आईबीएन-7 | Aug 26, 2012 at 08:30pm | Updated Aug 29, 2012 at 03:01pm
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सरकार ने पानी की व्यवस्था करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन नतीजा जस का तस रहा है। यहां के लोगों तक पानी पहुंचा ही नहीं है। आईबीएन-7 के सिटिजन जर्नलिस्ट सोनभद्र निवासी अमित बता रहे हैं कि सोनभद्र में अधिकारियों ने सिंचाई योजना की आड़ में किस कदर लूट मचाई है।
सोनभद्र के गांव हर साल पानी की भारी कमी से जूझते हैं। गर्मी में कई गांव के हैंडपंप सूख जाते है और हालात ऐसे हो जाते है कि महिलाओं को पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस इलाके में पेयजल और सिंचाई के लिए सालभर पानी उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल 2009 में एक योजना शुरू की गई थी।
योजना के तहत यहां बहने वाली पांडू नदी पर 23 चैकडैम बनाने का काम शुरू किया गया। काम 3 महीनों में यानी 30 जून 2009 तक पूरा कर लिया जाना था। आज चैकडैम के निर्माण की योजना शुरू हुए 3 साल बीत चुके हैं। सिटिजन जर्नलिस्ट अमित ने कई गांवों के चैकडैम का मुआयना किया।
कोन गांव का घगिया इलाके में बने चैक डैम के निर्माण में इतनी घटिया सामाग्री का इस्तेमाल किया गया कि वो पहली बरसात भी नही झेल पाया और धाराशायी हो गया। यहां के मजदूरों का कहना है कि उन्होंने ठेकेदार से कहा लेकिन ठेकेदार ने अच्छा माल नहीं लगाया। इस योजना से 12 गांव के लोगों को पानी की किल्लत से राहत मिलनी थी लेकिन ये चैकडैम लोगों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं।
किशनपुरवा गांव के इलाके में भी मिली जानकारी के मुताबिक एक चैकडैम बनना था लेकिन वहां चैकडैम नजर ही नहीं आ रहा। किशनपुरवा गांव में चैकडैम बनना तो शुरू हुआ, लेकिन गढ्ढा खोदकर छोड़ दिया गया और इस काम में लगाए गए सैकड़ों मजदूरों की मजदूरी भी नहीं दी गई। गांव के सरपंच ने बताया कि तीन चैकडैम बनने थे लेकिन एक भी नहीं बना। मजदूरों की मजदूरी भी नहीं दी गई। रोरवा गांव इलाके में भी चैकडैम बनाना शुरू किया गया था। 3 साल में काम एक चौथाई ही हो पाया है। आधे अधूरे काम से पैसे भी बर्बाद हुए और नतीजा भी कुछ नहीं निकला।
सिटिजन जर्नलिस्ट ने जो तहकीकात की उसमें पाया कि 3 महीनों में बनने वाले चैकडैम 3 साल में भी नही बन पाए है। 23 में 3-4 चैकडैम ही बने है जो पूरी तरह कारगर नहीं हैं, 12-13 चैकडैम आधे अधूरे हैं और बाकी का काम अभी शुरू ही नहीं हुआ है। चैकडैम के निर्माण में हो रही गड़बड़ियो को रोकने के लिए अमित काफी समय से संघर्ष कर रहे हैं और इसके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
लघु सिंचाई विभाग के इंजीनियर भी इस बारे में कुछ बोलने को राजी नहीं है ना ही उनकी आरटीआई का जवाब दे रहे हैं। जानकारी मांगने पर उनका कहना है कि इस काम की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत नहीं दी जा सकती। जबकि आरटीआई विशेषज्ञों का कहना है कि ये सूचना देना पब्लिक इंट्रेस्ट में जायज है।
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