गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

मनरेगा में हुई लाखों की धांधली का ऐसे हुआ पर्दाफाश

आईबीएन-7 | Aug 07, 2013 at 04:08pm | Updated Aug 07, 2013 at 04:18 pm (संकलन)


सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में रहने वाले सिटिज़न जर्नलिस्ट प्रमोद चौबे बता रहे हैं कैसे मनरेगा के नाम पर कुछ भ्रष्ट लोगों ने ना सिर्फ सरकारी खजाने को चूना लगया, बल्कि गरीब मजदूरों का पैसा भी हड़प गए। सिटिजन जर्नलिस्ट प्रमोद चौबे एक किसान हैं और सोनभद्र के गोहणा गांव का रहते हैं। प्रमोद चौबे गांव में मनरेगा के तहत तालाब बनाने के नाम पर किस तरह सरकारी पैसे का दुर्उपयोग किया गया ये बताना चाहता हैं।

गोहणा गांव के पास एक नाला बहता है जिसे महदानी नाला कहते हैं। इस नाले पर (2003 साल) में भूमि संरक्षण विभाग ने एक चैक डैम बनाया था। जिससे यहां पानी इकट्टठा हो और लोग अपने खेतों की सिंचाई और पीने के पानी की जरूरत पूरा कर सके। चैक डैम से यहां काफी पानी इकट्ठा था। यहां पहले से बंधी होने के बावजूद साल 2010 में तात्कालीन प्रधान ने यहां मरनेगा के तहत तालाब बनाने की योजना बनाई और इसकी स्वीकृती ले ली। यहां तालाब बनाने का कोई औचित्य ही नहीं था क्योकि यहां तो पहले ही बंधी में पानी इकट्ठा था। इस काम की स्वीकृती ग्राम प्रधान के मांग पत्र पर दी गई। नियम के मुताबिक मांग पत्र पर ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एंव तकनीकी सहायक के हस्ताक्षर नही कराए गए। यहां तालाब बनाए जाने की जरूरत है या नहीं, ये किसी अधिकारी ने आकर जांच भी नहीं की और काम शुरू कर दिया गया। जिसमें कई गडंबडियां हुई। 

रामदास का कहना है कि परियोजना की जगह पर पुरानी बंधी थी। जिसमें दोनों तरफ बोल्डर की पिचिंग थी, उसमें से बोल्डर को उखाड़कर पूर्व प्रधान ने किसी दूसरी परियोजना में इस्तेमाल कर लिए। मौके पर इनलेट और आउटलेट का निर्माण मानक के मुताबिक न करा कर बिलकुल औचित्यहीन तरीके से कराया गया। तालाब के आउटलेट वाले किनारे के पास जेसीबी से पुरानी बंधी को काट दिया गया है। जिससे तालाब से उपयोगी पानी बेकार में बह जाएगा।

मनरेगा का उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए होता है। लेकिन यहां लोग अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। दरअसल तात्कालीन प्रधान ने जेसीबी मशीन से नाले के दो किनारों से मिट्टी उठवाकर एक तरफ डलवा दी। जिससे नाला एक चौकोर तालाब की शक्ल का हो गया। इसके बाद मजदूरों का फर्जी मस्टर रोल बनाकर 7 लाख 84 हजार रुपये की किश्त निकाल ली। यहां जेसीबी से काम किया गया। फिर सिर्फ दो हफ्ते ही मजदूरों को काम दिया गया। यहां जिन मजदूरों ने काम किया है उन्हें पैसे का भुगतान अभी तक नही किया गया है। मजदूर शंभू ने कहा कि मैंने परियोजना में एक हफ्ते काम किया, लेकिन मजदूरी नहीं दी गई। जब मजदूरी मांगते है तो कहते है कि मिल जाएगी। कब मिलेगी। हमारे जॉबकार्ड में मनमाने तरीके से प्रधान लिख देते हैं और मजदूरी भेज दी जाती है। और फिर गांव पर ही विड्रॉल फॉर्म हस्ताक्षर कराकर बैंक से धनराशी निकाल ली जाती है। 

हमने यहां हुई गडबड़ियो की शिकायत खंड विकास अधिकारी और जिला प्रशासन में की। कई बार संबंधित अधिकारियों और जिला कलेक्टर से भी इस सिलसिलें में मुलाकात भी की। काफी जद्दोजहद के बाद यहां विकास खंड़ बभनी से जांच कराई गई। और उन्होंने भी तालाब के औचित्यहीन होने और गड़बड़ियों के बारे में अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया। अधिकारी की रिपोर्ट में लिखा है की बैंक को भेजी गई मजदूरों की सूची में कहीं भी ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है। इस परियोजना के मस्टर रोल पर जिस व्यकित के हस्ताक्षर है, उसने लगभग 100-100 मजदूरों की हाजिरी अकेले दर्ज की है और पूरे काम पर कोई भी मजदूर किसी भी दिन अनुपस्थित नहीं हुआ है। इससे साफ है मस्टर रोल भरने में गड़बड़ी की गई है।

रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि लोगों के पास बैंक की पासबुकों को देखने से साफ हुआ कि बैंक भी इस साजिश में सम्मिलित प्रतीत होता है, क्योंकि पासबुकों में जमा धनराशी और निकाली गई घनराशी का विवरण साफ नहीं है। जिससे लाभार्थी यह नहीं जान पाते कि उनके खाते में कितना धन आया और कितना निकाल गया। रिपोर्ट में गड़बड़ियां पाए जाने के बाद भी आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। ऐसे मामलों में जांच के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है और पैसे वापस लेने की कार्रवाई की जाती है। जांच की रिपोर्ट जस की तस खंड विकास अधिकारी के पास पड़ी है।

IBNkhabar के मोबाइल वर्जन के लिए लॉगआन करें m.ibnkhabar.com पर!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें