क्षेत्र में सरकारी पूर्व माध्यमिक व प्राथमिक विद्यालयों के षिक्षण कार्य में आयी गिरावट ने मध्यमवर्गीय परिवारों को क्षेत्र के मान्यता प्राप्त षिक्षण संस्थानों की तरफ आकर्षित किया है। लोगों की माने तो सरकारी विद्यालय बाल भोजनालय में तब्दील हो चुका है, और अध्यापन कार्यों की जगह केवल आकड़े बाजी ज्यादा की जाती है। जबकि मनरेगा के मजदूरों से कम दैनिक भोगी निजी षिक्षक बच्चों को पढ़ाने मंे ज्यादा दिलचस्पी लेते है। हर विषय के अलग-अलग अध्यापकों की तैनाती ही इन्हे सरकारी विद्यालयांे के षिक्षा माहौल से अलग बनती है, जो समझदार मध्यमवर्गीय परिवार के लिए आर्कषण पैदा करता है।
बेसिक षिक्षा अधिकारी कार्यालय के रिकार्ड के मुताबिक म्योरपुर विकास खण्ड के कोटा न्याय पंचायत में कुल 21 प्राथमिक व 8 पूर्व माध्यमिक निजी षिक्षण संस्थान है। विगत वर्ष इन विद्यालयों में 7407 बच्चों ने षिक्षा ग्रहण किया। सरकारी आकड़ों पर गौर करे तो 21 प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 से 5 तक अनुसूचित जाति के 1179, अनुसूचित जनजाति के 256, पिछड़ी जाति के 2763, सामान्य जाति के 966 व अल्पसंख्यक जाति के 437 बच्चों का नामांकन किया गया था। निजी विद्यालयों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की संख्या ज्यादा रही। आकड़ो पर गौर करे तो कोटा न्याय पंचायत में कुछ प्राथमिक विद्यालय ऐसे भी है जिसमें जाति विषेष के बच्चे नहीं पड़ते। रिकार्ड के मुताबिक रेनूपावर प्राथमिक विद्यालय रेनूसागर, महर्षि बाल्मिकी व सरस्वती षिषु मंदिर परासी, मौलाना आजाद प्राथमिक विद्यालय ककरी, बाल षिक्षा निकेतन घरसड़ी, सरस्वती षिषु मंदिर खड़िया में विगत वर्ष एक भी अनुसूचित जनजाति के बच्चों का नामांकन नहीं हुआ। इसी तरह घरसड़ी के उक्त विद्यालय में अल्पसंख्यक समुदाय का कोई बच्चा नहीं पढ़ता।
कोटा न्याय पंचायत में कक्षा 6 से 8 तक के कुल आठ मान्यता प्राप्त विद्यालयों ने विगत वर्ष 1737 बच्चों को षिक्षित करने का कार्य किया। आदर्ष षिक्षा निकेतन खड़िया मंे अनुसूचित जनजाति के किसी बच्चे का नामांकन नहीं किया गया । मान्यता प्राप्त कुल विद्यालयों में 907 लड़के व 830 लड़कियांष्षामिल रही।
उपेक्षित होकर भी षिक्षा का बेहतर प्रदर्षन:-
बताया जाता है कि बेरोजगारी और बढ़ती महगाई नें मान्यता प्राप्त विद्यालयांे के षिक्षकों को हर कदम समझौता करने की मजबूरी का श्राप दे रखा है। आय का सर्वाधिक हिस्सा विद्यालय प्रबंधन हजम कर जाता है। ऐसे विद्यालयों में अध्यापकों को वेतन के नाम पर 1200 से लेकर 2500 रूपये तक ही मिल पाता है अगर अध्यापक ट्यूषन न करे तो दो जून की रोटी को मोहताज हेा जाये। क्षेत्र के कुछ विद्यालयांे के अध्यापकों ने बताया कि निजी विद्यालय को अध्यापक षोषण के खिलाफ कैसे बोल सकते है? इसके लिए मान्यता देने वाली सरकारी इकाई व नियोजित करने वाली संस्थान दोनों ने उसके इस अधिकार को छिन लिया है। एक महिला अध्यापिका ने बताया कि 8 घण्टे बच्चो को पढ़ने के बदले उसे 1400 रूपया मिलता है व विद्यालय प्रबंधन का इतना दबाब है कि हर वर्ष प्रत्येक अध्यापक को निर्धारित संख्या में बच्चों को स्कूल लाने के लिए उनके अभिभावक से जी हूजूरी करनी पड़ती है। षक्तिनगर के एक विद्यालय संचालक ड्राईवर के अभाव में स्वयं वाहन चलाकर बच्चों को उनके घरों तक पहुचाते है। वार्षिक परीक्षा के परिणाम में जिस विषय में बच्चों का नम्बर कम आता है उस विषय के षिक्षक का वेतन भी काटने की षिकायत मिली है। ज्यादा हो-हल्ला मचाने पर विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाता है। निजी षिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले दर्जनेां अध्यापकेां ने बताया कि अगर सरकार विद्यालय की मान्यता देते समय प्रबंधन द्वारा नियोजित षिक्षकों के भविष्यनिधि में प्रतिमाह 500 रूपये भी जमा करने का प्रावधान कर दे तो वे और बेहतर सेवा देने के लिए तैयार रहेगें।
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