सोमवार, 12 सितंबर 2011

बिकाऊ मासूमियत!

१.माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है बच्चें।
२.ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करने को मजबूर मासूम।

पुरे देश मे चलाये जा रहे सर्वशिक्षा अभियान और बालश्रम उन्मूलन के मुंह को मुह चिढ़ा रही है उर्जांचल नगरी। अवगत कराना है कि खेलने, खाने और शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में क्षेत्र के कुछ नौनिहाल को ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करते देखा जा सकता है। इन नाबालिकों तथा छोटे-छोटे बच्चों को देखकर कोई भी व्यक्ति यह सोचने पर विव’ा हो जायेगा कि क्या २१वीं सदी के भारत में जब बच्चों को छ: से चौदह वर्”ा तक की आयु तक प्रारम्भिक ’िाक्षा देना संविधान के मूल अधिकार की श्रेणी में जोड़ दिया गया है। केन्द्र व राज्य सरकार नि:’ाुल्क ’िाक्षा के साथ-साथ किताब, युनिफार्म, छात्रवृत्ति, गुणवत्तायुक्त भोजन प्रदान कर रही हैंं, तो फिर इनके साथ यह दुव्र्यहार क्यों ? वो अपना समय विद्यालय में न बिताकर अपने जीवन के स्वर्णिम पल को दाव पर लगाकर खेलने, खाने और पढ़ने की उम्र में धन कमाने की ओर अग्रसर हो रहे है। इसके पीछे गरीबी, अ’िाक्षा एवं आर्थिक तंगी के कारण परिवार की गाड़ी खीचने के लिए अपना बचपन काम करके पुरा करना पड़ रहा है। सोनभद्र, चोपन, ओबरा एवं डाला आदि जगहों पर बालू एवं पत्थर खदानों में भी बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा सकता है। जो अति खतरनाक है।

केन्द्र सरकार की नरेगा जैसी योजना में भी बच्चें हाथ में फावड़ा व गईता हाथ में लिए देखे जा सकते है, जो भेड़ की तरह दो जुन की रोटी के जुगाड़ में खटाने को मजबूर है। समाज सेवी संस्था ‘सहयोग’ के संचालक पंकज कुमार मिश्रा का कहना है कि संबंधित विभाग का संवेदन ‘ाून्य हो गया है। ऐसे में सामाजिक कार्य करने वालों को आगे आना होगा। सदस्य ग्राम पंचायत-औड़ी के ‘ाक्ति आनन्द का कहना है कि इसका मूल कारण है सरकारी विभागों की अनदेखी, उर्जांचल के लगभग सैकड़ो गरीब परिवारों के मासूम बच्चें अपने माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है क्योंकि उनके माता-पिता इस महगांई के जमाने में अपना और अपने बच्चों का पेट नहीं पाल सकते, इसलिए आपने बच्चों को वें या तो ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों में काम पर लगाकर यह सोचते है कि ‘ाायद इससे वह कोई काम तो सीख जाए जिससे वह आगे हमारा पेट पाल सके। इस सम्बन्ध में उपश्रमायुक्त, पिपरी, सोनभद्र से जानकारी ली गई डी.एल.सी. श्री आर.पी. गुप्त बताया कि नवीन चन्द्र वाजपेयी, मुख्य सचिव, उ०प्र० ‘ाासन का पत्र जिलाधिकारी के माध्यम से मिला है, जिसमें सरकारी विभागों, निगम, संस्थानों में बालश्रम का नियोजन न करने के सम्बन्ध में है। पुरे दे’ा में सबसे ज्यादा बालश्रम उ०प्र० में ०९.२७ लाख है, जो दे’ा के किसी भी प्रदे’ा से सर्वाधिक है। साथ ही बालश्रम की प्रति”ोध अधिनियम १९८६ की धारा-३ के अनुसूची ‘क’ के अन्तर्गत १५ व्यवसायों एवं ‘ख’ के अन्तर्गत ५७ प्रक्रियाओं (अतिखतरनाक) को लिया गया है। पहले घरेलू नौकरों को ढाबा, होटल, मनोरंजन, सड़क के किनारे खान-पान, चाय की दुकान में नियोजन किया जाता था पर उसे भी अब रोक दिया जाने का प्रस्ताव पारित हो गया है। क्या क्षेत्र में नैनिहालों के Åपर सम्बन्धितों का ध्यान नहीं जाता जिसको गम्भीरता से लेते हुए उनके जीवन को मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास हो सके, और इन नाबालिकों से काम लेने वाले के विरूद्ध कठोर कार्यवाही बालश्रम कानून के तहत किया जा सके। क्या पता उन नैनिहालों में से कोई प्रतिभा का धनी निकलकर दे’ा व समाज का मांग कढ़ाने में कामयाब हो जाय।    

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