ऽ पैसा न होने की वजह से पढ़-लिख कर अधिकारी नहीं बन पाने का मलाल
ऽ सांप का पिटारा लिए मासूम।
केंद्र एवं प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप शिक्षा महकमा सर्व शिक्षा अभियान के तहत गरीब तबके बच्चों को कितनी शिक्षा मुहैया करा रहा है इसका अंदाजा टोकरी में सर्प लेकर घूम रहे बच्चों को देख कर सहज ही लगाया जा सकता है। पापी पेट के लिए दस वर्षीय रफीनाथ पढ़ने-लिखने की उम्र में नागराज से खेल रहा है। चंद रुपयों के लिए बालक स्कूली बैग की जगह सांप के पिटारों को लेकर नगर और गांवों में दिन-दिन भर भ्रमण कर रहे हैं। प्रतिवर्ष शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मचारी बच्चों एवं अभिभावकों को जागरूक करने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह खर्च करते हैं। बावजूद इसके गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नही हो पा रही है। गुरुवार को राबर्ट्सगंज नगर में इलाहाबाद जनपद के शंकरगढ़ के मूल एवं राबर्ट्सगंज नगर के अस्थायी निवासी रफीनाथ (10) पुत्र कपूरनाथ समेत आधा दर्जन बच्चे पढ़ने की उम्र में पिटारे में सर्प लेकर घर-घर घूम रहे हैं। अमर उजाला से बातचीत के दौरान रफीनाथ ने बताया कि मेरे अभिभावकों के पास पैसा नहीं है इसलिए मैं चाह कर भी पठन-पाठन नहीं कर पा रहा हूं। पेट के लिए दिनभर बांबी में नागराज को लेकर लोगों को दर्शन कराता हूं, शाम तक करीब पचास से सौ रुपये कमा कर अपनी मां को ले जाकर दे देता हूं। कमाई में से दस रुपया नाश्ता के लिए प्रतिदिन मिलता है। पढ़ाई करने का मन तो बहुत है लेकिन पैसा न होने की वजह से पढ़-लिख कर अधिकारी नहीं बन पा रहा हूं।
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