सोमवार, 7 मई 2012

मरने के कगार पर खड़ा है ऊर्जांचल का संयुक्त चिकित्सालय


ऊर्जांचल मंे अच्छे अस्पताल के अभाव में यहां के निवासी कुछ नामी डाॅक्टरों व छोलाछाप डाॅक्टरों के हाथों  हमेषा से लूटे जा रहे है। जबकि ऊर्जांचल औद्योगिक क्षेत्र के रूप में सम्पूर्ण भारत में विख्यात है। इन औद्योगिक संस्थानों से देष के लगभग सभी राज्यों में ऊर्जां के संसाधनों का निर्यात किया जाता है। चाहे वह बिजली के रूप में हो या फिर कोयले के रूप में। क्षेत्रफल को देखे तो ऐसा प्रतित होता कि परियोजनाओं के अतरिक्त यहां कुछ भी नहीं है। देष को अरबों रूपये का राजस्व देने वाला यह क्षेत्र आज भी एक अच्छे अस्पताल के अभाव मंे निरन्तर जूझ रहा है।  

जब अनपरा परियोजना के निमार्ण कराया गया था तब अनपरा परिक्षेत्र के डिबुलगंज में सरकार द्वारा यहा के लोगों को चिकित्सकिय सुविधा प्रदान करने के लिये एक उच्च तकनिकी सुविधाओं से लैस अस्पताल के निमार्ण का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया। कार्य सम्पन्न होने मंे ज्यादा समय नहीं लगा जैसे अस्पताल की आवष्यकता यहां के निवासियों को थी, वह उनके सामने बनकर खड़ा था लेकिन आज भी इसकी जर्जर हालत को देख कर लगता है मानों यह बस खड़ा ही है। जिसका सबसे मूल कारण राज्य सरकार एवं परियोजना की उदासिनता भरा रवैया है। इस अस्पताल का उद्घाटत बड़े-बड़े नेताआंे के द्वारा दो बार किया गया। लेकिन आज तक यह अस्पताल अपने आवष्यक चिजों के लिए तरस रहा है। उपकरणों के अभाव मंे यह अस्पताल दम तोड़ रहा है, कुछ सरकारी दुवाआंे एवं गिने चुने डाॅक्टरों के अलावा यहां कुछ भी नहीं है। कहने के लिए तो यहां हर इमर्जेंसी से निबटने के लिए सारे कक्ष उपलब्ध है लेकिन उपकरणों एवं डाक्टरों का टोटा है। जिससे यहां के निवासी या परियोजनाओं में कार्य करने वाले लोग एक छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए भी नीजि अस्पताल के डाॅक्टरों द्वारा लूटे जा रहे है। गम्भीर दुर्घटना की स्थिति में यहां के लोगों की मौत भी लगातार कई वर्ष हो रही है इसका प्रमुख कारण यहां एक अच्छे अस्पताल का अभाव रहा है। इस सरकारी अस्पताल की उपेक्षा ने इसमें घी का काम किया। जिससे यहां के रहवासी काल के गाल में लगातार प्रवेष कर रहे है। ज्यादतर दुर्घटनाएं रोड पर चलने वाले बड़े वाहनों से होता है जो परियोजनाओं के कार्यों में संलग्न है। मौत का दूसरा प्रमुख कारण यहां बढ़ती प्रदूषण की समस्या है। ऊर्जांचल के इस क्षेत्र में इतना प्रदूषण है कि यह भारत का साँतवा सबसे प्रदूषित स्थान बन चुका है जिससे यहां निवास करने वाले लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है। जिसमें कैंसर से लेकर बल्डपे्रसर, बल्डकैंसर, टीवी, तथा मलेरियाँ यहां के प्रमुख बीमारियों में एक है यहाँ निवास करने वाले लोग लगभग 40 प्रतिषत गैंस की बीमारी से प्रभावित है। 

कुछ यही हाल यहा पर बने चीरघर (पोस्टमार्टम हाऊस) का है। जिसे उर्जान्चल परिक्षेत्र में दो पुलिस चैकियों एवं दो थानों को मद्देनज़र रखते हुए शवों के अन्त्यपरिक्षण करने के उद्देष्य से बनवाया गया था। अस्पताल के साथ-साथ चीरघर के निमार्ण मंे भी परियोजना एवं सरकार द्वारा करोड़ों रूपये खर्च की गये परन्तु सुविधाओं, उपकरणों एवं चिकित्सकों की अभाव में इस चीरघर में आज तक किसी शव का अन्त्यपरिक्षण नहीं किया जा सका है। जिससे पुलिस को शवों के अन्त्यपरिक्षण करने के लिये उर्जान्चल से लगभग 100 किमी दूर दुद्धी जाना पड़ता है। जिससे शवों को लाने-ले जाने में काफी असुविधा उत्पन्न होती है। 

परियोजना के इस अस्पताल के निमार्ण मंे परियोजना एवं सरकार द्वारा करोड़ों रूपये खर्च की गये लेकिन अस्पताल चलाने के लिए जिसकी आवष्यकता सबसे ज्यादा होती उनकों उपलब्ध कराने में राज्य सरकार एवं परियोजना दोनों ही कतराती रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि यहां के वासिंदे लगातार बीमारियों की गिरफ्त में फसते जा रहे है। 

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