सोनभद्र। राबर्ट्सगंज संसदीय सीट पर मतदान का परिणाम तो 16 मई की गणना से पता चलेगा लेकिन जिस तरह से मतदान के दिन जातीय समीकरणों के ध्वस्त होने का परिदृश्य सामने आया है, उसने प्रत्याशियों को बेचैन करके रख दिया है। राजनीतिक विश्लेषक भी इस बदलाव की वजह जानने में लगे हुए हैं। हालांकि मतदाताओं से ली गई जानकारी में यह बात तो साफ हो गई इस बार स्थानीय मुद्दों ने इस समीकरण को तोड़ने में अहम भूमिका तो निभाई ही महंगाई, भ्रष्टाचार ने भी लोगों के दिल-दिमाग को खूब प्रभावित किया। अगड़ों को भाजपा का बेस वोटर, पिछड़ों को सपा का बेस वोटर और अनुसूचित जाति, जनजाति को ज्यादातर बसपा का बेस वोट माना जाता रहा है लेकिन इस बार मतदान के दिन जिस तरह के समीकरण सुनने को मिले उससे यह बात साफ नजर आई कि इस बार जातीय समीकरणों की काफी हद तक हवा निकल गई। वर्ष 2012 के विस चुनाव में जिन अल्पसंख्यकों ने सपा का खुलकर साथ दिया था उन्हीं के जुबान से इस बार बसपा, कांग्रेस, कहीं-कहीं तो भाजपा का भी नाम सुनने को मिला। इसी तरह बैकवर्ड वोटर जिनका भी पिछले विस चुनाव में सपा की तरफ अच्छा-खासा झुकाव देखने को मिला था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें