शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

सड़क को बनाया सवारी स्टैंड लोग परेशान, अधिकारी बेपरवाह


बीना पुलिस चैकी के ठीक सामने का रोड ड्राइवर और खलासियों का अड्डा बन चुका है। विभिन्न प्रकार की बड़ी और छोटी गाडियां बस स्टैंड की बजाय सड़क पर ही खड़ी मिलती है और पैसेंजर यहीं से बैठकर गंतव्य स्थान की ओर जाते हैं। नतीजा ये है कि आम लोगों को पैदल या निजी वाहनों से इस सड़क से गुजरने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कभी-कभी तो जाम इस कदर लग जाता है कि जरूरतमंदों को यहाँ से निकलने के लिए लंबे समय का इन्तजार करना पड़ता है, और ये जाम लगभग बीना पुलिस चाकी के गेट से बीना स्टेडियम तक लगा रहता है। हैरत की बात तो ये है कि पुलिस  के अधिकारीगण भी यहाँ से रोज ही गुजरते हैं, पर लगता है कि उन्हें लोगों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ खड़ी गाडि़यों की चिल्ल-पों पुलिस अधिकारियों के कान तक नहीं पहुँचती और इन सवारियों की वजह से अक्सर लगा जाम उन्हें नजर नही आता, दूसरी तरफ गाड़ी खड़ी करने तथा बुकिंग के उद्देश्य से बीना परिसर में कोई व्यवस्था मेन रोड़ पर नहीं है। बस स्टैंड के ना होने की दषा में सवारी वाहने अक्सर रोड़ को स्टैण्ड बना देती है। इस सम्बन्ध में एक आटो के ड्राइवर का कहना है कि यहाँ सड़क पर गाड़ी जल्द भर जाती है। उधर बस वाले का कहना है कि हमें मना नही किया गया है इसलिए सब जायज है। चलिए हम भी मान लेते हैं, पुलिस चैकी के सामने ही पुलिस ही अंधी और बहरी हो जाए वहां लोगों की परेशानी तो जायज ही मानी जा सकती है।

ऊर्जांचल की ऐश प्लांटों की राख बन रही जहरीली


  • वल्कर राख सड़क पर उड़ेलकर वातावरण कर रहे है प्रदूषित।
  • क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ही इनकी नकेल कसने के लिए कुछ करती।
  • कई बीमारियों के होने का बन रही वजह।


ऊर्जांचल की ऐश प्लांटों से वल्करों में इतना अधिक राख भर दिया जा रहा है वे इसे ले जाने में असहज महसूस करते है तथा ऊर्जांचल की सड़कों पर उड़ेलकर यहां के फिजा को जहरीला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनसे जब आम लोग राख को बीच सड़क पर गिराने का वजह पूछते है तो ये रटी-रटाई एक ही बात कहते है कि ओवरलोड हो गया है। गौरतलब है कि ऊर्जांचल के तापीय परियोजनाओं में जलने वाले कोयले की राख सीमेंट आदि उद्योगों में प्रयुक्त होने के लिए एमपी, बिहार सहित अन्य प्रदेशों में भी जाती है। कई परियोजनाएं अपने यहां ऐश रिफाइन कर ट्रकों में लोड करा कर बाहर भेजती है। अनपरा सहित पूरे ऊर्जांचल में इसे ढोने वाले वल्करों में न जाने किस अनुपात में राख भर दिया जाता है कि कुछ दूर जाने के बाद चालकों द्वारा इसमें से कुछ भाग को खुले सड़क पर नीचे उड़ेल दिया जाता है। सड़क पर गिरने के बाद ये राख के बारीक कण पूरे क्षेत्र में कुहरे की तरह हवा छा जाते है। प्रदूषण के मामले में गंभीर चल रहा ऊर्जांचल इन राख के कणों पर से गाडि़यों के गुजरने से उड़ने वाली धूल से और प्रदूषित हो जाता है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इसपर नकेल कसने के लिए कुछ नही करती है। मनमाने तरीके से राख का ढेर लगाना इनके आदतों में शुमार हो गया है। विदित हो कि सिंगरौली-अनपरा मार्ग पूर्व में ही इस राखड़ के ढेर से पट गया है लेकिन अब बिहार तथा यूपी के अन्य भागों में राख ढोने वाले वल्कर वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर राख का ढेर गाज कर इस मार्ग पर भी दुश्वारियों का ढेर लगा रहे है।

जनससमया को हल करने वाला प्रत्याषी चाहिए।


इस बार विधान सभा चुनाव में मतदाता जागरूकता अभियान महिलाओं के भी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। प्रत्याषीयों को महिलाओं की भी की समस्याओं को हल कराना होगा। महिलओं की मुख्य समस्या महंगाई कम करने, गैस की किल्लत, बिजली, पानी की समस्या, प्रदुषण एवं महिला के उपर हो रहे उत्पीड़न/अत्याचार को प्रमुखता से हल करने वाले प्रत्याशी को ही महिलाये एवं सम्मानित मतदाताओं का मत मिलेगा। 

आरती देवी
ओबरा विधान सभा क्षेत्र की निवासी आरती देवी कहती है कि हम महंगाई सहित कई समस्याओं प्रति जागरूक प्रत्याशी को वोट देंगे। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो।

पिंकी सिंह
पिंकी सिंह का कहना है कि महिलाये ज्यादातर पानी, बिजली की समस्या से जूझती हैं। इस प्रकार की समस्याओं को एवं महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले को वोट दिया जाएगा।

बुच्ची देवी
बुच्ची देवी पूर्व ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी का कहना है कि बिजली, पानी आदि जैसी कई समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ता है। प्रत्याशी चुने जाने के बाद समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो प्रत्याशी इन समस्याओं से निजात दिलाएगा, वोट उसी को दिया जाएगा। 

राधा देवी 
राधा देवी कहती हैं कि महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा। जनता की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उसका निदान करे ऐसे प्रत्याशी को अपना मत देंगी। 

रन्नों देवी
रन्नों देवी का कहना है कि विधान सभा में महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए आवाज उठाने वाले प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने की जरूरत है। कहा कि जीतने के बाद वे हर तबके के लोगों की समस्या के साथ ही साथ क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाएं, ऐसे प्रत्याशी को मत देना चाहिए। हम अपना बहुमूल्य मत उसे देंगे जो कर्मठ हो और जनहित में जिसका योगदान रहा हो। क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक उम्मीदवार को भी वरीयता मिलेगी।

फुलमनी देवी
फुलमनी देवी का कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टियां और उनके प्रत्याशी लंबे-चैड़े वायदे ऐसे करते हैं जैसे जीत के बाद विकास की गंगा बहा देंगे। लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ पहले जैसा ही दिखता है। अब हम सोच समझकर ही प्रत्याषीयों को देंगे तरजीह देंगी। 

पार्वती देवी 
पार्वती देवी कहती हैं कि ऐसे प्रत्याशी जो गांव और शहरों में रहने वाले मतदाताओं की महिलाये ज्यादातर पानी, बिजली की समस्याओं को हल करन वालेे प्रत्याशी को वोट देना चाहिए। 

सरला देवी
सरला देवी कहती हैं कि हमे क्षेत्र का ऐसा प्रतिनिधि चुनना चाहिए जो घरेलू गैस, पानी, बिजली की समस्याओं का समाधान करते हुए आम जनमानस की भावनाओं की कद्र करे। 

छोटी देवी 
छोटी देवी विकास को अहमियत देती हैं। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि ऐसा हो जो रोजगार परक शिक्षा के लिए राजकीय कालेज की स्थापना कराए। जिससे हमारे बच्चे उच्च षिक्षा के लिये बाहर ना जाने पाये। 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

कोल्ड स्टोरेज का अब भी इंतजार


सोनांचल में काफी प्रयास के बाद भी शीतलन केंद्र (कोल्ड स्टोरेज) की स्थापना नहीं हो सकी है। इससे बंपर पैदावार के बाद भी किसानों को आलू सुरक्षित रखने का ठिकाना नहीं है। इसी तरह अत्यधिक टमाटर उत्पादन के बाद भी इसके केचअप आदि बनाने के लिए इकाई की स्थापना नहीं हो सकी। इसके लिए जिले में योजना तैयार की गई लेकिन न तो शीतलन केंद्र के लिए और न ही फल संरक्षण केंद्र के लिए कोई आगे आया। सोनांचल की पथरीली जमीन पर पारंपरिक खेती उतनी मात्रा में नहीं हो पाती है। हां यहां गैर परंपरागत सब्जी, फूल और फलों की खेती की असीम संभावनाएं हैं। यहां के किसान फल और सब्जियों की खेती कर भी रहे हैं। करमा इलाका तो टमाटरों के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मधुपुर केकराही आदि सब्जियों के उत्पादन में आगे है। यही नहीं उर्जांचल फलों की खेती के लिए इलाके भर में जाना जाता है। बावजूद इसके किसानों को उचित प्रशिक्षण और फलों के संरक्षण का केंद्र न होने की वजह से किसानों को उतना लाभ नहीं हो पाता है। फूड प्रोसेसिंग प्लांट न होने से आलू की बंपर पैदावार के बावजूद उसे रखने के लिए कोल्ड स्टोर नहीं है। लोगों की मांग पर इस वर्ष शासन द्वारा कोल्ड स्टोरेज खोलने की योजना बनाई गई। मई माह में एक कोल्ड स्टोरेज खोलने के लिए आवेदन मांगे गए। तीन करोड़ की लागत से बनने वाले कोल्ड स्टोर के लिए एक करोड़ बीस लाख रुपये अनुदान की घोषणा उद्यान विभाग द्वारा की गई। बावजूद इसके कोल्ड स्टोरेज खोलने के लिए कोई आगे नहीं आया। अब तो पैसा वापस होने की नौबत आ गई है। इसी तरह शासन की घोषणा के बाद फूड प्रोसेसिंग प्लांट की राह ही ताक रहे हैं। जनपद में फूड प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना के लिए इच्छुक लोगों से आवेदन मांगे गए थे। प्लांट की स्थापना करने वाले को एक लाख बीस हजार रुपये अनुदान की घोषणा की गई। इसके लिए तीन लोगों ने आवेदन किए, जिसमें एक अक्टूबर को विभाग द्वारा एक नाम चयनित कर लखनऊ भेजा गया है। अब देखना है कि कब तक इसका निर्माण होता है। 

लोगों को जल्द मिलेगी ब्लड बैंक की सौगात


रेणुकूट के नगर एवं आसपास के लोगों को अब जल्द मिलने जा रही है ब्लड बैंक की सौगात। कई महीनों से लंबित हिण्डाल्को अस्पताल के ब्लड बैंक लाइसेंस को शासन ने मंजूरी दे दी है, जिससे दक्षिणाचंल में खून की कमी से मृत्यु दर में कमी आएगी। विदित है कि शासन द्वारा एक वर्ष से अस्पतालों में रक्त निकालने एवं चढ़ाने पर पाबंदी लगा रखी थी। केवल अधिकृत रक्त बैंक में ही यह सुविधा उपलब्ध थी, जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्र में संस्थानों एवं सड़क दुर्घटनाओं में घायल व्यक्ति रक्त न उपलब्ध हो पाने से असमय काल के गाल में समा जा रहे थे। नगर में ब्लड बैंक के लिए व्यापार मंडल द्वारा इस वर्ष 15 अप्रैल को अजय राय द्वारा एक दिनी भूख हड़ताल, नगर पंचायत अध्यक्ष अनिल द्वारा 25 अक्टूबर वर्ष 2011 को उपवास एवं खाड़पाथर में नौ अक्टूबर 2011 को मंडलायुक्त की जन चैपाल में ज्ञापन के साथ साथ बीस नवंबर से समाजसेवी शिवप्रताप सिंह द्वारा किया गया भूख हड़ताल जो 26 नवंबर को समाप्त होकर इस मांग को मूर्तरूप दिया। विदित हो कि हिण्डालको अस्पताल में सुसज्जित आधुनिक ब्लड बैंक बन कर तैयार है परंतु लाइसेंस न मिलने से वह शोपीस बन कर रह गया था। गुरुवार को सीएमओ डा. जीके कुरील ने ब्लड बैंक के लाइसेंस मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि जनप्रतिनिधियों एवं जिला प्रशासन के अथक प्रयास से यह संभव हो सका है।

दो साल बाद भी बकाया मजदूरी के पैसे नहीं मिले।


दो वर्षों बाद भी मनरेगा मजदूरी का भुगतान न होने से आक्रोशित बनौरा द्वितीय गांव के ग्रामीणों ने खुली बैठक के दौरान सेक्रेटरी को बंधक बना लिया। किसी तरह सेक्रेटरी बच कर भाग निकला तो ग्रामीणों ने सांकेतिक रूप से राबर्ट्सगंज घोरावल मार्ग पर जाम लगा दिया था। गांव के बड़े बुजुर्गों के समझाने पर जाम समाप्त कर दिया। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि शीघ्र ही मजदूरी को लेकर बड़ा आंदोलन किया जाएगा। गांव के प्राथमिक विद्यालय पर खुली बैठक का आयोजन किया गया था। इसमें अतिरिक्त खाद्यान्न वितरण के लिए पात्रों का चयन किया गया था। समय से बैठक शुरु हुई। अपराह्न करीब दो बजे गांव के दर्जनों मनरेगा मजदूरों ने सेक्रेटरी शिवनारायण सिंह से दो वर्ष पूर्व से बकाए मजदूरी की मांग की। सेक्रेटरी ने बाद में इस मामले का निपटाने का आश्वासन दिया। इस पर श्रमिक भड़क गए कहा कि वर्ष 2010 में हुए कार्य का भुगतान आज तक नहीं किया गया। मजदूरों के हजारो रुपये बकाए हैं। मजदूरों ने तहसील दिवस में इसकी शिकायत की तथा बीडीओ से भी शिकायत की लेकिन भुगतान नहीं हुआ। बार बार सिर्फ आश्वासन दिया जा रहा है। मजदूरों ने सेक्रेेटरी से ठोस आश्वासन की मांग की। सेक्रेटरी द्वारा टाल मटोल किए जाने पर श्रमिक भड़क गए और दोपहर में करीब दो बजे सेक्रेटरी को बंधक बना लिया। सचिव करीब आधे घंटे बाद किसी तरह श्रमिकों की चंगुल से भाग निकले। 

कर्मठ प्रत्याशी को देंगी वोट


इस बार विधान सभा चुनाव में मतदाता जागरूकता अभियान लोगो के सिर चढ़ कर बोल रहा है। लोगों की समस्याओं को हल कराना होगा। लोगो की समस्याओं को हल करने, महंगाई कम करने, गैस की किल्लत, बिजली, पानी की समस्या को प्रमुखता से हल करने वाले प्रत्याशी को ही युवा एवं सम्मानित मतदाताओं का मत मिलेगा। युवाओं ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और उनके प्रमुख समस्या को हल करने वाले के पक्ष में मतदान करने की बात कही। 

जगदीश सोनी 

ओबरा विधान सभा क्षेत्र की निवासी जगदीश सोनी का कहना है कि घर में हम पानी, बिजली की समस्या से जूझती हैं। इस प्रकार की समस्याओं को हल करने वाले प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा।


रमेश राजभर 
रमेश राजभर का कहना है कि हम महंगाई सहित कई समस्याओं प्रति जागरूक प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा। चाहे वह किसी भी दल का हो। 


अशोक यादव
अशोक यादव ने कहा कि प्रतिनिधि चुने जाने के बाद प्रत्याशियों द्वारा लोगो की समस्याओं की अनदेखी की जाती है। यह अच्छी बात नहीं है। 


सतीश दूबे
सतीश दूबे का कहना है कि बिजली, पानी आदि जैसी कई समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ता है। प्रत्याशी चुने जाने के बाद समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो प्रत्याशी इन समस्याओं से निजात दिलाएगा, वोट उसी को दिया जाएगा चाहे वह किसी दल या जाति का हो। 


अख्तर रजा
अख्तर रजा कहते हैं कि महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा। जनता की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उसका निदान करे ऐसे प्रत्याशी को अपना मत देने का विचार कर रहा हूं। 


शक्ति आनन्द
शक्ति आनन्द का कहना है कि विधान सभा में महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए आवाज उठाने वाले प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने की जरूरत है। कहा कि जीतने के बाद वे हर तबके के लोगों की समस्या के साथ ही साथ क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाएं, ऐसे प्रत्याशी को मत देना चाहिए। हम अपना बहुमूल्य मत उसे देंगे जो कर्मठ हो और जनहित में जिसका योगदान रहा हो। क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक उम्मीदवार को भी वरीयता मिलेगी।


शिवशंकर तिवारी
शिवशंकर तिवारी कहते हैं कि ऐसे प्रत्याशी जो गांव और शहरों में रहने वाले मतदाताओं की समस्याओं को हल करें, ऐसे प्रत्याशी को वोट देना चाहिए। 


ओम प्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि हमे क्षेत्र का ऐसा प्रतिनिधि चुनना चाहिए जो घरेलू गैस, पानी, बिजली की समस्याओं का समाधान करते हुए आम जनमानस की भावनाओं की कद्र करे। 


जनेश्वर दूबे
जनेश्वर दूबे ने कहा कि विस्थापन की समस्या से निजात दिलाने वाले को वह वोट देंगे। साथ ही जो परास्नातक की शिक्षा के लिए महाविद्यालय की स्थापना कराए। 


मनोनीत
मनोनीत उसे वोट देंगे जिसने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया हो। 
अंकुर मेहता 
अंकुर मेहता शिक्षा के साथ-साथ बेरोजगारी दूर करने वाले को वोट देने की बात कहते हैं। 


प्रशांत शर्मा
प्रशांत शर्मा विकास को अहमियत देते हैं। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि ऐसा हो जो रोजगार परक शिक्षा के लिए राजकीय कालेज की स्थापना कराए। 


प्रशांत शर्मा
लक्ष्मीकान्त दूबे विकास के प्रति जागरूक उम्मीदवार को चुनना चाहते है। जिसमें न्याय-अन्याय के निर्णय की क्षमता हो, वह चुना जाना चाहिए। 


हरिगोबिन्द तिवारी
हरिगोबिन्द तिवारी कहते हैं कि वह उस उम्मीदवार को वोट देंगी जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का माद्दा रखता हो। 
सन्तोष पटेल
प्रदीप


सद्दाम हुसैन

सन्दीप गुप्ता


प्रदीप, सद्दाम हुसैन, सन्दीप गुप्ता, सन्तोष पटेल आदि का कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टियां और उनके प्रत्याशी लंबे-चैड़े वायदे ऐसे करते हैं जैसे जीत के बाद रामराज ला देंगे। लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ पहले जैसा ही दिखता है। अब हम सोच समझकर ही प्रत्याषीयों को देंगे तरजीह। 




रविवार, 5 फ़रवरी 2012

विष्ठापितो को अब देरी बर्दाश्त नहीं!


21 सितम्बर 2011 को उ.प्र.रा.वि.उ.नि.लि. को मुख्यालय द्वारा अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण लिये किये गये भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के लम्बित पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन के सन्दर्भ में लिये गये निर्णय के अनुरूप उ.प्र. सरकार की नई भुमि अधिग्रहण नीति-2011 के अनुरूप पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ तथा भारतीय वन अधिनियम की धारा-4, वर्ग-4 एवं वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत बेलवादह के जनजाति परिवारों को दिये गये भूमि आदि पर मुआवजा, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ दिये जाने हेतु जिलाधिकारी, सोनभद्र द्वारा 22.09.2011 को बनाई गई त्रीस्तरीय समिति द्वारा दावेधारको के दावों का निस्तारण अभी तक नहीं होने से परियोजना प्रभावित हजारों परिवारों में गम्भीर रोष व्याप्त है। समयबद्ध पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ के साथ-साथ मुआवजे का भुगतान ना होने तथा पिछली बार सितम्बर के माह में हुए विस्थापितों के आन्दोलन के उपरान्त अनपरा पुलिस द्वारा बसपा नेताओं के दबाव में फर्जी रूप से डिबुलगंज के लोग जिनकी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका थी। उन पर सड़क जाम का फजी मुकदमा दर्ज कराया है तथा विगत एक वर्ष में सत्ताधारी दल के दबाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर दर्ज कराये गये फर्जी मुकदमों को सरकार द्वारा वापस ना लिये जाने की स्थिति में परियोजना प्रभावित परिवारों तथा समस्त उर्जान्चलवासियों द्वारा हजारों की संख्या में सामुहिक भुख हड़ताल करने की चेतावनी दी गई। 

इसके अलावा एनसीएल एवं एनटीपीसी के लिये भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों को भी आन्दोलन से जोड़ने का निर्णय लिया गया। विस्थापितों द्वारा अपने आन्दोलन में सहयोग हेतु सभी राजनीतिक दलों के मुखिया को हजारों किसानों के हस्ताक्षर युक्त पत्र भेजकर उनसे सहयोग भी मांगा गया। इसके अलावा देष में कार्यरत प्रमुख समाज सेवी संगठनों से भी इस आन्दोलन में सहयोग करने के लिये आग्रह किया गया है। इसी क्रम में प्रस्तावित आन्दोलन के बिन्दूओं पर दिल्ली एवं लखनऊ में प्रेस कांफ्रेन्स कर इस आन्दोलन को व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ-साथ विषाल रूप देने का निर्णय लिया गया है। पिछले तीन दषक से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे दलित-आदिवासी किसानों का धैर्य अब जवाब दे रहा है तथा वह किसी भी हद तक अपने अधिकारों के लिये सघर्ष करने को तैयार है। 

नशे की लत बना रही है, सोनभद्र के नवयुवकों को अपराधी


1. अवैध नषीले पदार्थ की बिक्री पर पुलिस नहीं लगा पा रही है रोक। 
2. नषे की पूर्ति करने के लिए युवा करते है चोरी। 
3. चिन्हीत नषीले पदार्थ बेचने वालों से करती वसूली। 
4. 60 आबकारी एक्ट में चिन्हीत आरोपियों को ही पुलिस द्वारा दिखाया जाता है चालान। 

‘‘तुझे सूरज कहू या चन्दा, तुझे दीप कहू या तारा मेरा नाम करेगा रौषन, जग में मेरा राज दुलारा’’

यें पक्तियाँ एक फूल दो माली फिल्म की है। जिसमें हर पिता के उन सपनों का माखौल उड़ा रही है जब पहली बार पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर हर पिता इस सपने को संजोये रखता है। पर उसे क्या मालूम की इस भ्रष्ट समाज एवं प्रषासन के गैर जिम्मेदारी के चलते उसके सपने वक्त अनुसार चकनाचूर हो जायेंगे। आज समाज में जिवकोपार्जन चलाने के नाम पर अवैध सामग्रीयों के धन्धा करने वाले लोग उस सच को झूठला दे रहे है कि सामने खड़े जिस युवक को मैं मौत की सामग्री बेंचकर अपनी जिवीका चला रहा हूँ, उसी के समान उनका अपना भी पुत्र है। वही दूसरी तरफ भ्रष्ट प्रषासन को जानकारी होने के बावजूद इसीके रोकथाम के लिए, कोई उचित कदम नही उठ रहा है। नषे की लत की गिरफ्त में पड़ा हर नवयुवक आज मुजरिम बनने के कगार खड़ा हो चुका है। इन सबके पिछे क्या कारण है ? इन कारणों के सुधार बजाय पुलिस इन्हें पकड़कर लाती है और उनके ऊपर धारा लगाकर जेल भेज देती है। चोरी, छिनैती, डाका, हत्या जैसे जघन्य अपराध में पड़े इन युवकों के ऊपर कानून की धारा लगाकर बड़े मुजरिम बनने का प्रमाण पत्र दे देती है। हर माह आबकारी विभाग द्वारा दौरा किया जाता है। जाँच के नाम पर सिर्फ औपचारिकता अदा कर दी जाती है। 

आज भी उर्जान्चल में सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के नाम पर स्टेषनरी, मेडिकल स्टोर, सरकारी भांग की दुकान एवं पान बेचने की आड़ में नषे की बिक्री तेजी से फलफूल रहा है। उल्लेखनीय है कि जरूरी नहीं की जो चिन्हीत है, उन्हीं के ऊपर कार्यवाही हो। आज स्टेषनरी से वाईटनर, मेडिकल स्टोर से कोरेक्स (खांसी की दवा) सरकारी भांग की दुकान एवं पान बेचने वाले के यहाँ से गांजा जैसे सामानों कों इन युवको को परोसा जा रहा है। नषे का सेवन करते-करते इसके आदि बन चुके नवयुवक आर्थिक कमजोरी के कारण चोरी, छिनैती उसके बाद बड़े से बड़े अपराध करना शुरू कर देते है। पुलिसिया कार्यवाही के आदि बन जाने के बाद शुरू हो जाता है। कुछ महिनों पूर्व क्षेत्र में हुए दर्जनों चोरियों में चोरों ने पत्रकार के घर में हाथ साफ किया। इसके बाद दौरे पर आये पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार एवं जिलाधिकारी पनधारी यादव की मौजूदगी में रेनुसागर बाजार में लगभग आधा दर्जन दुकानों का ताला तोड़कर चोरों ने सलामी ठोकी थी। इन दर्जनों चारियों में दो चोरी का खुलासा हो पाया। चोरी में लिप्त युवकों को आज भी गन्तव्य स्थानों पर गांजा, शराब एवं वाईटनर का प्रयोग करते आज भी देखा जा सकता है। 

आज कानून व्यवस्था में इस जुर्म को रोकने के लिए तरह-तरह की व्यवस्थाये प्रदान की जा रही है। लेकिन देष का संविधान इस बात को भूल चुकी है कि जुर्म करने वाले के साथ, उसे जुर्म की ओर भेजने वाला भी उतना ही बड़ा आरोपी होता है। लेकिन कानून व्यवस्था अपनी गैर जिम्मेदारी के चलते वक्त का इन्तजार करती है। समयानुसार देष का भविष्य कहे जाने वाले युवक जब इस गर्त में घुस कर अपना जीवन बर्बाद कर देते है तो कानून उसको सिर्फ संविधान की धाराओं से अवगत कराती है। उनको इस गर्त में धकेलने वाले लोग अपने धन्धे में मषगुल रहते है। अवैध तरीके से की जा रही बिक्री के ऊपर कानून को षिकंजा कसना चाहिए। 

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

आज भी नहीं मिल रही आदिवासियों को पहचान


सोनभद्र के आठों विकासखंडों के अनेक गांवों के आदिवासी-जनजाति निवासी अपने दर्द को हमेषा से बयां कर रहे हैं, वह ज्यादातर उत्तर प्रदेश में निवास करने वाली कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर आदि अनुसूचित जातियों के लाखों लोगों का दर्द है। इनके सरीखे सोनभद्र के लाखों आदिवासी-जनजाति के लोग जंगल से लकड़ी, कंदमूल आदि लाकर और मजदूरी करके पेट की आग शांत कर लेते हैं, लेकिन सरकारी दाव-पेंच में फंसकर जेल की हवा खाने का खौफ इन्हें हमेशा सालता रहता है। इस खौफ की वजह जिला प्रशासन है। जिला प्रशासन ने अब तक सैकड़ों लोगों पर वन भूमि पर अवैध कब्जे का आरोप लगाकर जेल भेज दिया है, जो अभी भी जेल की हवा खाने को मजबूर हैं। 

गौरतलब है कि कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर सरीखी जातियों के लोग आदिकाल से जंगलों में निवास कर अपना जीवनयापन करते चले आ रहे हैं। इसका वर्णन हमे शास्त्रों में भी मिलता है। आज से करीब चार सौ साल पहले तुलसीदास ने रामचरित मानस  में भी कोलों का वर्णन आदिवासी के रूप में किया है। भारत सरकार ने भी बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगड़, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में कोल, कोरवा, मझधार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर आदि जातियों को आदिवासी के दर्जे से नवाजा है। वहीं, जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है। जो इनके साथ किये गये एक ऐतिहासिक अन्याय की गवाह है। जिसके कारण इन जातियों के लोगों को अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून-2006 यानी वनाधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है और यह जातियाँ इनके मौलिक अधिकार से वंचित हो रहे है। विसंगतियों से भरे वनाधिकार अधिनियम-2006 के प्राविधानों के कारण वन विभाग की भूमि पर काबिज आदिवासियों को ही आसानी से कब्जा मिल पाता है। अन्य परंपरागत वन निवासियों को अब भी अपने पूर्वजों की जोत-कोड़ की जमीन पर निवास करने अथवा खेती करने के अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है। वनाधिकार कानून में अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए उन्हें अधिनियम में उल्लिखित जंगल में अपने पूर्वजों की तीन पीढि़यों के निवास प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने के प्रावधान ने कोल सरीखे पारंपरिक आदिवासियों को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इन निवास करने के प्रमाणों को प्रशासन के सामने पेश करने के लिए इन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। जिसके कारण ये वनाधिकार कानून के लाभ से भी वंचित हो रहे हैं तथा प्रशासन उन्हें अतिक्रमणकारी बताकर जेलों में ठूंस रही है। प्रशासन की इस कार्यवाही से अब यह प्रश्न उठने लगा है कि आखिरकार आदिवासी कौन हैं ? पारंपरिक रूप से वनों में रहकर उसके वनो से प्राप्त अवशेषों से अपना और अपने परिवार का गुजर-बसर करने वाले लोग या फिर राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों द्वारा तैयार किए गए कागज के पुलिंदों में अंकित जातियों के लोग। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र एवं इससे सटे मिर्जापुर जिले में निवास करने वाली कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर आदि जाति के लोगों को वनाधिकार कानून का लाभ मिलता दिखाई नहीं दे रहा है, जबकि अन्य राज्यों समेत शास्त्रों तक में ये आदिवासी के रूप में दर्ज हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश में कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर आदि जातियों की सामाजिक स्थिति काफी दयनीय है। ये जातियाँ सोनभद्र में आज भी जंगलों से लकड़ी, कंदमूल सरीखे अवशेष बेचकर और मजदूरी करके अपना तथा अपने परिवार का पेट भर रहे हैं। फिर भी राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन इन्हें उनकी पुस्तैनी जंगल की कब्जे की जमीन से बेदखल कर रहा है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी, मलार, कंवर आदि सरीखे पारंपरिक आदिवासियों के छिनते अधिकार पर सत्ताधारी अथवा गैर-सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदें चुप्पी साधे हुए हैं। कोल बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद लालचंद कोल और भाईलाल कोल भी संसद में अपने समुदाय की आवाज बुलंद नहीं कर सके। करीब सवा लाख कोलों की आबादी वाले राबर्ट्सगंज संसदीय से अब समाजवादी पार्टी के पकौड़ी लाल कोल लोकसभा में लाखों कोलों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। फिर भी कोलों के आदिवासी दर्जे की आवाज संसद में बुलंद नहीं हो रही। उधर उत्तर प्रदेश के नक्सल प्रभावित जनपद मिर्जापुर, चंदौली और सोनभद्र में जिला प्रशासन नक्सल के नाम पर कोलों को निशाना बना रहा है। इसके कारण कोल जाति के लोग अपने हक की आवाज उठाने से कतरा रहे हैं।

आदिवासीयों के मौलिक अधिकार से वंचित कोल, कोरवा, मझवार, धांगर (उरांव), बादी मलार, कंवर आदि जातियों के लोग अपनी पुस्तैनी जमीन से बेदखल होने के बाद दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। जिसके साथ ही, उनकी अमूल्य नृत्य संस्कृति भी दम तोड़ रही है। आदिवासियों के वनाधिकार कानून समेत अन्य अधिकारों को लेकर कुछ सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। इन संगठनों में जन संघर्ष मोर्चा, वनवासी गिरिवासी और श्रमजीवी विकास मंच का नाम प्रमुख है। इन सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के प्रयास से वनाधिकार कानून के लाभ से वंचित आदिवासियों ने भी धीरे-धीरे अपनी आवाज उठानी शुरू कर दी है। आदिवासी राजनीतिक नुमाइंदों से पूछ सकते हैं कि ................... वास्तविक आदिवासी कौन ?


आलू की खेती से होता हो रहा नुकसान


जनपद में आलू उत्पादन की असीम संभावनाओं के बाद भी इसके लिये कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम मात्रा में आलू उत्पादन करते हैं। जनपद के किसानों का कहना है कि मिर्जापुर में दो शीतलन केेंद्र हैं, लेकिन हमारे लिये इतनी दूर मिर्जापुर और चुनार जाकर आलू रखना मुश्किल है। आलू की अधिक खेती करने पर किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। शीतलन केंद्र न होने से यहां के आलू उत्पादकों को मुश्किल होगी। कोल्ड स्टोरेज की स्थापना से यहां आलू व्यवसायिक खेती हो सकती थी, जिसका लाभ सीधे तौर पर किसानों को मिलता। अपर उद्यान अधिकारी, सोनभद्र का कहना है कि सोनांचल में काफी प्रयास के बाद भी शीतलन केंद्र (कोल्ड स्टोरेज) की स्थापना अब तक नहीं हो सकी है, जिसके लिये प्रयास चल रहा है, लेकिन आवेदन ही न आने पर क्या किया जा सकता है। फूड प्रोसेसिंग प्लांट इसी वर्ष स्थापित होगा, इससे टमाटर उत्पादक लाभान्वित होंगे।