मंगलवार, 13 सितंबर 2011

अनपरा परिक्षेत्र में व्याप्त प्रमुख जन-समस्याएँ

अनपरा परिक्षेत्र में स्थित विभिन्न ग्राम सभाओं एवं औद्योगिक आवासीय परिसरों के आस-पास के क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क, सडक सुरक्षा आदि मूल-भूत नागरिक सुविधाओं का अभाव है। जिससे लगभग सवा से डेढ़ लाख आबादी रोजाना प्रभावित हो रही है तथा जन-सामान्य की समस्याएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैै। अनपरा परिक्षेत्र के निवासी निम्नवत् जन-समस्याओं एवं नागरिक सुविधाओं के लिए प्र’ाासन से सार्थक एवं प्रभावी पहल की अपेक्षा रखते है।
अनपरा परिक्षेत्र में व्याप्त जन-समस्याए:- 
१.बासी स्थित विद्युत उपकेन्द्र में ट्रान्सफर्मर एवं अन्य विद्युत अनुरक्षण सामग्री की स्थायी व्यवस्था की जाय।
२.अनपरा परिक्षेत्र में आये दिन खराब होने वाले विभिन्न स्थानों के ट्रान्सफर्मरों को अविलम्ब बदलने हेतु सम्बन्धित को आवश्यक निर्दे’ा दिये जाये।
३.अनपरा परिक्षेत्र में लो-वोल्टेज से प्रभावित क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार नये ट्रान्सफार्मर लगाये जाये।
४.अनपरा परिक्षेत्र में जर्जर हो चुके विद्युत तारों को अविलम्ब बदला जाये।
५.अनपरा परिक्षेत्र में २४ घण्टे निर्बाध विद्युत आपूर्ति की जाये।
६.अनपरा परिक्षेत्र में फॉल्ट, शट-डाउन एवं अन्य परिस्थितियों में बाधित होने वाली बिजली की कटौती (रोस्टींग) के समय पूरा किया जाये।
७.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्रों में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर जगह-जगह सड़क सुरक्षा एवं जन-हानि को देखते हुए शक्तिनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा), पिपरी, सोनभद्र द्वारा स्ट्रिट लाइट की व्यवस्था की जाये।
८.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र, तिराहों, बाजार (अनपरा मार्केट) एवं वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित विभिन्न चौराहों/तिराहों पर हाईमास्क लाइट शक्तिनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा), पिपरी, सोनभद्र द्वारा लगाये जाये।
९.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग के दोनो पटरियों पर दस फिट पत्थरीकरण किया जाये।
१०.शक्तिनगर से डिबुलगंज तक वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित अनपरा परियोजना के गेट नं० दो एवं लेन्को अनपरा पावर प्रा० लि० के मुख्य द्वार के पास मालवाहकों के ठहराव हेतु परियोजना बाउन्ड्री एवं मुख्य मार्ग के मध्य अविलम्ब वाहन पार्किंग स्थल बनाये जाये।
११.वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित थाना पिपरी, अनपरा एवं शक्तिनगर क्षेत्र में ट्रामा सेन्टर स्थापित किये जाये।
१२.उर्जान्चल क्षेत्र में विकास को देखते हुए विभिन्न ग्रामों को मिलाकर नगर पालिका बनाया जाय।
१३.अनपरा परिक्षेत्र में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यायलों का निर्माण कराया जाय।
१४.अनपरा परिक्षेत्र में राजकीय महाविद्यालय का निर्माण कराया जाय।
१५.अनपरा परिक्षेत्र के जर्जर हो चुके डिबुलगंज स्थित संयुक्त चिक्तिसालय में योग्य एवं प्र’िाक्षित चिकित्सकों, सुविधाओं तथा रखरखाव की व्यव्स्था कराई जाय।
१६.अनपरा परिक्षेत्र के में एक ब्लड बैंक खोला जाय।
१७.अनपरा परिक्षेत्र के छात्रों के लिये सरकारी आईटीआई कालेज खोला जाय।
१८.अनपरा परिक्षेत्र के नागरिको को नि:शुल्क पानी की सप्लाई दी जाय।
१९.अनपरा परिक्षेत्र के औड़ी चौराहे की स्ट्रीट लाईट को रात्रि में निर्बाध्य बिजली आपूर्ति की जाय।

सोमवार, 12 सितंबर 2011

बिकाऊ मासूमियत!

१.माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है बच्चें।
२.ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करने को मजबूर मासूम।

पुरे देश मे चलाये जा रहे सर्वशिक्षा अभियान और बालश्रम उन्मूलन के मुंह को मुह चिढ़ा रही है उर्जांचल नगरी। अवगत कराना है कि खेलने, खाने और शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में क्षेत्र के कुछ नौनिहाल को ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों तथा डग्गामार वाहनों पर अपना बचपन व्यतित करते देखा जा सकता है। इन नाबालिकों तथा छोटे-छोटे बच्चों को देखकर कोई भी व्यक्ति यह सोचने पर विव’ा हो जायेगा कि क्या २१वीं सदी के भारत में जब बच्चों को छ: से चौदह वर्”ा तक की आयु तक प्रारम्भिक ’िाक्षा देना संविधान के मूल अधिकार की श्रेणी में जोड़ दिया गया है। केन्द्र व राज्य सरकार नि:’ाुल्क ’िाक्षा के साथ-साथ किताब, युनिफार्म, छात्रवृत्ति, गुणवत्तायुक्त भोजन प्रदान कर रही हैंं, तो फिर इनके साथ यह दुव्र्यहार क्यों ? वो अपना समय विद्यालय में न बिताकर अपने जीवन के स्वर्णिम पल को दाव पर लगाकर खेलने, खाने और पढ़ने की उम्र में धन कमाने की ओर अग्रसर हो रहे है। इसके पीछे गरीबी, अ’िाक्षा एवं आर्थिक तंगी के कारण परिवार की गाड़ी खीचने के लिए अपना बचपन काम करके पुरा करना पड़ रहा है। सोनभद्र, चोपन, ओबरा एवं डाला आदि जगहों पर बालू एवं पत्थर खदानों में भी बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा सकता है। जो अति खतरनाक है।

केन्द्र सरकार की नरेगा जैसी योजना में भी बच्चें हाथ में फावड़ा व गईता हाथ में लिए देखे जा सकते है, जो भेड़ की तरह दो जुन की रोटी के जुगाड़ में खटाने को मजबूर है। समाज सेवी संस्था ‘सहयोग’ के संचालक पंकज कुमार मिश्रा का कहना है कि संबंधित विभाग का संवेदन ‘ाून्य हो गया है। ऐसे में सामाजिक कार्य करने वालों को आगे आना होगा। सदस्य ग्राम पंचायत-औड़ी के ‘ाक्ति आनन्द का कहना है कि इसका मूल कारण है सरकारी विभागों की अनदेखी, उर्जांचल के लगभग सैकड़ो गरीब परिवारों के मासूम बच्चें अपने माँ-बाप की गरीबी की वजह से काम करने के लिए मजबूर है क्योंकि उनके माता-पिता इस महगांई के जमाने में अपना और अपने बच्चों का पेट नहीं पाल सकते, इसलिए आपने बच्चों को वें या तो ईट भट्टों, होटलो, ढाबों, गैराजों में काम पर लगाकर यह सोचते है कि ‘ाायद इससे वह कोई काम तो सीख जाए जिससे वह आगे हमारा पेट पाल सके। इस सम्बन्ध में उपश्रमायुक्त, पिपरी, सोनभद्र से जानकारी ली गई डी.एल.सी. श्री आर.पी. गुप्त बताया कि नवीन चन्द्र वाजपेयी, मुख्य सचिव, उ०प्र० ‘ाासन का पत्र जिलाधिकारी के माध्यम से मिला है, जिसमें सरकारी विभागों, निगम, संस्थानों में बालश्रम का नियोजन न करने के सम्बन्ध में है। पुरे दे’ा में सबसे ज्यादा बालश्रम उ०प्र० में ०९.२७ लाख है, जो दे’ा के किसी भी प्रदे’ा से सर्वाधिक है। साथ ही बालश्रम की प्रति”ोध अधिनियम १९८६ की धारा-३ के अनुसूची ‘क’ के अन्तर्गत १५ व्यवसायों एवं ‘ख’ के अन्तर्गत ५७ प्रक्रियाओं (अतिखतरनाक) को लिया गया है। पहले घरेलू नौकरों को ढाबा, होटल, मनोरंजन, सड़क के किनारे खान-पान, चाय की दुकान में नियोजन किया जाता था पर उसे भी अब रोक दिया जाने का प्रस्ताव पारित हो गया है। क्या क्षेत्र में नैनिहालों के Åपर सम्बन्धितों का ध्यान नहीं जाता जिसको गम्भीरता से लेते हुए उनके जीवन को मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास हो सके, और इन नाबालिकों से काम लेने वाले के विरूद्ध कठोर कार्यवाही बालश्रम कानून के तहत किया जा सके। क्या पता उन नैनिहालों में से कोई प्रतिभा का धनी निकलकर दे’ा व समाज का मांग कढ़ाने में कामयाब हो जाय।    

विस्थापित सिर्फ एक सम्बोधन या श्राप !

 लेखक : शक्ति आनंद
1- दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय।
2- आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय बे-आवाज खड़ा था एवं उन्हें केवल कागजो मुआवजा दिया गया है जमीनी तौर पर नहीं
आज पूरे देश में किसानों की भूमि अधिग्रहण का विरोध हो रहा है भट्टा-परसौल में तो गर्माया विस्थापन का यह मुद्दा तो इतना गम्भीर हो गया कि राहुल गांधी को यह देखकर कहना पड़ा कि उन्हे भारतीय हाने पर शर्म आ रही है। यह मामला केवल भट्टा-परसौल के किसानों के साथ नहीं हो रहा है बल्कि आज से तीन द’ाक पूर्व सोनभद्र में हुए अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु किए गए विस्थापितों के साथ की है। सरकार जिनकी आवाजों को लगभग ३० सालों से दबाये हुए है। जिसके कारण आज भूमि अधिग्रहण कानून १८९४ में संशोधन की कवायद चल रही है सभी राजनैतिक दल अपने को किसानो-आदिवासियों का हितैषी बताने के लिए नित नये हत्थकण्डे अपना रहे हैं। पूरा देश भूमि अधिग्रहण के मामले में सुलग रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर-प्रदेश के जनपद सोनभद्र में हजारों आदिवासी परिवार जिसकी हजारों एकड़ भूमि तत्कालिन सरकार ने अनपरा ताप विद्युत परियोजना निर्माण के लिए अधिग्रहित किया तथा उन्हे सरकारी नौकरी, नियमानुसार मुआवजा एवं अन्य सुविधाएं देने के लिए नियमों का हवाला देकर उनके हक को छिना जा रहा र्है। ज्ञात हो कि उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष वर्ष १९७८ में ३१३० मे.वा. की अनपरा तापीय परियोजना के निर्माण हेतु कुल ५०७६ एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें सात ग्राम सभाओं की किसानों की ३१०६.४८७ एकड़ कृषि योग्य भूमि भी अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल १३०७ परिवार प्रभावित हुए जिसमें ८० प्रतिशत लोगों की शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण में ८९८ लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित की गयी। अधिग्रहण के पश्चात तत्कालीन सरकार द्वारा विस्थापित/प्रभावित परिवारों को परियोजना में स्थायी सेवायोजन एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराये जाने की बाबत विनियमावली बनायी गयी तथा समझौते किये गये परन्तु अभी तक सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली एवं किये गये समझौतों का अनुपालन तीन दशक बाद भी सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। परियोजना द्वारा पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट की सुविधा से वंचित बचे विस्थापित परिवारों व उनके सदस्यों पर उत्तर-प्रदेश  सरकार द्वारा वर्तमान में पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति २०१० का भी अनुपालन नहीं किया जा रहा है जिससे उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा घोषित पुर्नवास एवं पुर्नबसाहट नीति २०१० की सार्थकता पर प्र’न चिन्ह खड़ा कर दिया है। पूर्व में विस्थापितों द्वारा किये गये आन्दोलन उपरान्त किये गये किसी भी समझौते का अनुपालन प्रबन्धन द्वारा नहीं सुनि’िचत किया जा रहा है। निगम की इस तानाशाही एवं भेदभाव वाली नीति का सर्वाधिक असर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवारों पर पड़ा है जिससे आज दसो हजार विस्थापित आदिवासी-दलित परिवार भूखों मरने के कगार पर खड़ा है और सरकारी उपेक्षा से उनमें आक्रोश दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। उत्तर-प्रदेश सरकार विस्थापित परिवारों से वायदा खिलाफी कर उनसे बन्दूक के बल पर सत्ता की हनक से उनके हक-हकूक को छीनना चाहती है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। बार-बार विभिन्न संगठनों एवं राजनैतिक दलों के माध्यम से शासन एवं प्रशासन को अवगत कराया गया है परन्तु आजतक सारे प्रयास विस्थापितों को न्याय नहीं दिला पाये। मण्डलायुक्त विन्ध्याचल मण्डल, मिर्जापुर एवं जिलाधिकारी स्तर पर बार-बार वार्ता के उपरान्त भी विस्थापितों की समस्याओं पर कोई प्रभावी व सकारात्मक पहल नहीं हुआ है। १५ नवम्बर २०१० को जिलाधिकारी सोनभद्र को स्थानीय जनप्रतिनिधियों, राजनितिक दलों एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रेषित ज्ञापन के सन्दर्भ में १६ नवम्बर २०१० को जिलाधिकारी, सोनभद्र के कार्यालय में अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों/भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के पुर्नस्थापन एवं पुर्नवास से सम्बन्धित समस्याओं के निस्तारण हेतु बैठक आहूत की गई। जिसमे जिलाधिसकारी, सोनभद्र  की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिए गए निर्णय के अनुरूप ९० दिवस के भीतर शासन द्वारा मुख्य महाप्रबन्धक, अनपरा द्वारा भेजे गए विकल्पों के आधार पर उत्तर प्रदे’ा शासन को निर्दे’ा देना था परन्तु आज तक शासन द्वारा इस सम्बन्ध में कोई पहल नहीं की गई है। जो विस्थापितों के साथ ऐतिहासिक अन्याय है। विस्थापित जन प्रतिनिधियों की मांग है कि उत्तर-प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनियम-१९८७ के तहत सभी शेष बचे विस्थापितों को अविलम्ब स्थायी सेवायोजन, परियोजना द्वारा जिन आधारों पर पूर्व में मकान एवं ५० प्रतिशत से कम भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन दिया गया है उन्ही आधारों पर शेष बचे भू-विस्थापित एवं मकानों के अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के एक सदस्य को स्थायी सेवायोजन, परियोजना के शेष बचे विस्थापित जिन्हे दो दशक तक परियोजना द्वारा छला गया एवं स्थायी सेवायोजन से विमुख रखा गया उन्हे पुर्नवास/पुर्नबसाहट विस्थापन भत्ता एक मुश्त दिया जाये तथा उत्तर-प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) विनियमावली-१९९४, दिनांक: ०७.०२.१९९४ जो कि अवैधानिक है उसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाये। क्योंकि विगत तीन द’ाकों में परियोजना द्वारा बार-बार विस्थापितों के आन्दोलन को बल पूर्वक दबाने का प्रयास किया गया तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप से होने वाले समझौतों का अनुपालन नहीं सुनिश्चित किया गया जिससे हजारों आदिवासियों-दलित परिवारों के समक्ष भूखों मरने की समस्या खड़ी हो गई है। गौर किया जाए तो बस एक ही चीज समझ में आती है कि आज भी विस्थापित बेआवाज बना हुआ है। समय-समय पर विस्थापितों की आवाज बनकर कई जनप्रतिनिधियों ने केवल अपना उल्लू सीधा किया है। विस्थापितों की ओर से मा० सर्वौच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रहे पंकज मिश्रा, सचिव (सहयोग गैर सरकारी संस्था) का कहना है कि आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय था। कुछ यही हाल नार्दन कोल फिल्डस की बीना, ककरी एवं कृष्ण’ाीला परियोजना के विस्थापितों के साथ है। ज्ञात हो कि उत्तर-प्रदेश के तत्कालीन जनपद मिर्जापुर एवं मध्य-प्रदेश के सीधी में कोयला परियोजनाओं की स्थापना हेतु भूमि अधिग्रहण ७० के दशक में किया गया था। वर्तमान में एनसीएल द्वारा उन्ही अधिग्रहित भूमियों पर एनसीएल परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण के समय भू-विस्थापितों/प्रभावितों के प्रतिनिधियों एवं कोयला परियोजना प्रबन्धन के बीच विस्थापितों को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने के सन्दर्भ में यह समझौता हुआ था कि प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य को जिनकी भूमि एवं भवन (केवल भवन) परियोजना हेतु अधिग्रहित कर ली गयी हो उसके एक सदस्य को अनिवार्य रूप से कोयला परियोजना में नौकरी दी जायेगी परन्तु प्रबन्धन द्वारा विस्थापितों/प्रभावित परिवार के सदस्यों के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है जिसके कारण कुछ भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के सदस्यों तथा समस्त मकानों (जिनके सिर्फ मकान अधिग्रहित हुए) के अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले परिवार के सदस्यों को अभी तक स्थायी रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। ऐसे परिवारों के समक्ष भुखमरी की समस्या खड़ी हो गयी है। शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को एनसीएल में तत्काल स्थायी रोजगार उपलब्ध कराया जाये। एनसीएल द्वारा पुर्नवास सेल की बैठक में विस्थापित प्रतिनिधियों द्वारा एनसीएल की परियोजनाओं में विस्थापितों को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने के सन्दर्भ में की गयी मांग के सन्दर्भ में यह व्यवस्था बतायी गयी कि एनसीएल में जब स्थायी रोजगार के लिए उपलब्धता होगी ऐसी परिस्थितियों में शेष बचे विस्थापितों को स्थायी रोजगार दिया जायेगा। वर्तमान समय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की बहाली के लिए एनसीएल द्वारा प्रक्रिया शुरू की गयी है। बहाली की वर्तमान प्रक्रिया को संशोधित करते हुए चतुर्थ श्रेणी के सारे पद परियोजना विस्थापित/प्रभावित परिवारों के सदस्यों के लिए आरक्षित किया जाये तथा उनकी सीधी भर्ती की जाये। एनसीएल की ककरी परियोजना के लिए किये भू-अर्जन के समय परियोजना द्वारा अधिक गैर जरूरी जमीनों का अधिग्रहण कर लिया गया जिसे बाद में प्रबन्धन द्वारा डिनोटिफिकेशन के लिए प्रस्तावित किया गया है जो वर्तमान में लम्बित है। इस विषय पर कोल बेयरिंग एक्ट में आवश्यक संशोधन कर तत्काल कास्तकारों की जमीनों का डिनोटिफिकेशन कर उन्हे वैद्यानिक रूप से वापस किया जाये। अधिग्रहण से पूर्व हुए समझौते में प्रबन्धन द्वारा वर्ग-चार की भूमियों पर सामान दर से प्रतिकर एवं अन्य सुविधाए देने की बात स्वीकार की गयी थी। पुर्नवास सेल की बैठक में उपरोक्त सन्दर्भ में पुर्नवास सेल के अध्यक्ष, जिलाधिकारी मिर्जापुर द्वारा व्यवस्था दी गयी कि इस सर्वे प्रक्रिया शुरू होने जा रही है जिसमें कास्तकारों का स्वामित्व निर्धारित होगा तत्पश्चात समाधान होगा। सर्वे प्रक्रिया के दौरान उक्त जमीनों पर नोटिफिकेशन व परियोजना का कब्जा होने के कारण कास्तकारों को उनके भौमिक अधिकार नहीं मिल सके। इन सबसे बस यही नजर आता है कि विस्थापन उर्जांचल में एक जाति, नस्ल सी बन गई है जों, ७० के द’ाक से पनपती जा रही। जो परियोजनाए इस क्षेत्र के विकास के उद्दे’य से बनायी गई थी, वही यहा के आदिवासियों के लिए एक श्राप बन कर रह गई है। ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी के शक्ति आनन्द कनौजिया का कहना है कि एक बार इन्हें रिहन्द बांध बनते समय फिर नार्दन कोल फिल्डस के खदानों के नाम पर एवं अनपरा तापीय परियोजना के द्वारा एक बार फिरसे इनके साथ आजतक अन्याय हो रहा है। यह कहा का इन्साफ है। देखने वाली बात यह है कि इन बेगुनाहों को कब न्याय मिल पाता है। आखिर में बस एक बात कोसती है कि देश  के विकास की गर इतनी बड़ी किमत है तो फिर उस विकास अर्थ ही क्या है। दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय।  
पंकज कुमार मिश्र



" आदिवासी आज भी वहीं है जहाँ वह १९७८ में अपनी भूमि छिनने के समय बे-आवाज खड़ा था एवं उन्हें केवल कागजो मुआवजा दिया गया है जमीनी तौर पर नहीं"





शक्ति आनंद

" एक बार इन्हें रिहन्द बांध बनते समय फिर नार्दन कोल फिल्डस के खदानों के नाम पर एवं अनपरा तापीय परियोजना के द्वारा एक बार फिरसे इनके साथ आजतक अन्याय हो रहा है। यह कहा का इन्साफ है। देखने वाली बात यह है कि इन बेगुनाहों को कब न्याय मिल पाता है। आखिर में बस एक बात कोसती है कि देश  के विकास की गर इतनी बड़ी किमत है तो फिर उस विकास अर्थ ही क्या है। दशक-दर-दशक विस्थापितों की बढ़ती संख्या से कही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक ये जाति भी सम्मिलित ना हो जाय। " 

बुधवार, 7 सितंबर 2011

औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से निकल रहे है मौत के धुएँ !!

 उर्जान्चल में विभिन्न औद्यागिक संस्थानों की चिमनियों से निष्कासित धूयें के साथ-साथ सल्फर डाइ-आWक्साइड गैस यहाँ के पर्यावरण में जी रहे जीवनदायी वृक्ष एवं पौधों की पत्तियों में प्रवे’ा कर एवं जल में घुलकर मुख्यत: सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयनों में बदल जाती है। सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयन पत्तियों की को’िाकाओं को लिये विष का कार्य करते है। पत्तियों की को’िाकाओं में सल्फाइट व बाई-सल्फाइट आयनों की अधिक सान्ध्रता को’ाकला एवं हिरितलव कों को नष्ट करती है तथा जीवद्रव्य कुंचन करती है एवं पर्णमध्भोतक को नष्ट करती है। इसके प्रभाव से पौधों की पत्तियों के किनारे और और ’िाराओं के मध्य का स्थान सूख जाता है। इसकी उच्च सान्द्रता में पौधों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके अतिरिक्त वायु में उपस्थित नमी का अव’ाोषण कर यह मनुष्यों एवं जीवों के श्वसन नली के रास्ते फेफड़ों में जाकर फेफडों की को’िाकाओं को काफी क्षति पहुँचाती है। यही नहीं सल्फर डाइ-आWक्साइड गैस पत्थरों, स्टील, कागजों इत्यादि पर भी अपना बुरा प्रभाव छोड़ती है। 
उर्जान्चल के औधोगिक संस्थानों की चिमनियों से निकलने वाले धूयें का मुख्य कारण यहा उत्पन्न हो रहे विघुत उत्पादन के लिये कोयले का अत्यधिक दहन हैं। यहाँ पृथ्वी की भीतरी सतहों से प्राप्त ईधन पदार्थों जैसे:-कोयलें में नाइट्रोंजन आWक्साइड मात्रा अधिक होती है। नाइट्रोजन आWक्साइड मुख्यत: वायु प्रदूषण का कार्य करती है। वातावरण में इन गैसों की आव’यकता से अधिक हानि यहाँ के लोगों के  आँखों को होती है। इनकी अधिकता से फेफड़ों एवं हृदय सम्बन्धी रोग होने की सम्भावना बनी रहती है। इसके आलाव अ’ाुद्ध वायु के सेवन से शरीर में विभिन्न प्रकार के व्याधि उत्पन्न हो रहे है। जिसमें प्राय: सिरदर्द, आलस्य, भूख की कमी, एनीमिया, खांसी, दमा, टी.बी. फेफड़ों का कैन्सर और फेफड़ों से सम्बन्धित अनेक रोग हो जाते है। 

वायु में फैले अनेक धातुओं के कण एवं राख वि’ोष रूप से तन्त्रिका तन्त्र (नर्वस सिस्टम) के रोग उत्पन्न करते है। वही कैडमियम श्वसन-विष का कार्य करता है और रक्त-दाब बढ़ाकर हृदय-सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। आर्सेनिक यहाँ के औद्योगिक संस्थानों में प्रयोग किये जाने से यह उर्जान्चल के पौधों को विषाक्त कर देता है। जिससे इसे खाने वाले पशुओं की मृत्यु हो जाती है। वातावरण में फ्लूराइड्स की सान्द्रता बढ़ने से पत्तियों के सिरों और किनारों पर हरिमाहीनता अथवा Åतक क्षय रोग उत्पन्न होता है तो दूसरी ओर इनकी की बढ़ती मात्रा आँख क रोग, खांसी के रोग एवं सीनें की दर्द उत्पन्न करती है। प्रदूषित वायु मनुष्य में एग्जीमा, मुहाँसें एवं एन्थ्रेक्स इत्यादि रोग भी उत्पन्न करती है।

उर्जान्चल में विभिन्न औद्यागिक संस्थानों के बढ़ते प्रदूषण से लगता है कि जल्दी ही यह क्षेत्र दे’ा का सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से प्रथम श्रेणी में आ जायेगा। दे’ा के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने सर्वप्रथम यहा रिहन्द बाँध के लोकार्पण के समय कहा था कि " यह स्थान एक दिन दे’ा स्वीटजरलैण्ड बनेगा पर यहा के औधोगिक संस्थानों ने इसे स्वीटजरलैण्ड बनने के बजाय इसे सहारा का मरूस्थल बनाने में जरूर मदद की है। 

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

भाठ क्षेत्र आजादी के छः दषक बाद भी सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा एवं चिकित्सा जैसी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।

जनपद सोनभद्र (उ.प्र) के दो विकास खण्डो में पड़ने वाले भाठ क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां काफी दुरूह हैं। भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर ऐसा अनुभव होता है कि यहां रहने वाले ग्रामीण किसी दैवीय आपदा के कारण १८ वीं सदी का पशुवत जीवन जी रहे हैं। भाठ क्षेत्र आजादी के छः दषक बाद भी सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा एवं चिकित्सा जैसी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। सड़क न होने के कारण लगभग 80 हजार से एक लाख की आबादी जिसमें मूलतः खरवार, गोड़, अगरिया, पनिका, बैगा (अनुसूचित जनजाति) तथा चमार, बियार, बैसवार एवं कोल (अनुसूचित जाति) के लोग विकास की मुख्य धारा से कटे हुए हैं। भाठ क्षेत्र में जो वर्तमान में कहीं-कहीं डब्ल्यु.बी.एम. सड़के हैं वह सम्बन्धित विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण उसकी स्थिति यह है कि सामान्य पशु भी उस पर आसानी से नहीं चल सकता। 
सड़क न होने के कारण भाठ क्षेत्र का जीवन इतना दुरूह है कि उक्त क्षेत्र में लोगों के बीमार हो जाने पर उन्हे खटिये पर लादकर 30 से 40 किलोमीटर दूर पहाड़ों के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजरकर ही प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करायी जा सकती है। 30 से 40 किलोमीटर की यात्रा तय करने में दुरूह पहाड़ी परिस्थितियों के कारण सात से आठ घण्टे लगते हैं। गम्भीर रूप से बीमार सैकड़ों लोगों की जान इस 30 से 40 किलोमीटर की यात्रा करने में ही निकल गयी। गर्भवती महिलाओं की स्थिति गम्भीर होने पर उन्हे उपरोक्त परिस्थितियों में ही चिकित्सा उपलब्ध करायी जा सकती है तथा उन्हे खटिये पर लेटकर 30 से 40 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है। ऐसी परिस्थितियों में गर्भवती महिलाओं एवं प्रसव के दौरान होने वाली मातृ मृत्यु दर सामान्य जगहों से लगभग दस गुना भाठ क्षेत्रों में ज्यादा है। सभ्य समाज के लिए उपरोक्त परिस्थितियां बड़ी गम्भीर चुनौती खड़ा करती हैं तथा उस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों का विकास केन्द्र एवं राज्य सरकार के मुख्य एजेण्डे में शामिल है। ऐसे में लगभग 40 किलोमीटर के विस्तार में फैले इस क्षेत्र में सड़क का न होना जनपद सोनभद्र के इस दुरूह भाठ क्षेत्र के विकास के पहिए की गति बयां करता है। आवागमन के लिए पर्याप्त सड़क न होने के कारण लगभग एक लाख की आबादी पिछड़ापन, अशिक्षा एवं अन्य विपदाएं झेल रही है। केन्द्र सरकार की महत्वकांक्षी नरेगा एवं अन्य योजनाएं उक्त क्षेत्रों में पर्याप्त सड़क न होने के कारण प्रभावित हो रही हैं तथा भ्रष्टाचार से घिरी हुई है। राज्य सरकार की उपेक्षा के कारण ग्रामीणों में गहरा रोष व्याप्त है तथा इस नक्सल प्रभावित जनपद में ग्रामीण अपनी उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे नक्सल गतिविधियों की तरफ बढ़ रहे हैं जिस पर समय रहते उपयुक्त समाधान न करने से इस औद्योगिक जनपद की विधि व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पडे़गा जिससे देष के औद्योगिक विकास के साथ-साथ अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना के अन्तर्गत सड़क से जोड़कर सोनभद्र के आदिवासियों एवं वनवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके तथा उनके जीवन स्तर में व्यापक सुधार लाया जा सके।

ग्रामीण पानी की किल्लत से दर-दर भटकते-भटकते !

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने उत्तर-प्रदेश शासन के ग्रामीण विकास विभाग के कानो तक शायद जनपद सोनभद्र के म्योरपुर विकास खण्ड स्थित आदिवासी/बनवासी बाहुल्य ग्राम सभा रणहोर, कुलडोमरी, पाटी, बेलहत्थी, सिन्दूर, बेलवादह एवं औड़ी में अकाल/पेयजल के संकट से प्रभावित क्षेत्रों में 300 हैण्डपम्प लगाये जाने की बात अभी तक नहीं पहुँची है। 29 अप्रैल, 2010 को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री श्री सी.पी.जोशी को ग्रामीणों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा पत्र लिखकर अवगत कराते हुए आग्रह किया गया था कि जनपद सोनभद्र (उ.प्र) के दो विकास खण्डो में पड़ने वाले भाठ क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां काफी दुरूह हैं। भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर ऐसा अनुभव होता है कि यहां रहने वाले लगभग एक लाख आदिवासी ग्रामीण किसी दैवीय आपदा के कारण 18 वीं सदी का पशुवत जीवन जी रहे हैं। उपरोक्त क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां दुरूह होने के साथ-साथ पूरा क्षेत्र गम्भीर पेयजल संकट से विगत पांच वर्षों से जूझ रहा है। विगत पांच वर्षों में पूरा क्षेत्र सूखे के गम्भीर चपेट में है जिससे कृषि एवं अन्य अजीविका के साधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस वर्ष मार्च माह से अब तक सैकड़ो पशु पानी-चारे के अभाव में काल कलवित हो चुके हैं।

भाठ क्षेत्र में पेयजल की समस्या गम्भीर होने के कारण मानवीय जीवन के समक्ष भी गम्भीर संकट खड़ा हो गया हैं। गर्मियों के मौसम में पशुओं एवं मानवीय जीवन को जीवन्त रखने के लिए भाठ क्षेत्र के लोग अपने परिवार एवं पशुओं के साथ खुले आसमान के नीचे रिहन्द सागर के किनारे अपना जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ता हैं। पेयजल की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण लोग कई किलोमीटर दूर से नालों एवं चोहड़ों से पानी लाकर पीने को मजबूर हैं गर्मियों में स्थिति भयावह हो जाती है तथा नालों एवं चोहड़ों में पानी सूख जाने के कारण जीवन दुरूह हो जाता है। विगत वर्षोें में सैकड़ों की संख्या में पशुओं ने पानी एवं चारे के अभाव में दम तोड़ दिया है। केन्द्र एवं राज्य सरकार के कार्यक्रमों के तहत वहां पेयजल के लिए हैण्डपम्प, बन्धी, कुओं आदि का निर्माण कराया गया है जो कि परिस्थितियों के हिसाब से नाकाफी है तथा राज्य सरकार द्वारा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की उपेक्षा से उन्हे अपेक्षित सहायता/विकास का भागीदार नहीं बनाया जा सका है। 

क्षेत्र में व्याप्त गम्भीर पेयजल संकट को देखते हुए अविलम्ब ग्रामीण विकासक मन्त्रालय की ओर से व्यापक सर्वे कराकर चिन्हित स्थानों पर 300 हैण्डपम्प लगवाने का कार्यक्रम प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। उक्त प्रकरण पर विभाग द्वारा त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा है। अन्यथा यहा के ग्रामीण पानी की किल्लत से दर-दर भटकते-भटकते पानी के अभाव में काल कलवित ना हो जाये।

सहयोग (गैर सरकारी संगठन) द्वारा विगत दो वर्षों से अनपरा तापीय परियोजना एवं एनसीएल की परियोजनाओं के विस्थापितों के पुर्नवास-मुआवजा एवं अन्य समस्याओं के निराकरण हेतु किये गए पहल।


सहयोग (गैर सरकारी संगठन) द्वारा विगत दो वर्षों से अनपरा तापीय परियोजना एवं एनसीएल की परियोजनाओं के विस्थापितों के पुर्नवास-मुआवजा एवं अन्य समस्याओं के निराकरण हेतु पहल किया जा रहा है। इस सन्दर्भ में सहयोग के प्रयास से विगत दो वर्ष में आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा कई बार परियोजनाओं के साथ बैठक कर विस्थापितों की समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास किया गया जिसमें एनसीएल, हिण्डाल्को इण्डस्ट्रीज रेनुसागर परियोजना में कुछ विस्थापितों को सेवायोजन दिलाया जा सका।परन्तु अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापितों के मामले में कोई सार्थक पहल एवं कार्यवाही न हो पाने के कारण सहयोग द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में सिविल मिस.रिटपिटिशन (जनहित याचिका) संख्या 26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी जिस पर 14/05/2009 को मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवायी करते हुए अपने संक्षिप्त आदेश में याचिका को खारिज कर दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को सहयोग द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (सिविल) सी.सी. न. 14744/2009, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल कर चुनौती दी गयी। माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली खण्ड पीठ ने मामले की सुनवायी करते हुए 09 अक्तूबर, 2009 को उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस प्रकरण से सम्बन्धित बिन्दुवार तथ्य निम्नवत हैं-

1.    उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा 1978 से 1984 के बीच 3130 मे.वा. की प्रस्तावित अनपरा तापीय विद्युत परियोजना के लिए कुल 5076 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें कुल सात ग्राम सभा के किसानों की 3106.487 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल 1307 परिवार प्रभावित हुए जिनमें से 80 प्रतिशत लोगों की 100 प्रतिशत भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण से सर्वाधिक प्रभावित (80 प्रतिशत) अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग रहे तथा परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण में 898 लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित हुए।

2.    उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट 1948 की धारा 79 (सी) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए उ.प्र.रा.वि.परिषद अपने अधीन सभी कार्यालयों/परियोजनाओं/कार्यस्थलों एवं विद्युत उपसंस्थानों हेतु भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय-1987 बनाया गया। जिस नियमावली के आधार पर अनपरा परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवारों  के सदस्यों में से 304 लोगों का स्थायी सेवायोजन 1994 तक प्रदान किया गया। शेष बचे विस्थापितों को परियोजना के विस्तार होने एवं सेवायोजन के लिए रिक्तियों की उपलब्धता होने पर सेवायोजित करने के बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी। महत्वपूर्ण है कि जिन लोगों को परियोजना द्वारा भूमि के बदले सेवायोजन दिया गया उसमें भी आदिवासियों/वनवासियों/अनुसूचित जाति/जनजाति परिवार के सदस्यों को अपेक्षाकृत कम लोगों को सेवायोजन दिया गया तथा सामान्य एवं पिछड़ी जाति/अन्य पिछड़ी जाति के प्रभावी लोगों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जबकि सामान्य एवं पिछड़ी जाति के लोगों की अपेक्षा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग अधिक प्रभावित हुए तथा उनके समक्ष आजीविका के अन्य विकल्प नहीं मौजूद थे परन्तु तत्कालीन अधिकारियों द्वारा भेदभाव करते हुए उन्हे लाभ से वंचित रखा गया।

3.    संशोधन का हवाला देकर प्रबन्धन द्वारा शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने की बात कही गयी है। परन्तु प्रबन्धन द्वारा जिस संशोधन का हवाला दिया जा रहा है वह उन व्यक्तियों पर प्रभावी होगा जिनकी भूमि अध्यापित हेतु विज्ञप्ति उक्त नियमावली में संशोधन के प्रभावी होने के बाद अधिग्रहण हेतु विज्ञापित की गयी हो। अनपरा तापीय परियोजना के लिए भूमि अध्याप्ति हेतु विज्ञप्ति 1978 से शुरू हुई तथा भूमि अधिग्रहण की समस्त प्रक्रियाएं 1984 तक पूरी कर ली गयी। यहां उल्लेखनीय है कि परियोजना में 1989 से 1994 तक विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जो भूमि अध्याप्ति की विज्ञप्ति के सात वर्ष पश्चात दिया गया हैै जो स्वतः स्पष्ट करता है कि उक्त संशोधन अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन देने में प्रभावी नहीं है।

4.    वर्ष 1997-1998-1999 में कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम ब तापीय परियोजना, अनपरा द्वारा इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को दिये गये जिसमें यह कहा गया कि आपकी भूमि अनपरा तापीय परियोजना परिक्षेत्र में पड़ रही है इसलिए जब भी परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरिष्ठता क्रम में नौकरी दी जायेगी।

5.    वर्ष 2002 में विस्थापितों द्वारा अपने सेवायोजन की मांग को लेकर किये गये आन्दोलन के पश्चात तत्कालीन आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा प्रकरण पर बैठक की गयी तथा बैठक के उपरान्त अपनी रिपोर्ट श्री आर.बी. भास्कर प्रमुख सचिव, ( ऊर्जा) उ.प्र. शासन, लखनऊ को भेजी जिसमें 169 परिवारों को सेवायोजन के बदले एक मुश्त एक लाख की राशि तथा जिनके मकान प्रभावित हुए हैं एवं जिनकी एक एकड़ से कम भूमि अधिग्रहित की गयी है उन्हे मानवीय दृष्टिकोण से 25 हजार रूपया 55 परिवारों को दिये जाने की बात कही गयी। आयुक्त द्वारा विस्थापित, प्रबन्धन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच करायी गयी बैठक में भी प्रबन्धन द्वारा विस्थापित परिवारों के सेवायोजन से सम्बन्धित प्राविधानों में किसी प्रकार के संशोधन की बात का उल्लेख नहीं किया न ही आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा भेजे गयी शासन को अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की उक्त नियमावली में संशोधन की बात कही गयी।

6.    वर्ष 2007 में वर्तमान सरकार द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन हेतु अधिग्रहित की गयी भूमि में से लगभग 300 एकड़ भूमि निजी कम्पनी मेसर्स लेन्को अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड को 30 वर्ष के लीज अनुबन्ध पर दे दिया जो अधिग्रहण के प्राविधानों का उल्लंघन था तथा परियोजना के विस्थापितों के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए राज्य सरकार ने निजी कम्पनी को विस्थापितों को दिये जाने वाले रोजगार एवं अन्य सुविधाओं के सम्बन्ध में अनुबन्ध में किसी भी प्रकार का कोई प्राविधान नहीं रखा।

7.    अनपरा-सी एवं डी परियोजना के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों को सेवायोजन न मिलने की स्थिति में उनके द्वारा किये जा रहे आन्दोलनों केा राज्य सरकार द्वारा बल पूर्वक दबाने एवं विस्थापितों/प्रभावित परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। जबकि उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा नयी परियोजनाओं के आने पर सृजित होने वाले स्थायी रोजगार की उपलब्धता पर विस्थापितों को प्राथमिकता के आधार पर स्थायी सेवायोजन देने की बात प्रबन्धन द्वारा लिखित रूप से दी गयी थी। उ.प्र.रा.वि.परिषद (भूमि अध्यापित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय 1987 के प्राविधानों में निहित है। महत्वपूर्ण है कि जिन शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया गया उनमें से 80 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति/जनजाति के है जिनकी शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सार्वजनिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रहित में 30 वर्ष पूर्व ही अधिग्रहित की जा चुकी है। परन्तु राज्य सरकार द्वारा उनको विस्थापन के उपरान्त मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रखा है जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विस्थापितों के समक्ष जीविकोपार्जन का कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण भूखों मरने की स्थिति है, सरकार की उपेक्षा के कारण विस्थापितों में गहराता आक्रोश निश्चित ही गम्भीर चिन्ता का विषय है। क्षे़त्र में विस्थापितों का आन्दोलन कभी भी हिंसक हो सकता है जिससे इस उद्योग बाहुल्य जनपद की विधि व्यवस्था एवं राज्य/केन्द्र की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

8.    पंकज मिश्रा, सचिव, सहयोग (गैर सरकारी संगठन), औड़ी, अनपरा, सोनभद्र की तरफ से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका सिविल मिस.रिटपीटिशन संख्या-26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा अपने 14/05/2009 के आदेश में उक्त प्रकरण पर बिना कोई हस्तक्षेप किये बगैर न्यायालय द्वारा अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। न्यायालय के उक्त आदेश को हमारी संस्था द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती गयी है।

9.    माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एस.एल.पी.(िसविल) सी.सी.न.14744/2009, सहयोग बनाम उत्तर प्रदेश एवं अन्य में 09 अक्तूबर, 2009 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस.नरसिम्हा द्वारा विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिये जाने के सम्बन्ध में दलीलें रखने पर न्यायालय द्वारा उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है।

बड़ती जा रही है, विस्थापित परिवारों की समस्या

जनपद सोनभद्र आदिवासी/वनवासी बाहुल्य जनपद है। यहां उद्योगों के लिए पर्याप्त खनिज एवं अन्य संसाधन उपलब्ध होने के कारण कई ताप विद्युतगृह, कोयला परियोजना, सीमेण्ट परियोजना एवं अन्य औद्योगिक संस्थान स्थापित हैं। जनपद सोनभद्र स्थित विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं के लिए दशकों पूर्व यहां के स्थानीय मूल निवासियों जिसमें मुख्यतः अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति के लोगों की हजारों एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी।   

उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद द्वारा 1978 से 1984 के बीच 3130 मे.वा. की प्रस्तावित अनपरा तापीय विद्युत परियोजना के लिए कुल 5076 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी जिसमें कुल सात ग्राम सभा के किसानों की 3106.487 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिग्रहित की गयी। भूमि अधिग्रहण से कुल 1307 परिवार प्रभावित हुए जिनमें से 80 प्रतिशत लोगों की 100 प्रतिषत भूमि अधिग्रहित कर ली गयी। भूमि अधिग्रहण से सर्वाधिक प्रभावित अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग रहे तथा परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण में 898 लोगों के मकान भी प्रभावित/अधिग्रहित हुए।
   
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट 1948 की धारा 79 (सी) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए उ.प्र.रा.वि.परिषद अपने अधीन सभी कार्यालयों/परियोजनाओं/कार्यस्थलों एवं विद्युत उपसंस्थानों हेतु भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति हेतु उत्तर प्रदेष राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्याप्ति से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति) विनिमय-1987 बनाया गया। जिस नियमावली के आधार पर अनपरा परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवारों के सदस्यों में से 304 लोगों का स्थायी सेवायोजन 1994 तक प्रदान किया गया। शेष बचे विस्थापितों को परियोजना के विस्तार होने एवं सेवायोजन के लिए रिक्तियों की उपलब्धता होने पर सेवायोजित करने के बात प्रबन्धन द्वारा कही गयी।

सन 1994 तक प्रस्तावित 3130 मे.वा. में सिर्फ 1630 मे.वा. उत्पादन क्षमता वाली अनपरा-अ एवं ब परियोजना का ही निर्माण हो पाया। शेष परियोजना 2007 तक अधर में लटकी रही तथा विस्थापितों को परियोजनाओं के आने पर सेवायोजन उपलब्ध कराने की बात परियोजना द्वारा कही गयी। इसी बीच 2007 में तत्कालीन सरकार द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की गयी भूमि में से कुछ भूमि निजी कम्पनी मेसर्स लेन्को अनपरा पावर प्राइवेट लिमिटेड, अनपरा को 35 वर्ष की लीज अनुबन्ध पर 1200 मे.वा. क्षमता के विद्युतगृह निर्माण एवं संचालन के लिए दे दिया गया। अनपरा-डी परियोजना का निर्माण भी वर्तमान समय में उ.प्र.रा.वि.उ.नि. लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। परियोजनाओं के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों में अपनी स्थायी सेवायोजन की आस जगी तथा सेेवायोजन को लेकर अपनी बात विस्थापितों ने मुखर की एवं आन्दोलन किया। स्थिति गम्भीर होने पर प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद प्रबन्धन एवं विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच प्रशासन की उपस्थिति में 29.01.2008. को स्थानीय प्रशासन की उपस्थिति में वार्ता हुई जिसमें पहली बार प्रबन्धन द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद (भूमि अध्यापित) से प्रभावित सदस्य की नियुक्ति प्रथम संशोधन विनियमावली-1994 के विनिमय-4 में हुए संशोधनों का हवाला देकर शेष बचे विस्थापितों/प्रभावित परिवार के सदस्यों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने के सम्बन्ध में बैठक की कार्यवृत्त बिन्दु संख्या-2 में निम्नवत संशोधन का उल्लेख किया है-

बिन्दु संख्या-2
अनपरा परियोजना में शेष बचे विस्थापितों को समायोजित किया जाये
तथा संविदा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाये।

निगम स्तरीय नीति विषयक मामला है। भूमि अध्याप्ति नियमावली, 1987 के प्राविधानों के अधीन अर्ह विस्थापितों को सेवायोजन प्रदान किया जा चुका है तथा 169 विस्थापितों को नौकरी के एवज में रूप्या एक लाख व्यक्ति तथा 55 व्यक्ति जिनके मकान गये थे उन्हे रूपया 25000 प्रति व्यक्ति की दर से क्षतिपूर्ति मण्डलायुक्त, विन्ध्याचल के माध्यम से भुगतान करवाया जा चुका है। शेष बचे विस्थापितों को उ.प्र.रा.वि.प. (भूमि अध्याप्ति) से प्रभावित परिवार के सदस्य की नियुक्ति (प्रथम संशोधन) विनियामवली, 1994 के विनियम-4 के अधीन भूमि अध्याप्ति हेतु की गयी विज्ञप्ति के दिनांक सात वर्ष के पश्चात सेवायोजन प्रदान नहीं किया जा सकता है। समिति के सदस्यों ने इस पर प्रतिरोध व्यक्त किया तथा अनुरोध किया कि अनपरा-सी एवं डी के निर्माण के पूर्व शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन हेतु उक्त प्राविधान में संशोधन के लिए उत्पादन निगम से अनुरोध किया जाये। उक्त समस्या के निदान हेतु निगम (मु.) के सक्षम अधिकारी से विस्थापितों की वार्ता हेतु अनुरोध किया जायेगा। परियोजना प्रबन्धन द्वारा स्पष्ट किया गया कि संविदा श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का  भुगतान किया जा रहा है।

संशोधन का हवाला देकर प्रबन्धन द्वारा शेष बचे विस्थापितों के सेवायोजन की पात्रता समाप्त होने की बात कही गयी है। परन्तु प्रबन्धन द्वारा जिस संशोधन का हवाला दिया जा रहा है वह उन व्यक्तियों पर प्रभावी होगा जिनकी भूमि अध्यापित हेतु विज्ञप्ति उक्त नियमावली में संशोधन के प्रभावी होने के बाद होगा। जबकि अनपरा तापीय परियोजना के लिए भूमि अध्याप्ति हेतु विज्ञप्ति 1978 से शुरू हुई तथा भूमि अधिग्रहण की समस्त प्रक्रियाएं 1984 तक पूरी कर ली गयी। यहां उल्लेखनीय है कि परियोजना में 1989 से 1994 तक विस्थापितों को स्थायी सेवायोजन दिया गया जो भूमि अध्याप्ति की विज्ञप्ति के सात वर्ष पश्चात दिया गया हैै। जो स्वत स्पष्ट करता है कि उक्त संशोधन अनपरा तापीय परियोजना के विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन देने में प्रभावी नहीं है। सन 1997-1998-1999 में कार्यालय अधिशासी अभियन्ता, विद्युत जनपद निर्माण खण्ड-पंचम ब तापीय परियोजना, अनपरा द्वारा इस आशय के पत्र विस्थापित परिवारों के सदस्यों को दिये गये जिसमें यह कहा गया कि आपकी भूमि अनपरा तापीय परियोजना परिक्षेत्र में पड़ रही है इसलिए जब भी परियोजना में सेवायोजन किया जायेगा तो आपको परिषद के नियमानुसार वरीयता क्रम में नौकरी दी जायेगी। वर्ष 2002 में विस्थापितों द्वारा अपने सेवायोजन की मांग को लेकर किये गये आन्दोलन के पश्चात तत्कालीन आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा प्रकरण पर बैठक की गयी तथा बैठक के उपरान्त अपनी रिपोर्ट श्री आर.बी. भास्कर प्रमुख सचिव, ( ऊर्जा) उ.प्र. शासन, लखनऊ को भेजी जिसमें 169 परिवारों को सेवायोजन के बदले एक मुश्त एक लाख की राशि तथा जिनके मकान प्रभावित हुए हैं एवं जिनकी एक एकड़ से कम भूमि अधिग्रहित की गयी है उन्हे मानवीय दृष्टिकोण से 25 हजार रूपया 55 परिवारों को दिये जाने की बात कही गयी। आयुक्त द्वारा विस्थापित, प्रबन्धन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच करायी गयी बैठक में भी प्रबन्धन द्वारा विस्थापित परिवारों के सेवायोजन से सम्बन्धित प्राविधानों में किसी प्रकार के संशोधन की बात का उल्लेख नहीं किया न ही आयुक्त, विन्ध्याचल मण्डल द्वारा भेजे गयी शासन को अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की उक्त नियमावली में संशोधन की बात कही गयी। परन्तु अनपरा-सी एवं डी परियोजना के निर्माण शुरू होने के बाद विस्थापितों को सेवायोजन न देकर राज्य सरकार द्वारा बल पूर्वक विस्थापितों/प्रभावित परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि जिन शेष बचे विस्थापित/प्रभावित परिवार के सदस्यों को स्थायी सेवायोजन नहीं दिया गया उनमें से 80 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति/जनजाति के है जिनकी शत-प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सार्वजनिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रहित में 30 वर्ष पूर्व ही अधिग्रहित की जा चुकी है। परन्तु राज्य सरकार द्वारा उनको विस्थापन के उपरान्त मिलने वाले सुविधाओं से वंचित रखा है जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विस्थापितों के समक्ष जीविकोपार्जन का कोई पर्याप्त आधार न होने के कारण भूखों मरने की स्थिति है, सरकार की उपेक्षा के कारण विस्थापितों में गहराता आक्रोश निश्चित ही गम्भीर चिन्ता का विषय है। क्षे़त्र में विस्थापितों का आन्दोलन कभी भी हिंसक हो सकता है जिससे इस उद्योग बाहुल्य जनपद की विधि व्यवस्था एवं राज्य/केन्द्र की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

पंकज कुमार मिश्रा द्वारा सचिव, सहयोग (गैर सरकारी संगठन), औड़ी, अनपरा, सोनभद्र की तरफ से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका सिविल मिस.रिटपीटिशन संख्या-26342/2008, सहयोग बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार एवं अन्य दाखिल की गयी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा अपने 14/05/2009 के आदेश में उक्त प्रकरण पर बिना कोई हस्तक्षेप किये बगैर न्यायालय द्वारा अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। न्यायालय के उक्त आदेश को हमारी संस्था द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी जा रही है।
   
सोनभद्र में इन आदिवासियों/अनुसूचित जाति/जनजाति के विस्थापित परिवार के मौलिक अधिकारों के हनन की बात को विस्थापितों द्वारा प्रखरता से उठाये जाने से सोनभद्र में एक राज्यव्यापी आन्दोलन के दिशा में बढ़ने में बल मिल रहा है। जिससे सोनभद्र में आदिवासी/अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों की हक की लड़ाई को मजबूती मिलेगी।

किलर रोड!

वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर स्थित जनपद सोनभद्र में सुकृत से शक्तिनगर (लगभग 145 किमी) की दुर्घटना बाहुल्य सड़क पर दुर्घटनाओं के कारण एवं उसके समाधान के सन्दर्भ में बिन्दुआर विवरण-
 

 1.    जनपद सोनभद्र में स्थित 145 किलोमीटर की सड़क जो वाराणसी-शक्तिनगर मुख्यमार्ग पर स्थित है। उस सड़क का सर्वाधिक दुर्घटना बाहुल्य होने का मुख्य कारण जनपद की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण घाटी, वनों आदि से सड़क के गुजरने के कारण सड़क का तीव्र घुमावदार एवं पहाड़/घाटियों के कारण सड़क का ऊंचा-नीचा होना है। सामान्य सड़कों से पहाड़ों और घाटियों के बीच पड़ने वाली सड़कों पर सड़क सुरक्षा का जोखिम पांच गुना ज्यादा होता है। 

2.    वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर सोनभद्र उत्तर-प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में स्थित खनिज एवं खनिजों के अभिवहन पर आधारित खनन उद्योग, कोयला खदानें, बिजली परियोजनाएं एवं अन्य औद्योगिक संस्थाओं की बाहुल्यता के कारण सड़क पर भारी मालवाहकों का अत्यधिक दबाव बना रहता है तथा दिन-प्रतिदिन भारी मालवाहकों का दबाव बढ़ता जा रहा है। मालवाहकों/जनपरिवहन वाहनों/छोटे वाहनोें का अत्यधिक दबाव सड़क पर हेै। अपेक्षा के कम चौड़ी सड़क होने के कारण तथा सड़क के बीच विभाजक न होने के कारण दुर्घटनाओं की बाहुल्यता है। आने वाले पांच वर्षों में उक्त क्षेत्रों में हो रहे औद्योगिक विकास से सड़क पर वर्तमान से तीन गुना ज्यादा भारी/हल्के वाहनों का दबाव बढ़ेगा जिस पर सड़क सुरक्षा के दृष्टिकोण से नियन्त्रण रखने के लिए पर्याप्त आवश्यक कार्यवाही न होने की स्थिति में सड़क दुर्घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि होगी।

3.    वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग मुख्यतः जनपद सोनभद्र में 145 किलोमीटर है। जो सर्वाधिक दुर्घटना बाहुल्य सड़क है। राज्य सरकार के परिवहन, खनन, पुलिस, वन आदि विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार सड़क दुर्घटनाओं में इजाफा कर रहा है। जिला प्रशासन सड़क सुरक्षा के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त होना चाहता है। ओवर लोड वाहनों को सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण माना जाता है सड़क सुरक्षा से जुड़े एजेन्सियों द्वारा इस बात की पुष्टि की गयी है ओवर लोड वाहनो को सड़क पर अभिवहन करने के लिए अतिरिक्त स्थान की आवश्यकता पड़ती है तथा अनियन्त्रित होने के कारण सड़क के अन्य  उपयोगकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ाती है। जनपद की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ऐसे वाहनों का वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर सन्तुलन/नियन्त्रण का न होना गम्भीर विषय है क्योंकि अधिक घुमावदार/उच्च व्रकताध्तीव्र ढलान एवं चढाईयों भरी भौगोलिक परिस्थतियों से गुजरने वाले वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर ओवर लोड असन्तुलित/अनियन्त्रित माल वाहकों का अभिवहन सड़क दुर्घटनाओं की बाहुल्यता का प्रमुख कारण है। परन्तु मालवाहकों के ओवर लोड पर अंकुश लगाने की जगह राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा खुद ओवर लोड की वैद्यानिक पुष्टि की जा रही है। परिवहन विभाग जिसकी मूल जिम्मेवारी मालवाहकों का ओवरलोड रोकना है उसके वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार परिवहन विभाग ने चेकपोस्ट बैरियरों पर अधिकारियों/कर्मचारियों को ओवरलोड वाहनों पर कार्रवाई करने का आधिकार ही नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण मालवाहकों की ओवरलोडिंग रोकना उत्तर प्रदेश में असम्भव है। परिवहन एवं सम्बन्धित विभाग द्वारा परिवहन माफियाओं के प्रभाव में आकर की गयी उनकी भ्रष्ट कार्यप्रणाली से सड़क दुर्घटनाओं में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। परिवहन विभाग एवं पुलिस के लिए ओवर लोड माल वाहक सिर्फ करोड़ो रूपये के अवैध आय का स्त्रोत बनकर रह गयी है जिस कारण कार्यवाही की जगह विभाग सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर रहा है। 

4.    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल रिट पिटीशन संख्या-136/2003, परमजीत भसीन एवं बनाम यूनियन आफ इण्डिया एवं अन्य में 9 नवम्बर, 2005 को पारित आदेश के क्रम में माह वाहकों की ओवर लोड़िग के समस्त प्राविधान समाप्त कर दिये जाने के बाद उत्तर-प्रदेश शासन द्वारा समस्त विभागों को न्यायालय के आदेशानुसार कार्यवाही सुनिश्चित करने हेतु माल वाहकों की ओवर लोड़िग रोकने के आवश्यक दिशा-निर्देश दिये गये परन्तु जनपद सोनभद्र में जोकि मुख्यतः प्रतिदिन लगभग पांच हजार भारी माल वाहकों द्वारा खनिजों/उपखनिजों (गिट्टी, बालू, मोरंग, कोयला) आदि का अभिवहन किया जाता है तथा पूरे उत्तर-प्रदेश में इसकी आपूर्ति की जाती है। खनिज विभाग, सोनभद्र द्वारा माल वाहकों के अभिवहन क्षमता से तीन से चार गुना अधिक का खनिज अभिवहन प्रपत्र (एमएम-11) जारी किया जा रहा है, वन विभाग एवं व्यापार कर विभाग द्वारा ऐसे माल वाहकों से अभिवहन शुल्क एवं कर लेकर उसकी वैधानिक पुष्टि की जा रही है। जनपद में बोल्डर, गिट्टी, बालू, मोरंग आदि लादकर प्रतिदिन लगभग पांच हजार ट्रकों द्वारा विभिन्न विभागों के संरक्षण में बेधड़क ओवर लोड़िग की जा रही है तथा परिवहन विभाग द्वारा सिर्फ कागजों पर कार्यवाही कर खानापूर्ति की जा रही है जोकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना के साथ-साथ गम्भीर भ्रष्टाचार का प्रकरण है। 

5.    जनपद सोनभद्र स्थित वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर माल वाहकों की ओवर लोड़िग एवं सड़कों का पर्याप्त अनुरक्षण न होने के कारण सड़क पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है तथा माल वाहकों की ओवर लोड़िग पर प्रभावी अंकुश न होने के कारण प्रतिदिन दिन ओवर लोड़िग एवं सड़कों के खराब होने के कारण माल वाहक सड़क पर ही खराब हो जाते हैं जिस कारण वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग डाला से सुकृत के बीच प्रतिदिन घण्टो जाम रहता है। उक्त मार्ग के जाम होने के कारण कई गम्भीर रूप से बीमार व्यक्ति जिन्हे चिकित्सा हेतु वाराणसी ले जाया जाता है उन्हे घण्टो जाम में फंसे रहने के कारण कई बार उनकी असमायिक मृत्यु हो जाती है या स्थिति अत्यन्त गम्भीर हो जाती है। पुलिस द्वारा हस्तक्षेप पर सड़क जाम खुलवाने की स्थिति में वाहनों को तेज गति से अपने गन्तव्य तक पहुंचाने का प्रयास चालकों द्वारा किया जाता है जिससे सड़क दुर्घटना में वृद्धि होती है। 

6.    जनपद सोनभद्र में खनिजों/उप खनिजों एवं वनोपजों/अन्य वनोपजों का अवैध खनन एवं अभिवहन संगठित अपराध का रूप ले चुका है। अवैध खनन एवं परिवहन में राज्य सरकार के प्रभावी लोगों एवं माफियाओं के हस्तक्षेप के कारण प्रभावी कार्यवाही करने में राज्य सरकार असक्षम है। विगत वर्ष से राज्य सरकार द्वारा व्यापारकर, वन विभाग, पाषण विभाग एवं अन्य विभागों द्वारा स्थापित खनिजों/उप खनिजों एवं वनोपजों/अन्य वनोपजों के अभिवहन पर कर एवं अभिवहन शुल्क तथा लदे हुए वस्तुओं की जांच के लिए बनाये गये चेक पोस्ट बैरियरों को समाप्त कर दिये जाने के बाद सरकार का नियन्त्रण अवैध एवं खनन-परिवहन पर शून्य हो गया है। जिससे जनपद में अवैध खनन एवं परिवहन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है जिसका सीधा असर वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग के सड़क सुरक्षा पर पड़ा है तथा सड़क दुर्घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है एवं राज्य सरकार को करोड़ों रूपये के राजस्व की क्षति पहुंची है।
7.    जनपद सोनभद्र मे विगत वर्ष से राज्य सरकार द्वारा वन चेक पोस्ट को समाप्त कर दिये जाने के कारण वनोपजो/अन्य वनोपजो के अवैध अभिवहन पर वन विभाग का नियंत्रण समाप्त हो गया है तथा वन अधिनियम-1927, वन संरक्षन अधिनियम 1980 एवं उत्तर प्रदेश इमारती लकडी एवं अन्य वनोपज अभिवहन नियमावली-1978 का प्रभावी न हो पाना वन सम्पदाओ के साथ-साथ सडक सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ा रहा है।
8.    जनपद सोनभद्र में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग की 145 किमी सड़क मिर्जापुर वन प्रभाग, कैमूर वन्य जीव वन प्रभाग, सोनभद्र वन प्रभाग, ओबरा वन प्रभाग एवं रेनुकूट वन प्रभाग में स्थित है उत्तर प्रदेश इमारती लकडी एवं अन्य वनोपज अभिवहन नियमावली-1978 की धारा 19 जिसके तहत वनोपजों/अन्य वनोपजों का अभिवहन सूर्यास्त के बाद एवं सूर्योदय के पूर्व बिना प्रभागीय वनाधिकारी की अनुमति के प्रतिबन्धित है परन्तु वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण उक्त नियमावली सिर्फ अवैध आय का स्त्रोत बनकर रह गयी है तथा मालवाहकों द्वारा सूर्यास्त के बाद एवं सूर्याेदय के पूर्व विभागीय संरक्षण में अवैध रूप से वनोपजों/अन्य वनोपजों का अभिवहन किया जा रहा है जिससे वन सम्पदाओं के अवैध अभिवहन के साथ-साथ सड़क दुर्घटनाओं में भी अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो रही है।
9.    जनपद सोनभद्र (उत्तर-प्रदेश) एवं सीमावर्ती राज्यों में स्थापित विद्युत परियोजनाओं से उत्सर्जित होने वाली लाखों टन राख को माल वाहकों पर लादकर विभिन्न स्थानों के लिए वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग से अभिवहन किया जाता है। सरकारी एवं निजी विद्युतगृहों द्वारा अपने प्रतिष्ठान से माल वाहकों की भार क्षमता से तीन से चार गुना अधिक राख दिया जाता है जिस कारण मालवाहकों की ओवर लोड़िग के कारण वैसे राख लदे माल वाहक सुगमता पूर्वक वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग के चढ़ाईयों एवं घाटियों पर आसानी से अभिवहन नहीं कर पाते तथा उनके द्वारा टनो-टन राख सड़क पर ही गिराकर माल वाहक को अभिवहन अनुकूल बनाया जाता है। जिन मालवाहकों से राखों का अभिवहन किया जा रहा है उनकी बनावट एवं ओवर लोड़िग के कारण वे सर्वाधिक दुर्घटना वाली मालवाहकों के रूप में उन्हे जाना जाता है। उनके द्वारा सड़क पर ही हजारों टन राख गिरा दिया जाता है जिससे सड़क पर अभिवहन करने वाले अन्य वाहनों के लिए भी जोखिम बढ़ रहा है गम्भीर प्रदूषण संकट के साथ-साथ दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है।

10.    जनपद सोनभद्र (उत्तर-प्रदेश) एवं सीमावर्ती राज्यों में स्थापित सरकारी एवं निजी औद्योगिक संस्थाओं द्वारा अपने यहां ओवर लोड मालवाहकों से माल स्वीकार करने एवं माल वाहकों को ओवर लोड़ माल देने के कारण ओवर लोड़िग को बढ़ावा मिल रहा है।विभिन्न औद्योगिक संस्थाओं में परिवहनकर्ताओं द्वारा अपने ड्राइवरों से मानको के विरूद्ध कार्य लिये जा रहे है तथा उन्हे अधिक से अधिक चक्कर लगाने के लिए प्रेरित कर उन्हे आर्थिक प्रलोभन दिया जाता है जिसका असर सड़क सुरक्षा पर पड़ रहा है एवं सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

 

11.    जनपद सोनभद्र में स्थित क्रशर एवं पत्थर के खदानों को वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर ही खनन एवं क्रशर उद्योग स्थापित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा लाइसेन्स निर्गत किये गये हैं। क्रशर एवं पत्थर के खदानों में प्रदूषण नियन्त्रण के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। बिल्ली-डाला खनन क्षेत्र में पड़ने वाली लगभग 20 किलोमीटर की वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर क्रशरों एवं खदानों से निकलने वाले राख एवं अन्य प्रदूषण के कारण पूरा क्षेत्र धुन्ध से घिरा रहता है दिन में ही सड़क पर आसानी से पैदल नहीं चला जा सकता है। सड़कों पर आच्छादित राख एवं धुन्ध के कारण वाहनों का नियन्त्रण/सन्तुलन प्रभावित रहता है जिसके कारण उक्त क्षेत्र में पड़ने वाले मार्ग जनपद की सर्वाधिक दुर्घटना बाहुल्य सड़क है तथा उक्त क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर क्रशर एवं खदानों से उड़ने वाली राख तथा राज मार्ग पर उड़ने वाली धूल का असर उनके फेफड़ों पर पड़ रहा है जिसके कारण सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2009 से अक्तूबर 15, 2009 तक उक्त चिन्हित क्षेत्र में ही 950 क्षय रोगियों को चिन्हित किया गया है जोकि उत्तर-प्रदेश में सर्वाधिक हैं।
सड़क दुघर्टनाओं के रोक थाम के उपायः-
1.    वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर जनपद सोनभद्र मे सुकृत से शक्तिनगर तक अविलम्ब समयवध फोरलेन सडक के निर्माण के लिए राज्य सरकार एवं लगभग 145 किलोमीटर की सडक पर पच्चास किलोमीटर हाथीनाला-औडीमोड प्रस्तावित एनएच 75 ई, रीवा-रांची मार्ग के अविलम्ब निर्माण के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (पोत परिवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय), जी-5 एवं 6, सेक्टर-10, द्वारिका, नई दिल्ली-110075 को आदेशित किया जाय।
2.    वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर सडक दुर्घटनाओ के  रोकथाम के लिए एक उच्च स्तरीय सडक सुरक्षा समिती बनाइ जाए। जिसमे सहयोग (एनजीओ) को भी सदस्य के रूप मे रखा जाए तथा सडक सुरक्षा के सन्दर्भ मे दिये गये सुझावों एवं कि गई कार्यवाहीयो की समीक्षा न्यायालय द्वारा कराई जाए।
3.    सडक सुरक्षा के लिए जनपद सोनभद्र मे परिवहन, पुलिस, खनिज, वन, सरकारी एवं निजी संस्थानो की जिम्मेवारी सुनिश्चत कि जाए। तथा भ्रष्टाचार मे लिप्त विभागीय अधिकारयो के विरूद्ध कठोर कार्यवाही कि जाए।
4.    जनपद सोनभद्र मे खनिजो/उपखनिजो के अवैध खनन एवं परिवहन पर स्थाई एवं प्रभावी अंकुश लगाया जाय।
5.    जनपद सोनभद्र मे ट्रामा सेंटर एवं ब्लड बेैंक की स्थापना की जाय जिससे सडक दुर्घटनाओं मे गम्भीर रूप से घायलो को अविलम्ब चिकित्सिय सुविधा उपलब्ध करायी जा सके।
6.    जनपद सोनभद्र मे वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग के दुर्घटना बाहुल्य सड़क पर छोटे वाहनो का सड़क पर दबाव कम करने के लिये अविलम्ब औड़ी-खजुरा-ओबरा मार्ग बनाई जाय। 
पंकज मिश्रा 
नोट :- सोनभद्र की "किलर रोड" पर सड़क दुर्घटनाओ को रोकने के लिए सुझाए गए ये उपाय पंकज मिश्रा, सचिव "सहयोग" (गैर सरकारी संस्था) जी के है.