रविवार, 1 जून 2014

पचास साल बाद आरक्षण के दंश से मुक्ति

जनपद के चुनावी इतिहास को यादों के दिये की लौ में देखे तो विधान सभा क्षेत्रों की स्थिति का एक आकलन हो आयेगा। थोड़ा पीछे जाये तो 50 साल का इंतजार अब 2012 में खत्म होने जा रहा है। प्रतीक्षा करते-करते आंखे पथरा गयी थी कि कब सामान्य व पिछड़ी जाति के लोगों को भी यहां से विधान सभा के लिए निर्वाचित होने का अवसर मिलेगा। वजह सन् 1962 में हुए नये परिसीमन के कारण जनपद की दो पूर्ण विधानसभा क्षेत्र आरक्षित थे। आंशिक क्षेत्र राजगढ़ भले ही अनारक्षित था लेकिन यहां के नेताओं को इस क्षेत्र से निर्वाचित होने के लिए आवश्यक समीकरण कभी फेवर में नहीं दिखे। पराधीनता काल में तो मिर्जापुर दक्षिणी क्षेत्र में ही यहां का सम्पूर्ण क्षेत्र रहा करता था। स्वाधीनता के बाद 1951 में परिसीमन हुआ तो राबर्टसगंज एवं दुद्धी विधान सभा अस्तित्व में आ गया। तब एक सीट से दो विधायक निर्वाचित होते थे। एक सामान्य जाति का तो दूसरा अनुसूचित जाति का प्रत्याशी एक साथ चुनाव लड़ते थे। मतदाता दो प्रत्याषी का चुनाव करते थे। दोनों जन प्रतिनिधि एक साथ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे। इसी व्यवस्था को सन् 1952.1957 तक जारी रखा गया। सन् 1962 में नये परिसीमन में व्यवस्था बदल दी गयी। राबर्टसगंज एवं दुद्धी क्षेत्र में बिना परिवर्तन किये इन दोनों सीटों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। अब इन सीटों में केवल अब अनुसूचित जाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते थे। इसमें खासियत यह थी कि अनुसूचित जन जाति के लोग भी चुनाव लड़ सकते थे। क्योंकि तब अनुसूचित जन जातियों को संवैधानिक दर्जे के दायरे में नहीं लाया गया था। इसका लाभ भी मिला अनुसूचित जन जाति के रामप्यारे पनिका दो बार और विजय सिंह गोड़ लगातार सात बार दुद्धी से विधायक निर्वाचित हुए थे। तीसरी बार नये परिसीमन में सोनभद्र में दो और विधानसभा क्षेत्र घोरावल और ओबरा के नाम से सृजित हो गये है। इस तरह से 2012 के विधानसभा सामान्य निर्वाचन में अब चार विधायक निर्वाचित होंगे। इसमें राबर्टसगंज, घोरावल और ओबरा विधानसभा क्षेत्र अनारक्षित है अर्थात अब सामान्य एवं पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को भी मत पाने का अधिकार मिल गया है बावजूद इसके दुद्धी विधान सभा क्षेत्र अब भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ही है। इसका मतलब साफ है कि अभी भी सामान्य एवं पिछड़ी जाति के लोगों को दुद्धी विधान सभा क्षेत्र में तो मतदान का अधिकार मिला है लेकिन उन्हें मत प्राप्त करने का मौका नहीं दिया गया है। इसी के साथ अब अनुसूचित जन जाति के लोग भी यहां केवल वोटर और सपोर्टर बन कर रह गये है। अब की बार 2012 में यहां से तीन अनारक्षित एवं एक आरक्षित सीट से चुनकर विधायक जायेंगे तो लोगों की उम्मीद के लिए सरकार पर दबाव बना सकेंगे।

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