शासन के विभिन्न जन हितकारी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में शासकीय मिशनरी किस हद तक लापरवाही बरत सकती है इसका जीता जागता उदाहरण भाठ क्षेत्र के ग्रामीणों के बिच जाने पर पता चलता है, जहाँ के ग्रामीण जो जीवन जीने को मजबूर, जहाँ कई लोग वृद्ध एवं बेसहारा है, कई दाने-दाने के लिए तरस रहे है, एवं सैकड़ो अपंग है। किन्तु प्रदेश शासन की निराश्रित पेंशन योजना, सामाजिक सुरक्षा योजना, विकलांग सहायता कार्यक्रम, गरीबी रेखा कार्ड, वृद्धों के लिए सहायता कार्यक्रम के विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के हितग्राहियों के लिस्ट में कई लाभार्थीयों का नाम अभी तक दर्ज नहीं हो पाया है। घास-फूस से बनी झोपडी में कई दिनों भूखे रहकर घुट-घुट कर जिदगी बिताने को मजबूर यहा के आदिवासी एवं ग्रामीण आदिम जीवन जीने के लिये बाध्य है।
मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर भाठ के ग्रामों के निवासी जंगल में घास-फूस से बनी झोपडी में रहते है। फिलहाल इस जिले में यहा से दुरूह क्षेत्र कोई नहीं है। यहा के लोग शासन के रोजगार गारंटी योजना का फायदा मिले बिना छुट-फुट मजदूरी से जीवन तो चला रहे है, किन्तु बकाया मजदूरी एवं अधिकारियो, कर्मचारियों तथा भ्रष्टाचार के चलते उनकी मजदूरी भी मार ली जाती है। हां शासन की किताबों में गरीबी रेखा कार्ड, स्मार्ट कार्ड, इंदिरा आवास, बेसहारा पेंशन, विकलांग सहायता, सामाजिक सुूरक्षा, ये सभी योजनाएं इन्हीं लोगों के लिए ही है। शासन की सभी योजनाएं जरूरत मंदो के लिए ही है। परन्तु शायद शासन की नजर यहा पड़ती ही नहीं। राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी शायद यहाँ के लोगों के घुट-घुट के मर जाने चिन्ता नहीं है।