रविवार, 27 अप्रैल 2014

इन्दिरा आवास निर्माण को वन भी विभाग ने गिराया।


"म्योरपुर विकास खण्ड के अन्तर्गत ऐसे कई इन्दिरा आवास के पात्र परिवर है जिन्हे बीपीएल परिवार के आधार पर आवास योजना का पात्र तो माना गया है, परन्तु आवास बनाने के लिये उनके पास कोई भूमि नहीं होने के कारण इस योजना को लाभ पात्र होने के बावजूद भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है। " 
" इन्दिरा आवास योजना के तहत 75 हजार की राषि दो किष्तो में पात्रों को दी जानी है। दो किष्तो की राषि में प्रथम किष्त 37,500 की राषि का भुगतान किये जाने के बाद उस राषि से आधा निर्माण कार्य कराये जाने के बाद आवास की फोटो जमा करने पर दूसरी किष्त जारी की जाती है।"
जहाँ एम ओर सरकार गरीबों को उनका आवास देने की इच्छा से इन्दिरा आवास के नाम पर धन बाटने का कार्य कर रही है, वहीं जंगल विभाग सरकारी धन से बनाये जा रहे उन आवासों को बिराने का काम कर रही है। मामला है म्योरपुर विकासखण्ड के ग्राम-पाटी का। जहाँ ग्राम के ही निवासी रामसुभाग खरवार व वंष बहादुर खरवार को राष्ट्रीय इन्दिरा आवास योजना के तहत बीपीएल परिवारों को अपना आवास निर्मित करने वाली आवास योजना के तहत दो किष्तो में दी जाने वाली राषि के प्रथम किष्त का भुगतान किया जा चुका है, उस धन से दोनों ने अपना-अपना आवास लगभग निर्मित कर लिया था। दूसरी किष्त के लिये अर्धनिर्मित आवास की फोटो ब्लाक में खिचने के पश्चात ही राषि का भुगतान किया जाना था। परन्तु फोटो खीचने के पहले ही वन विभाग द्वारा बुधवार के दिन उन दोनो के अर्धनिर्मित मकानों को यह कहते हुए गिरा दिया गया कि ये दोनों मकान वन विभाग की भूमि पर बनाये जा रहे थें। इसलिये इन्हें विभाग के संज्ञान में आने पर गिरा दिया गया है। वहीं इन्दिरा आवास पात्र लाभार्थियों का कहना है कि जिस भूमि पर वें अपना आवास बना रहे थें, वह भूमि उनके वर्षो की जोत-कोड़ और कब्जे की भूमि है एवं उक्त भूमि दोनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम के तहत वनाधिकार समिति के समक्ष अपना दावा भी प्रस्तुत किया था, जिस पर उन्हें अभी तक अधिभोग पत्र जारी नहीं हो पाया है। दोनों ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने हमें बीपीएल परिवार मानते हुए आवास तो दे दिया, परन्तु हमारें पास अपने पीढ़ीयों की जोत-कोड़ की जंगल की कब्जे की भूमि के अलावा कहीं भी भौमिक अधिकार या भूमि नहीं है ऐसी स्थिति में हम अपना आवास बनाये तो कहा बनाये। 

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