सोमवार, 1 सितंबर 2014

जेपी समूह के हाथों की कठपुतली बना यूपी का पंचम तल

written by Shiv Das 

डाला में जेपी समूह के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग।

वे जनता के सेवक हैं लेकिन हुक्म बजाते हैं उद्योग घरानों का। जेपी समूह के संबंध में उत्तर प्रदेश की खाकी, खादी और लालफीताशाही की कार्यशैलियों से तो यही पता चलता है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव (अब सहायक अभिलेख अधिकारी, मिर्जापुर) ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) नामक निजी कंपनी के पक्ष में वन विभाग की 1083 हेक्टेयर (करीब 2483 बीघा) से ज्यादा संरक्षित वन भूमि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ निकाल दी लेकिन उनके खिलाफ सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टी के नुमाइंदों ने कोई कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं, उनके कारनामों को अमलीजामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार ने अधिसूचना भी जारी कर दी। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण उनके मंसूबे अभी भी कानूनी दांवपेच में उलझे पड़े हैं लेकिन संरक्षित वन भूमि पर कब्जा करने का जेपी समूह का सिलसिला रुका नहीं है। वह जिला प्रशासन के सहयोग से चोरी-छिपे अब भी जारी है। ऐसा हो भी क्यों नहीं? जब पंचम तल में विराजमान सूबे की सरकार के खास नुमाइंदे उसके इस मंसूबे को अंजाम देने में जुटे हैं। इनमें कई तो पूर्व की बसपा सरकार में जेपी समूह के कारनामों को संरक्षण देने वाले भी हैं। इनमें से एक हैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विशेष सचिव पनधारी यादव। यादव ने सोनभद्र जिले के जिलाधिकारी के रूप में जेपी समूह को संरक्षित वन भूमि और ग्राम सभा की विवादित जमीन पर जमकर कब्जा कराया। इस कार्य में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को भी नजर अंदाज कर दिया। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान और विंध्याचल मंडलआयुक्त की अलग-अलग जांच रिपोर्टों में जब मामला सामने आया तो राज्य सरकार ने जेएएल के पक्ष में संरक्षित वन क्षेत्र से निष्कासित जमीन को कानूनीजामा पहनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी । साथ ही उसने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन की आड़ में जेपी समूह को संरक्षित वन क्षेत्र और ग्राम सभा की हजारों एकड़ भूमि पर कब्जा करने की छूट दे दी। निजी कंपनी के इस कार्य में सोनभद्र और मिर्जापुर जिला प्रशासन के नुमाइंदों ने जमकर सहयोग किया। 

उन्होंने सोनभद्र के डाला स्थित मलिन बस्ती के बाशिंदों को बेघर करने के लिए केवल लाठियां ही नहीं भांजी बल्कि उन्हें कालकोठरी की हवा खिलाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मिर्जापुर के चुनार में जेपी समूह के खिलाफ बोलने वाले को तो कई दिनों तक जेल की सलाखों के पीछे रहना प़ड़ा था। आदिवासी बहूल सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में जेपी के आतंक का खौफ इस कदर है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अथवा राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक पार्टियों का नुमाइंदा उसके खिलाफ बोलने की कोशिश तक नहीं करता।

अगर सोनभद्र जिला प्रशासन के कुछ नुमाइंदों की कारगुजारियों पर गौर करें तो उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के निर्देशों पर अमल करना मुनासिब नहीं समझा और जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की कारगुजारियों को ही सही ठहराते रहे। जबकि विंध्याचल के तत्कालीन मंडलायुक्त सत्यजीत ठाकुर, अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, संयुक्त विकास आयुक्त एस.एस. मिश्रा और विंध्याचल डिविजन के वन संरक्षक आर.एन. पांडे ने अपनी संयुक्त जांच रिपोर्ट (अंतरिम) में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड को हस्तांतरित की गई संरक्षित वन भूमि के लिए वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव को दोषी ठहराया है। संयुक्त जांच टीम ने श्रीवास्तव के खिलाफ दंडनात्मक और आपराधिक कार्रवाई करने की संस्तुति भी की है। 

मामला उत्तर प्रदेश वन विभाग से संबंधित होने की वजह से विंध्याचल मंडल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) जीडी आर्य ने 27 नवंबर, 2008 को विंध्याचल डिविजन के मुख्य वन संरक्षक को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने मामले में कार्रवाई करने की बात कही थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र पर गौर करें तो तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 को टीएन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में साफ कहा है कि स्वामित्व की परवाह किए बिना संरक्षित वन क्षेत्र का स्वरूप नहीं बदला जा सकता, 
"The Forest Conservation Act, 1980 was enacted with a view to check further deforestation which ultimately results in ecological imbalance; and therefore, the provisions made therein for the conservation of forests and fore matters connected therewith, must apply to all forests irrespective of the nature of ownership or classification thereof. The word "forest: must be understood according to its dictionary meaning. This description cover all statutorily recognised forests, whether designated as reserved, protected or otherwise for the purpose of Section 2(i) of the Forest Conservation Act. The term "forest land", occurring in Section 2, will not only include "forest" as understood in the dictionary sense, but also any area recorded as forest in the Government record irrespective of the ownership."
तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गांवों में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा है, 'केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरंत जंगल,झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।' 

वाईके सिंह चौहान के पत्र पर गौर करें तो उस समय जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड कंपनी वन (संरक्षण) अधिनियम-1980 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए संरक्षित वन भूमि पर गैर-कानूनी ढंग से भवन और सड़क निर्माण कर रही थी। इसके अलावा वह खनन कार्यों को भी अंजाम दे रही थी। चौहान ने पत्र में विवादित भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करने, वीके श्रीवास्तव की वन बंदोबस्त प्रक्रिया को निरस्त करने और उनके खिलाफ विभागीय अथवा आपराधिक कार्रवाई करने तथा संरक्षित वन क्षेत्र से निष्कासित 1480.06 हेक्टेयर भूमि के संबंध में उत्तर प्रदेश वन विभाग की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना को निरस्त करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध सीईसी से किया था। 

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी ने भी 27 मार्च, 2009 को उत्तर प्रदेश वन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव परमेश्वर अय्यर को पत्र लिखकर इस मामले से अवगत कराया था। साथ ही उन्होंने संरक्षित वन भूमि पर जारी गैर-वानिकी कार्य को रोकने, वीके श्रीवास्तव की वन बंदोबस्त प्रक्रिया को निरस्त करने और विंध्याचल मंडल के आयुक्त की संस्तुतियों के अनुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। जैदी ने मामले पर राज्य सरकार की टिप्पणी और कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी थी लेकिन राज्य सरकार की ओर से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

उधर, जेएएल संरक्षित वन क्षेत्र और ग्राम सभा की जमीनों पर जबरदस्ती कब्जा कर रही थी। उसके इस कार्य में जिला प्रशासन जोर-शोर से मदद कर रहा था। जेपी समूह के गैरकानूनी कब्जे की शिकायत स्थानीय लोगों ने सोनभद्र के तत्कालीन जिलाधिकारी पनधारी यादव (अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विशेष सचिव) और राबर्ट्सगंज (सदर) तहसील के तत्कालीन उपजिलाधिकारी अंजनी कुमार सिंह से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि, डाला स्थित मलीन बस्ती के बाशिंदों को पुलिस और जेपी समूह के कारिंदों की लाठियां खानी पड़ीं। इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने जेपी समूह और जिला प्रशासन की सांठगांठ के खिलाफ सौ से ज्यादा दिनों तक क्रमिक अनशन किया लेकिन जिला प्रशासन के नुमाइंदों की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

चंदौली जनपद के नौगढ़ विकासखंड अंतर्गत शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह ने 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक शिकायती पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में संरक्षित वन भूमि पर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माण कार्य की जांच कराने और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर आरके दास ने बलराम सिंह के पत्र को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के सचिव के पास भेज दिया और मामले में जांच रिपोर्ट प्रेषित करने का निर्देश दिया। मंत्रालय के महानिदेशक (वन) ने मामले की जांच का आदेश देते हुए इसे लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी के पास भेज दिया, जिन्होंने जांच की जिम्मेदारी वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान को सौंपी। वाईके सिंह चौहान ने 26 मई, 2010 को प्रभागीय वनाधिकारी, ओबरा एसपी चौरसिया, वन क्षेत्राधिकारी बीडी सिंह, जेएएल के उपाध्यक्ष वीके शर्मा और प्रबंधक सुधीर मिश्रा, शिकायतकर्ता बलराम सिंह, चौधरी यशवंत सिंह और अशोक कुमार के साथ कोटा वन क्षेत्र का निरीक्षण किया। 

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान ने 2010 में 1 जून को उत्तर प्रदेश वन विभाग के ओबरा डिविजन के तत्कालीन प्रभारी वनाधिकारी एसपी चौरसिया और जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा को पत्र लिखकर कोटा गांव स्थित संरक्षित वन भूमि पर जेपी सुपर सीमेंट प्लांट के गैर-कानूनी निर्माण कार्य को रोकने का निर्देश दिया, लेकिन निर्माण कार्य नहीं रुका। वाईके सिंह चौहान ने 4 जून को निष्काषित वन भूमि के संबंध में ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया, सोनभद्र वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी और जेएएल के उपाध्यक्ष वीके शर्मा को पत्र लिखकर कुछ दस्तावेज मांगे लेकिन उन्होंने दस्तावेज मुहैया नहीं कराए। बाद में मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी को 10 जून को उत्तर प्रदेश वन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव चंचल तिवारी को पत्र लिखकर कोटा गांव स्थित संरक्षित वन भूमि पर जेपी सुपर सीमेंट प्लांट के गैर-कानूनी निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश देना पड़ा, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदों की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया और जेएएल का निर्माण कार्य जारी रहा। 

जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा ने 23 जून को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (मध्य क्षेत्र) के वन संरक्षक को पत्र लिखकर अपनी सफाई दी। उसमें उन्होंने दावा किया कि विवादित भूमि (प्लॉट संख्या-3200) यूपीएससीसीएल की फ्री होल्ड भूमि है और वह संरक्षित वन क्षेत्र के तहत नहीं आती है। उन्होंने यह भी दावा किया कि विवादित जमीन पर कोई गैर-कानूनी निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। 

अगर अजय शर्मा के दावों को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने साफ खारिज कर दिया है। मंत्रालय ने इस संबंध में वन बंदोबस्त अधिकारी, ओबरा के 16 अप्रैल,1992 के आदेश का हवाला दिया है, जिससे साफ है कि प्लांट संख्या-3200 की वन बंदोबस्त प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत पूरी हो चुकी थी और वह भूमि संरक्षित वन भूमि घोषित हो चुकी है। उस भूमि के प्रस्ताव को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग के पास भेजा गया था। अजय शर्मा अपने पत्र में संरक्षित वन भूमि पर यूपीसीसीएल के खनन पट्टे को भी फ्री होल्ड भूमि होने का दावा करते हैं जबकि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का दावा है कि संरक्षित वन भूमि कंपनी को पट्टे पर दी गई थी, जिसकी अवधि करीब डेढ़ दशक पहले ही खत्म हो चुकी है। अब उस भूमि पर खनन कार्य के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना पड़ेगा। यह साफ हो चुका है कि पट्टाधारक पट्टे वाली भूमि का स्वामी नहीं होता है। 

इस संबंध में सोनभद्र के अतिरिक्त जिलाधिकारी के. सिंह और ओबरा वन प्रभाग के प्रभारी वनाधिकारी एसपी चौरसिया ने 25 जुलाई को सोनभद्र के जिलाधिकारी पनधारी यादव को निरीक्षण रिपोर्ट सौंपी थी। उसी दिन उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन संरक्षक को भी पत्र लिखकर जेएएल के दावों के संबंध में जवाब भेजा था। अगर जिला प्रशासन के निरीक्षण रिपोर्ट और एसपी चौरसिया के पत्र पर गौर करें तो वे जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के दावों की ही पुष्टि करते नजर आते हैं। दोनों अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश तहत संपन्न हुई वन बंदोबस्त प्रक्रिया को ऩजर अंदाज करते हुए जेएएल के पक्ष में तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव के फैसले को तवज्जो दी है। उन्होंने जेएएल के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा के दावों को सही ठहराया है। 

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक सोची-समझी योजना के तहत सोनभद्र जिला प्रशासन, ओबरा प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया और जेएएल के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा ने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजा है। वाईके सिंह चौहान ने 12 जुलाई को ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया को एक बार फिर पत्र लिखा और उनके जवाब से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया लेकिन उन्होंने दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए। चौहान ने 18 अगस्त को उत्तर प्रदेश वन विभाग के मिर्जापुर डिविजन के मुख्य वन संरक्षक एसके शर्मा को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे प्रभागीय वनाधिकारी, ओबरा और राबर्ट्सगंज को संबंधित अभिलेख उपलब्ध कराने के लिए निर्देश दें ताकि उनके उनके दावों की पुष्टि की जा सके लेकिन मामला जस का तस बना रहा। 

इतना ही नहीं चौहान ने 20 दिसंबर को उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक को भी पत्र लिखा और राबर्ट्सगंज के तत्कालीन सहायक अभिलेख अधिकारी वीके श्रीवास्तव को वन बंदोबस्त अधिकारी नियुक्त करने के संबंध में जारी अधिसूचना और अन्य संबंधित दस्तावेजों की मांग की। साथ ही उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने के दोषी वीके श्रीवास्तव के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा। हालांकि राज्य सरकार के नुमाइंदों पर इन पत्रों का कोई असर नहीं हुआ। वर्ष 2011 में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन संरक्षक वाई के सिंह चौहान ने 18 जनवरी और 24 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) पवन कुमार को पत्र लिखकर मामले पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी लेकिन कोई जवाब नहीं आया। जबकि सोनभद्र में संरक्षित वन भूमि पर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड का अवैध निर्माण कार्य जारी रहा। जेएएल के अवैध निर्माण से चिंतित चौहान ने 24 मार्च को ही उत्तर प्रदेश वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक डीएनएस सुमन को भी पत्र लिखा और मामले पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी लेकिन जवाब ढाक के तीन पात वाला ही रहा।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से बार-बार पत्र लिखने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदों ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से किए जा रहे अवैध निर्माण को रोकने के लिए कोई पहल नहीं की और ना ही वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की। यहां तक कि जंगल से लकड़ी चुनकर पेट पालने वाले गरीबों पर जुल्म ढाने वाले उत्तर प्रदेश वन विभाग के नुमाइंदे संरक्षित वन क्षेत्र और कैमूर वन्यजीव विहार की हजारों एकड़ भूमि पर जेएएल के अवैध कब्जे और निर्माण कार्य को रोकने के लिए आगे नहीं आए। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मामले को सुप्रीम कोर्ट में भेजकर जेपी समूह को राहत दी। अब मामला सुप्रीम कोर्ट की पीठ के पास लंबित है लेकिन विवादित भूमि पर जेएएल का निर्माण कार्य अभी भी जारी है। इसका अंदाजा पिछले दिनों चुर्क में पत्रकार वार्ता के दौरान जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर किए गए दावों से लगाया जा सकता है। इसमें जेएएल के अधिकारियों ने कहा था कि चुर्क की प्रस्तावित कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की तीन ईकाइयां इस साल जून में चालू हो जाएंगी। जबकि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया था। 

समिति की सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुए है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। इन हालात में उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों के हाथ में जनता की संपत्ति कितनी सुरक्षित है, इसका अदाजा आप बखूबी लगा सकते हैं। आदिवासी बहुल सोनभद्र और मिर्जापुर के आदिवासियों और वननिवासियों को उनका संवैधानिक अधिकार मिल पाएगा? यह दिखाई नहीं देता। (अगली पोस्ट में पढ़िए...जेपी समूह की कारगुजारियों की राजनीतिक और सामाजिक विवेचना)

(यह रिपोर्ट लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'कैनविज टाइम्स' में 29 मई, 2013 को और दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ऑल राइट्स' के मार्च, 2013 अंक में भी प्रकाशित हो चुकी है।)

मूल लेख स्त्रोत:-
द पब्लिक लीडर मीडिया ग्रुप, 
राबर्ट्सगंजसोनभद्रउत्तर प्रदेश
ई-मेल:thepublicleader@gmail.com, 

मोबाइल-09910410365

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