गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

जिले में सूचना के अधिकार की धज्जियां उड़ा रहे हैं अधिकारी

सरकार लगातार नए नए कानून बना कर कितनी भी वाहवाही लूटने की कोशिश करे, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। कंेद्र सरकार और प्रदेश सरकार के द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर जनहित से जुडी अनगिनत योजनाए चलाई जा रही है। इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर आम लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए अधिकारियों के ऊपर निगरानी में अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन यह अधिकारी पंचायत स्तर चलने वाली योजनाओं के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने से एतराज कर रहे है और सूचना के अधिकार के कानून की धज्जियां उडा रहे है। 

जानकारी के अनुसार, शक्ति आनन्द, ग्राम-औड़ी, जिला-सोनभद्र  में रहते है। उन्होंने ग्राम पंचायत औड़ी, कुलडोमरी, अनपरा, परासी, ककरी, रेहटा आदि में भारत सरकार और प्रदेश सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी सूचना के अधिकार कानून के तहत म्योरपुर ब्लाक से मांगी थी। इसमे ग्राम पंचायत कार्य की वार्षिक रपट, निर्माण कार्य की प्रगति रपट, नाप तौल व विकास कार्यो के रजिस्टर की कापी, नरेगा में दो वर्षो में कितने लोगों ने कार्य किया, गरीब आवासीय योजना में लाभ पाने वाले लोगों के नाम, अतिरिक्त बीपीएल सूची और मिड डे मील में खाने की स्थित के बारे में लिखित प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन उनकों योजनाओं के कार्यो के बारे में जानकारी नहीं दी गई। 

शक्ति आनन्द ने ग्राम पंचायत की जानकारी के लिए कार्यालय खण्ड विकास अधिकारी म्योरपुर, जिला पंचायत राज अधिकारी, सेानभद्र, मुख्य विकास अधिकारी, सोनभद्र से कई बार विभिन्न विषयों पर सूचना मांगी थी। हालांकि उन्हें यहां से भी कोई भी जानकारी नहीं दीं गई। इसके बाद उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त लखनऊ उत्तर प्रदेश के यहां अपील की। मगर अभी तक यहां से भी सूचना के अधिकार के लिए कोई कार्यवाई नहीं की गई। सूचना के अधिकार कानून के तहत खण्ड विकास अधिकारी और जिला विकास अधिकारी ने भी योजनाओं की सूचना नहीं दी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी सूचना के अधिकार के तहत सूचना नहीं देने के साथ-साथ इस अधिनियम की खुले आम धज्जियां उड़ा रहे है। 

"अपने गांव के आस-पास स्थित ग्रामों में विकास कार्यो व उनमें गुणवत्ता की जानकारी के लिये लगभग तीन वर्षो से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना ब्लाक स्तर से लेकर जिला स्तर तक मांगी जा चुकी है, परन्तु कुछ एक को छोड़कर ज्यादातर मामलों में उन्हें अभी तक कोई जानकारी सम्बन्धित विभागों द्वारा नहीं प्राप्त कराई गई, कई बार उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग द्वारा सम्बन्धित विभागों को सूचना उपलब्ध कराने हेतु नोटिस भी जारी की गई है। लेकिन फिर भी अधिकारी टस से मस नहीं हुए और विकास कार्यो के सन्दर्भ में कोई जानकारी देने में आनाकानी करते है।"  - शक्ति आनन्द, ग्राम-औड़ी, जिला-सोनभद्र 

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

उर्जाचंल मे बेखौफ नकली दवा का चल रहा कारोबार

विगत काफी दिनो से उर्जाचंल परिक्षेत्र मे बडे पैमाने पर नकली दवाओं का कारोबार बेहिचक चल रहा हैै। जिसके लिये न कोई जनप्रतिनीधी या सरकारी अफसर को ही कोई सुध है। बिना मान्यता प्राप्त के ही अनगीनत पैथोलाजी सेन्टर चल रहे है कोई भी मरीज मर्ज से राहत न मिलने पर डाक्टर को ही दोषी ठहराता है। डाक्टर द्वारा लिखे रक्त जाचं पेषाब जाचं या मल जॅंाच को बिना मान्यता प्राप्त पैथोलाजी सेन्टर से मिले गलत रिपोर्ट के आधार पर डाक्टर द्वारा दवा लिखना और मेडिकल स्टोर से नकली दवा मीलना मरीज को सीधा मौत का रास्ता दिखा रहा है। किसी धायल व्यक्तिी को चोट लगने के बाद किए गये एक्सरे मे डाक्टरो द्वारा हड््डी मे हेयर कै्रक के नाम पर पन्द्रह दिन से एक महीने के लिए प्लास्टर चढा देना डाक्टरो के लिए आम बात हो गया है। 

अनपरा चिकित्सालय मे जो भी दवा र्कमचारीयो के लिए या ग्रामीणो के लिए आती है उसे बडी सफाई से वहां के र्कमचारी अस्पताल से निकाल कर नजदीकी मेडीकल स्टोरो पर कम दामो पर बडी सफाई से बेच देते है। समस्त डाक्टरो से प्रार्थना है कि मराीज के र्मज को अगर नही पकड पाते है तो उन्हे उचित समय पर अच्छे जगह पर ईलाज के लिए रेफर कर दें। न की उस पर रिर्सच कर मरीज को मौत की राह पर ले जाये इलाज के नाम पर चल रहे अवैध गोरख घन्धे पर कडाई से लगाम लगाने की जरुरत आ गयी है। जनता का खामोश रहना इस व्यवसाय को बढावा दे रहा है। प्रदूषण नियन्त्रण विभाग द्वारा जब भी किसी पावर प्लाटं को कारखाना बनाने की अनुमति प्रदान की जाती है। तब मुख्यतः पांच चीजो को नजदीकी ग्रामीण क्षेत्र को प्रदान करनी होती है। पानी, रोड, शिक्षा, चिकित्सा, और बिजली तभी कारखाना खोलने की अनुमति मिलती है। 

निजी संस्थानो द्वारा ग्रामीण क्षेत्र को यह सभी सुविधा मिल रहा है। अनपरा कारखाने द्वारा यह सुविधा मात्र डिबुलगंज को ही दिया जा रहा है। अनपरा कारखाने के खुलते समय अधिकृ््ृति की गयी जमीनो मे काफी हिस्सा औडी एवं अनपरा ग्राम सभा का सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था। इसके बाद भी ये ग्राम सभा इन पॅाचो सुविधा से वंचित है। औडी ग्राम सभा के बच्चो को स्कूल जाने हेतू सडक मार्ग न देना, रोड की व्यवस्था इनकी स्वयं खराब है। इससे भी औडी वासी वंचित है, पानी एवं बिजली ये केवल डिबुलगंज को ही मुहैया करा रहे है। चिकित्सालय मे इनके कोई भी चिकित्सक इलाज हेतू बैठता ही नही है। सभी चिकित्सक अपने धरो पर परामर्श शुल्क 200 रु ले कर ही ग्रामीणो का इलाज करते हुए बडी आसानी से देखे जा सकते है। जनप्रतिनिघी केवल सडको पर प्रर्दशन कर अखबार मे फोटो खिचवा कर ही इसे हासील करने मे अपना बडप्पन समझते है, जबकी न्यायालय द्वारा इसे सहजता से हासिल कर सकते है। पहले के डाक्टर को जनता भगवान की नजर से देखते थे। अब के डाक्टर को धनवान की नजर से देखा जाता है।                                                                                                                                                                                         

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

लालटावर का आदर्श तालाब हो रहा प्रदूषित

कूड़े से पाटा जा रहा है तालाब
साफ-सफाई के अभाव में तेजी से खो रहा है अपना अस्तित्व

ग्राम सभा अनपरा के लालटावर बस्ती में बनाया गया आदर्श तालाब गंदगी से पटता जा रहा है। आलम यह है कि आसपास के बस्ती के लोग अपने घरों का कूड़ा इस तालाब में फेंककर इसका अस्तित्व ही समाप्त करने पर तुले हुए हैं। वहीं ग्राम सभा सहित अन्य कार्यदायी संस्था भी इसका साफ-सफाई कराने में कोई रुचि नहीं ले रही है। तीन वर्ष पूर्व अनपरा ग्राम सभा के लालटावर बस्ती में बना आदर्श तालाब गंदगी के चलते मच्छर प्रजनन का महफूज स्थान हो गया है। डाला छठ के समय तो इस घाट पर मेले की मानिंद भीड़ लगती थी। लेकिन गंदगी के चलते इस साल नाम मात्र के लोग ही इस घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आए। जिन वजहों से इस तालाब का निर्माण किया गया था वह रख-रखाव के अभाव में पूरा नहीं हो पा रहा है। न तो इस तालाब के साफ-सफाई का कोई प्रबंध नहीं है। इस महत्वपूर्ण तालाब को अगर सहेज कर नहीं रखा गया तो शीघ्र ही इसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। अनपरा गांव में चार सफाई कर्मियों की नियुक्ति की है लेकिन वे काम के प्रति उदासीन हैं। बीस लाख की लागत से बना यह तालाब वर्तमान में लाभ से अधिक हानिकारक सिद्ध हो रहा है कहा कि इस तालाब में बजबजा रही गंदगी में अनगिनत मच्छर पनप रहे हैं, उन्होंने इसकी नियमित सफाई की मांग की। 

 कैलाश घूसिया
" वर्तमान में वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग के किनारे काशीमोड़ पर पक्की नाली बनाने का कार्य चल रहा है, जैसे ही यह पूरा होगा इस तालाब की भी साफ-सफाई करा दी जाएगी।" - कैलाश घूसिया, ग्राम प्रधान, अनपरा।

एक जमीन के लिए दो बार मुआवजा चाहते हैं प्रभावित लोग

दादा ने लिया मुआवजा, अब नाती लाइन में
नई भूमि अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजे के लिए केस
ग्राम सभा की ओर से हाईकोर्ट पहुंचा अधिग्रहण का मामला

कनहर सिंचाई परियोजना अब भी मकड़जाल में फंसी हुई है। इसमें दादा ने मुआवजा ले लिया, अब उनके नाती मुआवजा की दावेदारी कर रहे हैं। इनकी मांग है कि पुनर्स्थापित के बाद ही उनकी जमीन ली जाए। कुछ मामले ऐसे भी हैं कि जो मुआवजा कम मिलने की दलील देकर कोर्ट चले गए हैं। ग्राम सभा की ओर से दायर मुकदमे में नई अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजे की मांग की गई है।

कनहर सिंचाई परियोजना का उद्घाटन 1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस परियोजना से हजारों एकड़ जमीनों को खेती के लिए पानी देना था। इसमें 11 गांव के लोगों को विस्थापित होना है। इसमें सबसे ज्यादा दिक्कत जमीन अधिग्रहण में आती रही। कुछ लोग इसका विरोध भी करते रहे। दूसरे इस योजना को सियासत ने भी लटका दिया। सरकार बदलती गई लेकिन योजना शुरू नहीं हो सकी। 1979-81 के बीच कुछ लोगों को दो हजार रुपये बीघा के हिसाब से मुआवजा दिया गया। साथ में प्लाट देने का भी वादा किया था। सूत्रों के अनुसार उनकी जमीन का ट्रांसफर नहीं कराया गया। यानी रिकार्ड में अब भी जमीन इनकी है। इन लोगों ने दोबारा मुआवजे के लिए कोर्ट का सहारा ले लिया है। जिस जमीन का मुआवजा दिया जा चुका है। उसके परिवार के दूसरे दावेदार तैयार हो गए हैं। ग्राम सभा की ओर से दायर किए गए मुकदमे में नई अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजा देने की बात की गई है।

इधर सात नवंबर को सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने कनहर परियोजना का शुभारंभ कराया। इसके साथ दस करोड़ रुपये दिए और पुनर्स्थापन और उचित मुआवजे की बात कही। इसके बाद कनहर परियोजना शुरू होनी उम्मीद जगी है, लेकिन अभी कई पेच फंस रहे हैं। कनहर बचाओ संघर्ष समिति अपना विरोध जता ही रही है। लोग कोर्ट भी चले गए हैं।

नई अधिग्रहण नीति के तहत विस्थापितों को मुआवजा मिलना चाहिए। मुआवजा देकर कनहर परियोजना को जल्द से जल्द बनाना चाहिए। जिससे हजारों एकड़ भूमि की पैदावार बढ़े और किसान खुशहाल हो सकें।
-प्रभु सिंह, सचिव कनहर बनाओ संघर्ष समिति

संविधान के 73 संशोधन के अनुसार ग्राम पंचायतों की सहमति के बाद ही विस्थापित किया जाए। इसके साथ ही विस्थापन के लिए स्पष्ट नीति बनाई जाए। उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। इसके लिए हाईकोर्ट में रिट दायर किया गया है। हम लोग अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
-महेशानंद, कनहर बचाओ संघर्ष समिति

परियोजना में मुआवजे के लिए प्रशासक की नियुक्ति होनी है। प्रशासक बनने के बाद मुआवजा देने और जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। प्रयास है कि जल्द ही परियोजना शुरू हो सके।
-राम अभिलाष, एसडीएम दुद्धी

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

सोनभद्र के आदिवासियों के आशाओं पर खरे नहीं उतरे राहुल गांधी

सोनभद्र की धरती पर पहली बार पड़े थे राहुल के कदम
कैमूर क्षेत्र के बाशिंदों और आदिवासियों का हुआ उनके ही घर में अपमान
राहुल की जनसभा में शामिल होने गए सोनभद्र के आदिवासी शिवधार और नन्दलाल को हवालात की हवा भी खानी पड़ी।
नन्दलाल अपनी धरोहर तीर-धनुष लेकर गया था और उसकी धरोहर ही उसके लिए सजा बन गई। 

यह बात तब की है जब सोनभद्र की धरती पर पहली बार कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आये थे उस वक्त वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग के बायीं ओर मिर्जापुर जनपद का अहरौराडीह गांव इतिहास रचने को तैयार। गांव के पास गेंहूं की फसल की कटाई के बाद खाली पड़ी करीब बीस बीघा खेत में भारी सुरक्षा के बीच  तैयार दो मंच और पंडाल। साथ ही चिलचिलाती धूप में आग के गोले बरसा रहा सूरज। मौसम का पारा भी 46 डिग्री सेल्सियस की हद को पार कर चुका था और लोगों के स्वास्थ्य को चेतावनी दे रहा था। फिर भी, सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, भदोही, मिर्जापुर के बाशिंदों समेत आस-पास के कांग्रेसी इकट्टा हो रहे थे। कांग्रेसियों की इस भीड़ में मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली के उपेक्षित आदिवासी भी तीर-धनुष के साथ शिरकत किए हुए थे। 

शाम के करीब साढ़े चार बजने को थे। पंडाल समेत आस-पास के इलकों में करीब साठ हजार लोगों की भीड़ भारी सुरक्षा के बीच बने मंच की ओर टकटकी लगाए हुए थे। दूसरे मंच पर कांग्रेसी नेताओं का भाषण चल रहा था। बेरिकेंडिंग के बीच बने मंच के सामने मीडियाकर्मियों की जमात अपने लाव लश्कर के साथ तैयार थे। अचानक हेलिकाप्टर की आवाज सुनाई देती है और मंच के बायीं ओर सौ मीटर की दूरी पर धुंआ उठने लगता है। सबकी निकाहें उठते धुआं की ओर पड़ती हैं और लोग आसमान की ओर नजरे टिका लेते हैं। सबकी आंखों में कुछ आशाओं के साथ एक अनोखी चमक है। लोग बदन से गिरते पसीने और चिलचिलाती धूप में जिस छड़ का इंतजार कर रहे थे, वो खड़ी आ चुकी थी। नीले रंग का एक उड़नखटोला (हेलिकाप्टर) हवामंडल में तैर रहा था, जो अचानक उनके पास बने बेरिकेडिंग में उतरने लगा। सभी लोगों की निगाहें नीले रंग के उड़नखटोले पर जा टिकी। लाउडस्पीकर से सोनिया गांधी जिंदाबाद, राहुलगांधी जिंदाबाद, कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद आदि के नारे गूंजने लगे। चार बजकर चालीस मिनट पर कांग्रेस पार्टी के महासचिव और अमेठी के सांसद राहुल गांधी उड़नखटोले से बाहर आए। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से परिचय करने के बाद राहुल गांधी भारी सुरक्षा के बीच बने मंच पर आसीन हुए और हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन किया। अब सबकी निगाहें राहुल गांधी की हरकतों पर टिकी थी। साथ ही साथ सभी के दिलों में राहुल गांधी से जुड़ी आशाएं हिलोरे मार रही थी।  सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के आदिवासियों समेत यहां के बाशिंदों के दिलों में ये आशाएं कुछ ज्यादा ही हिचकोले खा रही थीं, क्योंकि राहुल गांधी ने बीते साल गरीबी की हालत से बदहाल बुंदेलखंड की कलावती का दर्द लोकसभा में उठाकर पूरे विश्व का ध्यान बुंदेलखंड के पिछड़ेपन की ओर इंगित किया था। सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली की भी भौगोलिक स्थिति और समस्याएं बुंदेलखंड जैसी हैं। साथ ही ये तीनों जनपद उत्तरप्रदेश के सबसे नक्सल प्रभावित जनपदों में शुमार हैं।

करीब पांच बजे राहुल गांधी ने कांग्रेस के साथ खड़े होने और स्वागत के लिए लोगों को धन्यवाद देते हुए अपनी बात शुरू की। सबकी इंद्रियां राहुल गांधी के एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रही थीं, लेकिन राहुल गांधी के सभी शब्दों को सुनने के बाद लोगों की सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के लिए विशेष पैकेज की आशाएं धरी की धरी रह गयी। चिलचिलाती धूप में यहां के गरीबों और किसानों को राहुल गांधी से निराशा ही हाथ लगी। यदि राहुल गांधी के भाषण पर ध्यान दें तो उन्होंने पूरे भाषण के दौरान उत्तर प्रदेश में चल रही बहुजन समाज पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए खासतौर से युवाओं का आह्वान कर कांग्रेस के मिशन 2012 का जोरदार आगाज किया। राहुल गांधी ने देश की वर्तमान राजनीति की उकरते हुए कहा कि आज हिंदुस्तान में दो विचार धाराएं हैं। यहां दो तरीकों की सरकार चलती है। एक जो पूरे हिंदुस्तान को एक आग में झोकती है। एक गृहस्ती को अपना मानकर चलती है। चाहे वो गरीब हो, अमीर हो, पिछड़ा हो, दलित हो आदिवासी हो। कांग्रेस पार्टी की सरकारें सभी को साथ लेकर चलती हैं। 

साल 2004 में दिल्ली में आपने ऐसी ही सरकार बनाई। ‘‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को पूरी दुनिया का बेहतरीन प्रोग्राम करार देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मैं राज्यों में गांव गांव में जाता हूं। लोग नरेगा को सबसे बेहतर प्रोग्राम करार देते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार इसे ठीक नहीं मानती है। बीते 20 सालों के दौरान उत्तर प्रदेशकी राजनीति की आलोचना करते हुए राहुल गांधी ने कहा’’ आपने पहले धर्म की राजनीति देखी। भाजपा की सरकार आयी। आपने उसे हटाया। फिर जाति की सरकार आयी। सपा की सरकार आयी। आपने उसे बदला। फिर बीएसपी आयी। उसने कहा दलितों की सरकार बनेगी। मुझे दलितों की सरकार दिखाई नहीं देती। बहुजन समाज पार्टी की सरकार प्रहार करते हुए राहुल गांधी ने अपने संस्मरण के माध्यम से उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं होने की बात कही। कांग्रेस महासचिव ने आगामी विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को हराकर उत्तर प्रदेश को बदलने का आह्वान किया। उन्होंने सोनभद्र में खनीज इँडस्ट्री होने के बाद भी बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पाने पर बीएसपी सरकार को दोषी ठहराया। साथ ही गांवों में पांच से छह घंटे बिजली आपूर्ति को लेकर बसपा को आड़े हाथों लिया। करीब बारह मिनट के अपने भाषण में राहुल गांधी ने सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के आदिवासियों, वनवासियों और गरीबों की आशाओं के अनुरूप कोई भी ऐसी घोषणा नहीं की जिससे चिलचिलाती धूप में त्वचा झुलसाने का फल यहां के बाशिंदों को मिल सके। 

राहुल गांधी को आदिवासियों की व्यथा की हालत तब भी नहीं याद आयी जब भूखमरी से 18 बच्चों की मौत का गवाह बन चुकी घसिया बस्ती (सोनभद्र) निवासी गरीब आदिवासी कतवारू ने आदिवासियों की धरोहर धनुष-तीर और टोपी उन्हें भेंट की। कतवारू के माध्यम से आदिवासियों ने अपने प्रेम और आतिथ्य का संस्कार दिखाया लेकिन उन्हें एक बार फिर कांग्रेस के युवराज से निराशा ही हाथ लगी। इतना ही नहीं, राहुल की जनसभा में शामिल होने गए सोनभद्र के आदिवासी शिवधार और नन्दलाल को हवालात की हवा भी खानी पड़ी। परसोई निवासी आदिवासी शिवधार को कुछ घंटों की पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया, लेकिन ओबरा थाना क्षेत्र के पनारी गांव के खाड़र टोला निवासी नन्दलाल को 24 घंटे हवालात की हवा खानी पड़ी। वरिष्ठ कांग्रेसी राजेशपति त्रिपाठी और ललितेश त्रिपाठी के कहने के बाद भी नन्दलाल को नहीं छोड़ा गया। नन्दलाल को छुड़ाने के लिए इंटक के जिलाध्यक्ष हरदेव नारायण तिवारी और छात्र नेता विजय शंकर यादव अहरौरा थाने में देर रात तक लगे रहे, लेकिन पुलिस वालों ने एक न सुनी। आखिरकार 19 मई की शाम नन्दलाल को उप जिलाधिकारी चुनार सामने बांड भरना पड़ा। तब जाकर पुलिसवालों ने नन्दलाल को छोड़ा। राहुल को देखने की आशा से नन्दलाल अपनी धरोहर तीर-धनुष लेकर गया था और उसकी धरोहर ही उसके लिए सजा बन गई। यहां तक कि उसपर नक्सली होने तक का आरोप लगाया गया।