बुधवार, 30 अप्रैल 2014

युवा वर्ग समस्याओं को हल करने वाले को देंगे वोट

(लोकसभा चुनाव-2014 के बाबत ऊर्जान्चल परिक्षेत्र के युवा वर्ग की प्रतिक्रिया।)
जनपद-सोनभद्र के राबर्टसगंज संसदीय क्षेत्र में इस बार लोकसभा चुनाव में मतदाताओं में जागरूकता युवा वर्ग के लोगो के सिर चढ़ कर बोल रहा है। प्रत्याषीयों को हर बार की तरह सिर्फ आष्वासन नहीं अबकी बार लोगों की समस्याओं को हल कराना होगा। लोगो की मौलिक मांगों की समस्याओं को हल करने, महंगाई को कम करने, गैस की बड़ी हुई किल्लत, बिजली की अन्धा-धुन्ध कटौती, पानी की जटील समस्या को प्रमुखता से हल करने वाले प्रत्याशी को ही युवा वर्ग के मतदाताओं का मत मिलेगा। युवाओं ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और उनके प्रमुख समस्या को हल करने वाले के पक्ष में मतदान करने की बात कही। 
हरिनाथ खरवार 

ऊर्जान्चल परिक्षेत्र के रेहटा गाँव के रहने वाले हरिनाथ खरवार ने बताया कि प्रतिनिधि चुने जाने के बाद प्रत्याशियों द्वारा लोगो की समस्याओं की अनदेखी की जाती है, यह अच्छी बात नहीं है, उन्हें जनता इसी कार्य के लिये अपना मत देती है। मैं विस्थापन की समस्या से निजात दिलाने वाले के साथ ही जो परास्नातक की शिक्षा के लिए महाविद्यालय की स्थापना कराए, उसे अपना मत दूंगा।
 नूर मोहम्मद 

अनपरा गाँव निवासी नूर मोहम्मद का कहना है कि बिजली, पानी आदि जैसी कई समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ता है। प्रत्याशी चुने जाने के बाद समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो प्रत्याशी इन समस्याओं से निजात दिलाएगा, वोट उसी को दिया जाएगा चाहे वह किसी दल या जाति का हो। 
शक्ति आनंद 

ग्राम पंचायत औड़ी के शक्ति आनन्द का कहना है कि लोकसभा में महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए आवाज उठाने वाले प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने की जरूरत है। कहा कि जीतने के बाद वे हर तबके के लोगों की समस्या के साथ ही साथ क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाएं, ऐसे प्रत्याशी को अपना मत दूंगा। हम अपना बहुमूल्य मत उसे देंगे जो कर्मठ हो और जनहित में जिसका योगदान रहा हो। क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक उम्मीदवार को भी वरीयता मिलेगी।
राजकुमार पनिका 

पिपरी सोनवानी के राजकुमार पनिका कहते हैं कि महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले प्रत्याशी को अबकी वोट दिया जाएगा। जनता की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उसका निदान करे ऐसे प्रत्याशी को अपना मत देने का विचार कर रहा हूं। 
 मुकेश पाण्डेय 

बेलवादह निवासी मुकेष पाण्डेय कहते हैं कि हमे क्षेत्र का ऐसा प्रतिनिधि चुनना चाहिए जो ग्रामीण क्षेत्रों पानी, बिजली की समस्याओं का समाधान करते हुए आम जनमानस की भावनाओं की कद्र करते हुए उनकी समस्या हल करें। 
  लक्ष्मीकांत दुबे 

रेहटा के रहने वाले लक्ष्मीकान्त दूबे कहते है कि जिसने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया हो के साथ-साथ बेरोजगारी दूर करने वाले को वोट देगें। 

जयमंजय पनिका 
बांसी गाँव के निवासी जयमंजय पनिका कहते हैं कि ऐसे प्रत्याशी जो गांव और शहरों में रहने वाले मतदाताओं की समस्याओं को हल करें, ऐसे प्रत्याशी को हमें वोट देना चाहिए। 

मोहम्मद सद्दाम 

आदर्षनगर क्षेत्र के मोहम्मद सद्दाम महंगाई सहित कई समस्याओं प्रति जागरूक प्रत्याशी को वोट देंगे, चाहे वह किसी भी दल का हो। 

इस लोकसभा चुनाव में मतदान को लेकर ज्यदातर युवाओं का कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टियां और उनके प्रत्याशी लंबे-चैड़े वायदे ऐसे करते हैं जैसे जीत के बाद रामराज ला देंगे। लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ पहले जैसा ही दिखता है। अबकी बार हम सोच समझकर ही प्रत्याषीयों को मतों में तरजीह देंगे। लगता है कि मतदान को लेकर जागरूकता युवाओं में पूरी तरीके से समा गया है। 

रविवार, 27 अप्रैल 2014

इन्दिरा आवास निर्माण को वन भी विभाग ने गिराया।


"म्योरपुर विकास खण्ड के अन्तर्गत ऐसे कई इन्दिरा आवास के पात्र परिवर है जिन्हे बीपीएल परिवार के आधार पर आवास योजना का पात्र तो माना गया है, परन्तु आवास बनाने के लिये उनके पास कोई भूमि नहीं होने के कारण इस योजना को लाभ पात्र होने के बावजूद भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है। " 
" इन्दिरा आवास योजना के तहत 75 हजार की राषि दो किष्तो में पात्रों को दी जानी है। दो किष्तो की राषि में प्रथम किष्त 37,500 की राषि का भुगतान किये जाने के बाद उस राषि से आधा निर्माण कार्य कराये जाने के बाद आवास की फोटो जमा करने पर दूसरी किष्त जारी की जाती है।"
जहाँ एम ओर सरकार गरीबों को उनका आवास देने की इच्छा से इन्दिरा आवास के नाम पर धन बाटने का कार्य कर रही है, वहीं जंगल विभाग सरकारी धन से बनाये जा रहे उन आवासों को बिराने का काम कर रही है। मामला है म्योरपुर विकासखण्ड के ग्राम-पाटी का। जहाँ ग्राम के ही निवासी रामसुभाग खरवार व वंष बहादुर खरवार को राष्ट्रीय इन्दिरा आवास योजना के तहत बीपीएल परिवारों को अपना आवास निर्मित करने वाली आवास योजना के तहत दो किष्तो में दी जाने वाली राषि के प्रथम किष्त का भुगतान किया जा चुका है, उस धन से दोनों ने अपना-अपना आवास लगभग निर्मित कर लिया था। दूसरी किष्त के लिये अर्धनिर्मित आवास की फोटो ब्लाक में खिचने के पश्चात ही राषि का भुगतान किया जाना था। परन्तु फोटो खीचने के पहले ही वन विभाग द्वारा बुधवार के दिन उन दोनो के अर्धनिर्मित मकानों को यह कहते हुए गिरा दिया गया कि ये दोनों मकान वन विभाग की भूमि पर बनाये जा रहे थें। इसलिये इन्हें विभाग के संज्ञान में आने पर गिरा दिया गया है। वहीं इन्दिरा आवास पात्र लाभार्थियों का कहना है कि जिस भूमि पर वें अपना आवास बना रहे थें, वह भूमि उनके वर्षो की जोत-कोड़ और कब्जे की भूमि है एवं उक्त भूमि दोनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम के तहत वनाधिकार समिति के समक्ष अपना दावा भी प्रस्तुत किया था, जिस पर उन्हें अभी तक अधिभोग पत्र जारी नहीं हो पाया है। दोनों ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने हमें बीपीएल परिवार मानते हुए आवास तो दे दिया, परन्तु हमारें पास अपने पीढ़ीयों की जोत-कोड़ की जंगल की कब्जे की भूमि के अलावा कहीं भी भौमिक अधिकार या भूमि नहीं है ऐसी स्थिति में हम अपना आवास बनाये तो कहा बनाये। 

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

विस्थापन की पीड़ा और दंष की बहु-चर्चीत कहानी - Sonebhadra

हिन्दुस्तान में भट्टा-परसौल, सिंगूर और उड़ीसा में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसान, सरकार और कार्पोरेट के आमने-सामने आने के बाद धधकी आग ने कितनों को बन्दुक की गोलियों का षिकार बनाया तो कितने किसानों ने अपने सीनों पर गोलियाँ खायी, किसानों और आदिवासियों के बढ़ते आक्रोष ने सरकारों को झकझोर कर रख दिया जिसका परिणाम नया भूमि अधिग्रहण एवं पुर्नवास, पुर्नस्थापन कानून-2013 है, मगर क्या कागजों में लिखें कानून पिछले तीन-चार दषक से विस्थापन का दंष और मिठा जहर झेल रहे लाखों आदिवासी-दलित किसानों को न्याय दिलाने में सक्षम होगा। क्योंकि कानून बनाने वाले ही कार्पोरेट घरानों की चाकरी में लीन है और उनका किसान-आदिवासी प्रेम टीवी चैनलों और घोषणा पत्रों तक ही सिमित है उनके ही इषारों पर आदिवासी-दलित किसानों पर गोलियाँ चलाकर कार्पोरेट को औने-पौने दामों पर जमीनें दी जाती है, फिर वही नेता आदिवासी- दलित किसानों के बीच आकर कहता है कि बन्दूक तले नहीं हों सकता विकास। 


विस्थापन की पीड़ा और दंष की बहु-चर्चीत कहानी का नाम है सोनभद्र के दक्षिणांचल में स्थित ऊर्जान्चल परिक्षेत्र जहाँ की उत्पादित बिजली पूरे देष को रौषन करने में अपना योगदान दे रहा है, पर इस विकास का प्रकाष उस किसान के घर पहुँचते-पहुँचते विलुप्त होकर उसके जीवन में अन्धकार में परिवर्तित हो जाता है। जिसकी भूमि और भविष्य दोनो परियोजनाओं के निर्माण की बली चढ़ी है। 

तीन दशक पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की अनपरा तापीय परियोजना, अनपरा, जिला-सोनभद्र (उ.प्र.) के निर्माण के लिये 25 हजार से अधिक आदिवासी-दलित किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई थी, अधिग्रहण के तीन दशक बीत जाने के बावजूद भी भूमि के बदले प्रतिकर, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ न देकर, अन्याय की एक नई मिषाल कायम कर दी गई है। अन्त यह नहीं होता तीन दशक बाद मा.सर्वोच्च न्यायालय ने विस्थापितों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय के मुद्दे पर 02 मार्च, 2012 को एसएलपी (सिविल), 27062/2009, सहयोग सोसाइटी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य में पारित अपने आदेश में उत्तर प्रदेश में प्रभावी वर्तमान पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति के अनुसार समस्त लाभ दिये जाने का आदेश पारित किया गया था। न्यायालय के आदेष व राज्य सरकार के अनुसार दिये गये शपथ पत्र के अनुसार अनपरा तापीय परियोजना के प्रभावित किसानों को लगभग एक हजार करोड़ रूपये प्रतिकर, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ रूप में राष्ट्रीय पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति-2003 एवं उत्तर प्रदेश की नई भूमि अधिग्रहण नीति-2011 के अनुसार दिया जाना था पर प्रदेष सरकार व उत्पादन निगम हजार करोड़ की जगह 35 से 40 करोड़ रूपये में सारे मामले कों समाप्त करना चाहती है। 02 मार्च, 2012 को एसएलपी (सिविल), 27062/2009, सहयोग सोसाइटी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य में पारित अपने आदेश में उत्तर प्रदेश में प्रभावी वर्तमान पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन नीति के अनुसार समस्त लाभ दिये जाने का आदेश के लगभग दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक मात्र 125 प्रभावित परिवारों को ग्यारह करोड़ रूपये ही वितरित किया जा सका है। 

सरकार एवं प्रषासन ने ठान रखा है कि बन्दूक तले ही 25 हजार आदिवासी-दलित किसानों की आवाज दबानी है और सरकार और प्रषासन की ओर से ऐसी परिस्थितियाँ पैदा की जा रही है की किसान सड़क पर आये और फिर सरकार की मंषा अनुसार उन पर गोलियाँ चलाकर और उन पर सैकड़ों फर्जी मुकदमें लाद उन्हें सलाखों के पिछे धकेल कर पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन की कागजी कार्यवाही को अपने तालीबानी सोंच के अनुसार पूर्ण कर लिया जाय। 25 हजार आदिवासी-दलित किसानों ने सरकार की इस अन्यायपूर्ण व्यवहार व अपनी तीन दषक के विस्थापन के दंष का सड़क पर ऊतर कर सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से पुरजोर विरोध किया और किसानों का यह आन्दोलन देष के नेताओं का सोचने पर यह मजबूर करके रख दिया कि क्या सिर्फ कानून बनाने से ही विस्थापित किसानों को न्याय मिल पायेगा।

आज यह प्रष्न वह आदिवासी कर रहा है जिसके खुद के सर पर छत नहीं है और पाँव के नीचे जमीन परियोजनाओं के कारण नहीं बची है जिसने बल्ब की रौषनी नहीं देखी और उनकी ही जमीनों पर कार्पोरेट के बड़े उद्योग खडे़ है और दुधिया रौषनी आदिवासीयों को मुँह चिढ़ा रहें है, यह उनके साथ एक ऐतिहासिक अन्याय को बयां करता है। 

ऊर्जान्चल परिक्षेत्र के लोगो के साथ बिजली विभाग द्वारा किया जा रहा ऐतिहासिक अन्याय।

ऊर्जान्चल परिक्षेत्र जो ऊर्जा उत्पादन में विश्व में अपना अद्वितीय स्थान रखता है, यहाँ कि उत्पादित बिजली से चहुँओर उजाला एवं विकास हो रहा है, परन्तु ऊर्जान्चल के रहवासियों और यहां के विस्थापितों जिनकी कई पीढ़ीयों ने विस्थापन का दंश झेला है और अपना सर्वश्व राष्ट्रहित में ऊर्जा उत्पादन के लिये समर्पित कर दिया, उन्हीं के साथ बिजली विभाग ऐतिहासिक अन्याय कर रहा है। 

जहाँ एक ओर ऊर्जान्चल के धरती से पैदा हुई बिजली से रौशन जनपद इटावा, कन्नौज व मैनपूरी और बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों में 18 से 24 घण्टे विद्युत आपूर्ति की जा रही है और बिजली बिल मात्र 445 से 517 रूपये उपभोक्ताओं से लिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर ऊर्जान्चल के सभी गांव में बिजली भी मयस्सर नहीं है और जिन ग्राम पंचायतों में 16 से 18 घण्टे बिजली आपूर्ति की भी जा रही है, वहां पिछले तीन सालों से ग्रामीण उपभोक्ताओं से बिजली बिल के नाम पर लूट का नया किर्तिमान बनाकर वर्तमान में 1718 रूपये बिजली बिल के नाम पर लूटा जा रहा है। 

जबकि ऊर्जान्चल के 95 प्रतिशत किसान विद्युत उत्पादन हेतु विभिन्न परियोजनाओं की स्थापना के लिये किये गये भूमि अधिग्रहण से भूमिहीन है एवं पीढ़ियों के विस्थापन के दंश के बावजूद भी उन्हें आज तक न तो बिजली की समुचित सुविधा मिल पायी है, दूसरी ओर बिजली बिल के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों से चार से पाँच गुना अधिक बिजली बिल वसूली जा रही है। 

सिंगरौली परिक्षेत्र में बढ़ता जानलेवा प्रदुषण।

सिंगरौली परिक्षेत्र जो ऊर्जा उत्पादन में विश्व में जहाँ अद्वितीय स्थान रखता है, वहीं दूसरी ओर नीजि व सरकारी औद्योगिक ईकाईयों की पर्यावरण के प्रति असंवेदनशीलता ने सिंगरोली परिक्षेत्र को दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र बना दिया है। जिन जिम्मेदार संस्थाओं व अधिकारियों के जिम्मे पर्यावरण संरक्षण एवं मानवीय जीवन को संरक्षित रखने की जिम्मेवारी थी, उनके हुक्मरानों ने लाखों लोगों को प्रदूषण रूपी मौत के अन्धे खांयी में धकेल कर अपने व अपने परिवारजनों को इन नीजि संस्थाओं में अच्छे ओहदों पर नौकरियाँ दिलावायी है और करोड़ों रूपये अर्जित किये गये है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अधिकारिक रूप से यह आकड़े जारी किये गये है कि सिंगरौली परिक्षेत्र की हवा व पानी में देश का सर्वाधिक जहरीलस तत्व मौजूद होने के कारण यहाँ के रहवासियों में अनेकों प्रकार की गम्भीर बिमारियाँ पैदा हो रही है व आने वाली पीढ़ियों पर इसके गम्भीर दुष्परिणाम दिखायी देंगे। 

नीजि विद्युत परियोजनाओं के लिये अन्धा-धुन्ध तरीके से लाभ अर्जित करने की परम्परा से खुले मालवाहकों पर कोयले व राख के अभिवहन ने पूरे सिंगरोली परिक्षेत्र को मौत की काल-कोठरी बनाकर रख दिया है। प्रदूषण की धूल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व जिला प्रशासन व परिवहन विभाग के अधिकारियों के आँखों पर भ्रष्टाचार की मोटी परत चढ़ा दी है। जिससे उन्हें सिंगरोली परिक्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण के कारण लाखों लोगों की धीमी मौत दिखायी नहीं पड़ रही है। 

महत्वपूर्ण है कि विश्व की कई जानी-मानी संस्थाओं ने सिंगरौली परिक्षेत्र के पर्यावरण की स्थिति पर अपनी रिर्पोट में स्पष्ट किया है कि वह दिन दूर नहीं जब सिंगरोली परिक्षेत्र के लोग व्यापक प्रदूषण के कारण बे-मौत मरेंगे, जो अन्य कारणों से होने वाली मौतों से ज्यादा की संख्या में हांेगी। खैर सत्ता के शिखर पर बैठे सत्ताधीश और हुक्मरानों के पास इन सबके विषय पर सोचने का वक्त कहां है। क्योंकि उन्हें लगता है कि अकुत धन से कृत्रिम सांसे खरीदकर अपनी जिन्दगी जी ही लेंगे। 

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

विस्थापितों से हुये समझौते होंगे लागू- दारापुरी

:- विस्थापित गांवों का पूर्व आई.जी. एस.आर.दारापुरी ने किया दौरा

राबर्ट्सगंज, 26 मार्च14, पूर्व आई. जी. व आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस.आर. दारापुरी ने कहा है कि 60 के दशक में बने रिहंद जलाशय और बाद में स्थापित हुए औद्यागिक प्रतिष्ठानों से लाखों लोंगो को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा। आज भी विस्थापित गवर्नमेंट ग्रांट पट्टों के सहारे उनकी जिंदगी चल रही है. भारी विस्थापन के समय सरकार ने जो समझौते किये उनका अनुपालन न कराया जाना ही विस्थापितों की दुर्दशा की प्रमुख वजह हैं।

आज आइपीएफ नेताओं के साथ म्योरपुर व बभनी ब्लाक के झीलो खमरिया, पीपरहर,डोडहर,करहिया,सीसवां झापर,चैना,घघरा,बजिया,मचबंधवां,भॅवर इत्यादि रिहंद विस्थापित गांवो का दौरा करने और कई सभाओं को संबोधित करते हुए श्री दारापुरी ने कहा कि विस्थापितों को तय मुआवजा राशि जो बेहद कम थी उसे भी पूरी तरह नहीं दिया गया, इसलिए नये आधार पर मुआवजा राशि को दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र खनिज संपदा से भरपूर है और कारपोरेट्स की नजर है जिससे भविष्य में भारी विस्थापन का खतरा मौजूद है। दारापुरी ने डोडहर गाँव के लोगों का पुलिस द्वारा उत्पीड़न करने की कड़ी निंदा की और उन की बैठक में उन्हें आश्वस्त किया कि उन के सवाल हर हाल में हल कराये जायेंगे। इन विस्थापित गांवों के हजारों लोगो ने दारापुरी जी से आग्रह किया किया कि विस्थापितों की आवाज को संसद तक पहुँचाने के लिए इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करें क्योकि आज तक किसी जन प्रतिनिधि ने विस्थापितों के मुददों को संसद में नही उठाया है।

श्री दारापुरी ने विस्थापितों को आश्वस्त किया कि उनके सवालों को आइपीएफ हर स्तर पर संघर्ष करेगा और विस्थापितों के साथ अन्याय नही होने दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र से पूरे देश के लिए बिजली का उत्पादन होता है वहां के गांवो में आज भी बिजली नहीं है और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधओं का अभाव है।

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

मीटर लग गए पर स्कूलों में बिजली नहीं आई

सिटिजन जर्नलिस्ट जुल्फिकार हैदर खान ने अपनी पड़ताल में सोनभद्र में शिक्षा विभाग की कारगुजारियों के बारे में खुलासा किया।

विकास ने खोली चैक डैम में हुए फर्जीवाड़े की पोल

गांव और गरीबों के विकास के लिये सरकार करोड़ों रुपए जारी करती है। लेकिन सरकारी अमला इसमें फर्जीवाड़ा कर रकम डकार जाता है।

किलर रोड की तस्वीर बदलकर रहेंगे पंकज

आईबीएन-7 | Jun 28, 2010 at 03:13pm | Updated Jul 21, 2010 at 05:05pm



सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले की सड़क मौत की सड़क बन गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हाईवे को किलर रोड नाम दिया है। 2007 से 2009 के बीच यहां हुई सड़क दुर्घटनाओं में 540 लोग मारे गए। 2010 में अब तक 117 लोग मारे जा चुके हैं। सिटीजन जर्नलिस्ट पंकज मिश्रा का संघर्ष उस अव्यवस्था के खिलाफ है जो सोनभद्र की सड़कों पर मौत और विकलांगता बांट रही है। उनकी रिपोर्ट देखने के लिए वीडियो देखें।

महेंद्र ने छेड़ी गंदे पानी के खिलाफ मुहिम

 | May 27, 2010 at 04:18pm | Updated May 28, 2010 at 06:51pm


उनकी 24 साल की इकलौती बेटी रानी ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं।
सोनभद्र। 
सोनभद्र जिले के महेंद्र अग्रवाल पिछले 20 साल से पानी में फैले जहर को खत्म करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। गंदे पानी की वजह से उनकी 24 साल की इकलौती बेटी रानी ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं। उसे पीलिया हो गया था। नवंबर में गांव के एक दर्जन से भी ज्यादा लोग मारे गए।

महेंद्र अग्रवाल का संघर्ष पानी में घुले उस जहर के खिलाफ है जो यहां के लोगों के लिए बीमारी और मौत की वजह बन रहा है। सोनभद्र जिले में लोग भूमिगत पानी पर निर्भर हैं। गर्मियों के मौसम में भूमिगत पानी का स्तर नीचे होने पर लोग रिहंद डैम का पानी इस्तेमाल करने लगते हैं।  यहां के ग्रामीण इलाकों में लोग जो पानी इस्तेमाल कर रहे हैं वो पीने लायक नहीं है। कई संस्थाएं यहां के पानी की जांच कर इसमें जहर की मौजूदगी पा चुकी हैं। पीने के पानी में फ्लोराइट की मात्रा 1 एमजी प्रति लीटर होनी चाहिए जबकि ये यहां 7 एमजी प्रति लीटर है। पारे की मात्रा .001 एमजी प्रति लीटर होना चाहिये पर ये .005 है। यानी सभी केमिकल सामान्य से कई गुना ज्यादा हैं।

लोगों को प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के लिए महेंद्र गांव-गांव का दौरा करते हैं। हर घर में जाकर साफ पानी के अधिकार के बारे में बताते हैं। जनसुनवाइयों में लोगों की बात रखते हैं। 2005 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की। कोर्ट ने प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को निर्देश दिए। लेकिन हालात नहीं बदले। पानी जैसी बुनियादी जरूरत पूरी हो सके इसलिए महेंद्र ने जिला प्रशासन, संबंधित विभागों के अधिकारियों से लेकर प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति तक से गुहार लगाई है। मानवाधिकार आयोग ने उनके आवेदन पर जांच के आदेश भी दिए लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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शिक्षा की अलख जगाना जिंदगी का मकसद बना

 | Jul 28, 2010 at 03:40pm



सोनभद्र। सरकार ने भले ही शिक्षा के अधिकार का कानून बनाया हो लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने शिक्षा देना और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना अपनी जिंदगी का मकसद बना रखा है। सिटिजन जर्नलिस्ट अशोक चंद्रवंशी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। जिन्होंने अपने आपको शिक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित कर दिया है। वो दस साल से शिक्षा की अलख जगाने की कोशिश में जुटे हैं। कैसी है उनकी कोशिश ये जानने के लिए वीडियो देखें।




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पेड़ों को मरहम लगाते हैं हरि किशन

 | Nov 07, 2008 at 05:22pm



सोनभद्र। हरि किशन सोनभद्र जिले के नगवा गांव के रहने वाले हैं। उनकी मेहनत से एक वीरान जंगल दस साल की मेहनत के बाद अब हरा भरा हो गया है।

गांव के लोगों के लिए लकड़ी एक बुनियादी जरूरत है। चाहे वो घर के लिए हो, खाना बनाने के लिए, दाह संस्कार के लिए या फिर दूसरी जरूरतों के लिए। इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए आज से दस साल पहले एक जंगल की कटाई शुरू हुई। भारी संख्या में पेड़ काटे जाने लगे और जंगल वीरान हो गए।

हरि किशन इस जंगल को दोबारा जीवित करने के लिए कुछ करना चाहते थे लेकिन पैसे की कमी के कारण वो नए पेड़ नहीं लगा सकते थे। पर फिर भी उन्होंने इन पेड़ों को बचाने के लिए कुछ करना चाहा। पूर्वजों से विरासत में मिली मरहम लगाने की तरकीब ने कटे पेड़ों को हरा भरा बनाने में उनका साथ दिया। और दस सालों की मेहनत का नतीजा है कि इस जंगल में करीब दस लाख पेड़ जीवित हो गए हैं।

जिस लेप को किशन इन पेड़ों के घावों में लगाते हैं वो नीम, गोबर, हठ जोड़, गोमूत्र, मदर का पत्ता और मुलतानी मिट्टी का लेप होता है। उन्होंने इस जंगल का नाम ‘जनता जंगल’ रखा क्योंकि इस जंगल को बचाने में गांव वालों ने उनका पूरा साथ दिया। इस जंगल में एक भी पेड़ बाहर से नहीं लगाया गया है। कटे हुए तने से पेड़ों को दोबारा जीवित किया गया है।

जंगल बसने के बाद समस्या थी उसकी रखवाली की। सबने जंगल को चार भागों में बांटा और चार समितियां बनायीं जो कि जंगल की देख-रेख करती हैं। पेड़ काटने वालों को सामाजिक और आर्थिक सजा दी जाती है। आज एकबार फिर जंगल में वो जड़ी बूटियां मौजूद हैं जो आदिवासियों के जीवन का अहम हिस्सा हैं।
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सोनभद्र में भीड़ के हमले से 3 पुलिसवाले घायल

 | Jan 25, 2011 at 01:23pm


सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक युवक की कथित हत्या से उत्तेजित लोगों के हिंसक प्रदर्शन और पथराव से तीन पुलिसकर्मी घायल हो गये। घटना जिले के कोन इलाके की है। 30 साल के स्थानीय युवक अजय कुमार की मौत से नाराज लोग सोमवार देर रात से यहां हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। युवक का शव रविवार को रोरवान लौंगा गांव के समीप से बरामद किया गया था।

स्थानीय लोगों के मुताबिक कुमार कुछ दिन पहले अपनी ससुराल रोरवान लौंगा गया था। उसका शव ससुराल से कुछ ही दूरी पर पाया गया। स्थानीय लोग पुलिस को शव न सौंपकर ससुरालवालों पर कुमार की हत्या का आरोप लगाकर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग कर रहे थे।

सोमवार रात जब पुलिस अधिकारी गांव के लोगों को यह समझाने गए कि कुमार की हत्या नहीं की गई बल्कि उसकी मौत एक हादसे में हुई। इस पर भीड़ हिंसक हो उठी और उसने पुलिस अधिकारियों पर पथराव कर उनकी गाड़ियों में जमकर तोड़फोड़ की। भीड़ ने पुलिस के वाहनों में आगजनी की भी कोशिश की।

जिले के पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया कि भीड़ ने पुलिस अधिकारियों को चारों तरफ से घेर लिया था। सूचना मिलने पर जब अन्य थानों से पुलिस बल मौके पर पहुंचा तब हालात पर काबू पाया जा सका। पथराव में एक पुलिस उपाधीक्षक सहित तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए।
कुमार ने कहा कि हालात नियंत्रण में लेकिन तनावपूर्ण हैं। तनाव के मद्देनजर प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) और पुलिसबल तैनात किया गया है। पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी मौके पर डेरा डाले हुए हैं।
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सोनभद्रः 80 साल की वृद्धा से दुष्कर्म, आरोपी गिरफ्तार

 | Oct 04, 2010 at 01:33pm


सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में 80 साल की बुजुर्ग महिला से दुष्कर्म के आरोपी युवक सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया। घटना जिले के म्योरपुर इलाके के दिवारी गांव की है, जहां 27 साल के श्यामलाल ने कथित तौर पर रविवार शाम गांव की ही एक बुजुर्ग महिला फूलसखी (परिवर्तित नाम) के साथ दुष्कर्म किया और फिर फरार हो गया।

म्योरपुर चौकी प्रभारी पी. पी. सिंह ने सोमवार को संवाददाताओं को बताया बुजुर्ग महिला रविवार शाम जंगल के पास अपने खेत गई थी, इसी दौरान वहां से गुजर रहा श्यामलाल पीड़िता को उठाकर जंगल ले गया और मारपीट कर उसके साथ दुष्कर्म किया।

उन्होंने बताया कि घायल बुजुर्ग महिला का जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। घटना के बाद से महिला काफी सदमे में है। सिंह ने बताया कि फरार आरोपी श्यामलाल को आज गिरफ्तार कर लिया गया। उसने पूछताछ में बुजुर्ग महिला से दुष्कर्म और मारपीट की बात कबूल कर ली है।
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गरीबों के कल्याण के नाम पर भ्रष्टाचारियों का कल्याण


आईबीएन-7 | Dec 30, 2011 at 05:58pm

सोनभद्र। सोनभद्र में डैम बनाने के आड़ में आम आदमी के पैसे की खुलकर लूट खसोट हो रही है। सिटिजन जर्नलिस्ट अश्विनी सिंह ने खुलासा किया कि सोनभद्र में पब्लिक फंड के करोड़ों रुपए शासन और प्रशासन मिलकर लूट रहा है।

दरअसल सोनभद्र जिले की दूधी तहसील में कन्हर डैम परियोजना का काम शुरू हुआ है। इस डैम के निर्माण से सोनभद्र जिले के 11 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे। लगभग 652 करोड़ रुपए की इस योजना की आड़ में सरकारी अमला योजनाबद्ध तरीके से लूट खसोट रहा है। किसी भी सिंचाई परियोजना के शुरू होने पर डूब क्षेत्र में किसी भी निर्माण को मंजूरी नहीं दी जाती है ना ही पुराने कार्यों को जारी रखा जाता है, लेकिन कन्हर डैम परियोजना में दर्जनों बडे़ प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
यहां के पगन नदी पर 2 करोड़ की लागत से 200 मीटर लंबा पुल बनाया जा रहा है। कन्हर डैम परियोजना की प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक ये पुल कन्हर डैम परियोजना के डूब इलाके में है। कन्हर डैम परियोजना 1976 में शुरू की गई थी जिस पर 27 करोड़ की लागत आनी थी कई साल परियोजना पर काम चला और लगभग 100 करोड़ रुपए खर्च भी हुए लेकिन फिर यह परियोजना अधूरी छोड़ दी गई। लेकिन डूब क्षेत्र में आने वाले इलाके के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दी गईं। और अब फिर से ये योजना शुरू होने पर डूब क्षेत्र में विकास के नाम पर पैसा खर्च किया जा रहा है।

पैसों के दुरुपयोग के बारे में अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक सभी लोग जानते हैं। लेकिन इस बर्बादी को रोकने की कोई पहल नहीं कर रहा है। सवाल ये है आखिर क्यों। इस पूरे मामले में प्रशासन क्या करने वाला है इस पर कलेक्टर ने कहा कि हम लोग टर्म वाले काम बंद करेंगे और लेकिन शॉर्ट टर्म वाले विकास जारी रहेंगे।
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आदिवासियों को उनका हक़ दिलाने की अभय की मुहिम

 | Sep 01, 2009 at 03:27pm



सोनभद्र। दुनिया तेजी से बदल रही है और इस बदलती दुनियां में हम पुरानी परम्पराएं, अपनी सभ्यता, संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। इसलिए हम साफ हवा, पानी, छांव देने वाली प्रकृति की अनदेखी करने लगे हैं और जो संताने इसकी गोद में पल रही हैं हम उनको ही उनके अधिकारों से दूर कर रहे हैं।

बात हो रही है सोनभद्र के उन आदिवासियों की जो सालों से अपने जंगल को बचाने और उस पर मालिकाना हक पाने के लिए सालों से लड़ रहे हैं। अभय सिंह सोनभद्र के दुद्धी के रहने वाले हैं। उनकी लड़ाई है उन आदिवासियों के लिए जो अपनी परम्परागत भूमि पर मालिकाना हक पाने के लिए दशकों से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि उनकी ज़मीन सरकार ने उनसे छीन ली है। जब भी आदिवासियों की ज़मीन का मुद्दा उठता है प्रशासन एक नया आश्वासन दे देता है। अभय इसी मुद्दे को लेकर एसडीएम से मिलने पहुंचे। उन्हें फिर एक और आश्वासन मिल गया। दरअसल प्रशासनिक अधिकारियों को एहसास ही नहीं है कि जिन हज़ारों आदिवासियों से उनकी ज़मीन छीन ली गई है वे किस तरह जीवन बिता रहे हैं।

जंगल और पहाड़ों से घिरे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिल में करीब 14 लाख की आबादी है। इस इलाके में आधे से ज्यादा लोग आदिवासी हैं। इनकी रोजी रोटी का जरिया है जंगल। ज्यादातर आदिवासी झूम खेती करते हैं यानी कुछ साल एक स्थान पर खेती करने के बाद दूसरी जगह जाकर खेती करना ताकी ज़मीन की उर्वरकता बनी रहे। ऐसे वे सदियों से करते आ रहे हैं। इन आदिवासियों की दिक्कत तब शुरू हुई जब 1980 में केन्द्र सरकार ने देश भर में वन अधिनियम लागू किया। इससे पहले कि आदिवासियों को इस अधिनियम के बारे में बताया या समझाया जाता अधिनियम के तहत उन्हें जंगल से बाहर कर दिया गया। उनके जो खेत खलिहान थे उस पर वन विभाग का कब्जा हो गया। अनपढ़ और सीधे साधे आदिवासियों की समझ में ही नहीं आया कि अचानक ये क्या हो गया।

ज़मीन और झोपड़ियां छिन जान के बाद दर बदर होकर भिखारियों से बदतर ज़िंदगी गुज़ार रहे आदिवासियों को उनका हक़ दिलाने के लिये बनवासी सेवा आश्रम नाम की संस्था ने वन अधिनियम के खिलाफ 1985 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली जिस पर कोर्ट ने नए सिरे से सर्वे कर जमीन पर आदिवासियों को अधिकार देने का आदेश दिया। लेकिन ये आदेश आदिवासियों के लिए एक नई मुश्किल बन गया। कोर्ट के इस आदेश की आड़ में सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देकर उन बाहरी लोगों ने जिनका कभी इस जंगल से वास्ता नहीं था। आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लिया।

आदिवासियों ने इस ज़्यादती के खिलाफ़ संगठित हो कर आवाज़ उठायी तो केन्द्र सरकार ने दिसम्बर 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारम्परिक वनवासी अधिनियम पारित किया। इसके तहत आदिवासियों को उनके जंगल में जमीन का हक मिलेगा। इसके अलावा जो आदिवासी नहीं हैं लेकिन 75 सालों से जंगल में रह रहे हैं उनको भी जमीन पर कब्जा मिलेगा। इस काम के लिये 4 कमेटियां बनाई गई। लेकिन जब अभय ने सूचना के अधिकार के तहत कमेटी की सूची मांगी तो ये जानकर आश्चर्य हुआ कि बिना गांव के लोगों को शामिल किए इन कमेटियों का गठन कर दिया। जिन लोगों को इन कमेटियों का पदाधिकारी बताया गया था उनको ही इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो इसके सदस्य हैं।

जब अभय कुछ गांव वालों को इकठ्ठा कर मामले को अफसरों के सामने ले गए तो अक्टूबर 2008 में नए सिरे से नई ग्राम स्तर की कमेटी गठन करने का आदेश हुआ। कमेटी के सामने लगभग 55 हज़ार लोगों ने अपने दावे पेश किये। ये दावे आज तक कमेटी के दफ़्तर में धूल खा रहे हैं लेकिन एक भी दावेदार को जांच के बाद जमीन का पट्टा नहीं मिला है। इस तरह कल तक जो आदिवासी जल-जंगल-जमीन के मालिक थे आज दर बदर हैं। लेकिन ऐसा अधिक दिनों तक नहीं चल सकता। प्रशासन कितनी भी गहरी नींद में क्यों ना सो जाए अभय उसे जगा कर ही दम लेंगे।

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सोनभद्र में करोड़ों के खर्च के बावजूद नहीं पहुंचा पानी

आईबीएन-7 | Aug 26, 2012 at 08:30pm | Updated Aug 29, 2012 at 03:01pm
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सरकार ने पानी की व्यवस्था करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन नतीजा जस का तस रहा है। यहां के लोगों तक पानी पहुंचा ही नहीं है। आईबीएन-7 के सिटिजन जर्नलिस्ट सोनभद्र निवासी अमित बता रहे हैं कि सोनभद्र में अधिकारियों ने सिंचाई योजना की आड़ में किस कदर लूट मचाई है।
सोनभद्र के गांव हर साल पानी की भारी कमी से जूझते हैं। गर्मी में कई गांव के हैंडपंप सूख जाते है और हालात ऐसे हो जाते है कि महिलाओं को पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस इलाके में पेयजल और सिंचाई के लिए सालभर पानी उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल 2009 में एक योजना शुरू की गई थी।

योजना के तहत यहां बहने वाली पांडू नदी पर 23 चैकडैम बनाने का काम शुरू किया गया। काम 3 महीनों में यानी 30 जून 2009 तक पूरा कर लिया जाना था। आज चैकडैम के निर्माण की योजना शुरू हुए 3 साल बीत चुके हैं। सिटिजन जर्नलिस्ट अमित ने कई गांवों के चैकडैम का मुआयना किया।

कोन गांव का घगिया इलाके में बने चैक डैम के निर्माण में इतनी घटिया सामाग्री का इस्तेमाल किया गया कि वो पहली बरसात भी नही झेल पाया और धाराशायी हो गया। यहां के मजदूरों का कहना है कि उन्होंने ठेकेदार से कहा लेकिन ठेकेदार ने अच्छा माल नहीं लगाया। इस योजना से 12 गांव के लोगों को पानी की किल्लत से राहत मिलनी थी लेकिन ये चैकडैम लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं।

किशनपुरवा गांव के इलाके में भी मिली जानकारी के मुताबिक एक चैकडैम बनना था लेकिन वहां चैकडैम नजर ही नहीं आ रहा। किशनपुरवा गांव में चैकडैम बनना तो शुरू हुआ, लेकिन गढ्ढा खोदकर छोड़ दिया गया और इस काम में लगाए गए सैकड़ों मजदूरों की मजदूरी भी नहीं दी गई। गांव के सरपंच ने बताया कि तीन चैकडैम बनने थे लेकिन एक भी नहीं बना। मजदूरों की मजदूरी भी नहीं दी गई। रोरवा गांव इलाके में भी चैकडैम बनाना शुरू किया गया था। 3 साल में काम एक चौथाई ही हो पाया है। आधे अधूरे काम से पैसे भी बर्बाद हुए और नतीजा भी कुछ नहीं निकला।

सिटिजन जर्नलिस्ट ने जो तहकीकात की उसमें पाया कि 3 महीनों में बनने वाले चैकडैम 3 साल में भी नही बन पाए है। 23 में 3-4 चैकडैम ही बने है जो पूरी तरह कारगर नहीं हैं, 12-13 चैकडैम आधे अधूरे हैं और बाकी का काम अभी शुरू ही नहीं हुआ है। चैकडैम के निर्माण में हो रही गड़बड़ियो को रोकने के लिए अमित काफी समय से संघर्ष कर रहे हैं और इसके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।

लघु सिंचाई विभाग के इंजीनियर भी इस बारे में कुछ बोलने को राजी नहीं है ना ही उनकी आरटीआई का जवाब दे रहे हैं। जानकारी मांगने पर उनका कहना है कि इस काम की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत नहीं दी जा सकती। जबकि आरटीआई विशेषज्ञों का कहना है कि ये सूचना देना पब्लिक इंट्रेस्ट में जायज है।

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भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने पर दो बार हुए जानलेवा हमले



आईबीएन-7 | Jan 04, 2012 at 05:39pm

सोनभद्र। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सबसे बड़ी ताकत हिम्मत होती है। ऐसी ही व्यवस्था के सामने डट कर खड़े हैं सोनभद्र से सिटिज़न जर्नलिस्ट डॉ. अमरनाथ देव पांडे। उनपर दो बार जानलेवा हमले हो चुके हैं। लेकिन वो जान की परवाह किए बिना भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं।
अमरनाथ देव पांडे पर 20 और 26 जनवरी 2010 को जानलेवा हमले हुए। इसकी वजह ये थी कि उन्होंने अपने गांव में महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। लेकिन उनके प्रयासों को हमलावर रोक नहीं सके और उनकी कोशिशों का नतीजा था कि यहां केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और राज्य क्वॉलिटी मॉनिटर की अध्यक्षता में जांच के लिए समितियां आई। दोनों समितियों ने जांच में पाया कि मनरेगा के तहत सोनभद्र में एक साल में 250 करोड़ खर्च किए गए हैं जिसमें भारी अनियमितताएं हुई हैं। जांच समितियों ने हेराफेरी में कई लोगों को दोषी पाया और उनके खिलाफ़ कार्रवाई करने और उनसे लाखों रुपए का धन वसूलने का प्रस्ताव रखा। इसी आधार पर उत्तर प्रदेश ग्राम विकास आयुक्त ने जिलाधिकारी को चिट्टी लिखकर दोषी पाए गए लोगों के खिलाफ़ तुरंत कार्रवाई का निर्देश दिया। इस मामले में अभी जांच चल रही है।

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सपा से कांग्रेस में आए उम्मीदवार का पर्चा हो गया खारिज

 | Jan 30, 2012 at 06:24pm | Updated Jan 30, 2012 at 06:46pm


लखनऊ। उत्तरप्रदेश चुनाव में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। उसके एक मजबूत समझे जा रहे उम्मीदवार का नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया है। इस प्रत्याशी के लिए राहुल गांधी ने भी रैली की थी। सात बार विधायक रह चुके विजय सिंह गौड़ हाल ही में सपा से कांग्रेस में शामिल हुए थे। गौड़ ने सोनभद्र जिले के दुद्धि से पर्चा भरा था।

विजय सिंह गौड़ सात बार के विधायक रहे हैं। इस चुनाव में उन्हें समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया था। लेकिन गौड़ ने सपा से नाता तोड़ लिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने भी उन्हें अपने टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए आगे कर दिया।

विजय सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार करने खुद कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी रैली की लेकिन सारे राजनीतिक पैंतरे उस समय फेल हो गए जब नामांकन पत्र की जांच के दौरान विजय सिंह गौड़ का पर्चा खारिज हो गया। विजय सिंह के साथ-साथ ये कांग्रेस के लिए भी एक बड़ा झटका है।
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चकबंदी योजना के नाम पर किसानों से धोखाधड़ी

 | Jan 10, 2013 at 07:01pm



सोनभद्र। किसानों को राहत पहुंचाने की नीयत से लागू की गई चकबंदी योजना ने सैकड़ों किसानों जिंदगी बर्बाद कर दी है। सोनभद्र रहने वाले शांति प्रकाश बता रहे हैं कि किस तरह उनके इलाके में चकबंदी के नाम पर सैकड़ों किसानों का वो हाल कर दिया गया कि किसान दर-दर भटक रहे हैं।

दरअसल सोनभद्र के परसौना गांव के सैकड़ों किसानों के सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। सरकारी रिकार्ड में इन्हें मरा हुआ दिखाकर इनकी जमीन इनसे छीनी जा रही है। सिटिजन जर्नलिस्ट शांति प्रकाश इन लोगों को हक दिलाने के लिए लड़ रहे हैं। सरकार ने 1995 में परसौना गांव में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू की थी। मकसद था गांव की जमीन को पुनर्नियोजित करना जिससे किसानों की टुकड़ों में बंटी जमीन को एक चक के रूप में उपलब्ध कराया जा सके। लेकिन परसौना गांव में चकबंदी प्रक्रिया के दौरान काफी गड़बड़िया हुई।

विभागीय साठ-गांठ के चलते गांव के कुछ दबंग और प्रभावशाली लोगों ने मनमाने ढंग से अच्छे चक अपने नाम करा लिए हैं और मूल काश्तकार को जंगल में बेकार जमीन दे दी गई है। चकबंदी के बाद कई किसानों की भूमि घट रही है तो कुछ लोगों ने भूमि बढ़ाकर पैमाइश करा ली है। गांव के कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें रिकार्ड में मृत दर्शाकर उनकी जमीन दूसरे लोगों के नाम दर्ज कर दी गई है। चकबंदी में हुई गड़बड़ियों को ठीक करवाने के लिए परसौना गांव के किसान लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

किसानों के लिए आवाज उठाने पर सिटिजन जर्नलिस्ट को गड़बड़ी करने वालों की तरफ से धमकियां मिलने लगी। दो बार जानलेवा हमले भी हुए जिसकी प्राथमिकी दर्ज कराई गई। यहीं नहीं, झूठे केस में फंसाने की कोशिश भी चल रही है। लगातार संघर्ष का नतीजा ये रहा कि इस पूरे मामले की जांच पूर्व जिलाधिकारी ने करवाई जिसमें गड़बड़ी सामने आई। उन्होंने चकबंदी निरस्त किए जाने की संस्तुती भी की। लेकिन काफी वक्त बीत जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई। उन जिलाधिकारी का तबादला हो जाने के बाद आए जिलाधिकारी ने भी न्याय दिलाने का आश्वासन दिया है।
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