यह बात तब की है जब वर्ष 2008-2009 में प्रदेष में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस समय उ0प्र0 सरकार की दमनकारी नितियाँ अपने चरम पर है। देश के लोकतान्त्रिक परिदृष्य को धता बताते हुए तानाशाही अब मौलिक स्वरूप को प्राप्त कर चुकी है। इसका ताजातरीन उदाहरण सोनभद्र में पिछले कुछ सालों में विस्थापित हुए आदिवासी-दलितो के एक विरोध प्रदर्शन की कार्यवाही के रूप में दिखायी दिया। प्रदेश की मुखीया के पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरोध करना आदिवासियों दलितो के नेता पंकज मिश्रा को महंगा पड़ा। सोनभद्र में भारी संख्या में आदिवासीयो/दलितो ने प्रदेश सरकार के प्रतिकात्मक पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरेाध प्रदर्शन किया। लेकिन लोकतांत्रिक रूप में किए गए विरोध स्थानीय पुलिस ने धारा 144 और अन्य कई धाराओ में आदिवासीयो के नेता और समाजसेवी पंकज कुमार मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया। जमीदारी उन्मूलन के बावजूद भी सन् 1952 से वन विभाग, खनन विभाग, और अन्य सरकारी विभागो के झंझावातो के बीच जुझते हुए आदिवासीयो/दलितो को पंकज कुमार मिश्रा के रूप में उजाले की एक लकीर मिली थी। लेकिन लोकतान्त्रिक तरिके से विरोध प्रदर्शन को सामंती तरिके से दबाने का उदाहरण सिर्फ उ0प्र0 में ही संभव है।
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