सोमवार, 1 सितंबर 2014

शासन की कारगुजारियों का परिणाम है सोनभद्र की घटना


written by Shiv Das 
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सोमवार को पत्थर की एक खदान धंस गई। इससे करीब एक दर्जन लोगों की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हो गए। इस घटना ने एक बार फिर सोनभद्र में दशकों से हो रहे खनन, जिला प्रशासन और सरकार की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। वास्तव में सोमवार को हुई घटना कोई दुर्घटना नहीं है। यह एक निरंकुश प्रशासन और सरकार की अनदेखी का परिणाम है जिसे गरीबों के खिलाफ पूंजीपतियों और सामंतवादियों की साजिश कहा जा सकता है। 
सोनभद्र के जिस इलाके (ओबरा का बिल्ली-मारकुंडी) में यह हादसा हुआ है, वह पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से अतिसंवेदनशील क्षेत्र में आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी इस इलाके को खनन के लिहाज से अतिसंवेदनशील करार दे चुका है। इसके बाद भी सोनभद्र के इस इलाके में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन और सरकार की शह पर अवैध खनन का गोरखधंधा पिछले एक दशक से ज्यादा समय से चल रहा है। प्रशासन की इस कारगुजारी को लेकर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार आंदोलन भी किया, लेकिन सरकार की निरंकुशता के कारण उनका आंदोलन परवान नहीं चढ़ सका। समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने भी सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के विभिन्न इलाकों में हो रहे अवैध खनन और उससे होने वाली हानि के बारे में खबरें प्रकाशित की। सामाजिक कार्यकर्ताओं और भुक्तभोगियों ने राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार के विभिन्न नुमाइंदों से लिखित शिकायत की। विभिन्न न्यायालयों में याचिका लगाई। लेकिन सरकार के नुमाइंदों ने उत्तर प्रदेश के इस इलाके में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया। परिणामस्वरूप, इस इलाके में अवैध खनन का कारोबार बढ़ने लगा। इसका फायदा उठाकर आस-पास के खनन माफियाओं ने यहां की खनिज संपदा को नेस्तोनाबूत करने के लिए अपना राज स्थापित करना शुरू कर दिया जो मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की खदानों के रूप में सामने आ रहा है। एक तरफ यहां की पत्थर की खदानें गरीब आदिवासियों और दलितों की जान ले रही हैं तो दूसरी ओर अवैध क्रशर प्लांटों से होने वाला प्रदूषण लोगों को अंदर से खोखला बना रहा है। टीबी, दमा सरीखे रोगों की चपेट में आकर सोनभद्र के बाशिंदे मौत को गले लगा रहे हैं। इसके अलावा सोनभद्र की संपदा को अन्य जिलों तक ले जाने वाले भारी वाहन वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग पर लोगों की जान ले रहे हैं। जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट को इसे किलर रोड की संज्ञा देनी पड़ी। इसके बाद भी सोनभद्र के खनन क्षेत्र में मौत की सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार की घटना को दुर्घटना इसलिए भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसकी आशंका सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया ने आज से करीब एक साल पहले ही जता दी थी। इसे लेकर उन्होंने जिला प्रशासन, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार भी लगाई दी। 

ओबरा निवासी विजय शंकर यादव ने बकायदा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से इस संबंध में लिखित शिकायत की थी। उस शिकायत में मेरे द्वारा साप्ताहिक चौथी दुनिया में लिखी गई रिपोर्ट विंध्य की खदानें बनी मौत का कुआं का जिक्र भी किया था। इसके बाद भी सरकार की ओर से पत्थर की इन अवैध खदानों को बंद करने की कोशिश नहीं की गई। ना ही सरकार की सहमति से संचालित हो रही पत्थर की खदानों में श्रम कानूनों के मानकों को लागू कराने पर जोर दिया गया। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय ने तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए सैकड़ों अवैध क्रशर प्लांटों के संचालन के लिए सहमति-पत्र जारी कर दिया। इसके बाद सोनभद्र में अवैध खनन क्षेत्र का दायरा बढ़कर सुकृत तक पहुंच गया। जिला प्रशासन और सरकार के नुमाइंदों की कारस्तानियों ने सोनभद्र के मूल निवासियों का जीना दुभर कर दिया है, जिसकी परिणति सोमवार को पत्थर की खदान के धसान से सामने आई है। पत्थर की इस खदान में खनन को रोकने के लिए यहां के बाशिंदों ने जिला प्रशासन से विशेष रूप से गुहार लगाई थी। जिसमें उन्होंने यहां से गुजरने वाले हाईटेंशन तार के पोल की असुरक्षा के साथ-साथ खदान में काम करने वाले लोगों की असुरक्षा की आशंका करीब एक साल पहले जताई थी। सोमवार को उनकी आशंका सच साबित हुई। अगर जिला प्रशासन समय पर इस खदान को बंद करा दिया होता तो सोमवार की यह घटना टल सकती थी और दर्जनों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। सोनभद्र के खनन क्षेत्र की पत्थर की खदानों में पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से ये मामले लोगों के सामने नहीं आ पाए। अगर खनन क्षेत्र में होने वाली मौतों की मीडिया रिपोर्टों पर गौर करें तो सोनभद्र के खनन क्षेत्र में हर दिन एक आदमी की औसत से लोगों की मौत होती है। इसमें अधिकतर लोग आदिवासी और दलित होते हैं। इसके बावजूद पत्थर की खदानों में मानकों की अनदेखी रुकने का नाम नहीं ले रही है। अगर अब भी समाज के बुद्धिजीवी अवैध खनन और मानकों की अनदेखी के खिलाफ आवाज नहीं बुलंद कर पाए तो वह दिन दूर नहीं जब सोनभद्र आदिवासियों और दलितों का कब्रगाह बन जाएगा।

मूल लेख स्त्रोत:-
द पब्लिक लीडर मीडिया ग्रुप, 
राबर्ट्सगंजसोनभद्रउत्तर प्रदेश
ई-मेल:thepublicleader@gmail.com, 

मोबाइल-09910410365

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