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शनिवार, 24 दिसंबर 2011
बुधवार, 21 दिसंबर 2011
काषी मोड़ से अनपरा बाजार जाने वाली खस्ताहाल सड़क
अनपरा स्थित चैराहे काषी मोड़ से इस क्षेत्र के सबसे बड़े बाजार अनपरा से रेनूसागर जाने वाली सड़क काफी खस्ताहाल होने के चलते इस रास्ते पर आये दिन दुर्घटनाओं में इजाफा होता जा रहा है। सड़क कई जगहों पर बड़े-बड़े गढ्ढों में तबदील होने के चलते राहगिरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चार चक्के की वाहन तो किसी तरीके से निकलने में सफल हो जाते है परन्तु दो चक्के वाहनों पर चलने वालों को उस रास्ते से गुजरने पर उन्हें आजादी से पूर्व की कहानी याद आने लगती है। यह क्षेत्र प्रदेष में विद्युत नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। इस सड़क को निर्माण अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण के समय में ही बनाया गया था। परियोजना द्वारा इस सड़क की उपयोगिता न समझते हुए इसका अनुरक्षण करवाना बन्द कर दिया गया है। जिसके कारण सड़क पर जगह-जगह पर बड़े-बड़े गढ्ढों में तबदील हो गयी है। यदि समय रहते इसका रख रखाव किया जाता तो आज सड़क की स्थिति दयनीय न हुयी होती, इस सड़क के बीचो बीच परियोजना द्वारा स्ट्रीट लाइट लगाया है, परन्तु उसमें लाइट जलना भी अब बन्द हो चुका है, लाइट न जलने से राहगिरों की कई बार छिनैटी हो चुकी है। रेनूसागर पावर कम्पनी द्वारा गढ्ढों में तबदील सड़क पर गिट्टी व मोरम से गढ्ढे को ढका गया था। मुसलाधार बारिस के चलते गिट्टी-मोरम के बह जाने से सड़क पुनः गढ्ढे में तबदील हो चुकी है। इस सड़क से तापीय परियोजना के कर्मचारियों को भी गुजरना पड़ता है। कालोनी व लोगों का चैबीसों घण्टा इस सड़क से आना-जाना जारी रहता है।
मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
सोनभद्र का दर्द !
उत्तर प्रदेष के सर्वाधिक पिछड़े इलाकोे मे से एक का अवलोकन करना हो तो सोनांचल का नाम भी आज खासा महत्वपूर्ण हो चला है। एक बार तो किसी को भी सुनने मे हैरानी होगी की यह वही इलाका है जहां पर सघन वन क्षेत्र के बीच ढेर सारी विद्युत इकाईयां है हिण्डालको इण्डस्ट्रीज, जे0पी0 सिमेन्ट और यहां पर खनीज तथा लवण के साथ आयुर्वेदिक जड़ी वुटीयों का भी भरा पुरा भण्डार है। लेकिन इन तमाम वरियताओं के बावजूद भी इस इलाके को आज भी आजादी से पहले वाले काल मे रहना पड़ रहा है।
लगभग 6788 वर्ग किलोमीटर मे फैला हुआ सोनभद्र 3782 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है जहां हिण्डालको, जे0पी0 ग्रुप के अलावा एन.सी.एल. की कोयला खदाने, एन.टी.पी.सी., ओबरा, अनपरा जैसी बृहद ताप विद्युत परियोजनाएं भी इसी वन क्षेत्र के बीच बनाई गयी है। कालान्तर मे अनपरा परियोजना का दो चरणों के बाद तिसरे चरण मे बिस्तार भी हुआ लेकिन उस विस्तार मे कई महा घोटालों का समन्वय भी सरकारी लिपापोती के बाद स्थापित हुआ।
चार राज्यों के सिमाओं से सटा उत्तर प्रदेष के मस्तक का तिलक या फिर अपने ऊर्जा उत्पादन के कारण ऊर्जांचल के नाम से भी जाना गया आजादी के फौरन बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यहां पर रिहन्द जलाषय और रिहन्द बांध परियोजना का नींव रखी तो उनका सपना था की यहां से समस्त उत्तर भारत को विद्युत आपूर्ति की जा सके इसी कारण यहां समसय-समय पर अन्य विद्युत इकाईयों का निर्माण भी हुआ लेकिन उस निर्माण मे इस इलाके के सभ्यता को भी छिन्न-भिन्न कर दिया। परियोजनाओं के निर्माण के लिए यहां मूलनिवासी गरीब अदिवासियों की सारी जमीने हथिया ली गयी लेकिन इसके बदले न तो जमीन का मूआवजा मिला न तो नौकरी ही मिली और सिर्फ मिला तो बेवसी के आसूं और ऐतिहासिक अन्याय है
दुर से देखने पर चमक-दमक और चकाचैध का नाजारा पेष करने वाली इन औद्योगिक इकईयों को जंगलों का सिना चीर कर और पहाड़ोे को तरास कर बनाया गया। उस समय और बाद मे हर बार नई परियोजनाओं के बनने के साथ इन इलाके के आदिचासियों के सामने सब्जबाज दिखाये गये और हर बार उनके सपनो को परवान चढने के पहले ही तोड़ दिया गया।
इन आदिवासियों के पूर्नवास, नौकरी, मूआवजे और अधिकार इन सब बिन्दुओं के बावत जब संबंधित अधिकारी से हमने जबाव मांगने की कोषिस की तो उन्हाने ने अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए अपने अधिकारो के स्मर्थता का बयान किया और मामले को षासन स्तर से सुलझाने की ताकीद करने के अलावा उनके पास आदिवासियों के पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट पर कोई ठोस जवाब नही है।
सोनभद्र आज भी अधिकारियों जन प्रतिनिधियों, समाज सेवकों और निजी संस्थानों के लिए सोने की चिडि़याॅ के समान है लेकिन इन सोने की चिडि़याॅ के बच्चे आज भी दाने-दाने को मोहताज है चिराग तले अंधरे के इस सबसे बड़े उदाहरण के पिछे व्यवस्था का घिनौना चेहरा है, न जाने इन आदिवासियों को आजादी कब मिलेगी लेकिन भय है तो सिर्फ बगावत का जो देष के औद्यौगिक बिकास के पहिये की गति को विराम न लगा दे।
स्मय पर नहीं जल पा रहे है सोनभद्र के कई हाई मास्ट लैम्प
सोनभद्र में बिजली की स्थिति के बारे में कहा जा सकता है कि ‘‘को नहीं जानत है.....’’ शाम होने के बाद जिला प्रषासन द्वारा जगह-जगह चैराहों पर लगाये गये हाई मास्क लैम्प की स्थिति देखकर लगता है कि सरकार के इतने मंहगे उपकरण को सिर्फ थोड़ी सी उदासीनता के कारण धूल फाकनी पड़ रही है। अक्सर ही लोगों का कहना है कि सरकार ने लैम्प तो लगाया पर उसके विद्युत आपूर्ति एवं उसके बिजली की व्यवस्था पर चुप्पी ही साध ली है पिपरी के ही हाई मास्क लैम्प को ले ली जाय तों वहा लैम्प लगे लगभग 8 माह हो गया है परन्तु अभी तक उसके कनेक्षन के विषय में कुछ भी नहीं किया गया है। ग्राम पंचायत औड़ी में लगे हाई मास्क लैम्प के सामने भी यही बात फसी तो ग्राम प्रधान रीता देवी एवं ग्राम पंचायत सदस्य शक्ति आनन्द के प्रयास से ग्राम पंचायत के कोष से उक्त कार्य हेतु धन एवं बिजली के बिल के लिये भी व्यवस्था की गई।
शक्ति आनन्द |
ग्राम पंचायत सदस्य शक्ति आनन्द का कहना था कि यदि प्रषासन के पास इसका कोई प्रबन्ध नहीं है तो सम्बन्धित नगर पंचायते एवं ग्राम पंचायते इसकी व्यवस्था के लिये प्रयास करें। सरकार बिजली का लाख रोना रोये पर हाई मास्क लैम्प को समुचित बिजली न मिल पाने के पीछे विभाग के अयोग्य कर्मचारियों की भी भूमिका कम नही है। जो कि अपने स्तर पर मेजर डिसीजन लेने से कतराते है। जिससे आम जन मानस को परेषानियो का सामना करना पड़ता है। जहाँ तक जिला मुख्यालय में लगे अनेकों हाई मास्ट लैम्प की बात है,कुछ तो लगने के बाद ही अजीबोगरीब स्थिति में पहुँच गए। कुछ अब दिन में ही रौशनी कर रहे हैं और देर रात ये बंद भी हो जाते हैं। इनके असमय जलने ना जलने के पीछे बिजली विभाग के कर्मचारी तो जिम्मेवार हैं ही, अधिकारी भी लापरवाह हैं। जानकार बताते हैं कि इन लैम्प के समय से जलने के लिए इसमें ‘टाइमर’ लगा हुआ है, पर सम्बंधित कर्मचारी इसे हाथ से घुमा-घुमा कर अंदाजा से ही सेट करते हैं। इस काम के लिए शायद बिजली विभाग में एक भी योग्य कर्मचारी नहीं है। पहले से बिजली के खम्भों पर दिन में भी जलते हजारों बल्ब से उर्जा की बर्बादी तो आम बात थी ही, अब हाई मास्ट लैम्प के जरिये भी बिजली विभाग उर्जा की बड़ी बर्बादी करने में लग गया है।
सुविधाविहीन है उर्जान्चल के बस स्टैंड
उर्जान्चल में कई स्थानों के बस स्टैंड कहने को तो बस स्टैंड है, पर हकीकत तो ये है कि विभिन्न दिशाओं में जाने वाली अधिकाँश सवारियां बस स्टैंड के बाहर पान दुकानों एवं चाय की दुकानों को बस स्टैण्ड बना चुकी है व सवारिया हमेषा वही खड़ी मिलती है। बस स्टैंड के सामने की पान दुकानों एवं चाय की दुकाने ही सवारियों को बिठाने और उतारने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। अगर बस स्टैंड में यात्रियों के लिए मौजूद सुविधाओं की बात की जाय तो यहाँ ऐसा कुछ नही है। दुकानें भी नहीं उपलब्ध है तथा पुरुष तथा महिला यात्रियों के न तो यहाँ बैठने की व्यवस्था है और न ही कोई बाथरूम, यात्रीगण अपने बैग और ब्रीफकेश पर बैठकर काम चलाते हैं। यहाँ बाथरूम नहीं रहने से लोग यत्र-तत्र दीवार पर पेशाब करते नजर आ सकते हैं। दुखद स्थिति यह है कि वही आपको सटे चाय की दुकान मिलेगी जहाँ लोग बैठकर चाय की चुस्कियों के बीच आने वाली सवारी का इन्तजार करते रहते हैं।
नशे की गिरफ्त में आ रहे उर्जांचल के युवा व बच्चे
उर्जांचल के युवाओं में नशे का क्रेज दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। क्रेज इतना कि अब स्कूली बच्चे भी इसकी जद में आ रहे है। सिगरेट व जर्दा वाले पाउच तो आम बात हैं, भांग गांजा व शराब का सेवन भी अधिकतर युवाओं की पसंद बन गयी है। स्कूली बच्चे और कुछ युवाओं ने तो नशे की ऐसी-ऐसी सामग्रियों का ईजाद कर लिया है कि अगर इनके अभिभावकों को ये बातें पता चले तो उनके पाँव तले जमीन खिसक जायेगी। अभिभावक सोच भी नहीं सकते कि इनके बच्चे ह्वाईटनर, इरेजर, कफ सीरफ, थिनर, सुलेशन और बोनफिक्स, आयोडेक्स जैसी चीजें भी नशे के लिए प्रयोग कर रहे हैं जो घर के लोगों की नजरों से आसानी से बच जाते हैं। इनमे से कुछ चीजें सूंघने के काम में आती हैं। नशे की आदत से उर्जान्चल के कुछ युवा इतने मजबूर हो चुके हैं कि वे अब नशे की सूई तक लेने लगे हैं। ये दवाइयों की दूकान से मार्फिन, टेडिजोसिक, फोट्रीन, कैलमपोज व पैक्सम के अलावा लारजेक्टिल खरीद कर इसे नशे के रूप में उपयोग में ला रहे हैं। माना जाता है कि इन दवाईयों का प्रयोग वे ही करते हैं जिनपर हेरोईन भी अपना असर नहीं दिखा पाती है।
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
25 हजार आदिवासियों के पुनर्वास और पुर्नस्थापन
- अनपरा थर्मल पावर और उप्र विद्युत निगम ने कहा सुप्रीम कोर्ट से
- मिर्जापुर में 1978 से 1984 से के बीच हुआ था अधिग्रहण
25 हजार आदिवासियों के पुनर्वास और पुर्नस्थापन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश विद्युत निगम व अनपरा थर्मल पावर ने राज्य सरकार की नीति के तहत जमीन के बदले प्लाट और मुआवजा देने को कहा है। हालांकि याचिकाकर्ता का कहना है कि दोनों प्रतिवादी उन आदिवासियों के परिवार के सदस्यों को नौकरी देने से इनकार कर रहे हैं जिनकी पूरी जमीन अधिग्रहीत की गई थी जबकि राज्य सरकार की नीति के तहत ऐसे मामले में नौकरी देने का प्रावधान है।
गौरतलब है कि मिर्जापुर के दुद्धी में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार की ओर से 1978 से 1984 से दौरान किया गया था। इसके बाद से आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन का विवाद जारी है।
गौरतलब है कि मिर्जापुर के दुद्धी में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार की ओर से 1978 से 1984 से दौरान किया गया था। इसके बाद से आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन का विवाद जारी है।
PANKAJ MISHRA |
याचिकाकर्ता पंकज मिश्रा व सहयोग सोसाइटी के अनुसार केंद्र की ओर से साल 2003 में पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन की नीति जारी की गयी थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से 2011 में इस नीति को लागू किया गया जबकि मिर्जापुर में 25 साल पहले अधिग्रहण किया गया। अब भूमि की एवज में आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन को लेकर गंभीर नहीं है। राज्य सरकार के दोनों प्राधिकरण परिवारों को जमीन के बदले प्लाट देने और मुआवजा देने को तैयार हैं लेकिन जिन परिवारों की पूरी जमीन का अधिग्रहण किया गया है। उन्हें नौकरी देने से इंकार कर रहे हैं जबकि यह प्रावधान राज्य सरकार की नीति में शामिल है। राज्य के प्राधिकरण सरकार की नीति का पालन नहीं कर रहे हैं।
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