गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं के लिए महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत चल रहे कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में दुर्व्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है। विद्यालय प्रबंधन के मनमाने कार्यप्रणाली का नतीजा है कि ठंड में छात्राएं फटे चिथड़े व गंदे बिस्तरों पर सोने के लिए मजबूर हैं। मानकों की अनदेखी कर छात्राओं को मिलने वाले सुख सुविधाओं की कटौती करके अपने जेबें गर्म करने में प्रबंधन लगा हुआ है। वहीं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में हो रही भारी कमी से उनका भविष्य अंधकार में जा रहा है। रेणुकापार के दुर्गम क्षेत्र जुगैल में स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में भारी अनियमितता व लापरवाही के कारण छात्राओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सौ बालिकाओं को रहने व पढ़ने की व्यवस्था के तहत चल रहे इस विद्यालय में मात्र साठ छात्राएं मौके पर दिखाई पड़ीं, जबकि कागजों पर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। एनजीओ के संरक्षण में चल रहे इस विद्यालय में स्थायी व अस्थायी रूप से छह शिक्षक नियुक्त हैं, लेकिन पूरा विद्यालय आया और एक जूनियर महिला शिक्षक के भरोसे चलाया जा रहा है, जिससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यालय में शिक्षा का स्तर क्या होगा। वहीं विद्यालय में छात्राओं के भोजन व नाश्ते में भी भारी कटौती की जा रही है। विद्यालय परिसर में खेल मैदान न होने के कारण बालिकाओं को किसी भी प्रकार के खेल-कूद से वंचित रहना पड़ रहा है। जनपद के शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी धन पर्याप्त रूप से खर्च किए जाने के बावजूद भी आदिवासी अंचल के बच्चों को अच्छी शिक्षा नसीब नहीं हो पा रही है। जिले के आला अधिकारियों का इन शिक्षा केंद्रों पर जब तक नजरें इनायत नहीं होगी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।
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