आईबीएन-7 | May 27, 2010 at 04:18pm | Updated May 28, 2010 at 06:51pm
सोनभद्र। सोनभद्र जिले के महेंद्र अग्रवाल पिछले 20 साल से पानी में फैले जहर को खत्म करने की मुहिम छेड़े हुए हैं। गंदे पानी की वजह से उनकी 24 साल की इकलौती बेटी रानी ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं। उसे पीलिया हो गया था। नवंबर में गांव के एक दर्जन से भी ज्यादा लोग मारे गए।
महेंद्र अग्रवाल का संघर्ष पानी में घुले उस जहर के खिलाफ है जो यहां के लोगों के लिए बीमारी और मौत की वजह बन रहा है। सोनभद्र जिले में लोग भूमिगत पानी पर निर्भर हैं। गर्मियों के मौसम में भूमिगत पानी का स्तर नीचे होने पर लोग रिहंद डैम का पानी इस्तेमाल करने लगते हैं। यहां के ग्रामीण इलाकों में लोग जो पानी इस्तेमाल कर रहे हैं वो पीने लायक नहीं है। कई संस्थाएं यहां के पानी की जांच कर इसमें जहर की मौजूदगी पा चुकी हैं। पीने के पानी में फ्लोराइट की मात्रा 1 एमजी प्रति लीटर होनी चाहिए जबकि ये यहां 7 एमजी प्रति लीटर है। पारे की मात्रा .001 एमजी प्रति लीटर होना चाहिये पर ये .005 है। यानी सभी केमिकल सामान्य से कई गुना ज्यादा हैं।
लोगों को प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के लिए महेंद्र गांव-गांव का दौरा करते हैं। हर घर में जाकर साफ पानी के अधिकार के बारे में बताते हैं। जनसुनवाइयों में लोगों की बात रखते हैं। 2005 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की। कोर्ट ने प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को निर्देश दिए। लेकिन हालात नहीं बदले। पानी जैसी बुनियादी जरूरत पूरी हो सके इसलिए महेंद्र ने जिला प्रशासन, संबंधित विभागों के अधिकारियों से लेकर प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति तक से गुहार लगाई है। मानवाधिकार आयोग ने उनके आवेदन पर जांच के आदेश भी दिए लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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