शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

कौन लेगा इन रास्तों की सुध


काषी मोड़ तिराहा गंदगी से पटे होने के कारण आने-जाने वाले लोगों के लिए सिरदर्द बन गया है। आलम यह है कि सड़क के दोनों तरफ नाली का गंदा पानी रोड पर जमा होने से जहाँ राहगीरों को काफी समस्याआंे का सामना करना पड़ रहा है वही जनप्रतिनिधियों को ये गंदगी दिखाई नहीं देती। बरसात के समय में ये रास्ते और भी ज्यादा बजबजाने लगते है। वाराणसी से षक्तिनगर मुख्य मार्ग से होकर वाहनंे और आम नागरिक तक गुजरते है लेकिन इस मार्ग का सुध लेने वाला कोई नहीं है जिसके कारण इस मार्ग पर साईकिल एवं पैदल यात्रियांे को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों वाहन व पैदल यात्री अनपरा (काषीमोड़) से ही गुजरते है एवं अधिकाष जनप्रतिनिधि व नेता इसी अनपरा, काषीमोड़ पर ही रहते है लेकिन इन नेताओं की अनदेखी की वजह से  इस मार्ग पर पड़ी गंदगी की सफाई नहीं हो पा रही है। जिला पंचायत की तरफ से बाजार तथा अन्य जगहों पर पैसे की वसुली तो होती रहती है लेकिन साफ-सफाई पर इन लोगों के द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता जिससे आम जनता को कुछ राहत पहुचाई जा सके। स्थानीय लोगांे ने काषीमोड़ तिराहे के पास साफ-सफाई व गड्डे को मिट्टी से पाटने के लिए अनपरा परियोजना प्रबंधन एवं जिला प्रषासन से मांग की हैं। 

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

कहुआ नाला श्मशान ओबी से पटा, शव फूंकने में दिक्कत


ऊर्जांचल का सर्वाधिक दाह-संस्कार वाला कहुआ नाला श्मशान की भूमि एनसीएल की ओबी (ओवर बर्डेन) से पटकर अपना वजूद खो चुका है। स्थानीय सम्भ्रान्त नागरिको की समिति ने इस शमशान की भूमि पर एक मंडप तथा शवदाह करने वाले स्थल के पक्के निर्माण कार्य पर लाखों खर्च किया था। आम लोगों के सहयोग से बने इस श्मशान भूमि का ओबी के विशालकाय सिल्ट आदि क्षेत्र में पड़ने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। स्थानीय लोगों ने एनसीएल प्रबन्धन सहित जिला प्रशासन को पत्र लिखकर यहां के निवासियों के लिए शमशान को बचाने की गुहार लगाई थी। इस शमशान का अस्तित्व ओबी के सिल्ट से पटती जा रही है। आलम यह है कि लगभग दो वर्ष से यहां से बहने वाला कहुआ नाला पट गया इस वजह से यहां शव जलाना भी स्थानीय निवासियों ने बंद कर दिया। शव रखने का मंडप भी भारी-भरकम ओबी सिल्ट की चपेट में आने से धराशायी हो गया है। वर्तमान में भारी-भरकम चट्टानों के बीच से शमशान भूमि में कदम रखना ही जोखिम भरा हो गया है। एनसीएल ककरी परियोजना के महाप्रबंधक एसके झा ने बताया कि श्मशान वाली भूमि रेलवे की सरकारी भूमि है अभी इस मसले पर विभागीय जांच चल रही है शीघ्र ही जांच पूरी कर इस बारे में कोई निर्णय लिया जाएगा। लेकिन क्या पत्रा जब तक कोई सार्थक पहली की जायेगी तब तक शायद इस शमषान का अन्तिम संस्कार ओबी की बड़ी-बड़ी चट्टानों के हाथों हो चुका होगा। 

मनरेगा के कार्यों में गड़बड़ी


गांव में मनरेगा के कार्यों में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। रही मृतकों को काम देने की बात तथा हिंदू जाबकार्ड पर मुसलमानों के नाम होने की तो यह सब कंप्यूटर फीडिंग में गड़बड़ी की वजह से हुई है। कागज में सब कुछ ओके है। मामले की जांच कराने के बाद ही सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। शीघ्र ही पूरे मामले की जांच कर सच्चाई को उजागर किया जाएगा। रही बात हिंदू के जॉबकार्ड पर मुसलमान सदस्यों के नाम की तो यह वन विभाग द्वारा कराए गए कार्यों में गड़बड़ी की वजह से हुआ था। वन विभाग ने ही इन नामों का जोड़ा था। हिंदू के जाबकार्ड में मुसलिम भी, गांव में नहीं रहता है कोई भी मुसलिम परिवार। चोपन विकास खंड में मनरेगा कार्यों में बड़े पैमाने पर धांधली की जा रही है। यहां तक कि वर्षों पहले मर चुके लोगों से मनरेगा के तहत काम कराए जा रहे हैं। यही नहीं जाब कार्ड पर सदस्यों के नाम में भी हेराफेरी की जा रही है। विकास खंड के पिपरखाड़ गांव की यही स्थिति है। यहां हिंदू धर्मावलंबी ग्रामीण के जाबकार्ड पर सदस्यों में मुस्लिम नाम डाले गए हैं, जबकि गांव में मुस्लिम परिवार ही नहीं हैं। गांव में मृतकों से भी काम लिया गया है। प्रधान इसे कंप्यूटर की गड़बड़ी मान रहे हैं। ग्रामीण गरीबों को सौ दिनों का सुनिश्चित रोजगार मुहैया कराने के लिए चल रही मनरेगा योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। गांव में तेजू के नाम से जाब कार्ड संख्या यूपी 63-005-001-626 बनाया गया है। इनका इलाहाबाद बैंक में खाता संख्या 38055 है। इन्होंने आठ दिसंबर 2008, चैदह फरवरी 2009 को काम भी मांगा है, जबकि तेजू की तीन चार वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है। इसी तरह मोतीलाल के नाम से जाब कार्ड संख्या यूपी 63-005-005-001ध्26 बनाया गया। इन्होंने नौ जून, 29 दिसंबर 2008, पांच जनवरी, बारह जनवरी, चैदह फरवरी को काम मांगा है, जबकि इनकी मृत्यु भी कई वर्ष पूर्व हो चुकी है। जाबकार्ड की अनियमितताओं की बात करें तो गांव के बहादुर के नाम से जाबकार्ड संख्या यूपी 63-005-005-001ध्664 बना है। इनके सदस्यों में गुलशन, इरफान, जाकिर आदि के नाम डाले गए हैं। इसी तरह उषा के नाम से जाबकार्ड संख्या 737 बना है। जाब कार्ड पर रामकेश, जितेन्द्र, कलावती के अलावा आज मुहम्मद, खुशबिंसी, नौराएकुद्दीन, हरीश आदि के नाम हैं। आज मुहम्मद ने काम भी मांगा है। गांव के ही अवध बिहारी के नाम से जाबकार्ड संख्या 774 बना है। इसमें अवध बिहारी के अलावा सदस्यों में अब्दुल कलाम, शामोहम्मद, अफसाना, फातमा आदि के नाम दिए गए हैं। अब्दुल कलाम, अफसाना, शामोहम्मद ने काम भी मांगा है। हिंदू घर में मुसलमान सदस्य हो सकता है लेकिन जब गांव में मुस्लिम परिवार ही नहीं हैं, तो कहां से सदस्य हुए यह समझ के परे है। यह पूरी लिस्ट इंटरनेट पर उपलब्ध है। बावजूद अधिकारियों की नजर इस ओर नहीं गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि इसकी विस्तृत जांच कराई जाए तो बड़ी गड़बड़ी मिल सकती है।

विस्थापित काम न मिलने पर भड़के


सिंगरौली जिले के नौगढ़ इलाके में निर्माणाधीन अनिल धीरू भाई अंबानी ग्रुप (एडीएजी) के रिलायंस पावर प्रोजेक्ट के लिए बन रहे कन्वेयर बेल्ट का काम नहीं मिलने से नाराज विस्थापितों ने बुधवार की सुबह रास्ता रोकते हुए अन्य काम ठप करा दिया। विस्थापितों द्वारा आंदोलनात्मक कदम उठाए जाने की जानकारी के बाद कंपनी प्रबंधन के लोगों में खलबली मच गई। इसकी सूचना जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ पुलिस को दी गई। दोपहर 12 बजे के करीब पहुंचे सिंगरौली के तहसीलदार ने नाराज लोगों को भरोसा दिलाया की उनकी जायज मांगों को पखवारे भर के अंदर पूरा कर दिया जाएगा तब जाकर बात बनी और कंपनी का कार्य शुरू हो पाया। बताते हैं कि रिलायंस पावर अपने आवंटित कोल ब्लाक से पावर प्रोजेक्ट तक कोयला ले जाने के लिए कन्वेयर बेल्ट का फाउंडेशन आदि तैयार करा रहा है। इस कार्य को को संविदा कंपनी आईटीबी अंजाम दे रही है। इस बीच पड़ने वाले गांव अमलोरी, नौगढ़ व भकुआर के लोगों का कहना है कि कंपनी के लोग उनकी जमीन अधिग्रहण आदि से मसले को अभी तक नहीं सुलझा सकी है। ऊपर से विस्थापितों को कार्य नहीं देकर बाहरी लोगों को कार्य पर लगाया गया है। इन्हीं मुद्दों को लेकर पार्षद रामगोपाल पाल की अगुवाई में बुधवार की सुबह कई सौ विस्थापित कंपनी कार्यालय की तरफ जाने वाले मार्ग को जाम कर दिया और कंपनी के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इसकी जानकारी होने के बाद तहसीलदार विकास सिंह मौके पर पहुंचे और लोगों को समझाना शुरू किया। काफी मशक्कत के बाद इस बात पर सहमति बनी पखवारे भर के अंदर विस्थापितों से जुड़ी सभी समस्याओं का हल निकाल लिया जाएगा। इस मौके पर रिलायंस व संविदा कंपनी के अधिकारी भी मौके पर मौजूद थे। बताया गया कि तहसीलदार विकास सिंह ने कंपनी के लोगों को दो टूक आदेश दे दिया है कि इनकी जायज समस्याओं का निस्तारण समयबद्व तरीके से किया जाए। आंदोलन की अगुवाई कर रहे रामगोपाल पाल से भी विस्थापित बेरोजगारों की सूची मांगी गई है ताकि सूची और वरीयता के हिसाब से लोगों को कार्य दिया जा सके। इस मौके पर जगप्रसाद, रामरक्षा, प्रहलाद व विजय पांडेय प्रमुख रूप से मौजूद थे।

चुनार किला

उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर मिर्जापुर जिले में विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा तट पर चुनार किला स्थित है। इसका प्राचीन नाम चरणाद्रि था। चैदहवीं शताब्दी में यह दुर्ग चंदेलों के अधिकार में था। सोलहवीं शताब्दी में चुनार को बिहार तथा बंगाल को जीतने के किए पहला बड़ा पढ़ाव समझा जाता था। शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार किले को ताज खाँ की विधवा श्लाड मलिका से विवाह करके इस शाक्तिशाली किले पर अधिकार कर लिया। 1532 ई. में हुमायूँ ने चुनार किले पर कब्जे के इरादे से घेरा डाला परंतु चार महीने तक कडे़ प्रयास एवं घेरे के बाद भी सफलता हाथ न लगी। अंत में हुमायूँ ने शेरशाह सूरी से सन्धि कर ली और चुनार का किला शेरशाह के पास ही रहने दिया। 1538 ई. में हुमायूँ ने अपने चालाकी तथा तोपखाने की सहायता से छह महीनों के प्रयास के बाद चुनारगढ़ एवं उसके किले पर अधिकार कर लिया। अगस्त, 1561 ई. में अकबर ने चुनार को अफ्गानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुगल साम्राज्य का पूर्व दिषा में रक्षक दुर्ग बन गया। 

चुनार का दुर्ग सातवीं सदी के काल का निर्मित बताया जाता है। यह एक विशाल और सुदृढ़ दुर्ग है, इसके दो ओर गंगा बहती है तथा एक गहरी खाई है। यह दुर्ग चुनार के प्रसिद्ध बलुआ पत्थर का बना हुआ है और भूमि तल से काफी ऊँची पहाड़ी पर बना है। इसका मुख्य द्वार लाल रंग के पत्थर का है, जिस पर काफी कलात्मक नक्काशी की गयी है। किले के अन्दर गहरे तहखाने एवं रहस्यमय सुरंगें बनी हुई हैं। इस किले में कई स्मारक आज भी उसी दषा में है जैसे कि पूर्व में थी। इनमें कामाक्षा मन्दिर, भर्तहरि का मन्दिर, दुर्गाकुण्ड आदि प्रमुख रूप से प्रसिद्ध हैं। यहाँ की ज्यादातर प्रसिद्ध मस्जिद मुअज्जिन है, जिसमें मुगल सम्राट फर्रुखसियर के समय में मक्का से लाये हसन-हुसैन के पहने हुए वस्त्र सुरक्षित हैं। गुप्तकाल से लेकर अठारहवीं सदी तक के अनेक अभिलेख यहाँ से प्राप्त हुए हैं। मौर्यकालीन स्तम्भ चुनार के भूरे बलुआ पत्थर को तराशकर बनाये गये थे। अनुमान किया जाता है कि चुनार के आस-पास मौर्यकाल में एक बड़ा कला केन्द्र स्थापित था, जो मौर्य सरकार के सरंक्षण में काम करता था। चुनार में लकड़ी, चीनी मिट्टी, पत्थर एवं मिट्टी की सुन्दर कलात्मक वस्तुएँ उस समय बनती थीं। जो आज लगभग विलुप्त होती जा रही है।