हिन्दुस्तान में भट्टा-परसौल, सिंगूर और उड़ीसा में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसान, सरकार और कार्पोरेट के आमने-सामने आने के बाद धधकी आग ने कितनों को बन्दुक की गोलियों का षिकार बनाया तो कितने किसानों ने अपने सीनों पर गोलियाँ खायी, किसानों और आदिवासियों के बढ़ते आक्रोष ने सरकारों को झकझोर कर रख दिया जिसका परिणाम नया भूमि अधिग्रहण एवं पुर्नवास, पुर्नस्थापन कानून-2013 है, मगर क्या कागजों में लिखें कानून पिछले तीन-चार दषक से विस्थापन का दंष और मिठा जहर झेल रहे लाखों आदिवासी-दलित किसानों को न्याय दिलाने में सक्षम होगा। क्योंकि कानून बनाने वाले ही कार्पोरेट घरानों की चाकरी में लीन है और उनका किसान-आदिवासी प्रेम टीवी चैनलों और घोषणा पत्रों तक ही सिमित है उनके ही इषारों पर आदिवासी-दलित किसानों पर गोलियाँ चलाकर कार्पोरेट को औने-पौने दामों पर जमीनें दी जाती है, फिर वही नेता आदिवासी- दलित किसानों के बीच आकर कहता है कि बन्दूक तले नहीं हों सकता विकास।
विस्थापन की पीड़ा और दंष की बहु-चर्चीत कहानी का नाम है सोनभद्र के दक्षिणांचल में स्थित ऊर्जान्चल परिक्षेत्र जहाँ की उत्पादित बिजली पूरे देष को रौषन करने में अपना योगदान दे रहा है, पर इस विकास का प्रकाष उस किसान के घर पहुँचते-पहुँचते विलुप्त होकर उसके जीवन में अन्धकार में परिवर्तित हो जाता है। जिसकी भूमि और भविष्य दोनो परियोजनाओं के निर्माण की बली चढ़ी है।
तीन दशक पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की अनपरा तापीय परियोजना, अनपरा, जिला-सोनभद्र (उ.प्र.) के निर्माण के लिये 25 हजार से अधिक आदिवासी-दलित किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई थी, अधिग्रहण के तीन दशक बीत जाने के बावजूद भी भूमि के बदले प्रतिकर, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ न देकर, अन्याय की एक नई मिषाल कायम कर दी गई है। अन्त यह नहीं होता तीन दशक बाद मा.सर्वोच्च न्यायालय ने विस्थापितों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय के मुद्दे पर 02 मार्च, 2012 को एसएलपी (सिविल), 27062/2009, सहयोग सोसाइटी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य में पारित अपने आदेश में उत्तर प्रदेश में प्रभावी वर्तमान पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति के अनुसार समस्त लाभ दिये जाने का आदेश पारित किया गया था। न्यायालय के आदेष व राज्य सरकार के अनुसार दिये गये शपथ पत्र के अनुसार अनपरा तापीय परियोजना के प्रभावित किसानों को लगभग एक हजार करोड़ रूपये प्रतिकर, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ रूप में राष्ट्रीय पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति-2003 एवं उत्तर प्रदेश की नई भूमि अधिग्रहण नीति-2011 के अनुसार दिया जाना था पर प्रदेष सरकार व उत्पादन निगम हजार करोड़ की जगह 35 से 40 करोड़ रूपये में सारे मामले कों समाप्त करना चाहती है। 02 मार्च, 2012 को एसएलपी (सिविल), 27062/2009, सहयोग सोसाइटी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य में पारित अपने आदेश में उत्तर प्रदेश में प्रभावी वर्तमान पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति के अनुसार समस्त लाभ दिये जाने का आदेश के लगभग दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक मात्र 125 प्रभावित परिवारों को ग्यारह करोड़ रूपये ही वितरित किया जा सका है।
सरकार एवं प्रषासन ने ठान रखा है कि बन्दूक तले ही 25 हजार आदिवासी-दलित किसानों की आवाज दबानी है और सरकार और प्रषासन की ओर से ऐसी परिस्थितियाँ पैदा की जा रही है की किसान सड़क पर आये और फिर सरकार की मंषा अनुसार उन पर गोलियाँ चलाकर और उन पर सैकड़ों फर्जी मुकदमें लाद उन्हें सलाखों के पिछे धकेल कर पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन की कागजी कार्यवाही को अपने तालीबानी सोंच के अनुसार पूर्ण कर लिया जाय। 25 हजार आदिवासी-दलित किसानों ने सरकार की इस अन्यायपूर्ण व्यवहार व अपनी तीन दषक के विस्थापन के दंष का सड़क पर ऊतर कर सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से पुरजोर विरोध किया और किसानों का यह आन्दोलन देष के नेताओं का सोचने पर यह मजबूर करके रख दिया कि क्या सिर्फ कानून बनाने से ही विस्थापित किसानों को न्याय मिल पायेगा।
आज यह प्रष्न वह आदिवासी कर रहा है जिसके खुद के सर पर छत नहीं है और पाँव के नीचे जमीन परियोजनाओं के कारण नहीं बची है जिसने बल्ब की रौषनी नहीं देखी और उनकी ही जमीनों पर कार्पोरेट के बड़े उद्योग खडे़ है और दुधिया रौषनी आदिवासीयों को मुँह चिढ़ा रहें है, यह उनके साथ एक ऐतिहासिक अन्याय को बयां करता है।