रविवार, 10 मार्च 2013

प्रषासन के संरक्षण मंे उर्जान्चल में चल रहे ढग्गामार वाहन

ऽ-घट सकती है कभी भी बड़ी दुर्घटना। 
ऽ-नषे मंे धूत ड्राईवर कर रहे हैं जीपों का संचालन।
ऽ-इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी गाली-गलौज की घटनाएं हो चली है आम।
ऽ-फिक्स भाड़े से ज्यादा वसुले जाते है पैसे

अनपरा के डिबुलगंज से षक्तिनगर तक जाने वाली ढ़ग्गामार वाहन दुर्घटना को दे रहे है दावत। इन ढ़ग्गामार वाहनों को संचालित करने वाले मालिकों एवं ड्राईवरों के पास न तो परमीट है न तो लाईसेंस साथ में अनपरा पुलिस का हाथ जो उन्हें खुलेआम कानून का उलंघन करने के लिए प्रेरित कर रहा है। अनपरा थाने के सामने से रोजाना लगभग 40 ढ़ग्गामार वाहन गुजरते है लेकिन पैसे की लालच ने उन्हें रोकने की बजाय उन्हें और ज्यादा मात्रा में प्रोत्साहित करने का कार्य किया है। ज्ञात हो कि डिबुलगंज से षक्तिनगर जाने वाले इस मार्ग पर लगभग 40 जीप चलती है। इन वाहनों में लगभग 90 प्रतिषत वाहन ऐसे है जो इस बड़े राजमार्ग पर चलने के लायक नहीं है जिनकी समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है साथ ही इनके कुछ ड्राईवरों के पास लाईसेंस तक नहीं उम्र भी काफी कम लेकिन अनपरा पुलिस ने इन गाड़ियों को रोक कर पुछते की जहमत भी नहीं उठाती की गाड़ी का एंसुरेन्स है कि नहीं ड्राईवरों के पास लाईसेंस है कि नहीं,  इस मार्ग पर चलने के लिए परमीट है कि नहीं ऐसे कई सारे सवाल है जिनका उत्तर सिर्फ प्रषासन के पास है। 
ड्राईवरों की माने तो इस राजमार्ग पर चलने के लिए उनके द्वारा प्रषासन को प्रतिमाह धन उपलब्ध कराया जाता है, इसी कारण से प्रषासन भी उन्हें देखकर आखे बन्द कर लेती है। इन ढ़ग्गामार वाहन पर जब भारी संख्या में लाग बैठते है तो यह वाहन एक तरफ झुक सा जाता है जिसे देखकर ऐसा लगता है कि कहीं ये वाहन पलट न जायंे इसके अतरिक्त ड्राईवर ऐसे बैठकर गाड़ी चलाता है कि जैसे वह अब जीप से बाहर ही गिरने वाला हो ऐसी स्थिति में वह गाड़ी का इस्टेरिंग न पकड़े तो वह निष्चित ही गिर जायेगा। लेकिन संचालक होने के कारण वह उसे पकड़ा रहता है। ऐसी स्थिति में वाहन अगर पलट जाये तो भारी संख्या मंे लोगांे को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। मगर प्रषासन को इन सब की चिंता कहा जब दुर्घटना होगी तो देखा जायेगा। उनका ऐसा मानना है। ऐसा कई बार देखा जा चुका है कि ड्राईवर द्वारा राजमार्ग पर जब अप-डाउन के दौरान उनके मँुह से दारू की बास आती है जिससे मालुम होता है कि ड्राईवर नषे मंे हैै। जबकि इस राजमार्ग पर लगभग कई सौं गाड़ियाँ परियोजनाओं एवं वाराणसी मंडी मंे कोयला ले जाने का कार्य करती है। नषे मंे धुत ड्राईवर द्वारा एक छोटी सी गलती पर भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है जबकि इस राजमार्ग पर आये दिन दुर्घटना होती रहती हैं। जिसमें कई हजार लोगों की जाने जा चुकी है। इसके अतिरिक्त इन ढ़ग्गामार वाहनों में बैठे सवारियांे के साथ गाली-गलौज एवं मारपीट की घटनाएं आम हो चली है। लेकिन लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर ये ढ़ग्गामार वाहन इस मार्ग पर खुलेआम प्रषासन के संरक्षण मंे अपने वाहनों का संचालन कर रहे हैं। थाने मंे पैसे देने के कारण उनकों किसी का डर नहीं सब जानते है कोई भी मामला होगा वह थाने ही पहुचेगाँ जिसे पैसा देकर हल कराया जा सकता है। अगर समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो किसी बड़ी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता ऐसी स्थिति में प्रषासन इन जिम्मेदारियों से अपना मुहँ मोड़ नहीं सकता है। बड़ी दुर्घटना की स्थिती मंे लोगों द्वारा किये जाने वाले जाम एवं राजमार्ग बाधित होने से देष को करोड़ों रूपये के राजस्व का नुकषान पहुचेगाँ। इसकी पूर्ति किसके द्वारा की जायेगी। इसके बारे मंे प्रषासन को ही जबाब देना होगा। 

रेगिस्तान में बदल रहा हैं, उर्जान्चल


उत्तर प्रदेष वि़द्युत विभाग का नवनिर्माणाधिन अनपरा ‘‘डी’’ तापीय परियोजना जिसकी कुल उत्पादन क्षमता 1000 मेगावाट है। निर्माणाधिन अनपरा ‘‘डी’’ परियोजना के निर्माण से कई वर्ष पूर्व में ही एक निष्चित योजना के अंतर्गत यहां के मूल निवासियों की भूमि को जिसे सरकार ने अधिग्रहण कर उनको सरकारी नौकरी तथा मुआवजा देकर इसे खाली करा लिया बाद में सरदार गोविन्द वल्लभ पन्त सागर के आस-पास के भू-भाग को एक व्यवस्थित तरीके के साथ बांध बनाकर उसमें अनपरा ए और बी की इकाईयों द्वारा प्रयुक्त हो चुके कोयला जो जलने के उपरान्त सिर्फ राख मात्र बचता है। इस राख को कई वर्षों तक इसमें भरा गया,  जिससें एक विषाल भू-भाग का निर्माण हुआ। इस भू-भाग को तैयार करने में लगभग 50 फिट राख को इस बाध के अन्दर भरा गया था जो पहले ही सरदार गोविन्द वल्लभ पंत सागर (डैम) के द्वारा छीनी गयी जमीन थी। जिससे एक ऐसे भूमि स्थल का निर्माण किया गया जहाँ पर एक पावर प्लांट का निर्माण किया जा सके, जब प्लांट के निर्माण कार्य करने की समय सीमा तय होने के पष्चात उत्तर प्रदेष सरकार ने इसे ठेके के तौर पर प्लांट निर्माण का कार्य बी.एच.ई.एल (भेल) को षौप दिया ।

‘‘डी’’ परियोजना का प्लंाट निर्माण कार्य षुरू करने से पूर्व राख के उपर तीन फिट मिट्टी डाली गयी ताकि कार्य करने के दौरान राख न उड़े लेकिन जैसे-जैसे इस भू-भाग पर पाइलिंग का कार्य आगे बढ़ा तो तीन फिट मिट्टी जो राख न उड़े इसके लिए डाली गयी थी वह भारी वाहनों एवं भारी मषीनों के द्वारा रौदकर इस मिट्टी को भी राख मे मिला दिया। अब आलम यह है कि जहाँ इस बड़े भू-भाग पर प्लांट का निर्माण हो रहा है। वह राख से भरी है। कार्य करने आये श्रमिकेां को इस राख रूपी भूमि पर कार्य करना पड़ रहा है जो गर्मीयेां के समय में जब हल्की सी भी हवा चलती है तो ऐसा प्रतित होता है कि रेगिस्तान में तुफान आ गया। बरसात के मौसम में यह भूमि दलदल का रूप धारण कर लेती है अनपरा ‘‘डी’’ में कार्य करने वाले मजदूरों की माने तो यहाँ कार्य करना एक बड़ी चुनौती है क्योकि गर्मियों के समय में हल्की सी हवाएँ चलती है तो इतनी राख उड़ती है कि एक-दूसरे के बगल में खड़ा मजदूर अपने दूसरे साथी को नहीं देख सकता। प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रूपये कम्पनियों वसुलती है लेकिन ये सुरक्षा के उपकरण मजदूरों तक नहीं पहुच पाते जिसमें करोड़ों की हेर-फेर प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर किया जा रहा है।

प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर इन मजदूरों के पास ऐसा कोई भी उपकरण नहीं है जो राख या किसी अन्य प्रदूषित वस्तुओं से इन्हे बचा सके जब कि यह क्षेत्र प्रदूषण के मामले में भारत का नवां सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र घोषित है। इस परियोजना की लागत कई सौ करोड़ों रूपये में है लेकिन यहाँ कार्य करा रही कम्पनियों केा यहाँ कार्य करने वाले मजदूरों से कोई लगाव नहीं है। कम्पनियों को सिर्फ अपने कार्य से ही मतलब है। बावजूद मजदूर चाहे राख खाये या गन्दा पानी पीये सुरक्षा के नाम पर कम्पनियों की तरफ से राख से बचने व पीने के पानी की भी सही व्यवस्था नहीं है तथा जो संसाधन मजदूरों को सुरक्षा के लिए आते भी है वेा कम्पनी अपने तरीके से बेच खाती है या मजदूरों तक ही नहीं पहुच पाती। कम्पनी के लोग आपस में मिल बाटकर खा जाते है। सूत्रों की माने तो कम्पनियाँ यहाँ कार्य तो करा ही रही है लेकिन अब तक करोड़ों के वारे-न्यारे फर्जी तरीके के साथ हो चुका है। 

भविष्य में भी इस तरह के गतिविधियाँ होती रहेगी। कम्पनियों के अधिकारीयों को बैठने के लिए आवास बने है जब कि मजदूर जो दिन भर धुप व राख खाता है उसे पीने के पानी की भी व्यवस्था डैम के द्वारा की जाती है। जो पहले ही काफी प्रदुषित हो चुका है क्योकि इन औद्योगिक संस्थानों के द्वारा इतने रसायनिक कचरे इस गोविन्द वल्लभ पन्त सागर में बहाया जा चुका है कि इसका जल काफी हद तक जहरीला हो चुका हैं। ऐसी कई घटनाये समाने आ चुकी है कि डैम का प्रदूषित पानी पीकर यहां के लोग अपनी जान भी गवा चुके है। लेकिन यहां के कम्पनियों के लोग आज तक इस समस्या के समाधान एवं मजदूरों की सुरक्षा पर किसी तरह की चिंता दिखाई नहीं देती अगर भविष्य में  सरकार इन समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं देती तो ऐसी घटनाए आम हो जायेगी। 

राशन लेने के लिए तीस किमी तक पैदल चलना पड़ता है,

" जिले के कई भाठ एवं दूरूह क्षेत्रों में सार्वजानिक वितरण प्रणाली का हाल बुरा"

PDS
गरीब परिवारों को सस्ते दर पर खाद्या्न उपलब्ध कराने के नाम पर जिले में कई पंचायत में अब तक राशन दुकान एवं सुलभ वितरण हेतु कई नजदीकी भण्डार नही खुल पायी है। इन पंचायतो के कई आश्रित ग्रामों को तो तीस किमी तक राशन लेने के लिए पैदल चलना पड़ता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के भाठ क्षेत्र में कही-कही पर ही ग्रामीण राशन दुकान है। इनमे से कई तो पहुंच विहीन व नक्सल प्रभावित क्षेत्रो में है। जिला मुख्यालय से मात्र तीस किमी दूर जुगैल ग्राम पंचायत के लगभग 15 से ज्यादा टोलो के लोगों को राशन लेने 10 से 15 किमी की यात्रा करके राषन लेने आना पड़ता है। इसमे कुलडोमरी ग्राम पंचायत एवं व बेलहत्थी ग्राम पंचायत का भी यही हाल है। हजारों ग्रामीणो को कोसो पैदल या जीप से के रास्ते 10 से 15 किमी से ज्यादा सफर करना पड़ता है। चोपन सहित म्योरपुर विकासखंण्ड के लगभग 20 से 25 ग्राम पंचायतों का यही हाल है। पनारी, बैरपुर, परसोई एवं कुलडोमरी ग्राम पंचायत का है जहा सबसे ज्यादा बुरी स्थिति मेड़रदह, पनारी, गाढ़ापाथर, अरंगी इत्यादि की है, जहां कई राशन दुकान 10 से अथवा उसके भीतर की परिधी में है। जिसके कारण ग्रामीण इन दुकानों में आने से परहेज करते है। कई ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों का कहना है कि अंदरूनी क्षेत्रो में राशन दुकान नही खुल पाने का कारण पहुंच की समस्या के अलावा ग्राम पंचायतो के इनके सुचारू रूप से लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। 

पूर्वांचल राज्य बनने से कमाई होगी चैपट

मोटर मालिकों को लेना पड़ेगा आल इंडिया परमिट
ट्रांसपोर्टर यूपी का बंटवारा नहीं चाह

उत्तर प्रदेश से कट कर पूर्वांचल राज्य बना तो मोटर मालिकों की कमाई पूरी तरह से चैपट हो जाएगी। ट्रक मालिकों को आल इंडिया परमिट बनवाना पड़ेगा। गैर जनपद के माफिया अभी भी बगैर परमिट के वाहनों का संचालन कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे, लेकिन यहां के वाहन स्वामी पर परेशान हो जाएंगे। राज्य बड़ा होने से वाहनों को अन्य जनपदों में भेजने में दिक्कत नही हो रही है, छोटा राज्य बनते ही समस्याएं उत्पन्न हो जाएगी यें बातें ट्रक मालिक एवं ट्रांसपोर्टरों ने कहीं। वाहन स्वामी राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि पूर्वांचल राज्य बनते ही कारोबार कर दायरा सिमट जाएगा। छोटे-छोटे राज्यों के बनने से वाहन स्वामियों का व्यापक पैमाने पर शोषण होने लगेगा। विजय कुमार सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार ने चुनाव के मद्देनजर पूर्वांचल समेत अन्य राज्यों के बनाने के लिए विधेयक पास कराया है। कहा कि सूबे की मुखिया अपने फायदे के लिए जनता के ऊपर विभिन्न प्रकार की समस्याएं लाद रही हैं। हरदेव सिंह ने कहा कि छोटे राज्य बनने से वाहन स्वामियों को कोई फायदा नही होने वाला है। गैर प्रांतों में वाहनों के प्रवेश के लिए परमिट बनवाना पड़ेगा। वाहनों का किराया बढ़ते ही सामानों के दाम भी बढ़ जाएगें। शक्ति आनन्द कहते हैं कि पूर्वांचल राज्य बनने से गांवों में विकास कार्य तो होगा, लेकिन वाहन स्वामियों को हानि होगी। हालांकि आगामी विधान सभा चुनाव नजदीक आने पर राज्यों के बनाने की बात जनता के साथ धोखा है। ओम प्रकाष द्विवेदी ने कहा कि प्रदेश सरकार मोटर मालिकों की समस्याएं दूर करने के बजाय बढ़ा रही है। छोटे-छोटे राज्य बनते ही विकास का पहिया रुक जाएगा। लक्ष्मीकान्त दूबे ने कहा कि पूर्वांचल राज्य बनने से मोटर मालिकों को अपनी समस्याओं को शासन तक पहुंचाने के लिए भटकना नही पड़ेगा। सूबे की मुखिया का फैसला सर्वजन के हित में है।