रविवार, 17 जून 2012

कनहर नदी की एक दशक में पांच से सात फीट गहराई बढ़ी


अवैध खनन जारी होने से आज हो रही है दिक्कत 
भविष्य क्षेत्र में बढ़ सकता है घोर पेयजल संकट
देखते ही देखते कनहर की बढ़ गई गहराई

दुद्धी तहसील मुख्यालय से महज चार किमी दूर कनहर नदी में लगभग एक दशक से कास्त की छह एकड़ रकबे से बालू का खनन दिखाया जा रहा है लेकिन हकीकत तो यह है कि कास्त की मिट्टीयुक्त बालू कभी उठाया ही नहीं गया। कनहर नदी में ग्राम सभा की भूमि से यहां बालू का खनन बदस्तूर जारी है। गलत तरीके से हो रहे खनन को रोकने के लिए यहां प्रशासनिक स्तर से आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके नतीजतन कनहर पिछले वर्षों में पांच से सात फीट गहरी हो गई है। दुद्धी-विंढ़मगंज मार्ग पर स्थित कनहर ब्रिज और रेलवे ब्रिज के बीच कनहर नदी को देख कर आसानी से इसकी पुष्टि की जा सकती है। बरसात में आई तीव्र बाढ़ से पूरी बालू बह कर नीचे चला गया और वहां केवल पत्थर ही नजर आ रहे हैं। लोगों का मानना है कि अगर खनन नहीं रुका तो ब्रिज की नींव कमजोर पड़ जाएगी और कभी भी अनहोनी भी हो सकती है। नदी के तटवर्ती गांवों हीराचक, कोरगी, पकरी, टेंढा, देवढ़ी, कलिंजर सहित दर्जन भर गांव के लोगों ने बताया कि कनहर नदी गहरी होने से यहां के गांवों में जलस्तर काफी तेजी से नीचे सरक रहा है ऐसे में भविष्य में पेयजल की भी बड़ी समस्या उत्पन्न होने के आसार नजर आने लगे हैं। चैड़ी सड़कों को बनाया जा रहा संकरा, महुली के डा. अंबेडकर ग्राम विकास योजना के अंतर्गत महुली में कराए जा रहे विकास कार्यों से लोग आक्रोशित हैं। पांच मीटर तक की चैड़ी सड़कें महज दो से ढाई मीटर तक सिमट जा रही हैं। सीसी रोड का निर्माण कराए जाने से बस्ती में बड़े वाहनों का आना जाना मुश्किल हो गया है। बताया जा रहा है कि महुली की भीतरी बस्ती में जहां तीन से पांच मीटर तक की खंड़जायुक्त चैड़ी सड़कें थीं, वहां अब सीसी रोड का निर्माण कराया जा रहा है। ठेकेदार के मुताबिक सीसी रोड एक से ढाई मीटर चैड़ी ही बनाया जाना है। इधर ग्रामीणों का कहना है कि खंड़जा बिछाए गए सड़क पर बड़ी आसानी से बस्ती में स्थित अपने अपने दरवाजे तक पहुंचा जा सकता था, लेकिन खंड़जा उखाड़ कर सड़क को संकरा कर दिया।

परियोजनाओं को खोखला करते जा रहे है, कबाड़ चोर

1. कबाड़ चोर गिरोहों की सक्रियता से परियोजनाओं कि सुरक्षा पर लग रहा प्रष्नचिन्ह
2. परियोजनाओं को लग रहा है प्रतिदिन लाखों का चूना।
3. प्रतिदन होती हैं, कबाड़ चोरी बेखबर पुलिस महकमा। 

कबाड़ी व चोर गिरोहों की सक्रियता से औद्योगिक परियोजनाओं कि सुरक्षा पर प्रष्नचिन्ह लग गया है। परियोजनाओं बेषकिमती कल-पुर्जे व अन्य सामान रातों-रात चोरी कर बेच दिये जा रहे है। वहीं इससे पुलिस बेखबर है। चोरी की घटनाओं से लाखों की चपत सहने वाली परियोजनाए आए दिन खोखली होती जा रही है। औद्योगिक परियोजनाओं में बढ़ती चोरी की घटनाओं से इनकी सुरक्षा पर सवालिया निषान लग गया है। आरोप है कि पुलिस के लिए कोयला के अलावा कबाड़ की दुकाने अवैध कमाई व वसूली का जरिया बनती जा रही है। कबाड़ी गिरोह की बढ़ती सक्रियता से इन परियोजनाओं को प्रतिदिन लाखों रूपये का चूना लग रहा है, और पुलिस के संरक्षण में बे-रोकटोक चल रहे इस धन्धे से जुड़े लोग अपनी नींव मजबूत करते जा रहे है। इस वजह से इस धन्धे को आसानी से हिला पाना सम्भव नहीं दिखता। बताते है कि एनसीएल की ककरी, बीना व उत्तर प्रदेष पावर कारपोरेषन के अनपरा व रेनुसागर परियोजनाओं को चोरी से प्रतिदिन लाखों की चपत लगती है। कबाड़ी गिरोह परियोजनाओं के बेषकिमती स्पेयर पार्ट्स, रोप, केबिल सहित सक्रिय व निष्क्रय पड़ी लौह वस्तुओं पर हाथ साफ करते है। इस चोरी से पुलिस को मोटी रकम प्राप्त होती है। जिसके फलस्वरूप यह धन्धा फल-फूल रहा है। वैसे तो औद्योगिक क्षेत्र के हर हिस्से में प्रतिदिन छोटी-बड़ी चोरी की घटनाएँ प्रकाष में आती रहती है। मगर यह चोरिया संगठित तरिके से हो रही है। इसके लिए औद्योगिक क्षेत्र व स्वयं की कार्य संस्कृति भी काफी हद तक जिम्मेवार बताई जाती है। लंुज-पुंज सुरक्षा इंतजाम भी चोरी को बढ़ावा देते है। जबकि एनटीपीसी इस मामले में काफी सख्त है। पता चला है कि क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन कई लाखों रूपये की किमती सामानों की चोरी होती है। बीते महिनों में एनसीएल की बीना व ककरी परियोजनाओं से लाखों के बड़े विदेषी डम्परों के रेडिवाटर व बैटरी सहित कई अन्य प्रकार के पाटर््स की चोरियों ने परियोजना अधिकारियों की नींद हराम कर दी है। 

जहरीला तेल नाश्ते के साथ बीमारी को भी देता है दावत


सोनभद्र के होटलों, ठेले खोमचों पर स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ बीमारियां मुफ्त में मिल रही हैं। ठेलों और होटलों पर एक ही तेल और घी में पूड़ी, कचैड़ी, बाटी के अलावा जलेबी छन रही है। बार बार तेल गर्म कर उसे जहरीला बनाया जा रहा है, वहीं धूल की परत भी बीमारियों को न्योता दे रही है। एक तरफ तो जनपद मे लोग घातक बीमारियों के शिकार होकर काल के गाल में समा रहे हैं तो दूसरी तरफ बीमारियों को दावत दी जा रही है। प्रतिदिन लोग सुबह के नास्ते व खाने के लिये होटलों की शरण लेते हैं। यही नहीं औद्योगिक प्रतिष्ठानों की ओर जा रहे लोग नाश्ते के लिए छोटे मोटे होटलों और ठेलों की शरण लेते हैं। जनपद में हजारों ठेलों पर पूड़ी, जलेबी, बाटी, चोखा आदि बेची जाती है। जनपद में जगह-जगह कई स्थानों पर ठेले खोमचों पर नाश्ते के लिए भीड़ जुटती है। यहंा मानक के विपरीत बार बार एक ही तेल में पूड़ी, कचैड़ी, समोसा, पकौड़ी आदि तले जा रहे हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह साबित हो चुका है कि तेल को बार बार गर्म करने पर वह जहरीला हो जाता है तथा इसके प्रयोग से कैंसर का खतरा होता है, लेकिन आदिवासी इलाके में लोग इस बात से अंजान हैं। यही नहीं वाराणसी शक्तिनगर मार्ग, राबर्ट्सगंज मिर्जापुर मार्ग, घोरावल खलियारी मार्ग पर हमेशा धूल उड़ती रहती है। यह धूल खाने के सामान पर पड़ती है। इन सब के प्रयोग से लोगों के बीमार पड़ने का खतरा बना हुआ है लेकिन इस ओर स्वास्थ्य विभाग का ध्यान नहीं है। एक तरफ तो जिले में संक्रामक बीमारियों की वजह से लोगों की मौत हो रही है। वही बीमारियों को दावत दे रहे ठेले खोमचों और होटलों पर कार्रवाई नही की जा रही है। एक ही तेल में बार बार सामान छानने और उसका सेवन करने से पेट से संबंधित अनेक बीमारियां होती हैं। शरीर की अधिकांश बीमारियों की जड़ दूषित भोजन ही है। ऐसे में लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए। 

दुर्व्यवस्था की भेंट चढ़ा आवासीय विद्यालय


गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं के लिए महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत चल रहे कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में दुर्व्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है। विद्यालय प्रबंधन के मनमाने कार्यप्रणाली का नतीजा है कि ठंड में छात्राएं फटे चिथड़े व गंदे बिस्तरों पर सोने के लिए मजबूर हैं। मानकों की अनदेखी कर छात्राओं को मिलने वाले सुख सुविधाओं की कटौती करके अपने जेबें गर्म करने में प्रबंधन लगा हुआ है। वहीं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में हो रही भारी कमी से उनका भविष्य अंधकार में जा रहा है। रेणुकापार के दुर्गम क्षेत्र जुगैल में स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में भारी अनियमितता व लापरवाही के कारण छात्राओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सौ बालिकाओं को रहने व पढ़ने की व्यवस्था के तहत चल रहे इस विद्यालय में मात्र साठ छात्राएं मौके पर दिखाई पड़ीं, जबकि कागजों पर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। एनजीओ के संरक्षण में चल रहे इस विद्यालय में स्थायी व अस्थायी रूप से छह शिक्षक नियुक्त हैं, लेकिन पूरा विद्यालय आया और एक जूनियर महिला शिक्षक के भरोसे चलाया जा रहा है, जिससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यालय में शिक्षा का स्तर क्या होगा। वहीं विद्यालय में छात्राओं के भोजन व नाश्ते में भी भारी कटौती की जा रही है। विद्यालय परिसर में खेल मैदान न होने के कारण बालिकाओं को किसी भी प्रकार के खेल-कूद से वंचित रहना पड़ रहा है। जनपद के शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी धन पर्याप्त रूप से खर्च किए जाने के बावजूद भी आदिवासी अंचल के बच्चों को अच्छी शिक्षा नसीब नहीं हो पा रही है। जिले के आला अधिकारियों का इन शिक्षा केंद्रों पर जब तक नजरें इनायत नहीं होगी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।

बुधवार, 13 जून 2012

अपने ही आवास में नहीं रहना चाहते रेनुसागर ताप विद्युत गृह के कर्मचारी।

सीएचपि के पास बने एस.एफ. आवास
अपने ही आवास में नहीं रहना चाहते रेनुसागर ताप विद्युत गृह के कर्मचारी। यह बात तो थोड़ा सा अटपटा सा लगता होगा, लेकिन सच्चाई यही है। दबें जुबान से लोग कहते नहीं चुकते? ज्ञात हो की रेनुसागर पावर डिवीजन के कोल हैण्डलिंग प्लांट के पास बने एस. एफ. आवास में सैकड़ों परिवार अपने बच्चों के साथ परियोजना के द्वारा आवंटित आवास पर रहते है। ये कर्मचारी फैक्ट्री में काम करके जब अपने घर जाते है तो न उन्हें शुद्ध पानी मिल पाती है, न हवा, न वातावरण क्योंकि उनके आवास के कुछ ही दूरी पर सी.एच.पी. कै्रसर, डोजर चलता है। जहाँ से कोयला का धुल उड़कर रहवासियों को घर में रहना हराम कर दिया है। ये धुल खाना, पानी एवं कपड़े में तो लगता ही है। जमीन पर कोयले की धुल की परत जम जाती है। कर्मचाररी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि इस बात को कही उठा सके। इन कर्मचारियों की जिन्दगी पषुवत की तरह बीत रहा है। इस सम्बन्ध में गैर सरकारी संगठन ‘‘सहयोग’’ के सचिव एवं युवा कांग्रेस नेता पंकज मिश्रा ने बताया कागजी आकड़े पेष कर अवैध तरीके से पर्यावरण प्रदूशण का प्रमाण-पत्र हासिल कर परियोजना सरकार व जनता के आँख में धूँल झोक रही है। वर्तमान परिवेष में रेनुसागर परियोजना परिसर एवं आस-पास की सड़के जिनसे परियोजना के लिए कोयले एवे राख का अभिवहन होता है। उसकी स्थिति यह है मनुश्य तो मनुश्य पषु भी नारकीय जीवन जीने को बाध्य है। प्रबन्धन के गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के कारण रेनुसागर परियोजना एवं आस-पास के क्षेत्र का पानी, हवा एवं वातावरण इतना प्रदुशित हो चुका हैं कि लाखो जनमानस इसकी पीड़ा झेल रहा है। एैसे में आई.एस.ओ.-14001 की सार्थकता पर ही प्रष्न चिन्ह खड़ा होता है, जिसे प्र्यावरण मित्र एवं पर्यावरण हितैसी कम्पनी को ही जारी किया जात है। भ्रश्टाचार के इस दौर में इससे आगे भी इससे बेहतर पर्यावरण मित्र एवं पर्यावरण हितैसी कम्पनी होने का प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं। उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस पूरे प्रकरण की जाँच कर, पर्यावरण संरक्षण से सम्बघित प्रमाण पत्र जारी करने वाली संस्था एवं सम्बन्धित कम्पनी के विरूद्ध कार्यवाही कर प्रमाण पत्र निरस्त किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में व्यापार मण्डल के अध्यक्ष गोपाल गुप्ता का ह? कहना है कि बारूद के ढेर पर बसा है यह नगर। राँख बाँध से जब कभी धुल उड़ता है चारो तरफ फैलकर पर्यावरण को पूरी तरह से दूशित कर रहा है। वही गरबन्धा के ग्राम प्रधान पति गंगाराम बैसवार ने हम लोगों की खेती-बाड़ी सब उजड़ते जा रही है। गाँव में बर्फबारी की तरह परियोजना की चिमनीयों से निकलता राख गिरकर लोगों का जीना हराम कर कर रहा है। सुविधा के नाम पर परियोजना द्वारा केवल इसके निवारण का आष्वासन दिया जाता है। यदि परियोजना इस पर कोई कार्यवाही नहीं करती है तो यह समस्या जल्द ही लोगो के आक्रोष को एक विकराल आन्दोलन का रूप धारण करने पर विवष कर देगी।