यह बिल्कुल सच है की पेट की आग किससे क्या ना करवा दे। इसका जीता जागता उदाहरण है राजस्थान के रहने वाले अनील उर्फ थाणाराम जो एक खानाबदोष मूर्ति बनाकर बेचने वाले कारीगर है। ये मुर्तिया वह वाइट सिमेन्ट एवं प्लास्टर आफ पेरिस की सहायतता से सांचे में ढाल कर बनाते है। वर्तमान में उर्जान्चल में अपना डेरा डाले यह अनील अपनी पत्नी, छोटे भाई व दो बच्चो के साथ लगभग एक माह के लिये यहा अपनी बनाई मुर्तिया बेचने आये है। उनका कहना है कि बेरोजगारी व गरीबी के चलते वह अपने परिवार के पालने के लिये इस क्षेत्र में कार्य करना प्रारम्भ किया और धीरे-धीरे अपने भाई व पत्नी को भी इस काय से जोड़ा, जिससे तीनों मिलकर एक दिन में कम से कम 10 मुर्तिया बना लेते है। इनके द्वारा बनाये गये मुर्ति की बाजार में किमत ज्यादा तो नहीं पर इतना जरूर है, जिससे इन्हे दो वक्त की रोटी तो मिल ही जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि हमारा परिवार साल के हर माह में कभी उत्तर प्रदेष, मध्य प्रदेष, छत्तिसगढ़ तथा गुजरात के कई शहरो में खानाबदोषों की तरह तम्बू लगाकर अपने इस कलाकारी की बदौलत रोजी-रोटी कमाने घुमती रहती है। अनील की पत्नी बताती है कि जब मेरे पति ने यह कार्य करना प्रारम्भ किया तब मैं भी इनके साथ हाथ बटाने के लिये इनके साथ यह काम करने लगी। जिससे हम एक दिन में ज्यादा मुर्तिया बना पाते है। लेकिन इन सबका कहना है कि उदनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों की सही किमत आज भी बाजार में नहीं मिलती जिससे धीरे-धीरे इ स कला का पतन हो रहा हैै और आजकल फैन्सी जमाने में इन मुर्तियों की पहचान खत्म हो रही है। जिससे उनके तरह ढे़रो कलाकरों के सामने बेरोजगार हो जाने का डर बना रहता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें