सोमवार, 1 सितंबर 2014

ठगा महसूस कर रहे विस्थापित

तीन दशक से मुआवजे की बाट जो रहे अनपरा परियोजना के विस्थापित आज भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। परियोजना के निर्माण के लिए अपना सब कुछ गंवा देने वाले विस्थापित परिवारों की दशा मुआवजा न मिलने से अत्यंत दयनीय हो गई है। इनके परिवार के लोगों का भी बुरा हाल हो गया है। ऐसा ही एक परिवार जो मुआवजे की आस में आज भी दफ्तरों का चक्कर लगा रहा है। जागरण से सोमवार को बातचीत में डिबुलगंज निवासी स्व. चतुर्गन पनिका के पुत्र विनोद पनिका ने बताया कि तीन दशक बाद जब मुआवजा मिलने की आस जगी तो मैंने भी अपने पिता के नाम की जमीन का पट्टा निकलवाकर मुआवजे के लिए निर्धारित फार्म भरकर कंपनी में जमा कर दिया लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उन्हें मुआवजा नहीं मिला।

विनोद के अनुसार उनके पिता के राममिलन, तारा, सुमित्रा देवी, मीना देवी सहित पांच पुत्र-पुत्रियां हैं, जो आज किसी तरह मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। उनके पिता के नाम से सवा तीन बीघा जमीन थी जो परियोजना निर्माण के लिए अधिग्रहीत कर ली गई थी। उन्हें जमीन के बदले सिर्फ प्लाट ही मिल पाया है, जिसमें वह सभी भाई- बहनों के साथ गुजर बसर कर रहे हैं। विनोद ने कहा कि जो भी जमीन थी वह परियोजना में चली गई, अब तो जीविकोपार्जन का भी सहारा नहीं रहा। आलम यह है कि विस्थापित के नाम से परियोजनाओं में कहीं संविदा पर भी नौकरी नहीं मिल रही है, जिससे स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि कई लोगों को मुआवजा मिलने से एक बार फिर आस जगी है। इसके लिए वे प्रयास कर रहे हैं। मिला तो ठीक, नहीं तो जीवन में व्याप्त कठिनाइयों की अपेक्षा मौत ही अच्छी है।

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