु निगम (मु.) के सक्षम अधिकारी से विस्थापितों की वार्ता हेतु अनुरोध किया जायेगा। परियोजना प्रबन्धन द्वारा स्पष्ट किया गया कि संविदा श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का  भुगतान किया जा रहा है। ’’ संशोधन का हवाला देकर प्रबन्धन द्वारा शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने की बात कही गयी है। परन्तु प्रबन्धन द्वारा जिस संशोधन का हवाला दिया जा रहा है वह उन व्यक्तियों पर प्रभावी होगा जिनकी भूमि अध्यापित हेतु विज्ञप्ति उक्त नियमावली में संशोधन के प्रभावी होने के बाद अधिग्रहण हेतु विज्ञापित की गयी हो। अनपरा तापीय परियोजना के लिए भूमि अध्याप्ति हेतु विज्ञप्ति 1978 से शुरू हुई तथा भूमि अधिग्रहण की समस्त प्रक्रियाएं 1984 तक पूरी कर ली गयी। यहां उल्लेखनीय है कि परियोजना में 1989 से 1994 तक विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जो भूमि अध्याप्ति की विज्ञप्ति के सात वर्ष पश्चात दिया गया हैै जो स्वतः स्पष्ट करता है कि उक्त संशोधन अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन देने में प्रभावी नहीं है।

वर्ष 1997-1998-1999 में कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम ब तापीय परियोजना, अनपरा द्वारा इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को दिये गये जिसमें यह कहा गया कि आपकी भूमि अनपरा तापीय परियोजना परिक्षेत्र में पड़ रही है इसलिए जब भी परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरीयता क्रम में नौकरी दी जायेगी।
वर्ष 2002 में विस्थापितों द्वारा अपने सेवायोजन की मांग को लेकर किये गये आन्दोलन के पश्चात तत्कालीन आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा प्रकरण पर बैठक की गयी तथा बैठक के उपरान्त अपनी रिपोर्ट श्री आर.बी. भास्कर प्रमुख सचिव, (ऊर्जा) उ.प्र. शासन, लखनऊ को भेजी जिसमें 169 परिवारों को सेवायोजन के बदले एक मुश्त एक लाख की राशि तथा जिनके मकान प्रभावित हुए हैं एवं जिनकी एक एकड़ से कम भूमि अधिग्रहित की गयी है उन्हे मानवीय दृष्टिकोण से 25 हजार रूपया 55 परिवारों को दिये जाने की बात कही गयी। आयुक्त द्वारा विस्थापित, प्रबन्धन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच करायी गयी बैठक में भी प्रबन्धन द्वारा विस्थापित परिवारों के सेवायोजन से सम्बन्धित प्राविधानों में किसी प्रकार के संशोधन की बात का उल्लेख नहीं किया न ही आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा भेजे गयी शासन को अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की उक्त नियमावली में संशोधन की बात कही गयी।
अनपरा-सी एवं डी परियोजना के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों को सेवायोजन न मिलने की स्थिति में उनके द्वारा किये जा रहे आन्दोलनों केा राज्य सरकार द्वारा बल पूर्वक दबाने एवं विस्थापितों/प्रभावित परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। जबकि उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा नयी परियोजनाओं के आने पर सृजित होने वाले स्थायी रोजगार की उपलब्धता पर विस्थापितों को प्राथमिकता के आधार पर स्थायी सेवायोजन देने की बात प्रबन्धन द्वारा लिखित रूप से दी गयी थी। उ.प्र.रा.वि.परिषद (भूमि अध्यापित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय 1987 के प्राविधानों में निहित है। महत्वपूर्ण है कि जिन शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया गया उनमें से 80 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति/जनजाति के है जिनकी शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सार्वजनिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रहित में 30 वर्ष पूर्व ही अधिग्रहित की जा चुकी है। परन्तु राज्य सरकार द्वारा उनको विस्थापन के उपरान्त मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रखा है जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विस्थापितों के समक्ष जीविकोपार्जन का कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण भूखों मरने की स्थिति है, सरकार की उपेक्षा के कारण विस्थापितों में गहराता आक्रोश निश्चित ही गम्भीर चिन्ता का विषय है। क्षे़त्र में विस्थापितों का आन्दोलन कभी भी हिंसक हो सकता है जिससे इस उद्योग बाहुल्य जनपद की विधि व्यवस्था एवं राज्य/केन्द्र की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पंकज मिश्रा, सचिव, सहयोग (गैर सरकारी संगठन), औड़ी, अनपरा, सोनभद्र की तरफ से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका सिविल मिस.रिटपीटिशन संख्या-26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा अपने 14/05/2009 के आदेश में उक्त प्रकरण पर बिना कोई हस्तक्षेप किये बगैर न्यायालय द्वारा अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। न्यायालय के उक्त आदेश को हमारी संस्था द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी गयी है।विस्थापितों /प्रभावित परिवार के सेवायोजन एवं सात बिन्दुओं पर 02 जून, 2009 को जन सूचना अधिकारी, अनपरा तापीय परियोजना से विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा सात बिन्दुओें पर सूचना मांगी गयी थी। परियोजना द्वारा बिन्दु संख्या 6 में उपलब्ध करायी गयी सूचना/प्रपत्र इस बात की पुष्टि करता है कि तथाकथित भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्यों की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) नियमावली 1994 संख्या 37-विनि-23/राविप-153-ए!1978 दिनांक 7.2.1994 के संशोधन की अधिसूचना/गजट जारी नहीं किया गया है ऐसी परिस्थिति में तथाकतिथ संशोधन निष्प्रभावी है। पंकज मिश्रा द्वारा मांगी गयी सूचना-कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम, “ब“ तापीय परियोजना अनपरा सोनभद्र द्वारा वर्ष 1998 एवं 1999 में इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को जारी किये गये जिसमें यह कहा गया है कि “अनपरा तापीय परियोजना के डिबुलगंज क्षेत्र में आपकी भूमि पड़ रही है। इसलिए जब परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरिष्ठतर नौकरी दी जायेगी।“ उक्त पत्रों में किन नियमावली के तहत विस्थापित परिवारों के सदस्यों को परियोजना में सेवायोजन देने की बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी है एवं इस तरह के कितने पत्र सम्बन्धित कार्यालय द्वारा विस्थापित परिवार के सदस्यों को जारी किये गये सम्बन्धित पत्रों की छाया प्रति उपलब्ध कराये। जनसूचना अधिकारी, कार्यालय मुख्य अभियन्ता अनपरा तापीय परियोजना द्वारा अपने पत्रांक 265/मु.अभि./सूचना प्रकोष्ठ/अ.ता.प./09/2009 दिनांक 19.11. 2009 में बिन्दु संख्या सात में उपलब्ध करायी गयी सूचना-उ.प्र. राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति विनियम-1987 में वर्तमान विनियम को प्रथास्थापित किया गया। विनियम 1987 के विनियम-4 जिसमें भर्ती सम्बन्धी विनियम संशोधित किया गया है उस संशोधित विनियम के अन्तर्गत ही विस्थापित/प्रभावित  परिवार के सदस्यों को परियोजना में सेवायोजन दिये जाने की बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विस्थापितों के सेवायोजन के लिए दाखिल याचिका को खारिज कर दिये जाने के बाद विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा उक्त आदेश को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी-सिविल) सीसी नं.14744/2009, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार दाखिल की गयी। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवायी करते हुए आदिवासियों, अनुसूचित जाति के लोगों के मौलिक अधिकारों/मानवाधिकारों के हनन  के प्रकरण पर संज्ञान लेते हुए उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। सर्वोच्च न्यायालय की इस पहल से लगभग 20 से 25 आदिवासियों/अनसूचित जाति के लोगों में एक नया विश्वास जागा है। विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा उत्तर-प्रदेश सरकार के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अनपरा परियोजना के विस्थापितों (आदिवासी/दलित) के सेवायोजन एवं अन्य सुविधाओं को राज्य सरकार द्वारा उ.प्र. राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम 1987 के प्रथम संशोधन विनियमावली 1994 के विनियम-4 के आधार पर अस्वीकार किये जाने को चुनौती दी गयी तथा न्यायालय द्वारा याचिका को स्वीकार्य करते हुए उत्तर-प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया तत्पश्चात उ.प्र.राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा सूचना के अधिकार के तहत 2 जून, 2009 को मांगी गयी सूचना के क्रम संख्या-6 के क्रम में सम्बन्धित संशोधन के अधिसूचना के गजट की छाया प्रति की जगह भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2003 को उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा अंगीकृत किया जाना बताया गया तथा इसकी गजट की छाया प्रति उपलब्ध करायी जिसमें प्रमुख सचिव उत्तर-प्रदेश शासन द्वारा अपने 10 अगस्त, 2004 के पत्र द्वारा सभी सम्बन्धित प्रमुख सचिव/सचिव, समस्त विभागाध्यक्ष, मण्डलायुक्त/जिलाधिकारी को पत्र जारी किया है जिसके महत्वपूर्ण सम्बन्ध निम्नवत है-
(1)    भारत सरकार की पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2003 भूमि अर्जन अधिनियम-1894 के अन्तर्गत अर्जित की जाने वाली भूमि के सम्बन्ध में प्रभावित परिवारों पर लागू मानी जायेगी।
(2)    भारत सरकार की उपरोक्त नीति प्रदेश के सभी विभागों पर समान रूप से लागू मानी जायेगी तथा यदि कोई विभाग अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं को देखते हुए भूमि अर्जन से प्रभावित परिवार को अन्य अतिरिक्त देना चाहता है तो वह विभाग सक्षम स्तर से निर्णय लेकर अतिरिक्त सुविधा भूमि अर्जन से प्रभावित परिवारों की देन के लिये स्वतन्त्र होगा, परन्तु भारत सरकार के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति, 2003 का अनुपालन प्रत्येक विभाग के लिए अनिवार्य होगा।
पुनः विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा जब उत्तर-प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति, प्रथम संशोधन, विनियमावली 1994 गजट की छाया प्रति नहीं उपलब्ध कराने के सन्दर्भ में की गयी अपील की बाबत जन सूचना अधिकारी अ.ता.प., अनपरा प्रमोद कुमार ने पत्रांक 413/मु.अभि./सूचना प्रकोष्ठ/अ.ता.प./09/2009 दिनांक 19/02/2010, पत्रांक 344/मु.अभि./सूचना प्रकोष्ठ/ अताप/2009 दिनांक 12.01.2010 द्वारा आपके अनुस्मारक 2 के अनुसार सूचना दिया गया था जिसमें आपके क्रम सख्ंया 02 एवं 06 के क्रम में स्पष्ट किया गया था कि वांछित सूचना प्राप्त करने के लिए पत्राचार किया जा रहा है, के सम्बन्ध में अवगत कराना है कि वांछित कार्यालय में सूचना उपलब्ध नहीं है जिसके कारण वांछित सूचना दिया जाना सम्भव नहीं है। इस तरह से आपके प्रकरण पर जो सूचना उपलब्ध थी दिया गया अब कोई सूचना देय नहीं है। परियोजना द्वारा की गयी टिप्पणी से यह स्पष्ट है कि उक्त संशोधन विधि अनुरूप नहीं है ना ही उसे गजट में प्रकाशित किया गया है ऐसी परिस्थिति में यह अमान्य है।
17 मार्च, 2010 से किये गये विस्थापितों एवं विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा सत्याग्रह एवं पदयात्रा का उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया तो उत्तर-प्रदेश सरकार के विरूद्ध दलित/आदिवासी विस्थापितों ने हजारों की संख्या में 21 मार्च को पद यात्रा कर सड़क पर भीख मांगी एवं एकत्र किये गये रूपये को माला में पिरोकर सूबे की मुखिया मायावती के प्रतीकात्मक पुतले को पहना कर थाना अनपरा के सामने अपना विरोध प्रदर्शन किया। उत्तर-प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में दलित/आदिवासियों द्वारा सूबे की मुखिया के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना सरकार को नागवार गुजरा तथा विद्वेष की भावना से सत्याग्रहियों के विरूद्ध सूबे की मुखिया, बसपा नेताओं एवं प्रमुख सचिव गृह उत्तर-प्रदेश के आदेश पर 22 मार्च, 2010 को आईपीसी की धारा 143, 188 एवं 500 के तहत पंकज मिश्रा एवं अन्य के विरूद्ध मामला दर्ज किया गया। 04 अप्रैल 2010 को पंकज मिश्रा एवं अन्य को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के विरोध में बड़ी संख्या में दलित-आदिवासी विस्थापितों एवं आम जनों ने विरोध दर्ज कराया एवं हजारों की संख्या में अपनी सामूहिक गिरफ्तारी दी। जिसके सन्दर्भ हिन्दी दैनिक अखबार अमर उजाला ने यह प्रकाषित किया की ‘‘संख्या ज्यादा होने से बसें पड़ी कम’’ ‘‘ उर्जान्चल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि सत्तासीन पार्टी के विरोध में किसी पार्टी के नेतृत्व में विस्थापितों ने इतनी ज्यादा संख्या में गिरफ्तारी दी’’।
उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की अनपरा तापीय परियोजना द्वारा उ.प्र. राज्य विद्युत परिशद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति प्रथम संसोधन-विनियमावली-1994) का सन्दर्भ लेते हुए यह कहा गया है कि भूमि अध्यापित हेतु की गई विज्ञाप्ति के दिनांक से 07 वर्श के पश्चात सेवायोजन प्रदान नहीं किया जा सकता है। जिसके आधार पर अ.ता.प. परियोजना के शेष बचे प्रभावित परिवार के नियुक्ति उक्त संसोधन के उपरान्त नहीं किया जा सकता। संसोधन के जारी करने की तिथि 07.02.1994 दर्षाई गई है जिसमें संक्षिप्त नाम तथा प्रारम्भ के क्रम संख्या ‘ख’ में इसे तत्काल प्रभाव से प्रभावी बताया गया है। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जन सूचना अधिकारी, उ.प्र. पावर कार्पोरेषन लिमिटेड, लखनऊ तथा उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि., लखनऊ मुख्यालय से आवेदन के बिन्दू संख्या 4 में विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा यह सूचना मांगी गई।
‘‘उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिशद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवारों के सदस्य की नियुक्ति) प्रथम संसोधन- विनियमावली-1994  जिसे परिशद के सचिव की आज्ञा से परिशादेष संख्या 37/विनि-23/रा.वि.प.94.153-ए /198 दिनांक 07.02.1994 द्वारा जारी किया गया। इसके प्रभाव में आने की तिथि, प्रभाव षून्य होने की तिथि तथा प्रभाव में आने एवं प्रभाव षून्य होने के सन्दर्भ में षासकीय गजट में प्रकाषित गजट की छायाप्रति उपलब्ध कराये तथा यह सूचना उपलब्ध कराये कि कोई परिशादेष किन्हीं कारणों में षासकीय गजट में प्रकाषित नहीं हुआ हो तो ऐसी परिस्थिति में परिशादेष प्रभावी होगा या नही।’’
उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के मुख्यालय द्वारा मांगी गई उपरोक्त सूचना के सन्दर्भ में यह कहा गया कि उक्त सूचना उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिशद के विघटन के पूर्व से सम्बधित है जिसकी सूचना उत्तर प्रदेष पावर कार्पोरेषन लिमिटेड से प्राप्त करें। उत्पादन निगम एवं पावर कार्पोरेषन मुख्यालय से 01.04.2010 को 08 बिन्दूओं पर एक ही प्रकार की सूचना आवेदन देकर मांगी थी। जिसके क्रम में श्री विनोद कुमार, अनु. सचिव, उत्तर प्रदेष पावर कार्पोरेषन लिमिटेड, लखनऊ द्वारा अपने पत्रांकः 4063-सू.प्रा.अ.(15)/पकालि/ 10-288ज.सू./10 दिनांक 13.08.2010 में निम्नवत् सूचना उपलब्ध कराई गई:
‘‘ अनु सचिव (विनियम), उ.प्र. पावर कारर्पोरेषन लि., षक्तिभवन, लखनऊ ने अपने पत्रांक-86-विनियम एवं औ.सं./पकालि/2010-05विनियम एवं औ. सं./2010 दिनांक 06.08.2010 के माध्यम से सूचित किया है कि आपके द्वारा वांछित सूचना 20 वर्ष से अधिक पुरानी अवधि की होन के कारण उपलब्ध कराई जानी सम्भव नहीं है। साथ यह भी अवगत कराना है कि विद्युत (प्रदेय) अधिनियम 1948 की धारा 79 (सी) के अन्तर्गत पूर्ववर्ती उ.प्र. राजय विद्युत परिशद को विनियम बनाने का अधिकार प्राप्त थे। ये विनियम षासकीय गजट में प्रकाषित होने से प्रभावी होते थे। इस व्यवस्था के अन्तर्गत विधान सभा अथवा महामहिम राज्यपाल, उ.प्र. के समक्ष प्रस्तुत किये जाने का कोई प्राविधान नहीं था। ’’
उत्तर प्रदेष पावर कार्पोरेषन लिमिटेड द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना में स्पश्ट किया गया है कि विनियम षासकीय गजट में प्रकाषन से प्रभावी होते थे। विगत चार वर्शो से अनपरा तापीय परियोजना एंव राज्य विद्युत उत्पादन निगम के मुख्यालय से उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिशद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवारों के सदस्य की नियुक्ति) प्रथम संसोधन-विनियमावली-1994  जिसे परिशद के सचिव की आज्ञा से परिशादेष संख्या 37/विनि-23/रा.वि.प.94.153-ए/198 दिनांक 07.02.1994 द्वारा जारी संसोधन-विनियमावली-1994 की षासकीय गजट में प्रकाषित गजट की छायाप्रति मांगी गई। परन्तु अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। मेरे द्वारा स्वयं अपने स्तर पर उक्त प्रथम संसोधन-विनियमावली-1994 जिसे उ.प्र. राज्य विद्युत परिशद् (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवरों के सदस्य की नियुक्ति) (प्रथम संसोधन) विनियमावली, 1994 के सरकारी गजट की छायाप्रति प्राप्त की गई है। जिसे उत्तर प्रदेष सरकार द्वारा प्रकाषित गजट में इलाहाबाद, षनिवार 31 अक्टूबर 1998 को प्रकाषित होना दर्षाया गया है। जिस पर उर्जा विभाग, अनुभाग-2 का पत्रांक संख्या 667 (1) पी-2/98- 24- 46 (एम)-ई-98 दिनांक 10 सितमबर 1998 दर्षाया गया है। उक्त गजट का प्रकाषन 31 अक्टूबर 1998 को हुआ है। जो उक्त विनियमावली में 07.02.1994 के संसोधन के सन्दर्भ में है। जिसे उक्त संसोधन के पाँच वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद प्रकाषित किया गया है। जिसकी वैधानिकता पर प्रष्नचिन्ह है। उक्त गजट 31.10.1998 को प्रकाषित किया गया है जिसके आधार पर उक्त गजट के पूर्व 1978 से 1987 के मध्य अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु अधिग्रहित की गई जमीनों से विस्थापित हुए परिवारों के स्थायी सेवायोजन के सन्दर्भ में तथाकथित संसोधन एवं गजट प्रभावी नहीं है। जिसकी स्वतः पुश्टि पावर कार्पोरेषन के मुख्यालय एवं प्रकाषित गजट से होती हैै। जिसके बिन्दू संख्या 4 के क्रम में यह दर्षाया गया है कि-
‘‘ प्रतिबन्ध यह है कि भूमि अध्यापित हेतु की गयी विज्ञाप्ति के दिनांक से सात वर्श के पष्चात इस विनियमावली के अन्तर्गत किसी को सेवायोजन प्रदान नहीं किया जायेगा। ’’
उपरोक्त सरकारी गजट दिनांक 31.10.1998 को संसोधित की गई विनियमावली 31.10.1998 के बाद भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत अधिग्रहित की जाने वाली भूमि पर प्रभावी होगा। जबकि अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु 1978 से 1987 के पूर्व भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत उनकी भूमि का अधिग्रहण किया गया जिनके स्थायी सेवायोजन के सन्दर्भ में उ.प्र. राज्य विद्युत परिशद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम 1987 वर्तमान में भी प्रभावी है।
उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड की अनपरा परियोजना द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत उपलब्ध करायी गई 12.01.2010 पत्रांक 344/मु.अभि./सूचना प्रकोश्ठ/अ.ता.प./09/2009 जिसे संलग्नक 14 में पृष्ठ संख्या 197 से 219 पर संलग्न किया गया है एवं मुख्य अभियन्ता (स्तर-1) अ.ता.प. विद्युत गृह के पत्रांक 2140/मु.अभि. (स्तर-1)/कार्य/अताविगृ/ दिनांक 02.07.2010 में यह बताया गया है कि उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. द्वारा  राष्ट्रीय पुर्नवास निति 2003 को एतद्द्वारा अंगीकृत किया जाता है एवं आदेष निर्गत होने की तिथि से यह नियमावली ‘‘उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2009 कहलायेगी। जिसे निदेषक मण्डल की आज्ञा से पत्रांक 169/औ.सं./उनिलि/(भूमि अध्या.) दिनांक 28.07.2009 द्वारा जारी कर प्रभावी किया गया है।
उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. की परिक्षा तापीय परियोजना में मास्टर रोल कर्मिकों के विनियमितिकरण हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किये जाने के सन्दर्भ में सचिव, विद्युत उत्पादन सेवा आयेाग द्वारा अपने पत्रांक 361/उ.नि.लि./ 2009 /उ.प्र.रा.वि.उ.से.आ./मस्टर रौल, दिनांक 09.09.2009 में जारी कार्यालय ज्ञाप में 60 विभिन्न पदों पर नियुक्ति हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किये है जिसमे भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति विनियमावली 1987 (यथा संसोधित) विनियम के आधार पर श्रमिकों एवं विभिन्न पदों पर कार्यरत मस्टर रौल कर्मचारियों को को विनियमितिकरण किये जाने की पुश्टि होती है। जिससे स्पश्ट है कि 1987 में जारी की गई विनियमावली उन भू-विस्थापितों एवं परियोजना प्रभावित  व्यक्ति पर प्रभावी है। जिनके मकान एवं भूमि का अधिग्रहण उक्त विनियमावली में प्रथम संसोधन 07.02.1994 के पूर्व किया गया है। परन्तु अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों के स्थायी सेवायोजन के सन्दर्भ में जिनकी भूमि का अधिग्रहण 1978 से 1987 पूर्व किया गया है जिन पर तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा बनायी गई भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति विनियमावली 1987 प्रभावी है। उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों स्थायी सेवायोजन को इनकार कर उनके मामले में राष्ट्रीय पुर्नवास निति 2003 को अंगीकृत कर उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा यह कहा गया कि यह नियमावली ‘‘उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2009 कहलायेगी’’। जिसे 28 जुलाई 2009 से निदेषक मण्डल की आज्ञा से प्रभावी किया गया है। जिसके आधार पर अनपरा तापीय परियोजना के षेश बचे विस्थापितों के परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया जा सकता। जबकि उत्पादन निगम की पारिक्षा परियोजना में आज भी उन प्रभावित परिवारों का जिनकी भूमि का अधिग्रहण तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा बनाई गई भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति विनियमावली 1987 के पूर्व किया गया है। उन पर पूर्ववत् प्रभावी है जो संलग्न किये जा रहे सचिव, विद्युत उत्पादन सेवा आयोग के 09.09.2009 के कार्यालय ज्ञाप सेे स्पश्ट है। उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. का अनपरा तापीय परियोजना के मकान/भू-विस्थापितों के साथ किये जा रहे दोयम दर्जे के व्यवहार के साथ-साथ हजारों दलित- आदिवासी जिनकी भूमि का अधिग्रहण अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु 1987 के पूर्व किया गया है। उनके मौलिक अधिकारों के हनन की पुष्टि करता है।
उ.प्र. सरकार एवं उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा उ.प्र. राज्य विद्युत परिशद् (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवरों के सदस्य की नियुक्ति) (प्रथम संसोधन) विनियमावली, 1994 दिनांक 07.02.1994 के आधार पर जिसमें यह दर्षाया गया है कि यह तुरन्त प्रभावी होगी। अताप परियोजना द्वारा परियोजना प्रभावित परिवारों को दिये गये सेवायोजन का विवरण जन सूचना अधिकारी, कार्यालय मुख्या अभियन्ता (सूचना प्रकोश्ठ) द्वारा अपने पत्रांक 265/मु.अभि./सूचना प्रकोश्ठ/अताप/09/2009 दिनांक 19.11.2009 में उपलब्ध कराया गया है जिसमे 304 परियोजना प्रभावित किसान एवं उसके पिता का नाम, सम्बन्धित व्यक्ति के भूमि/भवन अधिग्रहण से प्रभावित होने पर परियोजना द्वारा उक्त परिवार के सेवायोजित व्यक्ति का नाम, परियोजना प्रभावित किसान की अधिग्रहित की गई भूमि का प्रतिषत/मकान का विवरण तथा जन सूचना अधिकारी, कार्यालय मुख्या अभियन्ता (सूचना प्रकोश्ठ) द्वारा अपने पत्रांक 483/मु.अभि./सूचना प्रकोश्ठ/अताप/09/2009 दिनांक 27.03.2010 के द्वारा भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के सदस्य को परियोजना में सेवायोजित करने का दिनांक उपलब्ध कराया गया है जिसमें विभिन्न ग्राम पंचायतों के 234 व्यक्तियों का विवरण उपलब्ध कराया गया है। परियोजना द्वारा उपलब्ध कराये गये दोनों सुचनाओं को एकत्र कर उसका पूरा विवरण संलग्न किया जा रहा है। जिसके अवलोकन से स्पश्ट है कि 07.02.1994 के बाद 50 से ज्यादा व्यक्तियों को भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने के पश्चात उ.प्र. राजय विद्युत परिशद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम-1987 के आधार पर स्थायी सेवायोजन दिया गया है जो स्वतः स्पश्ट करता है कि उ.प्र. राज्य विद्युत परिशद् (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवरों के सदस्य की नियुक्ति) (प्रथम संसोधन) विनियमावली, 1994 दिनांक 07.02.1994 जिसका प्रकाषन उ.प्र. सरकार द्वारा सरकारी गजट में इलाहाबद, षनिवार 31 अक्टूबर 1998 को किया गया है। वह अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित परिवारों के स्थायी सेवायोजन के सन्दर्भ में प्रभावी नहीं है।
15 नवम्बर 2010 को जिलाधिकारी, सोनभद्र को क्षेत्र के सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, सामाजिक एवं विस्थापित संगठनों की ओर से उत्तर प्रदेष राज्य विधुत उत्पादन निगत लिमिटेड की अनपरा तापीय परियोजना की स्थापना के लिये किये गये भूमि अधिग्रहण से से प्रभावित परिवारों के समस्याओं के सन्दर्भ में 15 सूत्रीय ज्ञापन सौपा गया। जिसके सन्दर्भ में 16.11.2010 को जिलाधिकारी, सोनभद्र की अध्यक्षता में अनपरा तापीय परियोजना की स्थापना के लिये किये गये भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के समस्याओं के समाधान हेतु बैठक हुई। जिसके सन्दर्भ में जारी की गई कार्यवृत्त की छायाप्रति संलग्न है। जिसमें बिन्दू संख्या 1 से 4 के सन्दर्भ में यह कहा गया है कि ऐसे परिवार जिनकी जिस समय भूमि अधिग्रहित की गई थी, उन्हें उस समय प्रचलित नियमों के अनुसार पूर्ण रूप से पुर्नवासित नहीं किया गया था, अतः मुख्य महाप्रबन्धक, अताप षासन को ऐसे वंचित परिवारों को निम्नलिखित विकल्पों के साथ पुर्नवासित करने हेतु पूर्ण विवरण सहित प्रस्ताव प्रेशित करेंगे।
1. तत्समय प्रभावी उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिशद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवारों के सदस्य की नियुक्ति) विनियम-1987 के अनुसार कार्यवाही हेतु।
अथवा
2.मननीय आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल, मीरजापुर के दिनांक 17.10.2002 की संस्तुति के अनुरूप एक लाख रूपये नौकरी के बदले तथा प्लाॅट उपलब्ध कराये जाने की संस्तुति के अन्तर्गत कार्यवाही की जाय।
अथवा
3.वर्तमान में प्रचलित षासन की पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति 2010 के अनुसार कार्यवाही।
मुख्य महाप्रबन्धक षासन को 45 दिनो के अन्दर प्रस्ताव प्र्रेिषत करतु हुए स्पश्ट निर्देष प्राप्त करेंगे।
जिलाधिकारी, सोनभद्र की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिये गये निर्णय के क्रम में मुख्य अभियन्ता, अनपरा तापीय परियोजना द्वारा अपने पत्रांक 08/मु.अभि./अताप/कैम्प दिनांक 07.01.2011 में मुख्य अभियनता, मानव संसाधन उत्पादन निगम लिमिटेड, लखनऊ को अनपरा तापीय परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापना एवं पुर्नवास से सम्बन्धित समस्याओं के निस्तारण किए जाने हेतु आवष्यक दिषानिर्देष जारी किये जाने हेतु मुख्यालय को प्रस्ताव प्रेशित किया है। परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक उ.प्र. सरकार एवं राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा अनपरा परियोजना के स्थायी सेवायोजन एवं प्लाट उपलब्ध कराये जाने के लिये कोई निर्देष जारी नहीं किया गया। जो उत्तर प्रदेष सरकार की दलित-आदिवासी विस्थापितों के प्रकरण पर उनकी मानसिकता का परिचायक है।
केन्द्र सरकार द्वारा बनायी गई वनाधिकार अधिनियम 2006 एवं नियम 2007 के तहत ग्राम बेलवादह के कुछ जनजाति परिवार के लोगों को जिन्हें वनाधिकार दिया गया है एवं उन्हें अधिभोग के लिये वन भूमि दी गई है। ऐसी भूमि पर अनपरा ‘सी’ का निर्माण करने वाली निजी कमपनी मेसर्स लैंको अनपरा पावर प्रा. लि. एवं अनपरा ‘डी’ द्वारा निर्माण कार्य कराया जा रहा है तथा उनकी भूमि का बिना अधिग्रहण कियेही बलपूर्वक राज्य सरकार द्वारा पुलिस का दुरपयोग कर कब्जा किया जा रहा है। जो उनके मौलिक अधिकारों का हनन होनेके साथ-साथ वनाधिकार अधिनिमय 2006 एवं नियम 2007 की भी अवहेलना है। जिसके सन्दर्भ में जिलाधिकारी, सोनभद्र को ग्राम बेलवादह के रामदुलारे एवं अन्य अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा अपने मौलिक अधिकारों व वनाधिकार के तहत दिये गये अधिभोग हेतु भूमि पर सम्बघितों द्वारा किये जा रहे अतिक्रमण को रोकने की मांग की गई। अप्रैल 12, 2010 को जिलाधिकारी, सोनभद्र द्वारा अपने पत्रांक 441/न्या.सं.- अनपरा/10 में मुख्य अभियन्ता, अनपरा तापीय परियोजना एवं अधिषासी निदेषक, लैंको, अनपरा, सोनभद्र को यह निर्देष दिया गया कि जिन व्यक्तियों को वनाधिकार अधिनियम के अन्तर्गत पट्टा दिया गया हो, नियमानुसार उनके प्रतिकर का भुगतान कर ही निर्माण कार्य कराने का कश्ट करे। परन्तु जिलाधिकारी, सोनभद्र के उक्त निर्देष के बाद भी वनाधिकार के तहत आदिवासियों को दी गई भूमि जिसे अनपरा तापीय परियोजना द्वारा अपने अधिग्रहित क्षेत्र के अन्तर्गत बताया जा रहा है तथा उसे परियोजना की भूमि होने के आधार पर वनाधिकार के तहत जारी अधिभोग पत्रों पर संज्ञान में ना लेकर उन पर अतिक्रमण कर आदिवासियों को मिले वनाधिकार की भूमि को प्रभावित किया जा रहा है।
सहयोग-गैर सरकारी संगठन की ओर से सितम्बर 27, 2010 को मा. श्री राहुल गांधी जी को जनपद सोनभद्र, उ.प्र. में स्थित विकास खण्ड म्योरपुर के अन्तर्गत ग्राम बेलवादह के अनुसूचित जनजाति के लोगो को दिये गयेवन अधिकार की मान्यताओं की सम्बन्धित भूमि पर उत्तर प्रदेष सरकार की अनपरा तापीय-डी विद्युत परियोजना एवं लैंको अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड, अनपरा द्वारा अनाधिकृत रूप से निर्माण कार्यकरायेजाने 70-80 के दषक में जनपद सोनभद्र में स्थापित किये गये विभिन्न सरकारी एवं निजी औद्योगिक परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में विभिन्न प्रकार की वन भूमियों से जबरन विस्थापित किये गये आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत वन निवासियो तथा वर्तमान में जेपी एसोसिएट लिमिटेड, डाला-चुर्क द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 में निहित आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों के भूमियों पर अनाधिकृत अतिक्रमण किये जाने के सन्दर्भ में विस्तृत रिपोर्ट प्रेशित की गई तथा केन्द्र सरकार के स्तर पर आवष्यक हसतक्षेप का आग्रह किया गया। महत्वपूर्ण है कि वनाधिकार अधिनियम के तहत जनजाति परिवारों एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों को मिलने वाले वनाधिकार निजी औद्योगिक संस्थाओं के हस्तक्षेप के कारण हजारो जनजाति परिवारों के दावों को स्वीकार नहीं किया गया है। जबकि अधिनियम के अध्याय-2 की धारा-3 की उपधारा 1 के खण्ड (ड) में दर्षाये गये प्राविधान के अनुरूप यथावत पुर्नवास का अधिकार, जिसके अन्तर्गत उन मामलों में अनुल्पिक भूमि भी है जहा अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों को 13 दिसमबर 2005 के पूर्व में किसी भी प्रकार की वन भूमि से पुर्नवास के उनके वैध हक प्राप्त किये अवैध रूप से बेदखल या विस्थापित किया गया हो।
अध्याय-3 जो वनाधिकारों की मान्यता, उसका पुनः स्थापन और निहित होने से सम्बन्धित है। उसके बिन्दू संख्या 8 में निम्नवत प्रावधान बनाये गये है।
अधिनियम के अधीन मान्यता प्राप्त और निहित वन अधिकारों में वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों के वन भूमि अधिकार सम्मिलित होंगे जो यह साबित कर सकते है कि वे राज्य विकास हस्तक्षेप कंे  कारण भूमि प्रतिकर के बिना उनके निवास और खेती से विस्थापित किये गये थे और जहा भूमि का उपयोग उक्त अर्जन से 5 वर्ष के भीतर उस प्रयोजन के लिये नहीं किया गया है। जिसके लिये वह अर्जित की गई थी।
वनाधिकार अधिनिमय के उपरोक्त दर्षाये गये प्राविधानों में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों के वनाधिकार एवं पुर्नवास हेतु प्राविधान बनाये गये है। ऐसे 98 प्रतिषत प्रकरणों पर निजी औद्योगिक संस्थाओं के साथ-साथ राजकीय संस्थाओं के वैध अवैध हितों को संरक्षित रखने के लिये उ.प्र. सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की गई। जिससे हजारों जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों के वनाधिकार उपरोक्त प्राविधानों के अधीन प्राप्त हो सकते थे। वह उ.प्र. सरकार के निजी औद्योगिक घरानों -जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड, डाला-चुर्क, लैकों अनपरा पावर प्रा. लि., अनपरा तथा अन्य निजी संस्थाओं को अवैध लाभ पहुचानें के लिये किये गये वनाधिकार अधिनियम के अवहेलना से प्रभावित हुए है।

अनपरा तापीय परियोजना की सी एवं डी परियोजना द्वारा आदिवासियों को वनाधिकार के तहत अधिभोग हेतु दी गई भूमि को अपनी पूर्व में अधिग्रहित की गई भूमि बतायी जा रही थी। जिसके आधार पर वहा निर्माण कार्य एवं अन्य गतिविधिया संचालित की जा रही है। जिसका ग्राम बेलवादह एवं पिपरी-सोनवानी के आदिवासियों द्वारा विरोध दर्ज कराया गया जिसके समाधान हेतु 06.11.2010 को उपजिलाधिकारी, दुद्धी, सोनभद्र की अध्यक्षता में अनपरा तापीय परियोजना के तृतीय चरण (लैंको) का पाईप लाईन निर्माण हेतु ग्राम बेलवादह एवं पिपरी- सोनवानी के विस्थापितों एवं उनके प्रतिनिधियों, अनपरा तापीय परियोजना, लैंको पावर परियोजना के अधिकारियों व प्रषासन के अधिकारियों के बीच विदेषी अतिथि गृह, अनपरा में बैठक आयोजित की गई। जिसमें परियोजना सहित क्षेत्रीय लेखपाल द्वारा यह बताया गया कि परियोजना की अधिग्रहित/वन विभाग द्वारा परियोजना का लिज पर दी गई भूमि पर कोई वनाधिकार के तहत पट्टा जारी नहीं हुआ है। जिसका स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित आदिवासियों ने विरोध दर्ज कराया तथा सरकारी कर्मचारियों का निजी संस्था को लाभ पुहचाने हेतु तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेष करने का आरोप लगाया। जिसके उपरान्त प्रषासनिक अधिकारियों द्वारा निर्णय लिया गया कि पट्टों की वास्तविक स्थिति के सम्बन्ध में स्थलीय पैमाइष कराया जाना उचित होगा। पैमाइष की तिथि निर्धारित करते हुए ग्रामीणों/पट्टेदारों कों प्रषासनिक अधिकारियों द्वारा निर्देषित किया गया कि पैमाइष के उपरान्त यदि पट्टे की भूमि 300 मीटर के बाहर पड़ती है तो आप लोगो द्वारा कोई विरोध नहीं किया जायेगा तथा एैष पाईप लाईन षान्तिपूर्ण ढंग से गुजरने दी जायेगी, निर्माण कार्य में कोई बाधा नहीं करेगा। इस पर ग्रामीणों द्वारा षान्ति बनाये रखने के लिये प्रषासनिक अधिकारियों को आष्वासन दिया गया। प्रषासनिक अधिकारियो द्वारा ग्रामीणों/पट्टेदारों को यह आष्वस्त किया गया कि यदि पट्टे वाली भूमि 300 मीटर के भीतर पड़ती है तो इस सम्बन्ध में उच्चाधिकारियों को पैमाईष के उपरानत निर्णय लेने हेतु अवगत कराया जायेगा।
उपजिलामजिस्ट्रेट, दुद्धी द्वारा उक्त वनाधिकार के तहत दी गई भूमियों के मापन हेतु वन दरोगा, सर्वे लेखपाल, राजस्व लेखपाल एवं सर्वे कानूनगों की एक चार सदस्यीय टीम बनायी गई जिसके द्वारा 09.11.2010 को संयुक्त सर्वे सीमांकन के उपरान्त दावाधारक को कब्जे में दी गई भूमि उपलब्ध कराये जाने हेतु दैनिक रिपोर्ट का प्रारूप उपजिलामजिस्ट्रेट, दुद्धी को प्रस्तुत किया गया। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना के क्रम में कार्यालय उपजिलाधिकारी, दुद्धी, सोनभद्र द्वारा अपने पत्रांक ेममो/आ.लि.सू.प्र./2011 दिनांक 26.02.2011 को 10 जनवरी 2011 को मांगी गई सूचना उपलब्ध करायी गई है। जिसमें संयुक्त सर्वे सीमांकन रिपोर्ट की छायाप्रति उपलब्ध कराई गई है। जिसके अवलोकन से स्पश्ट है कि संयुक्त सर्वे दल द्वारा अपने रिपोर्ट के अभियुक्ति में यह दर्षाया गया है कि ग्राम बेलवादह के जिन आदिवासियों द्वारा उन्हें वनाधिकार के तहत मिली भूमि जिसे परियोजना द्वारा अपनी अधिग्रहित/वनविभाग द्वारा लीज में स्थान्तरित भूमि बतायी जा रही है। उन पर वनाधिकार के तहत जनजाति परिवारों को अधिभोग पत्र जारी किया गया है तथा संयुक्त सर्वे दल द्वारा अपने रिपोर्ट में यह अभियुक्ति की गई है कि उन दावेधारको की भूमि वनविभाग द्वारा अनपरा तापीय परियोजना को दी गईलीज सीमा के अन्दर स्थित है जो आदिवासियों के आरोप की पुश्टि करता है कि उन्हे वनाधिकार के तहत दी गई भूमि पर अनपरा सी एवं डी द्वारा अनाधिकृत निर्माण कार्य एवं हस्तक्षेप किया जा रहा है। संयुक्त सर्वे दल द्वारा अपने रिपोर्ट प्रेशित कर जनजाति परिवारों के दावों की पुश्टि किये जाने के बावजूद भी जिला प्रषासन द्वारा निर्माण कार्य एवं अन्य अतिक्रमण कार्यो पर रोक नहीं लगाई गई तथा वर्तमान में अनपरा सी एवं डी द्वारा ऐसी भूमि पर निर्माण कार्य एवं अतिक्रमण कर जनजाति परिवारों के वनाधिकारों को प्रभावित किया जा रहा है। जिलाधिकारी, सोनभद्र की अध्यक्षता में 16.11.2010 को हुई बैठक की कार्यवृत्त के बिन्दू संख्या 10 में निम्नवत् निर्देष दिये गये जिसके उपरान्त भी अनपरा सी एवं डी का हस्तक्षेप आदिवासियों को वनाधिकार के तहत दी गई भूमि पूर्ववत् निर्माण कार्य एवं हसतक्षेप किया जा रहा है जो आदिवासियों के मौलिक अधिकार का हनन है।
बिन्दू संख्या 10 - यह बिन्दू वनाधिकार के तहत ग्राम पिपरी व बेलवादह के अनुसूचित जनजाति के परिवारों की जमीनों पर परियोजना द्वारा जबरजस्ती कब्जा किये जाने के सम्बन्ध में है। इस सम्बन्ध में उपजिलाधिकारी, दुद्धी, सोनभद्र द्वारा अवगत कराया गया है कि वर्तमान में परियोजना द्वारा कोई भी कार्य वनाधिकार में दी गई भूमि पर नहीं हो रहा है। इस सम्बन्ध में उनके द्वारा स्थल पर पैमाइष कराई गई है। यदि परियोजना द्वारा वनाधिकार में प्राप्त भूमि पर कोई कार्य किया जाता है तो नियमानुसार अधिग्रहण/हस्तान्तरण कार्यवाही करते हुए सुसंगत प्राविधानों के अन्तर्गत मुआवजे पर तत्समय विचार किया जायेगा। यथा आवष्यक उप जिलाधिकारी, दुद्धी पुनः पैमाइष भी करा सकते है।
उ.प्र. सरकार द्वारा 02 जून 2011 को उ.प्र. में भूमि अधिग्रहण की नई नीति की घोषणा की गई। किसानों की महापंचायत बुलाकर घोषित किये गये उ.प्र. की नई प्रगतिषील भूमि अधिग्रहण नीति एवं अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के लिये पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट हेतु कई लोक-लुभावन नीति घोशित की गई है। जिसका क्रियानवयन सिर्फ घोषणाओं तक सीमित है तथा पूरी नीति निजी घरानों को लाभ पुहँचाने के उद्देष्य से बनाई गई है। जिसमें भूमि अधिग्रहण से पूर्णतः भूमि हिन हो रहे परिवारों को उसके योग्यता के अनुसार विकासकर्ता कम्पनी में सेवायोजित कराया जाने का प्राविधान बनाया गया है। परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि निजी घरानों को उ.प्र. सरकार द्वारा हस्तान्तरित की गई भूमि में इन प्राविधानों को कही समायोजित नहीं किया गया है। जो उ.प्र. सरकार द्वारा घोषित भूमि अधिग्रहण की नई नीति-2011 की सार्थकता पर प्रष्नचिन्ह खड़ा करता कर इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार के लोक-लुभावन वादें सिर्फ घोषणाओं एवं काग़जों जक सिमित है।
मा. सर्वोच्च न्यायालय में अनपरा तापीय परियोजना के दलित-आदिवासी विस्थापितों के सेवायोजन एवं पुर्नवास ना किये जाने के सन्दर्भ में दाखिल किये गये याचिका संख्या SLP(Civil) No. (s). 27062/2009, SAHYOG SOCIETY Vs.  STATE OF UP and Othres के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय को विस्थापित नेता पंकज मिश्रा द्वारा चुनौती दी गई है। जिसमें 09 अक्टूबर 2009 को न्यायालय द्वारा उ.प्र. सरकार एवं अन्य से जवाब तलब किया गया था परन्तु राज्य सरकार द्वारा मामले को लम्बित रखने का बार-बार प्रयास किया गया तथा न्यायालय के आदेष के बावजूद भी कोई जवाब नहीं दाखिल किया गया था। मा. सर्वोच्च न्यायालय में दाखिलSLP(Civil) No. (s). 27062/2009, SAHYOG SOCIETY Vs.  STATE OF UP and Othres के सन्दर्भ में में उ.प्र. सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 09 अक्टूबर 2009 को जारी की गई नोटिस पर न्यायालय की कड़ी फटकार लगाये जाने के बाद 04 जुलाई 2011 को दाखिल जवाब में कहा गया है कि उ.प्र. में वर्तमान में किसानों से सार्वजनिक प्रयोजन हेतु अधिग्रहित की गई भूमियों से विस्थापित किसानों पर राष्ट्रीय पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट निति 2003 जिसे उ.प्र. सरकार द्वारा अंगीकृत किया गया है तथा वर्तमान में प्रदेष में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवरों के पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट के लिये उक्त निति प्रभावी है। जबकि उ.प्र. सरकार द्वारा 02 जून 2011 को में भूमि अधिग्रहण की नई निति 2011 की राज्य सरकार द्वारा घोषणा की गई तथा उसे तत्काल प्रभाव से लागू होना बताया गया। मुख्यमंत्री, उ.प्र. एवं केबिनट सचिव, उ.प्र. श्री शषांक शेखर सिंह द्वारा देष की सबसे अच्छी पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट निति बताई गई। वही दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के हजारों अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित किसानों के पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट के लिये दाखिल याचिका में राज्य सरकार द्वारा 04 जुलाई 2011 को जवाब में उ.प्र. में वर्तमान में राष्ट्रीय पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट निति 2003 जिसे उ.प्र. सरकार द्वारा अंगीकृत किया गया है तथा वर्तमान में प्रदेष में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवरों के पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट के लिये उक्त निति प्रभावी होने की बात राज्य सरकार द्वारा शपथ-पत्र दाखिल कर न्यायालय को बताया गया है। जिसमें कही भी 02 जून 2011 को उ.प्र. सरका द्वारा भूमि अधिग्रहण की नई नीति 2011 जो 04 जुलाई 2011 को प्रदेष के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों पर प्रभावी है। इस नई अधिग्रहण नीति 2011 को मा. सर्वोच्च के समक्ष दाखिल किये गये शपथ-पत्र में राज्य सरकार द्वारा सन्दर्भित नहीं किया गया है। जो सरकार द्वारा घोषित नई भूमि अधिग्रहण नीति 2011 को सिर्फ घोषणााओं एवं पत्रकार वार्ता तथा सरकार के विज्ञापनों तक सिमित करता है। जिसके क्रियान्वयन के सन्दर्भ में सम्बन्धित संस्थाओं, जिला प्रषासन अपनी असमर्थता जताते हुए सरकार द्वारा घोषित नीति पर अपनी अनभिज्ञता जताते है। महत्वपूर्ण है कि प्रमुख सचिव उ.प्र. शासन द्वारा दिनांक 10 अगस्त 2004 को पत्र संख्या 1321/1-13-2004-20(29)/2004रा0-13 जो भूमि अधिग्रहण के मामलों में परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास के सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति-2003 (एन.पी.आर.आर.-2003) को राज्य सरकार द्वारा अंगीकृत किये जाने के सन्दर्भ में है। उक्त शासनादेष के बिन्दू संख्या 1 में निम्नवत् निर्देष जारी किये गये है-
(1) भारत सरकार की पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति-2003 भूमि अर्जन अधिनियम-1894 के अन्तर्गत अर्जित की जाने वाली भूमि के सन्दर्भ में प्रभावित परिवारों पर लागू मानी जायेगी।
उपरोक्त निर्देष में यह स्पष्ट दर्षाया गया है कि 10 अगस्त 2004 के उपरान्त भूमि अर्जन अधिनियम 1894 के अन्तर्गत अधिग्रहित की जाने वाली भूमि पर उपरोक्त भारत सरकार की पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति-2003 प्रभावी होगी। अनपरा तापीय परियोजना हेतु भूमि का अधिग्रहण 1978 से 1984 के मध्य किया गया तथा तत्समय के आधार पर प्रति एकड़ 4000 रूपये से 7200 रूपये तक प्रति एकड़ भूमि का मुआवजा किसानों को दिया गया तथा तत्कालीन प्रदेष सरकार द्वारा बनाये गये उ.प्र. राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति-विनियम-1987) के आधार पर विस्थापित परिवारों में से 304 व्यक्तियों को सेवायोजित किया जाना परियोजना द्वारा बताया जा रहा है। शेष बचे विस्थापित परिवारों के सदस्यों की नियुक्ति के सन्दर्भ में उ.प्र. राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति-विनियम-1987) वर्तमान में भी प्रभावी है परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान राज्य सरकार द्वारा उन पर भारत सरकार की पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति-2003 जिसे राज्य सरकार द्वारा 10 अगस्त 2004 को अंगीकृत किये जाने सम्बन्धी शासनादेष जारी किया गया हैै। जो अनपरा तापीय परियोजना के भू/मकान के अधिग्रहण से प्रभावी 2205 आदिवासी/अनुसूचित जनजाति के परिवारों पर प्रभावी नहीं है परन्तु उनके मौलिक अधिकारों एवं स्थायी सेवायोजन से विमुख रखने के लिये अवैधानिक तरीके से उन पर प्रभावी बताये जाने का प्रयास किया जा रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल जवाब में में राज्य सरकार द्वारा यह कहा गया है कि सभी परियोजना प्रभावित परिवारों को पुर्नवास प्लाट दे दिये गये है। जो कि तत्यविहिन है एवं न्यायालय के समक्ष गलत तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है। जिसकी पुष्टि अनपरा तापीय परियोजना के मुख्य अभियन्ता द्वारा अध्यक्ष सह प्रबन्ध निदेषक, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि., लखनऊ को अपने दिनांक 04.01.2011 के पत्र में अनपरा तापीय परियोजना के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों को पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास के सन्दर्भ में आवष्यक निर्देष जारी किये जाने के लिये भेजे गये प्रस्ताव में ग्रामवार आवंटित किये जाने वाले आवासीय प्लाटों सन्दर्भ में 161 प्लाट ग्राम पिपरी व ग्राम बेलवादह में 169 कुल 330 प्लाट आवंटित किया जाना है। उक्त सन्दर्भ में आवष्यक दिषानिर्देष मांगे गये है। जिसमें यह कहा गया है कि जिलाधिकारी द्वारा निम्नवत् निर्णय लिया गयाः--
वर्तमान मे नई जनगणना कराकर शेष बचे विस्थापित परिवारों को प्लाट आवंटित कराया जाय। सूच्य ळै कि 330 प्लाटों के विकसित किये जाने का जों प्रस्ताव मुख्यालय को प्रषित किया गया है वह ग्राम बेलवादह में 2003 में कराई गई जनगणना के आधार पर है तथा ग्राम पिपरी का पुरानी जनगणना के आधार पर है। यदि वर्तमान में नई जनगणना जिला प्रषासन द्वारा कराई जाती है तों दोनों ग्रामों पिछली जनसंख्या को दृष्टिगत रखते हुए 20 प्रतिषत की वृद्धि सम्भावित है। मुख्य अभियन्ता, अताप द्वारा भेजा गया प्रस्ताव अभी तक लम्बित है तथा उसके सन्दर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
उपरोक्त प्रस्ताव में यह स्पष्ट है कि लगभग 400 परिवार आज भी आवासीय पुर्नवास प्लाट से वंचित है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह कहा गया है कि सभी प्रभावित परिवारों को आवासीय पुर्नवास प्लाट आवंटित किया जा चुका है तथा सभी प्रभावित परिवार आवंटित आवासीय पुर्नवास प्लाट पर निवासकर रहे है। राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल जवाब गलत होने के साथ-साथ न्यायालय को भ्रम में रखकर आदिवासी एवं जनजाति परिवारों के मौलिक अधिकार को छिनने का प्रयास है।
राज्य सरकार द्वारा दाखिल किये गये जवाब में यह बताया गया कि प्रत्येक परिवार जिनके मकान परियोजना के भूमि अधिग्रहण में प्रभावित हुए है। उन्हें 25000 रूपये की दर से प्रत्येक को मुआवजा दिया गया है। 55 मकान प्रभावित परिवार ग्राम बेलवादह के जिन्हें आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर द्वारा 17.10.2010 को शासन को भेजे गये रिपोर्ट के क्रम में 25000 रूपये दिया गया है। मकान प्रभावित की सूची ग्राम औड़ी, बाँसी, अनपरा, ककरी एवं कुलडोमरी (डिबुलगंज) के 898 मकान प्रभावित परिवारों को मकान के बदले प्रति मकान 25000 रूपये नहीं दिया गया है जबकि न्यायालय को राज्य सरकार द्वारा सभी मकान प्रभावित परिवारों को 25000 रूपये दिया जाना बताया गया है। जबकि किसी भी मकान प्रभावित परिवार को 25000 रूपये नहीं दिया गया है।
मुख्य अभियन्ता, अनपरा तापीय परियोजना द्वारा अपने पत्रांक 272/मु.अभि./अताप दिनांक 15.06.2011 में कम्पनी सचिव, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि, को अनपरा तापीय परियोजना से विस्थापित परिवारों के पुर्नवास से सम्बन्धित समस्याओं के निस्तारण किये जाने के सम्बन्ध में अपना प्रस्ताव कम्पनी सचिव के माध्यम से सीएमडी, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि., लखनऊ को भेजा है। जिसमें उन्होंने शेष पुर्नवास एवं  पुर्नबसाहट से वंचित परिवारों के लिये उ.प्र. सरकार द्वारा घोषित नई भूमि अधिग्रहण नीति 2011 जिसकी घोषणा 02 जून 2011 को की गई है। उसका सन्दर्भ न लेकर 2002 में आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर द्वारा लिये गये निर्णय के अनुरूप शासन को 17.02.2002 को भेजे गये प्रस्ताव तथा उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. की पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2009 के अनुसार शेष बचे विस्थापित परिवारों को आजिविका की क्षति केलिये 750 दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एक बार दी जाने वाली सहायता के रूप में वित्तिय सहायता देने का प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ उ.प्र. सरकार 2 जून 2011 से नई भूमि अधिग्रहण नीति 2011 की घोषणा कर उसे तत्काल प्रभावी बताती है। घोषित नीति भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारोें के लिये लोक-लुभावन प्राविधान सिर्फ घोषणाओं तक सिमित है। विगत दो दषक से पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट से वंचित अनपरा तापीय परियोजना के 2412 परिवरों में से शेष लगभग 2112 परिवार जिसमें 90 प्रतिषत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के है। उनके पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट के सन्दर्भ में सरकार द्वारा घोषित नई भूमि अधिग्रहण नीति के स्थान पर उनके मौलिक अधिकारों का हनन बलपूर्वक कर रही है तथा उन्हें नई नीति का लाभ ना देकर 2002 में आयुक्त विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर द्वारा लिये गये निर्णय के अनुरूप स्थायी सेवायोजन के बदले 1 लाख रूपये प्रति परिवार या उ.प्र.रा.वि.नि.लि. के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास नीति 2009 के अनुसार 84600 रूपये प्रति परिवार दिये जाने का प्रस्ताव प्रेषित किया है।
मुख्य अभियन्ता, अनपरा तापीय परियोजना द्वारा अपने पत्रांक 272/मु.अभि./अताप दिनांक 15.06.2011 में कम्पनी सचिव, उ.प्र.रा.वि.उ. नि.लि, को अनपरा तापीय परियोजना से विस्थापित परिवारों के पुर्नवास से सम्बन्धित समस्याओं के निस्तारण किये जाने के सम्बन्ध में अपना प्रस्ताव कम्पनी सचिव के माध्यम से सीएमडी, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि., लखनऊ को प्रेषित किया, जिसके सन्दर्भ में सीएमडी, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि., लखनऊ द्वारा अपने पत्र संख्या 643/सीएमडी/औ.सं./उ.नि.लि./भूमि विस्था. (अनपरा) दिनांक 30.06.2011/01.07.2011 में आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर को अनपरा तापीय परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहीण से प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवासित करने सम्बन्ध में 03 विकल्पों पर जिलाधिकारी, सोनभद्र से 28.06.2011 को हुए चर्चा के उपरान्त लिये गये निर्णय को विचारार्थ एवं आदेषार्थ प्रस्तुत किया है-
1.कि पूर्व में प्रभावित परिवार जिनकी 50 प्रतिषत या उससे अधिक भूमि अध्याप्ति की गई थी के एक सदस्य को नौकरी दिये जाने के एवज में किये गये भुगतान रू. 1.00 लाख प्रति परिवार जो वर्ष 2002 में किया गया के प्रकरण में चूँकि काफी समय व्यतीत हो चुका है, को दृष्टिगत रखते ऐसे परिवारों को अब रू. 2.00 लाख प्रति परिवारों दिये जाने की सहमती प्रदान की जाती है।
2.ऐसे विस्थापित परिवार जिनका केवल मकान लिया गया था अर्थात वह भूमिहीन है या ऐसे विस्थापित जिनकी एक एकड़ से कम भूमि ली गयी थी को मानवीय दृष्टिकोण से मकान बनाने हेतु पूर्व में दिये गये रू. 25,000 प्रति परिवार के स्थान पर चूँकि काफी समय व्यतीत हो चुका है, को दृष्टिगत रखते हुए ऐसे परिवारों को अब रू. 50,000 प्रति परिवार एक मुष्त धनराषि भवन निर्माण हेतु दियेजाने की सहमति प्रदान की जाती है।
3.   विस्थापित परिवरों को प्लाट दिये जाने के सम्बन्ध में संस्तुति की जाती है कि अनपरा परियोजना प्रषासन द्वारा उनके पास उपलब्ध भूमि एक वर्ष के अन्दर प्लाट विकसित कर देय परिवरों को उपलब्ध करा दिये जायेंगे।
प्रदेष सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अनपरा तापीय परियोजना के भूमि अधिग्रहण के प्रकरण पर दाखिल किया गय जवाब सर्वोच्च न्यायालय में तथ्यों को तोड़-मोड़ कर गलत प्रस्तुत किया गया है वहीं दूसरी ओर सीएमडी, उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. द्वारा आयुक्त विन्ध्याचल मण्डल को विस्थापिातों के समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में भेजे गये प्रस्ताव उ.प्र. सरकार द्वारा बनाई गई नई भूमि अधिग्रहण नीिित 2011 को निष्प्रभावी एवं प्रभाव षून्य दर्षाता है। जो अनपरा तापीय परियोजना के हजारों दलित-आदिवासी विस्थापित किसानो के साथ बसपा सरकार द्वारा किये जा रहे ऐतिहासिक अन्याय की पुष्टि करता है तथा राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण से प्रभावित हजारों दलित-आदिवासी किसानों के मौलिक अधिकारों के हनन की पुष्टि करने के साथ-साथ उ.प्र. सरकार द्वारा घोषित भूमि अधिग्रहण की नई नीति 2011 की सार्थकता एवं अस्तित्व पर प्रष्नचिन्ह खड़ा करता है। केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये वनाधिकार अधिनियम 2006 एवं नियम 2007 के तहत जनजाति परिवारों को वनाधिकार में दी गई भूमि पर उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. की अनपरा ‘डी’ एवं अनपरा ‘सी’ परियोजना द्वारा किया जा रहा बलपूर्वक अतिक्रमण एक बार पुनः उनके साथ ऐतिहासिक अन्याय किये जाने की पुष्टि करता है। उपरोक्त प्रकरण पर हजारों विस्थापितों के साथ-साथ वनाधिकार अधिनियम के तहत उपभोग हेतु भूमि पाने वाले जनजाति परिवरों में भी सरकार के विरूद्ध गम्भीर आक्रोष है।

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

अनपरा परिक्षेत्र में व्याप्त प्रमुख जन-समस्याएँ

अनपरा परिक्षेत्र में स्थित विभिन्न ग्राम सभाओं एवं औद्योगिक आवासीय परिसरों के आस-पास के क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क, सडक सुरक्षा आदि मूल-भूत नागरिक सुविधाओं का अभाव है। जिससे लगभग सवा से डेढ़ लाख आबादी रोजाना प्रभावित हो रही है तथा जन-सामान्य की समस्याएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैै। अनपरा परिक्षेत्र के निवासी निम्नवत् जन-समस्याओं एवं नागरिक सुविधाओं के लिए प्र’ाासन से सार्थक एवं प्रभावी पहल की अपेक्षा रखते है।
अनपरा परिक्षेत्र में व्याप्त जन-समस्याए:- 
१.बासी स्थित विद्युत उपकेन्द्र में ट्रान्सफर्मर एवं अन्य विद्युत अनुरक्षण सामग्री की स्थायी व्यवस्था की जाय।
२.अनपरा परिक्षेत्र में आये दिन खराब होने वाले विभिन्न स्थानों के ट्रान्सफर्मरों को अविलम्ब बदलने हेतु सम्बन्धित को आवश्यक निर्दे’ा दिये जाये।
३.अनपरा परिक्षेत्र में लो-वोल्टेज से प्रभावित क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार नये ट्रान्सफार्मर लगाये जाये।
४.अनपरा परिक्षेत्र में जर्जर हो चुके विद्युत तारों को अविलम्ब बदला जाये।
५.अनपरा परिक्षेत्र में २४ घण्टे निर्बाध विद्युत आपूर्ति की जाये।
६.अनपरा परिक्षेत्र में फॉल्ट, शट-डाउन एवं अन्य परिस्थितियों में बाधित होने वाली बिजली की कटौती (रोस्टींग) के समय पूरा किया जाये।
७.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्रों में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर जगह-जगह सड़क सुरक्षा एवं जन-हानि को देखते हुए शक्तिनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा), पिपरी, सोनभद्र द्वारा स्ट्रिट लाइट की व्यवस्था की जाये।
८.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र, तिराहों, बाजार (अनपरा मार्केट) एवं वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित विभिन्न चौराहों/तिराहों पर हाईमास्क लाइट शक्तिनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा), पिपरी, सोनभद्र द्वारा लगाये जाये।
९.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग के दोनो पटरियों पर दस फिट पत्थरीकरण किया जाये।
१०.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित अनपरा परियोजना के गेट नं० दो एवं लेन्को अनपरा पावर प्रा० लि० के मुख्य द्वार के पास मालवाहकों के ठहराव हेतु परियोजना बाउन्ड्री एवं मुख्य मार्ग के मध्य अविलम्ब वाहन पार्किंग स्थल बनाये जाये।
११.वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित थाना पिपरी, अनपरा एवं शक्तिनगर क्षेत्र में ट्रामा सेन्टर स्थापित किये जाये।
१२.उर्जान्चल क्षेत्र में विकास को देखते हुए विभिन्न ग्रामों को मिलाकर नगर पालिका बनाया जाय।
१३.अनपरा परिक्षेत्र में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यायलों का निर्माण कराया जाय।
१४.अनपरा परिक्षेत्र में राजकीय महाविद्यालय का निर्माण कराया जाय।
१५.अनपरा परिक्षेत्र के जर्जर हो चुके डिबुलगंज स्थित संयुक्त चिक्तिसालय में योग्य एवं प्र’िाक्षित चिकित्सकों, सुविधाओं तथा रखरखाव की व्यव्स्था कराई जाय।
१६.अनपरा परिक्षेत्र के में एक ब्लड बैंक खोला जाय।
१७.अनपरा परिक्षेत्र के छात्रों के लिये सरकारी आईटीआई कालेज खोला जाय।
१८.अनपरा परिक्षेत्र के नागरिको को नि:शुल्क पानी की सप्लाई दी जाय।
१९.अनपरा परिक्षेत्र के औड़ी चौराहे की स्ट्रीट लाईट को रात्रि में निर्बाध्य बिजली आपूर्ति की जाय।

सोमवार, 12 सितंबर 2011

बिकाऊ मासूमियत!

१.माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है बच्चें।
२.ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करने को मजबूर मासूम।

पुरे देश मे चलाये जा रहे सर्वशिक्षा अभियान और बालश्रम उन्मूलन के मुंह को मुह चिढ़ा रही है उर्जांचल नगरी। अवगत कराना है कि खेलने, खाने और शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में क्षेत्र के कुछ नौनिहाल को ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करते देखा जा सकता है। इन नाबालिकों तथा छोटे-छोटे बच्चों को देखकर कोई भी व्यक्ति यह सोचने पर विव’ा हो जायेगा कि क्या २१वीं सदी के भारत में जब बच्चों को छ: से चौदह वर्”ा तक की आयु तक प्रारम्भिक ’िाक्षा देना संविधान के मूल अधिकार की श्रेणी में जोड़ दिया गया है। केन्द्र व राज्य सरकार नि:’ाुल्क ’िाक्षा के साथ-साथ किताब, युनिफार्म, छात्रवृत्ति, गुणवत्तायुक्त भोजन प्रदान कर रही हैंं, तो फिर इनके साथ यह दुव्र्यहार क्यों ? वो अपना समय विद्यालय में न बिताकर अपने जीवन के स्वर्णिम पल को दाव पर लगाकर खेलने, खाने और पढ़ने की उम्र में धन कमाने की ओर अग्रसर हो रहे है। इसके पीछे गरीबी, अ’िाक्षा एवं आर्थिक तंगी के कारण परिवार की गाड़ी खीचने के लिए अपना बचपन काम करके पुरा करना पड़ रहा है। सोनभद्र, चोपन, ओबरा एवं डाला आदि जगहों पर बालू एवं पत्थर खदानों में भी बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा सकता है। जो अति खतरनाक है।

केन्द्र सरकार की नरेगा जैसी योजना में भी बच्चें हाथ में फावड़ा व गईता हाथ में लिए देखे जा सकते है, जो भेड़ की तरह दो जुन की रोटी के जुगाड़ में खटाने को मजबूर है। समाज सेवी संस्था ‘सहयोग’ के संचालक पंकज कुमार मिश्रा का कहना है कि संबंधित विभाग का संवेदन ‘ाून्य हो गया है। ऐसे में सामाजिक कार्य करने वालों को आगे आना होगा। सदस्य ग्राम पंचायत-औड़ी के ‘ाक्ति आनन्द का कहना है कि इसका मूल कारण है सरकारी विभागों की अनदेखी, उर्जांचल के लगभग सैकड़ो गरीब परिवारों के मासूम बच्चें अपने माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है क्योंकि उनके माता-पिता इस महगांई के जमाने में अपना और अपने बच्चों का पेट नहीं पाल सकते, इसलिए आपने बच्चों को वें या तो ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों में काम पर लगाकर यह सोचते है कि ‘ाायद इससे वह कोई काम तो सीख जाए जिससे वह आगे हमारा पेट पाल सके। इस सम्बन्ध में उपश्रमायुक्त, पिपरी, सोनभद्र से जानकारी ली गई डी.एल.सी. श्री आर.पी. गुप्त बताया कि नवीन चन्द्र वाजपेयी, मुख्य सचिव, उ०प्र० ‘ाासन का पत्र जिलाधिकारी के माध्यम से मिला है, जिसमें सरकारी विभागों, निगम, संस्थानों में बालश्रम का नियोजन न करने के सम्बन्ध में है। पुरे दे’ा में सबसे ज्यादा बालश्रम उ०प्र० में ०९.२७ लाख है, जो दे’ा के किसी भी प्रदे’ा से सर्वाधिक है। साथ ही बालश्रम की प्रति”ोध अधिनियम १९८६ की धारा-३ के अनुसूची ‘क’ के अन्तर्गत १५ व्यवसायों एवं ‘ख’ के अन्तर्गत ५७ प्रक्रियाओं (अतिखतरनाक) को लिया गया है। पहले घरेलू नौकरों को ढाबा, होटल, मनोरंजन, सड़क के किनारे खान-पान, चाय की दुकान में नियोजन किया जाता था पर उसे भी अब रोक दिया जाने का प्रस्ताव पारित हो गया है। क्या क्षेत्र में नैनिहालों के Åपर सम्बन्धितों का ध्यान नहीं जाता जिसको गम्भीरता से लेते हुए उनके जीवन को मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास हो सके, और इन नाबालिकों से काम लेने वाले के विरूद्ध कठोर कार्यवाही बालश्रम कानून के तहत किया जा सके। क्या पता उन नैनिहालों में से कोई प्रतिभा का धनी निकलकर दे’ा व समाज का मांग कढ़ाने में कामयाब हो जाय।    

विस्थापित सिर्फ एक सम्बोधन या श्राप !

 लेखक : शक्ति आनंद
1- दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय।
2- आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय बे-आवाज खड़ा था एवं उन्हें केवल कागजो मुआवजा दिया गया है जमीनी तौर पर नहीं
आज पूरे देश में किसानों की भूमि अधिग्रहण का विरोध हो रहा है भट्टा-परसौल में तो गर्माया विस्थापन का यह मुद्दा तो इतना गम्भीर हो गया कि राहुल गांधी को यह देखकर कहना पड़ा कि उन्हे भारतीय हाने पर शर्म आ रही है। यह मामला केवल भट्टा-परसौल के किसानों के साथ नहीं हो रहा है बल्कि आज से तीन द’ाक पूर्व सोनभद्र में हुए अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु किए गए विस्थापितों के साथ की है। सरकार जिनकी आवाजों को लगभग ३० सालों से दबाये हुए है। जिसके कारण आज भूमि अधिग्रहण कानून १८९४ में संशोधन की कवायद चल रही है सभी राजनैतिक दल अपने को किसानो-आदिवासियों का हितैषी बताने के लिए नित नये हत्थकण्डे अपना रहे हैं। पूरा देश भूमि अधिग्रहण के मामले में सुलग रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर-प्रदेश के जनपद सोनभद्र में हजारों आदिवासी परिवार जिसकी हजारों एकड़ भूमि तत्कालिन सरकार ने अनपरा ताप विद्युत परियोजना निर्माण के लिए अधिग्रहित किया तथा उन्हे सरकारी नौकरी, नियमानुसार मुआवजा एवं अन्य सुविधाएं देने के लिए नियमों का हवाला देकर उनके हक को छिना जा रहा र्है। ज्ञात हो कि उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष वर्ष १९७८ में ३१३० मे.वा. की अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु कुल ५०७६ एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें सात ग्राम सभाओं की किसानों की ३१०६.४८७ एकड़ कृषि योग्य भूमि भी अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल १३०७ परिवार प्रभावित हुए जिसमें ८० प्रतिशत लोगों की शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण में ८९८ लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित की गयी। अधिग्रहण के पश्चात तत्कालीन सरकार द्वारा विस्थापित/प्रभावित परिवारों को परियोजना में स्थायी सेवायोजन एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराये जाने की बाबत विनियमावली बनायी गयी तथा समझौते किये गये परन्तु अभी तक सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली एवं किये गये समझौतों का अनुपालन तीन दशक बाद भी सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। परियोजना द्वारा पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट की सुविधा से वंचित बचे विस्थापित परिवारों व उनके सदस्यों पर उत्तर-प्रदेश  सरकार द्वारा वर्तमान में पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति २०१० का भी अनुपालन नहीं किया जा रहा है जिससे उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा घोषित पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति २०१० की सार्थकता पर प्र’न चिन्ह खड़ा कर दिया है। पूर्व में विस्थापितों द्वारा किये गये आन्दोलन उपरान्त किये गये किसी भी समझौते का अनुपालन प्रबन्धन द्वारा नहीं सुनि’िचत किया जा रहा है। निगम की इस तानाशाही एवं भेदभाव वाली नीति का सर्वाधिक असर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवारों पर पड़ा है जिससे आज दसो हजार विस्थापित आदिवासी-दलित परिवार भूखों मरने के कगार पर खड़ा है और सरकारी उपेक्षा से उनमें आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। उत्तर-प्रदेश सरकार विस्थापित परिवारों से वायदा खिलाफी कर उनसे बन्दूक के बल पर सत्ता की हनक से उनके हक-हकूक को छीनना चाहती है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। बार-बार विभिन्न संगठनों एवं राजनैतिक दलों के माध्यम से शासन एवं प्रशासन को अवगत कराया गया है परन्तु आजतक सारे प्रयास विस्थापितों को न्याय नहीं दिला पाये। मण्डलायुक्त विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर एवं जिलाधिकारी स्तर पर बार-बार वार्ता के उपरान्त भी विस्थापितों की समस्याओं पर कोई प्रभावी व सकारात्मक पहल नहीं हुआ है। १५ नवम्बर २०१० को जिलाधिकारी सोनभद्र को स्थानीय जनप्रतिनिधियों, राजनितिक दलों एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रेषित ज्ञापन के सन्दर्भ में १६ नवम्बर २०१० को जिलाधिकारी, सोनभद्र के कार्यालय में अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों/भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास से सम्बन्धित समस्याओं के निस्तारण हेतु बैठक आहूत की गई। जिसमे जिलाधिसकारी, सोनभद्र  की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिए गए निर्णय के अनुरूप ९० दिवस के भीतर शासन द्वारा मुख्य महाप्रबन्धक, अनपरा द्वारा भेजे गए विकल्पों के आधार पर उत्तर प्रदे’ा शासन को निर्दे’ा देना था परन्तु आज तक शासन द्वारा इस सम्बन्ध में कोई पहल नहीं की गई है। जो विस्थापितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय है। विस्थापित जन प्रतिनिधियों की मांग है कि उत्तर-प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम-१९८७ के तहत सभी शेष बचे विस्थापितों को अविलम्ब स्थायी सेवायोजन, परियोजना द्वारा जिन आधारों पर पूर्व में मकान एवं ५० प्रतिशत से कम भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन दिया गया है उन्ही आधारों पर शेष बचे भू-विस्थापित एवं मकानों के अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के एक सदस्य को स्थायी सेवायोजन, परियोजना के शेष बचे विस्थापित जिन्हे दो दशक तक परियोजना द्वारा छला गया एवं स्थायी सेवायोजन से विमुख रखा गया उन्हे पुर्नवास/पुर्नबसाहट विस्थापन भत्ता एक मुश्त दिया जाये तथा उत्तर-प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) विनियमावली-१९९४, दिनांक: ०७.०२.१९९४ जो कि अवैधानिक है उसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाये। क्योंकि विगत तीन द’ाकों में परियोजना द्वारा बार-बार विस्थापितों के आन्दोलन को बल पूर्वक दबाने का प्रयास किया गया तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप से होने वाले समझौतों का अनुपालन नहीं सुनिश्चित किया गया जिससे हजारों आदिवासियों-दलित परिवारों के समक्ष भूखों मरने की समस्या खड़ी हो गई है। गौर किया जाए तो बस एक ही चीज समझ में आती है कि आज भी विस्थापित बेआवाज बना हुआ है। समय-समय पर विस्थापितों की आवाज बनकर कई जनप्रतिनिधियों ने केवल अपना उल्लू सीधा किया है। विस्थापितों की ओर से मा० सर्वौच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रहे पंकज मिश्रा, सचिव (सहयोग गैर सरकारी संस्था) का कहना है कि आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय था। कुछ यही हाल नार्दन कोल फिल्डस की बीना, ककरी एवं कृष्ण’ाीला परियोजना के विस्थापितों के साथ है। ज्ञात हो कि उत्तर-प्रदेश के तत्कालीन जनपद मिर्जापुर एवं मध्य-प्रदेश के सीधी में कोयला परियोजनाओं की स्थापना हेतु भूमि अधिग्रहण ७० के दशक में किया गया था। वर्तमान में एनसीएल द्वारा उन्ही अधिग्रहित भूमियों पर एनसीएल परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण के समय भू-विस्थापितों/प्रभावितों के प्रतिनिधियों एवं कोयला परियोजना प्रबन्धन के बीच विस्थापितों को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने के सन्दर्भ में यह समझौता हुआ था कि प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य को जिनकी भूमि एवं भवन (केवल भवन) परियोजना हेतु अधिग्रहित कर ली गयी हो उसके एक सदस्य को अनिवार्य रूप से कोयला परियोजना में नौकरी दी जायेगी परन्तु प्रबन्धन द्वारा विस्थापितों/प्रभावित परिवार के सदस्यों के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है जिसके कारण कुछ भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के सदस्यों तथा समस्त मकानों (जिनके सिर्फ मकान अधिग्रहित हुए) के अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले परिवार के सदस्यों को अभी तक स्थायी रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। ऐसे परिवारों के समक्ष भुखमरी की समस्या खड़ी हो गयी है। शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को एनसीएल में तत्काल स्थायी रोजगार उपलब्ध कराया जाये। एनसीएल द्वारा पुर्नवास सेल की बैठक में विस्थापित प्रतिनिधियों द्वारा एनसीएल की परियोजनाओं में विस्थापितों को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने के सन्दर्भ में की गयी मांग के सन्दर्भ में यह व्यवस्था बतायी गयी कि एनसीएल में जब स्थायी रोजगार के लिए उपलब्धता होगी ऐसी परिस्थितियों में शेष बचे विस्थापितों को स्थायी रोजगार दिया जायेगा। वर्तमान समय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की बहाली के लिए एनसीएल द्वारा प्रक्रिया शुरू की गयी है। बहाली की वर्तमान प्रक्रिया को संशोधित करते हुए चतुर्थ श्रेणी के सारे पद परियोजना विस्थापित/प्रभावित परिवारों के सदस्यों के लिए आरक्षित किया जाये तथा उनकी सीधी भर्ती की जाये। एनसीएल की ककरी परियोजना के लिए किये भू-अर्जन के समय परियोजना द्वारा अधिक गैर जरूरी जमीनों का अधिग्रहण कर लिया गया जिसे बाद में प्रबन्धन द्वारा डिनोटिफिकेशन के लिए प्रस्तावित किया गया है जो वर्तमान में लम्बित है। इस विषय पर कोल बेयरिंग एक्ट में आवश्यक संशोधन कर तत्काल कास्तकारों की जमीनों का डिनोटिफिकेशन कर उन्हे वैद्यानिक रूप से वापस किया जाये। अधिग्रहण से पूर्व हुए समझौते में प्रबन्धन द्वारा वर्ग-चार की भूमियों पर सामान दर से प्रतिकर एवं अन्य सुविधाए देने की बात स्वीकार की गयी थी। पुर्नवास सेल की बैठक में उपरोक्त सन्दर्भ में पुर्नवास सेल के अध्यक्ष, जिलाधिकारी मिर्जापुर द्वारा व्यवस्था दी गयी कि इस सर्वे प्रक्रिया शुरू होने जा रही है जिसमें कास्तकारों का स्वामित्व निर्धारित होगा तत्पश्चात समाधान होगा। सर्वे प्रक्रिया के दौरान उक्त जमीनों पर नोटिफिकेशन व परियोजना का कब्जा होने के कारण कास्तकारों को उनके भौमिक अधिकार नहीं मिल सके। इन सबसे बस यही नजर आता है कि विस्थापन उर्जांचल में एक जाति, नस्ल सी बन गई है जों, ७० के द’ाक से पनपती जा रही। जो परियोजनाए इस क्षेत्र के विकास के उद्दे’य से बनायी गई थी, वही यहा के आदिवासियों के लिए एक श्राप बन कर रह गई है। ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी के शक्ति आनन्द कनौजिया का कहना है कि एक बार इन्हें रिहन्द बांध बनते समय फिर नार्दन कोल फिल्डस के खदानों के नाम पर एवं अनपरा तापीय परियोजना के द्वारा एक बार फिरसे इनके साथ आजतक अन्याय हो रहा है। यह कहा का इन्साफ है। देखने वाली बात यह है कि इन बेगुनाहों को कब न्याय मिल पाता है। आखिर में बस एक बात कोसती है कि देश  के विकास की गर इतनी बड़ी किमत है तो फिर उस विकास अर्थ ही क्या है। दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय।  
पंकज कुमार मिश्र



" आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय बे-आवाज खड़ा था एवं उन्हें केवल कागजो मुआवजा दिया गया है जमीनी तौर पर नहीं"





शक्ति आनंद

" एक बार इन्हें रिहन्द बांध बनते समय फिर नार्दन कोल फिल्डस के खदानों के नाम पर एवं अनपरा तापीय परियोजना के द्वारा एक बार फिरसे इनके साथ आजतक अन्याय हो रहा है। यह कहा का इन्साफ है। देखने वाली बात यह है कि इन बेगुनाहों को कब न्याय मिल पाता है। आखिर में बस एक बात कोसती है कि देश  के विकास की गर इतनी बड़ी किमत है तो फिर उस विकास अर्थ ही क्या है। दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय। "