गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तेल के दाम ऊचाईयों की ओर अग्रसर।

सोनभद्र अरब देषों में अस्थिरता के चलते कच्चे तेल के दाम नई ऊचाईयों की ओर अग्रसर हैं। जिसके चलते जहाँ एक ओर महंगाई काबू में नही आ रहीं है। वही आॅयल सब्सिडी का बोझ बढ़ने से सरकार के राजकोषीय घाटे के बढ़ने का खतरा है। इससे निपटने के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम तो बढ़ाये जाते रहे है लेकिन आम लोगों र्का इंधन कहे जाने वाले केरोसिंन पर दी जा रही रियायत सरकार को भारी पड़ रही है। विडंबना यह है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरित होने वाले केरोसिन का बड़ा हिस्सा जरूरत मंदांे के बजाय डीजल मे मिलावट करने के लिए पेट्रोल पंपों और खुले बाजार में विक्रय के लिए कालाबाजारियों के पास पहुंच रहा है। 

उत्तर प्रदेष के सोनभद्र जैसे जिलों में तो आपूर्ति विभाग के अधिकारियों और केरोसिन माफिया के गठजोड़ ने एक फुलप्रुफ नेटवर्क स्थापित कर लिया है जिसके अतंर्गत तेल के इस खेल में प्रतिमाह लाखों के वारे-न्यारे हो रहे है। वैसे तो सोनभद्र की पहचान यहां स्थापित उद्योगों के चलते रही है लेकिन जिले का म्योरपुर विकास खण्ड बेहद औद्योगिंक सघनता का क्षेत्र है। यहा बिजली उत्पादन और कोयला खनन में संलग्न लगभग आधा दर्जन परियोजनाएं स्थापित है जिनमें हजारों की संख्या में कर्मचारी-अधिकारी कार्यरत है जो षतप्रतिषत गैस कनेक्सन धारक है और भोजन पकाने के लिए इनके घरों में एलपीजी का ही इस्तेमाल होता है हांलाकि यह सभी कर्मी राषन कार्ड धारक भी है जिसके चलते वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अतंर्गत मिलने वाले सभी समानों को लेने की पात्रता रखते है लेकिन आवष्यकता न होने के कारण लगभग नब्बे फिसदी से अधिक परियोजना कर्मचारी व अधिकारी केरोसिन लेने में रूचि नहीं दिखाते और यही से तेल का वह खेल ष्षुरू होता है जो वर्षों से जारी है जो ‘पीडीएस’ में राष्ट्रीय स्तर पर जारी भष्ट्राचार की एक बानगी भी है। आष्र्चय की बात है कि इन हजारेां कर्मचारी कार्ड धारकों द्वारा अपने हिस्से का केरोसिन न लेने के बाद भी जिलापूर्ति विभाग की देख-रेख मंे गोदाम से उसकी पूरी मात्रा का उठान प्रतिमाह किया जाता है लेकिन लाखों की कीमत का यह तेल जाता कहा  है इसे बताने के लिए कोई जिम्मेदार तैयार नहीं है इन राषन कार्डों में तो केरोसिन वितरण संबंधी कोई विवरण दर्ज नहीं है लेकिन आपूर्ति विभाग से अभिलेखों में सब कुछ दुरूस्त दिखाया जाता है सूत्रों से पता चला है आपूर्ति विभाग के अधिकारियों और कोटेदारों द्वारा आपसी मिली भगत से सरकारी सब्सिडी वाले इस सस्ते तेल को पेेट्रोल पंम्पों पर बेच दिया जाता है जहा इसे महंगे डीजल में मिला दिया जाता है साथ ही इसे खुले बाजार में भी बेचा जाता है जिसे गरीब लोग लगभग तीन गुने कीमत पर खरीदते है। इससे होने वाली मोटी कमाई ने संबंधित सरकारी कर्मियों व कोटेदारों की खाल इतनी मोटी कर दी है कि सवाल करने वाले लोगों को वे धमकाने तक से बाज नहीं आते है। 

इस दौरान आवष्यकता इस बात की है कि व्यापक जांच कराकर गैर जरूरत मंदों के लिए आवंटित केरोसिन कोटे को सोनभद्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्रांे के लिए आवंटित किया जाय। इससे जहाँ गरीबों के घर रोषन होगे वहीं काली कमाई के चलते बना भष्ट जिला आपूर्ति विभाग केरोसिन माफिया और कोटेदारों का नापाक गठजोड़ टूटेगा। यह भष्ट्राचार से जुड़ा मसला तो है ही साथ ही अपराध से भी जुड़ा है क्योकिं  प्रेट्रो पदार्थों के काला बाजारियों मिलावट खोरों के मनेाबल के बढ़ने देने का दुष्परिणाम यूपी में एम. मजंनाथ और महाराष्ट के एडीएम सेानावणे की हत्या के तौर पर देखा जा चुका है साथ ही पत्रकार जे डी ही हत्या भी इसी संदर्भ में की गयी थीं। बेहतर होगा षासन वक्त रहते चेत जाए। नहीं तो इस कालाबाजारी व भष्ट्राचार के खिलाफ उठने वाले हर आवाज को ऐसे ही दबा दिया जायेगा।

विरोध प्रदर्शन को सामंती तरिके से दबाने का उदाहरण सिर्फ उ0प्र0 में ही संभव है। -पंकज कुमार मिश्रा

यह बात तब की है जब वर्ष 2008-2009 में प्रदेष में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस समय उ0प्र0 सरकार की दमनकारी नितियाँ अपने चरम पर है। देश के लोकतान्त्रिक परिदृष्य को धता बताते हुए तानाशाही अब मौलिक स्वरूप को प्राप्त कर चुकी है। इसका ताजातरीन उदाहरण सोनभद्र में पिछले कुछ सालों में विस्थापित हुए आदिवासी-दलितो के एक विरोध प्रदर्शन की कार्यवाही के रूप में दिखायी दिया।  प्रदेश की मुखीया के पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरोध करना आदिवासियों दलितो के नेता पंकज मिश्रा को महंगा पड़ा। सोनभद्र में भारी संख्या में आदिवासीयो/दलितो ने प्रदेश सरकार के प्रतिकात्मक पुतले को नोटो की माला पहनाकर विरेाध प्रदर्शन किया। लेकिन लोकतांत्रिक रूप में किए गए विरोध स्थानीय पुलिस ने धारा 144 और अन्य कई धाराओ में आदिवासीयो के नेता और समाजसेवी पंकज कुमार मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया। जमीदारी उन्मूलन के बावजूद भी सन् 1952 से वन विभाग, खनन विभाग, और अन्य सरकारी विभागो के झंझावातो के बीच जुझते हुए आदिवासीयो/दलितो को पंकज कुमार मिश्रा के रूप में उजाले की एक लकीर मिली थी। लेकिन लोकतान्त्रिक तरिके से विरोध प्रदर्शन को सामंती तरिके से दबाने का उदाहरण सिर्फ उ0प्र0 में ही संभव है। 

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

जिले में सूचना के अधिकार की धज्जियां उड़ा रहे हैं अधिकारी

सरकार लगातार नए नए कानून बना कर कितनी भी वाहवाही लूटने की कोशिश करे, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। कंेद्र सरकार और प्रदेश सरकार के द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर जनहित से जुडी अनगिनत योजनाए चलाई जा रही है। इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर आम लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए अधिकारियों के ऊपर निगरानी में अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन यह अधिकारी पंचायत स्तर चलने वाली योजनाओं के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने से एतराज कर रहे है और सूचना के अधिकार के कानून की धज्जियां उडा रहे है। 

जानकारी के अनुसार, शक्ति आनन्द, ग्राम-औड़ी, जिला-सोनभद्र  में रहते है। उन्होंने ग्राम पंचायत औड़ी, कुलडोमरी, अनपरा, परासी, ककरी, रेहटा आदि में भारत सरकार और प्रदेश सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी सूचना के अधिकार कानून के तहत म्योरपुर ब्लाक से मांगी थी। इसमे ग्राम पंचायत कार्य की वार्षिक रपट, निर्माण कार्य की प्रगति रपट, नाप तौल व विकास कार्यो के रजिस्टर की कापी, नरेगा में दो वर्षो में कितने लोगों ने कार्य किया, गरीब आवासीय योजना में लाभ पाने वाले लोगों के नाम, अतिरिक्त बीपीएल सूची और मिड डे मील में खाने की स्थित के बारे में लिखित प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन उनकों योजनाओं के कार्यो के बारे में जानकारी नहीं दी गई। 

शक्ति आनन्द ने ग्राम पंचायत की जानकारी के लिए कार्यालय खण्ड विकास अधिकारी म्योरपुर, जिला पंचायत राज अधिकारी, सेानभद्र, मुख्य विकास अधिकारी, सोनभद्र से कई बार विभिन्न विषयों पर सूचना मांगी थी। हालांकि उन्हें यहां से भी कोई भी जानकारी नहीं दीं गई। इसके बाद उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त लखनऊ उत्तर प्रदेश के यहां अपील की। मगर अभी तक यहां से भी सूचना के अधिकार के लिए कोई कार्यवाई नहीं की गई। सूचना के अधिकार कानून के तहत खण्ड विकास अधिकारी और जिला विकास अधिकारी ने भी योजनाओं की सूचना नहीं दी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी सूचना के अधिकार के तहत सूचना नहीं देने के साथ-साथ इस अधिनियम की खुले आम धज्जियां उड़ा रहे है। 

"अपने गांव के आस-पास स्थित ग्रामों में विकास कार्यो व उनमें गुणवत्ता की जानकारी के लिये लगभग तीन वर्षो से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना ब्लाक स्तर से लेकर जिला स्तर तक मांगी जा चुकी है, परन्तु कुछ एक को छोड़कर ज्यादातर मामलों में उन्हें अभी तक कोई जानकारी सम्बन्धित विभागों द्वारा नहीं प्राप्त कराई गई, कई बार उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग द्वारा सम्बन्धित विभागों को सूचना उपलब्ध कराने हेतु नोटिस भी जारी की गई है। लेकिन फिर भी अधिकारी टस से मस नहीं हुए और विकास कार्यो के सन्दर्भ में कोई जानकारी देने में आनाकानी करते है।"  - शक्ति आनन्द, ग्राम-औड़ी, जिला-सोनभद्र 

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

उर्जाचंल मे बेखौफ नकली दवा का चल रहा कारोबार

विगत काफी दिनो से उर्जाचंल परिक्षेत्र मे बडे पैमाने पर नकली दवाओं का कारोबार बेहिचक चल रहा हैै। जिसके लिये न कोई जनप्रतिनीधी या सरकारी अफसर को ही कोई सुध है। बिना मान्यता प्राप्त के ही अनगीनत पैथोलाजी सेन्टर चल रहे है कोई भी मरीज मर्ज से राहत न मिलने पर डाक्टर को ही दोषी ठहराता है। डाक्टर द्वारा लिखे रक्त जाचं पेषाब जाचं या मल जॅंाच को बिना मान्यता प्राप्त पैथोलाजी सेन्टर से मिले गलत रिपोर्ट के आधार पर डाक्टर द्वारा दवा लिखना और मेडिकल स्टोर से नकली दवा मीलना मरीज को सीधा मौत का रास्ता दिखा रहा है। किसी धायल व्यक्तिी को चोट लगने के बाद किए गये एक्सरे मे डाक्टरो द्वारा हड््डी मे हेयर कै्रक के नाम पर पन्द्रह दिन से एक महीने के लिए प्लास्टर चढा देना डाक्टरो के लिए आम बात हो गया है। 

अनपरा चिकित्सालय मे जो भी दवा र्कमचारीयो के लिए या ग्रामीणो के लिए आती है उसे बडी सफाई से वहां के र्कमचारी अस्पताल से निकाल कर नजदीकी मेडीकल स्टोरो पर कम दामो पर बडी सफाई से बेच देते है। समस्त डाक्टरो से प्रार्थना है कि मराीज के र्मज को अगर नही पकड पाते है तो उन्हे उचित समय पर अच्छे जगह पर ईलाज के लिए रेफर कर दें। न की उस पर रिर्सच कर मरीज को मौत की राह पर ले जाये इलाज के नाम पर चल रहे अवैध गोरख घन्धे पर कडाई से लगाम लगाने की जरुरत आ गयी है। जनता का खामोश रहना इस व्यवसाय को बढावा दे रहा है। प्रदूषण नियन्त्रण विभाग द्वारा जब भी किसी पावर प्लाटं को कारखाना बनाने की अनुमति प्रदान की जाती है। तब मुख्यतः पांच चीजो को नजदीकी ग्रामीण क्षेत्र को प्रदान करनी होती है। पानी, रोड, शिक्षा, चिकित्सा, और बिजली तभी कारखाना खोलने की अनुमति मिलती है। 

निजी संस्थानो द्वारा ग्रामीण क्षेत्र को यह सभी सुविधा मिल रहा है। अनपरा कारखाने द्वारा यह सुविधा मात्र डिबुलगंज को ही दिया जा रहा है। अनपरा कारखाने के खुलते समय अधिकृ््ृति की गयी जमीनो मे काफी हिस्सा औडी एवं अनपरा ग्राम सभा का सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था। इसके बाद भी ये ग्राम सभा इन पॅाचो सुविधा से वंचित है। औडी ग्राम सभा के बच्चो को स्कूल जाने हेतू सडक मार्ग न देना, रोड की व्यवस्था इनकी स्वयं खराब है। इससे भी औडी वासी वंचित है, पानी एवं बिजली ये केवल डिबुलगंज को ही मुहैया करा रहे है। चिकित्सालय मे इनके कोई भी चिकित्सक इलाज हेतू बैठता ही नही है। सभी चिकित्सक अपने धरो पर परामर्श शुल्क 200 रु ले कर ही ग्रामीणो का इलाज करते हुए बडी आसानी से देखे जा सकते है। जनप्रतिनिघी केवल सडको पर प्रर्दशन कर अखबार मे फोटो खिचवा कर ही इसे हासील करने मे अपना बडप्पन समझते है, जबकी न्यायालय द्वारा इसे सहजता से हासिल कर सकते है। पहले के डाक्टर को जनता भगवान की नजर से देखते थे। अब के डाक्टर को धनवान की नजर से देखा जाता है।                                                                                                                                                                                         

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

लालटावर का आदर्श तालाब हो रहा प्रदूषित

कूड़े से पाटा जा रहा है तालाब
साफ-सफाई के अभाव में तेजी से खो रहा है अपना अस्तित्व

ग्राम सभा अनपरा के लालटावर बस्ती में बनाया गया आदर्श तालाब गंदगी से पटता जा रहा है। आलम यह है कि आसपास के बस्ती के लोग अपने घरों का कूड़ा इस तालाब में फेंककर इसका अस्तित्व ही समाप्त करने पर तुले हुए हैं। वहीं ग्राम सभा सहित अन्य कार्यदायी संस्था भी इसका साफ-सफाई कराने में कोई रुचि नहीं ले रही है। तीन वर्ष पूर्व अनपरा ग्राम सभा के लालटावर बस्ती में बना आदर्श तालाब गंदगी के चलते मच्छर प्रजनन का महफूज स्थान हो गया है। डाला छठ के समय तो इस घाट पर मेले की मानिंद भीड़ लगती थी। लेकिन गंदगी के चलते इस साल नाम मात्र के लोग ही इस घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आए। जिन वजहों से इस तालाब का निर्माण किया गया था वह रख-रखाव के अभाव में पूरा नहीं हो पा रहा है। न तो इस तालाब के साफ-सफाई का कोई प्रबंध नहीं है। इस महत्वपूर्ण तालाब को अगर सहेज कर नहीं रखा गया तो शीघ्र ही इसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। अनपरा गांव में चार सफाई कर्मियों की नियुक्ति की है लेकिन वे काम के प्रति उदासीन हैं। बीस लाख की लागत से बना यह तालाब वर्तमान में लाभ से अधिक हानिकारक सिद्ध हो रहा है कहा कि इस तालाब में बजबजा रही गंदगी में अनगिनत मच्छर पनप रहे हैं, उन्होंने इसकी नियमित सफाई की मांग की। 

 कैलाश घूसिया
" वर्तमान में वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग के किनारे काशीमोड़ पर पक्की नाली बनाने का कार्य चल रहा है, जैसे ही यह पूरा होगा इस तालाब की भी साफ-सफाई करा दी जाएगी।" - कैलाश घूसिया, ग्राम प्रधान, अनपरा।

एक जमीन के लिए दो बार मुआवजा चाहते हैं प्रभावित लोग

दादा ने लिया मुआवजा, अब नाती लाइन में
नई भूमि अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजे के लिए केस
ग्राम सभा की ओर से हाईकोर्ट पहुंचा अधिग्रहण का मामला

कनहर सिंचाई परियोजना अब भी मकड़जाल में फंसी हुई है। इसमें दादा ने मुआवजा ले लिया, अब उनके नाती मुआवजा की दावेदारी कर रहे हैं। इनकी मांग है कि पुनर्स्थापित के बाद ही उनकी जमीन ली जाए। कुछ मामले ऐसे भी हैं कि जो मुआवजा कम मिलने की दलील देकर कोर्ट चले गए हैं। ग्राम सभा की ओर से दायर मुकदमे में नई अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजे की मांग की गई है।

कनहर सिंचाई परियोजना का उद्घाटन 1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस परियोजना से हजारों एकड़ जमीनों को खेती के लिए पानी देना था। इसमें 11 गांव के लोगों को विस्थापित होना है। इसमें सबसे ज्यादा दिक्कत जमीन अधिग्रहण में आती रही। कुछ लोग इसका विरोध भी करते रहे। दूसरे इस योजना को सियासत ने भी लटका दिया। सरकार बदलती गई लेकिन योजना शुरू नहीं हो सकी। 1979-81 के बीच कुछ लोगों को दो हजार रुपये बीघा के हिसाब से मुआवजा दिया गया। साथ में प्लाट देने का भी वादा किया था। सूत्रों के अनुसार उनकी जमीन का ट्रांसफर नहीं कराया गया। यानी रिकार्ड में अब भी जमीन इनकी है। इन लोगों ने दोबारा मुआवजे के लिए कोर्ट का सहारा ले लिया है। जिस जमीन का मुआवजा दिया जा चुका है। उसके परिवार के दूसरे दावेदार तैयार हो गए हैं। ग्राम सभा की ओर से दायर किए गए मुकदमे में नई अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजा देने की बात की गई है।

इधर सात नवंबर को सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने कनहर परियोजना का शुभारंभ कराया। इसके साथ दस करोड़ रुपये दिए और पुनर्स्थापन और उचित मुआवजे की बात कही। इसके बाद कनहर परियोजना शुरू होनी उम्मीद जगी है, लेकिन अभी कई पेच फंस रहे हैं। कनहर बचाओ संघर्ष समिति अपना विरोध जता ही रही है। लोग कोर्ट भी चले गए हैं।

नई अधिग्रहण नीति के तहत विस्थापितों को मुआवजा मिलना चाहिए। मुआवजा देकर कनहर परियोजना को जल्द से जल्द बनाना चाहिए। जिससे हजारों एकड़ भूमि की पैदावार बढ़े और किसान खुशहाल हो सकें।
-प्रभु सिंह, सचिव कनहर बनाओ संघर्ष समिति

संविधान के 73 संशोधन के अनुसार ग्राम पंचायतों की सहमति के बाद ही विस्थापित किया जाए। इसके साथ ही विस्थापन के लिए स्पष्ट नीति बनाई जाए। उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। इसके लिए हाईकोर्ट में रिट दायर किया गया है। हम लोग अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
-महेशानंद, कनहर बचाओ संघर्ष समिति

परियोजना में मुआवजे के लिए प्रशासक की नियुक्ति होनी है। प्रशासक बनने के बाद मुआवजा देने और जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। प्रयास है कि जल्द ही परियोजना शुरू हो सके।
-राम अभिलाष, एसडीएम दुद्धी

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

सोनभद्र के आदिवासियों के आशाओं पर खरे नहीं उतरे राहुल गांधी

सोनभद्र की धरती पर पहली बार पड़े थे राहुल के कदम
कैमूर क्षेत्र के बाशिंदों और आदिवासियों का हुआ उनके ही घर में अपमान
राहुल की जनसभा में शामिल होने गए सोनभद्र के आदिवासी शिवधार और नन्दलाल को हवालात की हवा भी खानी पड़ी।
नन्दलाल अपनी धरोहर तीर-धनुष लेकर गया था और उसकी धरोहर ही उसके लिए सजा बन गई। 

यह बात तब की है जब सोनभद्र की धरती पर पहली बार कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आये थे उस वक्त वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग के बायीं ओर मिर्जापुर जनपद का अहरौराडीह गांव इतिहास रचने को तैयार। गांव के पास गेंहूं की फसल की कटाई के बाद खाली पड़ी करीब बीस बीघा खेत में भारी सुरक्षा के बीच  तैयार दो मंच और पंडाल। साथ ही चिलचिलाती धूप में आग के गोले बरसा रहा सूरज। मौसम का पारा भी 46 डिग्री सेल्सियस की हद को पार कर चुका था और लोगों के स्वास्थ्य को चेतावनी दे रहा था। फिर भी, सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, भदोही, मिर्जापुर के बाशिंदों समेत आस-पास के कांग्रेसी इकट्टा हो रहे थे। कांग्रेसियों की इस भीड़ में मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली के उपेक्षित आदिवासी भी तीर-धनुष के साथ शिरकत किए हुए थे। 

शाम के करीब साढ़े चार बजने को थे। पंडाल समेत आस-पास के इलकों में करीब साठ हजार लोगों की भीड़ भारी सुरक्षा के बीच बने मंच की ओर टकटकी लगाए हुए थे। दूसरे मंच पर कांग्रेसी नेताओं का भाषण चल रहा था। बेरिकेंडिंग के बीच बने मंच के सामने मीडियाकर्मियों की जमात अपने लाव लश्कर के साथ तैयार थे। अचानक हेलिकाप्टर की आवाज सुनाई देती है और मंच के बायीं ओर सौ मीटर की दूरी पर धुंआ उठने लगता है। सबकी निकाहें उठते धुआं की ओर पड़ती हैं और लोग आसमान की ओर नजरे टिका लेते हैं। सबकी आंखों में कुछ आशाओं के साथ एक अनोखी चमक है। लोग बदन से गिरते पसीने और चिलचिलाती धूप में जिस छड़ का इंतजार कर रहे थे, वो खड़ी आ चुकी थी। नीले रंग का एक उड़नखटोला (हेलिकाप्टर) हवामंडल में तैर रहा था, जो अचानक उनके पास बने बेरिकेडिंग में उतरने लगा। सभी लोगों की निगाहें नीले रंग के उड़नखटोले पर जा टिकी। लाउडस्पीकर से सोनिया गांधी जिंदाबाद, राहुलगांधी जिंदाबाद, कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद आदि के नारे गूंजने लगे। चार बजकर चालीस मिनट पर कांग्रेस पार्टी के महासचिव और अमेठी के सांसद राहुल गांधी उड़नखटोले से बाहर आए। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से परिचय करने के बाद राहुल गांधी भारी सुरक्षा के बीच बने मंच पर आसीन हुए और हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन किया। अब सबकी निगाहें राहुल गांधी की हरकतों पर टिकी थी। साथ ही साथ सभी के दिलों में राहुल गांधी से जुड़ी आशाएं हिलोरे मार रही थी।  सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के आदिवासियों समेत यहां के बाशिंदों के दिलों में ये आशाएं कुछ ज्यादा ही हिचकोले खा रही थीं, क्योंकि राहुल गांधी ने बीते साल गरीबी की हालत से बदहाल बुंदेलखंड की कलावती का दर्द लोकसभा में उठाकर पूरे विश्व का ध्यान बुंदेलखंड के पिछड़ेपन की ओर इंगित किया था। सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली की भी भौगोलिक स्थिति और समस्याएं बुंदेलखंड जैसी हैं। साथ ही ये तीनों जनपद उत्तरप्रदेश के सबसे नक्सल प्रभावित जनपदों में शुमार हैं।

करीब पांच बजे राहुल गांधी ने कांग्रेस के साथ खड़े होने और स्वागत के लिए लोगों को धन्यवाद देते हुए अपनी बात शुरू की। सबकी इंद्रियां राहुल गांधी के एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रही थीं, लेकिन राहुल गांधी के सभी शब्दों को सुनने के बाद लोगों की सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के लिए विशेष पैकेज की आशाएं धरी की धरी रह गयी। चिलचिलाती धूप में यहां के गरीबों और किसानों को राहुल गांधी से निराशा ही हाथ लगी। यदि राहुल गांधी के भाषण पर ध्यान दें तो उन्होंने पूरे भाषण के दौरान उत्तर प्रदेश में चल रही बहुजन समाज पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए खासतौर से युवाओं का आह्वान कर कांग्रेस के मिशन 2012 का जोरदार आगाज किया। राहुल गांधी ने देश की वर्तमान राजनीति की उकरते हुए कहा कि आज हिंदुस्तान में दो विचार धाराएं हैं। यहां दो तरीकों की सरकार चलती है। एक जो पूरे हिंदुस्तान को एक आग में झोकती है। एक गृहस्ती को अपना मानकर चलती है। चाहे वो गरीब हो, अमीर हो, पिछड़ा हो, दलित हो आदिवासी हो। कांग्रेस पार्टी की सरकारें सभी को साथ लेकर चलती हैं। 

साल 2004 में दिल्ली में आपने ऐसी ही सरकार बनाई। ‘‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को पूरी दुनिया का बेहतरीन प्रोग्राम करार देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मैं राज्यों में गांव गांव में जाता हूं। लोग नरेगा को सबसे बेहतर प्रोग्राम करार देते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की सरकार इसे ठीक नहीं मानती है। बीते 20 सालों के दौरान उत्तर प्रदेशकी राजनीति की आलोचना करते हुए राहुल गांधी ने कहा’’ आपने पहले धर्म की राजनीति देखी। भाजपा की सरकार आयी। आपने उसे हटाया। फिर जाति की सरकार आयी। सपा की सरकार आयी। आपने उसे बदला। फिर बीएसपी आयी। उसने कहा दलितों की सरकार बनेगी। मुझे दलितों की सरकार दिखाई नहीं देती। बहुजन समाज पार्टी की सरकार प्रहार करते हुए राहुल गांधी ने अपने संस्मरण के माध्यम से उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं होने की बात कही। कांग्रेस महासचिव ने आगामी विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को हराकर उत्तर प्रदेश को बदलने का आह्वान किया। उन्होंने सोनभद्र में खनीज इँडस्ट्री होने के बाद भी बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पाने पर बीएसपी सरकार को दोषी ठहराया। साथ ही गांवों में पांच से छह घंटे बिजली आपूर्ति को लेकर बसपा को आड़े हाथों लिया। करीब बारह मिनट के अपने भाषण में राहुल गांधी ने सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के आदिवासियों, वनवासियों और गरीबों की आशाओं के अनुरूप कोई भी ऐसी घोषणा नहीं की जिससे चिलचिलाती धूप में त्वचा झुलसाने का फल यहां के बाशिंदों को मिल सके। 

राहुल गांधी को आदिवासियों की व्यथा की हालत तब भी नहीं याद आयी जब भूखमरी से 18 बच्चों की मौत का गवाह बन चुकी घसिया बस्ती (सोनभद्र) निवासी गरीब आदिवासी कतवारू ने आदिवासियों की धरोहर धनुष-तीर और टोपी उन्हें भेंट की। कतवारू के माध्यम से आदिवासियों ने अपने प्रेम और आतिथ्य का संस्कार दिखाया लेकिन उन्हें एक बार फिर कांग्रेस के युवराज से निराशा ही हाथ लगी। इतना ही नहीं, राहुल की जनसभा में शामिल होने गए सोनभद्र के आदिवासी शिवधार और नन्दलाल को हवालात की हवा भी खानी पड़ी। परसोई निवासी आदिवासी शिवधार को कुछ घंटों की पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया, लेकिन ओबरा थाना क्षेत्र के पनारी गांव के खाड़र टोला निवासी नन्दलाल को 24 घंटे हवालात की हवा खानी पड़ी। वरिष्ठ कांग्रेसी राजेशपति त्रिपाठी और ललितेश त्रिपाठी के कहने के बाद भी नन्दलाल को नहीं छोड़ा गया। नन्दलाल को छुड़ाने के लिए इंटक के जिलाध्यक्ष हरदेव नारायण तिवारी और छात्र नेता विजय शंकर यादव अहरौरा थाने में देर रात तक लगे रहे, लेकिन पुलिस वालों ने एक न सुनी। आखिरकार 19 मई की शाम नन्दलाल को उप जिलाधिकारी चुनार सामने बांड भरना पड़ा। तब जाकर पुलिसवालों ने नन्दलाल को छोड़ा। राहुल को देखने की आशा से नन्दलाल अपनी धरोहर तीर-धनुष लेकर गया था और उसकी धरोहर ही उसके लिए सजा बन गई। यहां तक कि उसपर नक्सली होने तक का आरोप लगाया गया। 

सोमवार, 16 सितंबर 2013

विवादीत भूमी लाल रंग तक चारदिवारी का निर्माण इनके द्वारा करा कर छोड दिया गया है यहाँ पर ये रिजेक्ट कोयला गिरा अतिक्रमण कर रहें है अगर कोई विरोध नही करेगा तो बाद मे पैसे के दम पर ये अपना नाम दर्ज करा लेंगे।

विवादीत भूमी लाल रंग तक चारदिवारी का निर्माण इनके द्वारा करा कर छोड दिया गया है यहाँ पर ये रिजेक्ट कोयला गिरा अतिक्रमण कर रहें है अगर कोई विरोध नही करेगा तो बाद मे पैसे के दम पर ये अपना नाम दर्ज करा लेंगे। 

लाल रंग वाली चारदिवारी 2002 मे फर्जी ढ़ग से अपने नाम दर्ज करा लिया है।

लाल रंग वाली चारदिवारी 2002 मे फर्जी ढ़ग से अपने नाम दर्ज करा लिया है।

फोटो मे दिख रहा धुआं वाला हिस्सा ही विवादी भूमी है जिस पर इस कंम्पनी द्वारा रिजेक्ट कोयला गिरा कर अतिक्रमण किया जा रहा है, अतिक्रमण हो जाने के बाद समस्त भूमी को ये पैसे द्वारा अपने नाम दर्ज करा लेंगे। धुआं के पिछे चारदिवार साफ दिख रहा है जिसका निर्माण इसी स्थान तक कर छोड़ दिया गया है अगर किसी द्वारा इसका विरोध नही होता है तो ये भूमी को कब्जे मे लेकर अपना नाम फर्जी तरह दर्ज करा लेते है।

फोटो मे दिख रहा धुआं वाला हिस्सा ही विवादी भूमी है जिस पर इस कंम्पनी द्वारा रिजेक्ट कोयला गिरा कर अतिक्रमण किया जा रहा है, अतिक्रमण हो जाने के बाद समस्त भूमी को ये पैसे द्वारा अपने नाम दर्ज करा लेंगे। धुआं के पिछे चारदिवार साफ दिख रहा है जिसका निर्माण इसी स्थान तक कर छोड़ दिया गया है अगर किसी द्वारा इसका विरोध नही होता है तो ये भूमी को कब्जे मे लेकर अपना नाम फर्जी तरह दर्ज करा लेते है।

दाहिने गुलाबी रंग की चारदीवारी इनके कारखाने के पूर्वी छोर की है तीन चिमनी नुमा कुलिगं टावर हरे रंग का दिख रहा है और बगल मे पीले रंग वाली भूमी भी 2002 मे गलत ढ़ग से कब्जा किया है। नीचे से उपर पीले रंग का चारदिवारी भी राजस्व विभाग एंव सिंचायी विभाग को पैसा देकर गलत ढ़ग से पैमाईस करा कर अपना नाम दर्ज कराया है।

दाहिने गुलाबी रंग की चारदीवारी इनके कारखाने के पूर्वी छोर की है तीन चिमनी नुमा कुलिगं टावर हरे रंग का दिख रहा है और बगल मे पीले रंग वाली भूमी भी 2002 मे गलत ढ़ग से कब्जा किया है। नीचे से उपर पीले रंग का चारदिवारी भी राजस्व विभाग एंव सिंचायी विभाग को पैसा देकर गलत ढ़ग से पैमाईस करा कर अपना नाम दर्ज कराया है। 

विद्युत कारखाने से निकलता राख युक्त पानी रिहन्द डेम को समर्पित सोनभद्र रिहन्द डेम के जलीय जीवो के प्रति कोई भी संजीदा नही है। अगर यह किसी की नीजी संम्पत्ति होती, रक्त की नदीयां बह गयी होती ? जिलाअधिकारी भी इसके प्रति संजीदा नहीं है।

विद्युत कारखाने से निकलता राख युक्त पानी रिहन्द डेम को समर्पित सोनभद्र रिहन्द डेम के जलीय जीवो के प्रति कोई भी संजीदा नही है। अगर यह किसी की नीजी संम्पत्ति होती, रक्त की नदीयां बह गयी होती ? जिलाअधिकारी भी इसके प्रति संजीदा नहीं है।

रविवार, 1 सितंबर 2013

जीआईसी अनपरा में 40 के सापेक्ष हैं 16 शिक्षक

हजार से ऊपर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में आ रही है बाधा। 

राजकीय इंटर कालेज अनपरा में अध्यापकों की कमी से छात्रों की पढ़ाई चैपट हो रही है, जो उनके भविष्य के लिए अच्छा नहीं। वर्तमान में लगभग दो छात्र-छात्राओं की शिक्षा की जिम्मेदारी महज 16 शिक्षक निभा रहे है। विद्यालय में सृजित 17 प्रवक्ता के सापेक्ष महज 8 प्रवक्ता कार्यरत हैं। एलटी ग्रेड के शिक्षकों की तो और भी समस्या है। विद्यालय में कुल 23 एलटी ग्रेड के शिक्षकों का पद सृजित है जबकि मौके पर 8 की ही तैनाती है। ऐसे में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटक गया है।

एलटी ग्रेड में कहने को 13 शिक्षक हैं लेकिन इनमें से पांच शिक्षक राजकीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत खुले विभिन्न नए विद्यालयों में अपग्रेड कर दिए गए हैं। भौतिकी विज्ञान में दो प्रवक्ताओं की नियुक्ति की गई है लेकिन इसमें से एक पिछले एक साल से वीआरएस पर चल रहे हैं जबकि दूसरे शिक्षक को जीआईसी घोरावल से संयुक्त शिक्षा निदेशक के निर्देश पर संबद्ध कर दिया गया है। कमोबेश यही स्थिति अंग्रेजी तथा रसायन शास्त्र की भी है। 

बलिराज राम
बलिराज राम
कालेज के प्राचार्य बलिराज राम ने बताया कि अध्यापकों की कमी की जानकारी विभाग के उच्चाधिकारियों को दे दी गई है। तैनाती उन्हीं को करनी है। संयुक्त शिक्षा निदेशक फजुर्रहमान ने पूरे मंडल में अध्यापकों की कमी बताते हुए कहा कि जीआईसी अनपरा में शिक्षकों की कमी को शीघ्र दूर करने के लिए प्रयास किए जाएंगे। 

मनरेगा के धन का कर रहे है बन्दरबाट

  • मनरेगा के कई निर्माण कार्यो में किया गया है मषीनों का प्रयोग।
  • वर्ष 2011 में भी की गई थी षिकायत, समस्या जस की तस।
  • कार्यस्थलों के रास्ते में डाली जाती है मिट्टी, जिससे कोई पहुँच न सके। 

कुबरी में मनरेगा के कार्यस्थल पर चल रही जेसीबी
कुबरी में मनरेगा के कार्यस्थल पर
चल रही जेसीबी
सोनभद्र के  विकासखंड म्योरपुर के ग्राम सभा औड़ी के कुबरी टोला में ग्राम प्रधान व विभागीय अधिकरियों व कर्मचारियों की मिली भगत से मनरेगा के तहत रातो रात लाखों रूपये की बन्धी निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया। उक्त मनरेगा के कार्य में जल्द पैसा बनाने के लालच में सम्बन्धितों द्वारा मनरेगा के कार्य में अधिनियम के प्राविधानों को नजर अन्दाज कर जेसीबी मषीन का प्रयोग कर कार्य को जल्द समाप्त कर पैसों की बन्दरबाट की है

कार्यस्थल के रास्ते को जाम करने  के लिये डाली गई मिट्टी।
कार्यस्थल के रास्ते को जाम करने
के लिये डाली गई मिट्टी। 
यह आरोप क्षेत्र पंचायत सदस्य-सुभाष चन्द्र ने बताई उन्होंने यह भी बताया कि कार्यस्थल पर एकमात्र पहुँच मार्ग पर ग्राम प्रधान द्वारा मिट्टी का ढे़र लगाया ताकि कोई कार्य स्थल पर न पहुँच सके। परन्तु वे मौके पर पहुँच कर हो रहे कार्य को अधिनियम के विपरित होने फोटो खीची व लिखित षिकायत भी की लेकिन अभी तक उक्त व्यक्तिओं पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है।


वर्ष 2011 में ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी शक्ति आनन्द ने भी कुबरी टोले में मनरेगा के तहत कराये गये कई बन्धी निर्माण कार्यो में जेसीबी मषीन का प्रयोग किये जाने सम्बन्धी तत्समय जिलाधिकारी, सोनभद्र से की थी, जिसके बाबत बीड़ीओ-म्योरपुर, एडीओ, म्योरपुर व प्रेम चैबे, ग्राम विकास अधिकारी के नेतृत्व में एक जाँच टीम ने मामले की तहकीकात कर षिकायत को सही पाया था

शक्ति आनन्द
तत्समय जिले भर में सीबीआई की जाँच चल रही थी तथा ग्राम पंचायत औड़ी के ग्राम प्रधान के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करने आष्वासन देते हुए ग्राम विकास अधिकारी व तकनिकी सहायक को स्थान्तरित कर दिया गया था, परन्तु उक्त प्रकरण के लगभग ढ़ाई वर्ष व्यतीत होने के पश्चात भी सम्बन्धितों पर कोई कार्यवाही न किये जाने की वजह से सम्बन्धितों द्वारा सरकारी धन के बन्दरबाट के इरादे से ऐसा कृत्य बार-बार किया जा रहा है। क्षेत्र पंचायत सदस्य-ज्योति  प्रकाष दूबे ने भी इसकी कड़ी निन्दा करने के साथ-साथ इसे ग्राम सभा के पैसों की लूट बताई है। 

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

अतिक्रमण व गन्दगी से सिकुड़ते चैराहे

 बढ़ती ट्रैफिक और सिकुड़ते चैराहे सुगम यातायात की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं। पड़ाव काषी मोड़-औड़ी मोड़ का दस वर्ष पहले का नजारा कुछ और था, तब सड़कें चैड़ी और चैराहा खुला नजर आया करता था लेकिन अब अतिक्रमण से सिकुड़ते जा रहे हैं। कई बार चैराहे को अतिक्रमण मुक्त करने की दिशा में भी कदम उठाए गए। इन प्रयासों की बदौलत एकबारगी चैराहे की चमक निखरने की आस नजर आई लेकिन फिर अचानक सारी कवायदें थम सी गईं। 

देखरेख का कोई बंदोबस्त न होने और अतिक्रमण का सिलसिला बदस्तूर जारी रहने से हालात बद्तर हो गए। चैराहे चारों तरफ से अतिक्रमण की चपेट में आ गया है। पुलिसवालों की इनायत से चैराहे पर जहां-तहां सवारी बैठाने के लिए निजी सवारी वाहनों की होड़ भी कम नहीं। यही नहीं, नाला निर्माण का उद्देष्य भी अधूरा पड़ा है। इससे गंदगी की भरमार ने और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। निकासी न होने से पानी सड़क पर ही जमा हो रहा है। चैराहा और पास के इलाकों में इससे नरकतुल्य हालात उत्पन्न हो गए हैं। 

विभागीय अनदेखी पर गुस्सा:-

शक्ति आनन्द
नाला निर्माण का उद्देष्य भी अधूरा पड़ा हुआ है। इससे चैराहो और आसपास में गंदगी, जलजमाव की स्थिति बनी हुई है। औड़ी के चैराहे के सौंदर्यीकरण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गई। सतही तौर पर जैसे-तैसे काम कराकर धन खर्च कर दिया गया है-शक्ति आनन्द, ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी।

पंकज कुमार मिश्रा
चैराहे पर अतिक्रमण से खासी दिक्कतें हो रही हैं। सड़कें तंग होती जा रही हैं। इस ओर ध्यान दिलाने के बाद भी अफसर बेपरवाह बने हुए हैं। सुगम यातायात के लिए जरूरी है कि चैराहे को अतिक्रमण मुक्त कराया जाए -पंकज कुमार मिश्रा, समाज सेवी

ओंकार केषरी
चैराहे के सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों खर्च किए गए लेकिन काम क्या कराया गया यह समझ से परे है। यहां स्थिति तो पहले से भी बदतर हो गई है। अधूरे कार्यों को तत्काल पूरा कराकर व्यवस्था सुदृढ़ की जानी चाहिए-ओंकार केषरी, भाजपा नेता

निजी षिक्षण संस्थानों का सराहनीय योगदान

क्षेत्र में सरकारी पूर्व माध्यमिक व प्राथमिक विद्यालयों के षिक्षण कार्य में आयी  गिरावट ने मध्यमवर्गीय परिवारों को क्षेत्र के मान्यता प्राप्त षिक्षण संस्थानों  की तरफ आकर्षित किया है। लोगों की माने तो सरकारी विद्यालय बाल भोजनालय में तब्दील हो चुका है, और अध्यापन कार्यों की जगह केवल आकड़े बाजी ज्यादा की जाती है। जबकि मनरेगा के मजदूरों से कम दैनिक भोगी निजी षिक्षक बच्चों को पढ़ाने मंे ज्यादा दिलचस्पी लेते है। हर विषय के अलग-अलग अध्यापकों की तैनाती ही इन्हे सरकारी विद्यालयांे के षिक्षा माहौल से अलग बनती है, जो समझदार मध्यमवर्गीय परिवार के लिए आर्कषण पैदा करता है।

बेसिक षिक्षा अधिकारी कार्यालय के रिकार्ड के मुताबिक म्योरपुर विकास खण्ड के कोटा न्याय पंचायत में कुल 21 प्राथमिक व 8 पूर्व माध्यमिक निजी षिक्षण संस्थान है। विगत वर्ष इन विद्यालयों में 7407 बच्चों ने षिक्षा ग्रहण किया। सरकारी आकड़ों पर गौर करे तो 21 प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 से 5 तक अनुसूचित जाति के 1179, अनुसूचित जनजाति के 256, पिछड़ी जाति के 2763, सामान्य जाति के 966 व अल्पसंख्यक जाति के 437 बच्चों का नामांकन किया गया था। निजी विद्यालयों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की संख्या ज्यादा रही। आकड़ो पर गौर करे तो कोटा न्याय पंचायत में कुछ प्राथमिक विद्यालय ऐसे भी है जिसमें जाति विषेष के बच्चे नहीं पड़ते। रिकार्ड के मुताबिक रेनूपावर प्राथमिक विद्यालय रेनूसागर, महर्षि बाल्मिकी व सरस्वती षिषु मंदिर परासी, मौलाना आजाद प्राथमिक विद्यालय ककरी, बाल षिक्षा निकेतन घरसड़ी, सरस्वती षिषु मंदिर खड़िया में विगत वर्ष एक भी अनुसूचित जनजाति के बच्चों का नामांकन नहीं हुआ। इसी तरह घरसड़ी के उक्त विद्यालय में अल्पसंख्यक समुदाय का कोई बच्चा नहीं पढ़ता। 

कोटा न्याय पंचायत में कक्षा 6 से 8 तक के कुल आठ मान्यता प्राप्त विद्यालयों ने विगत वर्ष 1737 बच्चों को षिक्षित करने का कार्य किया। आदर्ष षिक्षा निकेतन खड़िया मंे अनुसूचित जनजाति के किसी बच्चे का नामांकन नहीं किया गया । मान्यता प्राप्त कुल विद्यालयों में 907 लड़के व 830 लड़कियांष्षामिल रही। 

उपेक्षित होकर भी षिक्षा का बेहतर प्रदर्षन:-

बताया जाता है कि बेरोजगारी और बढ़ती महगाई नें मान्यता प्राप्त विद्यालयांे के षिक्षकों को हर कदम समझौता करने की मजबूरी का श्राप दे रखा है। आय का सर्वाधिक हिस्सा विद्यालय प्रबंधन हजम कर जाता है। ऐसे विद्यालयों में अध्यापकों को वेतन के नाम पर 1200 से लेकर 2500 रूपये तक ही मिल पाता है अगर अध्यापक ट्यूषन न करे तो दो जून की रोटी को मोहताज हेा जाये। क्षेत्र के कुछ विद्यालयांे के अध्यापकों ने बताया कि निजी विद्यालय को अध्यापक षोषण के खिलाफ कैसे बोल सकते है? इसके लिए मान्यता देने वाली सरकारी इकाई व नियोजित करने वाली संस्थान दोनों ने उसके इस अधिकार को छिन लिया है। एक महिला अध्यापिका ने बताया कि 8 घण्टे बच्चो को पढ़ने के बदले उसे 1400 रूपया मिलता है व विद्यालय प्रबंधन का इतना दबाब है कि हर वर्ष प्रत्येक अध्यापक को निर्धारित संख्या में बच्चों को स्कूल लाने के लिए उनके अभिभावक से जी हूजूरी करनी पड़ती है। षक्तिनगर के एक विद्यालय संचालक ड्राईवर के अभाव में स्वयं वाहन चलाकर बच्चों को उनके घरों तक पहुचाते है। वार्षिक परीक्षा के परिणाम में जिस विषय में बच्चों का नम्बर कम आता है उस विषय के षिक्षक का वेतन भी काटने की षिकायत मिली है। ज्यादा हो-हल्ला मचाने पर विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाता है। निजी षिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले दर्जनेां अध्यापकेां ने बताया कि अगर सरकार विद्यालय की मान्यता देते समय प्रबंधन द्वारा नियोजित षिक्षकों के भविष्यनिधि में प्रतिमाह 500 रूपये भी जमा करने का प्रावधान कर दे तो वे और बेहतर सेवा देने के लिए तैयार रहेगें। 

मंगलवार, 25 जून 2013

स्कूल जाने की उम्र में खतरों से खेल रहे

ऽ पैसा न होने की वजह से पढ़-लिख कर अधिकारी नहीं बन पाने का मलाल
सांप का पिटारा लिए मासूम।

केंद्र एवं प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप शिक्षा महकमा सर्व शिक्षा अभियान के तहत गरीब तबके बच्चों को कितनी शिक्षा मुहैया करा रहा है इसका अंदाजा टोकरी में सर्प लेकर घूम रहे बच्चों को देख कर सहज ही लगाया जा सकता है। पापी पेट के लिए दस वर्षीय रफीनाथ पढ़ने-लिखने की उम्र में नागराज से खेल रहा है। चंद रुपयों के लिए बालक स्कूली बैग की जगह सांप के पिटारों को लेकर नगर और गांवों में दिन-दिन भर भ्रमण कर रहे हैं। प्रतिवर्ष शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मचारी बच्चों एवं अभिभावकों को जागरूक करने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह खर्च करते हैं। बावजूद इसके गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नही हो पा रही है। गुरुवार को राबर्ट्सगंज नगर में इलाहाबाद जनपद के शंकरगढ़ के मूल एवं राबर्ट्सगंज नगर के अस्थायी निवासी रफीनाथ (10) पुत्र कपूरनाथ समेत आधा दर्जन बच्चे पढ़ने की उम्र में पिटारे में सर्प लेकर घर-घर घूम रहे हैं। अमर उजाला से बातचीत के दौरान रफीनाथ ने बताया कि मेरे अभिभावकों के पास पैसा नहीं है इसलिए मैं चाह कर भी पठन-पाठन नहीं कर पा रहा हूं। पेट के लिए दिनभर बांबी में नागराज को लेकर लोगों को दर्शन कराता हूं, शाम तक करीब पचास से सौ रुपये कमा कर अपनी मां को ले जाकर दे देता हूं। कमाई में से दस रुपया नाश्ता के लिए प्रतिदिन मिलता है। पढ़ाई करने का मन तो बहुत है लेकिन पैसा न होने की वजह से पढ़-लिख कर अधिकारी नहीं बन पा रहा हूं।

सरकार के पेट से निकली राजनीतिक पतनशीलता

देश की राजनीतिक पतनशीलता सरकार के पेट से ही निकली हुई है। इसकी बानगी देश के हर इलाके में देखने को मिल रही है, लेकिन आदिवासी इलाकों में यह कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है। चाहे वह उड़ीसा का आदिवासी इलाका हो या फिर झारखंड का। उत्तर प्रदेश का आदिवासी इलाका भी इससे अछूता नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल जनपद सोनभद्र में राजनीतिक पतनशीलता की झलक आसानी से देखी जा सकती हैं। जहां आदिवासियों एवं अन्य परंपरागत वननिवासियों को देश की आजादी के करीब साढ़े छह दशक बाद भी उनका हक नहीं मिल पाया है, ना ही भविष्य में मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। 

बाहरी लोगों को अचरज होगा कि इस जनपद में कानूनी रूप से जंगल लगभग 57 फीसदी भूभाग पर अवस्थित है। पर देखने और जांच करने पर इस आंकड़े का आधा भी प्रमाणित हो जाए तो बड़ी बात होगी। हजारों एकड़ वन भूमि तो दस से अधिक उन बड़े कारखानों को खैरात में दे दी गई है जो यहां माननीयों के रूप में मानवीकृत हैं तथा उनके पदाधिकारी विकास  पुरुष (ध्यान रहे कारखानों के मालिक नहीं, मालिकों के सीईओ) के रूप में सम्मानित किए जा रहे हैं। यह प्रायोजित बिडंबना ही हैं कि एशिया का विशाल बांध कहा जाने वाला रिहंद बांध जो पंत सागर के नाम से विख्यात है, आज कारखानों की राख से पटता जा रहा है। सवाल है कि इस पतनशीलता के लिए किसे उत्तरदायी माना जाए ?

यहां यह प्रसंग कि सोनभद्र में 57 फीसदी जंगल कानूनी रूप से कैसे हो गया। इस आलेख को विस्तृत करना होगा पर संक्षेप में यह जानकारी देना अनिवार्य है कि सोनभद्र के दक्षिणांचल का परिक्षेत्र को अंग्रेजों ने ‘अनुसूचित परिक्षेत्र’ का दर्जा दिया था तथा अपने कानून इस परिक्षेत्र में लागू नहीं किए। ऐसा करके अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का भला ही किया। भला इस अर्थ में कि इस क्षेत्र की पैमाइस नहीं कराया और इस क्षेत्र को तत्कालीन राजाओं एवं ज“मीनदारों से अलग कर दिया। एक तरह से अंग्रजों के अपने स्वामित्व वाला परिक्षेत्र तथा यहां की एक तहसील दुद्धी को तो विक्टोरिया की रियासत ही बना दिया। आजादी के बाद जाहिर है फिर तो यहां जंगल को कागज में विस्तृत रूप में होना ही था। आज तकलीफ इस बात की है कि वह जंगल अब है कहां? जमींदारी टूटते समय आखिर उन वनवासियों के नाम से जमीनें क्यों नहीं आवंटित की गईं, जबकि वे जोत-कोड़ व घर मकान के साथ काबिज थे। आज नये वन अधिनियम के तहत उन्हें भूमि देने की कवायदें क्यों की जा रही हैं, इसे रंगीन नाटक नहीं कहा जाएगा तो क्या कहा जाएगा ?

औद्योगिक स्थापनाओं ने यहां जैसी बर्बरताओं को उगाया है। वैसी मिसालें कहीं अन्यत्र मिलना मुश्किल होगा। यह करूण शोध होगा पता लगा लेना कि सोनभद्र के वन विभाग ने जितने वनवासियों एवं आदिवासियों को वन अधिनियम की धारा-चार और बीस के तहत विस्थापित किया है, क्या उससे अधिक देश के किसी दूसरे हिस्से में किया है? आंकड़े की बात करें तो लाखों के पार वनवासी और आदिवासी अब तक विस्थापित किए जा चुके हैं। क्या यह मजाक नहीं है कि आज उन्हें जमीन देने की बातें की जा रही हैं। आखिर इससे बड़ी दूसरी चुनौती क्या हो सकती है? इधर हाल ही में जिन जातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल किया गया है, उन्हें भी तो अभी तक कानूनी दर्जा नहीं मिल पाया है। पेंच कहां फंसा है। इन सब पतनशीलताओं को समझाना मुश्किल नहीं।

पेंच तो जाहिर है कि सरकारों की राजनीतिक इच्छा शक्ति में है। हमारी सरकारें अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से बाहर निकलती जा रही हैं। हर पांच साल बाद सरकार नया रूप धर रही है, चुनाव हो रहे हैं जनता वोट दे रही हैं और सरकारें चल भी रही हैं। फिर काहे की चिन्ता। किस बात की चिन्ता। सरकार भी तो उनकी नहीं जो गरीब हैं, विस्थापित हैं! उनकी कभी सरकार बन सकती है इसकी दूर दूर तक संभावना नहीं। संभावना तो इस बात की भी नहीं है कि उन्हें दो जून की रोटी भी समानुपातिक ढंग से मिल सकेगी, फिर क्या होगा? यहां वह मामला नहीं कि जो होगा ठीक ही होगा। सभी जानते हैं कि सोनभद्र में ठीक नहीं हो रहा। यहां ठीक केवल एक शब्द है जो अथर्हीन है। यहां की औद्योगिक संस्कृति ने एक तरह से राज्य की विनम्रता ही छीन लिया है, जो जंगल कभी विनम्रता का प्रतीक हुआ करता था उसमें हर ओर आग लगी हुई है। कौन सी चिनगारी कहां गिरेगी किसी को नहीं मालूम। कौन जलेगा, कौन मरेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। आग का आलम यह है कि जो वनवासी कभी लाल वर्दी वाले चैकीदार को देखते ही गांव छोड़कर भाग जाया करते थे, वे आज वर्दीधारी हो गए हैं। उनके कन्धों पर बन्दूकें लटकी हुई हैं। वे जो संवाद की भाषा तक नहीं जानते थे उनके लिए बन्दूक की भाषा और बोली मुहब्बत की बोली और भाषा हो गई है। इसे समझने और महसूस करने के लिए संवेदनशील दिल की आवश्यकता होगी। कानून इस पर तभी विचार कर सकता है जब वह अपनी जड़ता तोड़े और जल, जमीन और जंगल के साथ-साथ जन पर भी विचार करे। जन विहीन जंगल का क्या मतलब ? जन हैं तो जंगल है। जन बचेंगे तो जंगल खुद-ब-खुद बच जाएगा।

माना जाता है कि बिना औद्योगिक इकाइयों के निर्माण से विकास कैसे होगा। विकास आज के समय में उद्योगों के निर्माण का दूसरा नाम है। पर किसका विकास हुआ क्षेत्र का या यहां के जन का ? यहां के लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ना ही जन का विकास हुआ, ना ही क्षेत्र का। यहां के दो फीसदी मूल निवासियों को भी इन कारखानों से नहीं जोड़ा जा सका है। अब तो भारी मशीनीकरण के युग में रोजगार की दूर-दूर तक संभावना भी नहीं है। वैसे ही सारे कारखाने वाले कर्मचारियों के मैनुअल आॅडिट के तहत छंटनी पर छटनी किए जा रहे हैं। आज की स्थिति यह है कि कारखाने वाले कमर्चारियों का नियमितीकरण ही नहीं कर रहें हैं। सारे काम ठेका मजदूरों (कुशल एवं अकुशल दोनों) एवं कर्मचारियों से कराए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों की भर्ती एवं नियमितीकरण का सवाल ही कहां ह? औद्योगिक विकास कानारा ‘हर हाथ को काम’ के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह साबित करे कि उसकी उपयोगिता समाज को है या नहीं। जाहिर है जब औद्योगिक संरचनाएं जन का सम्मान करेंगी तभी जन भी उसका सम्मान करेंगे। यही टूट रहा है। दुनिया जानती है जन के दिलों का टूटना। किसी भी सभ्यता के लिए सामान्य परिघटना नहीं है।

औद्योगिक विकास का प्रतिफल सोनभद्र में अब साफ-साफ दिखने लगा है। गांव के गांव विकलांगता के शिकार होते जा रहे हैं। यहां का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पानी में फ्लोराइड ओर दूसरे तरह के विषैले रसायन जो कारखानों से उत्सर्जित होते हैं, मिलते जा रहे हैं। हर ओर धूल-धुआं और राखड़।  तर्क दिया जा रहा है कि इसका कारण वन का कटाव है। अरे भाई किसने वन कटवाया? किसने कारखानों को लगवाया? और आज कौन तोड़वा रहा है गिट्टी के पहाड़ों को ? कौन निकलवा रहा है नदियों का बालू ?


तो यह तस्वीर है उ.प्र. के एक जिले सोनभद्र की, जहां दसेक कारखाने खड़े हैं और भी खड़े होंगे जैसा कि प्रस्तावित हैं। यहां के आदमी लंगड़े हो रहे हैं। कारखाने सेंसेक्स बड़ा रहे हैं और लोगों के घरों के चूल्हे बुझ रहे हैं। अस्पताल हैं उनमें केवल दवाइयां नहीं हैं। डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में व्यस्त हैं। स्कूल हैं जिनमें प्रधान जी की भैंसे बांधी जा रही हैं। स्कूल के सरकारी अघ्यापकों के बच्चे नर्सर्री स्कूल में पड़ रहे हैं। जिलाधिकारी और एसपी स्थानांतरण से परेशान हैं। कौन सा अदना कर्मचारी उन्हें राजधानी के मुख्यालय से जोड़वा देगा ज्ञात नहीं। डर तो शाश्वत है।  शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, रहवास की सुरक्षा का नारा लगाने वाली व्यवस्था की चुनौतियों से किसे लड़ना है, तंत्र को या जन को ? सोचना यही है। यही सोचना ही जनतंत्र को सबल भी बनाएगा। पर क्या हम सोच रहे हैं?       
                                                       
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं। लेखक उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के राबर्ट्सगंज के रहने वाले हैं। उन्होंने आदिवासियों पर कई किताबें लिखी हैं. मोबाइल नंबर-09451184771 )

गुरुवार, 2 मई 2013

शराब की मांग में इजाफे से बढ़ गई तस्करी, ऊर्जांचल में बेखौफ हो रही तस्करी



ऊर्जांचल में पारा लुढ़कने के साथ अंग्रेजी शराब की मांग में बढ़ोतरी होने से अंतरप्रांतीय शराब तस्करों का गिरोह सक्रिय हो गया है। जानकारों के दावे पर एतबार करें तो सीमावर्ती मध्य प्रदेश एवं हरियाणा के साथ पड़ोसी राज्यों बिहार, झारखंड व छत्तीसगढ़ से शराब की खेप ऊर्जांचल के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाई जा रही है। कुछ खास ब्रांडों की कीमतों में अंतर को भुनाने के लिए कारोबारियों ने अपना नेटवर्क खड़ा किया है। सीमांचल क्षेत्रों में स्थित दुकानों पर अन्य प्रदेशों की शराब किस तरीके से कैसे पहुंच रही है इसका जवाब संबंधित महकमे के जिम्मेदारों के पास नहीं है, लेकिन बीते सालों में बार्डर क्षेत्र में हुई कई बरामदगियों को नजर अंदाज नहीं किया जाए तो सब कुछ सामने है। सूत्रों की माने तो पहले बाहरी शराब को सीधे उसी पैक में बेच दिया जाता था लेकिन अब यूपी के बोतलों में ही बाहरी शराब को भर कर बेच दिया जा रहा है। इस तरह मध्य प्रदेश एवं हरियाणा में बेचे जाने वाली शराब की बोतलें यूपी के बार्डर इलाके में आबाद शराब की दुकानों पर खुलेआम बेची जा रही हैं। सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश के विंध्यनगर का एक चर्चित कारोबारी का उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के व्यवसायियों से तालमेल हो गया है। यही वजह है कि सब कुछ सेट है और बिना किसी जोखिम के कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। इस बाबत सिंगरौली के आबकारी अधिकारी दिनेश उदैनिया का कहना है कि एमपी की शराब यूपी में बेची जा रही है तो मप्र के राजस्व का कोई नुकसान नहीं है यह तो उत्तर प्रदेश सरकार को देखना चाहिए।

उर्जांचल में वसूले जा रहे है शराब के औने पौने दम

1. सरकारी शराब के दुकानों से सरकार को हो रही लाखों की राजस्व क्षति।
2. निर्धारित मूल्य से ज्यादा वसूला जा रहा है, शराब पीने वाले ग्राहकों से। 
3. उर्जान्चल में लगभग 05-10 हजार रूपये रोजाना वसूले जा रहे है, शराब पीने वाले ग्राहकों से।

इसे ग्राहकों की दरियादिली कहे या दुकानदारों की दादागिरी, क्षेत्र में अंग्रेजी शराब व बियर की दुकानों पर आबकारी नियमों की धज्जिया उड़ाते हुए जहाँ राजस्व का नुकसान करा रहे है। वही बोतलों पर छपे मूल्य से ज्यादा पैसा ग्राहको से लेकर महंगी शराब बेची जा रही है। जानकारी के अनुसार अनपरा, शक्तिनगर, बीना, रेनुसागर, बाँसी, डिबुलगंज, औड़ी मोड़ इत्यादि जगहों पर अंगे्रजी शराब का पौआ, अद्धा, बोतल पर क्रमष 10,15,20 रूपये निर्धारित मूल्य में जोड़कर ज्यादा लिया जा रहा है। कारण पूछने पर दुकानदार प्रिन्ट किया हुआ एक रेट-लिस्ट दिखाते हुए बताते है कि ये आबकारी विभाग की निर्धारित मूल्य सूची है, इसी मूल्य पर हमें बेचने का आदेष दिया गया है। 

गत दिनों औड़ी के एक बियर दुकान के लाईसेन्सी से जब निर्धारित मूल्य से ज्यादा दाम लिये जाने की बात कही गई तो उसने बताया कि प्रति बोतल दस रूपया बतौर ट्रान्सपोर्टिंग लिया जा रहा है। क्योंकि यह दुकान जिला मुख्यालय से 100 किमी से ज्यादा दूर है। साथ ही लाईट कटने पर जेनेरेटर से फ्रिजर चलाना पड़ता है। इतना ही नहीं अंग्रेजी शराब के दुकानदार अपने फायदे के चक्कर मे सरकार के झोली में जाने वाले लाखों रूपये के राजस्व कों चपत लगा रहे है। उक्त स्थान के किसी भी अंग्रेजी शराब के दुकान पर बे-रोक टोक आप पैसा देकर दस बीस बोतल शराब या बियर खरीद सकते है। यह कोई नई बात नहीं है। यहा के होटलों एवं ढाबों में हर रात शराब की पार्टिया होती रहती है। लोग पैसा देते है और उनके मनपसन्द शराब की ब्राण्ड उन्हें दे दी जाती है। 

आबकारी अधिनियम के मुताबिक विदेषी शराब विक्रेता किसी व्यक्ति को दो बोतल से अधिक शराब नहीं दे सकता है। लेकिन दुकानदार को नियमों से कुछ लेना देना नहीं है। बड़े-बड़े समारोह या त्योहारों के समय भी खुलेआम शराब पीना जुर्म है। परन्तु यहाँ के होटलों और सरेराह बारात में शामिल लोग बोतल लेकर झूमते नजर आते है। जिस पर विभाग के आला अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक किसी की नजर नहीं पड़ती है। ज्ञातव्य है कि पार्टी, समारोह के मद्देनजर दो से अधिक शराब की बोतलों के लिये आबकारी विभाग में फार्म एफएल-11 के जरिये परमिट हासिल करना होता है, आबकारी विभाग बतौर इसके एवज में एक हजार रूपये का शुल्क लेता है। एफएल-11 परमिट दो तरह का होता है। घरेलू एफएल-11 घरेलू परमिट का शुल्क एक सौ रूपया होता है। 

आबकारी विभाग द्वारा जारी किये जाने वाले परमिट में सम्बन्धित शराब विक्रेता का नाम, कितने बोतल शराब उपलब्ध कराई जानी है इत्यादि का स्पष्ट उल्लेख होता है। इससे अवैध और जहरीली शराब की बिक्री से बचाव होता है तथा किसी व्यक्ति के नकली या जहरीली शराब पीने से गम्भीर होने के खतरे कम होते है। क्योंकि एफएल-11 परमिट पर हासिल शराब का स्त्रोत अधिकृत होता है। आबकारी विभाग की चुप्पी और अंग्रेजी शराब के दुकानदारों की मनमानी के चलते पूरे जनपद में प्रतिवर्ष राज्य सरकार के खजाने में जाने वाले लाखों रूपये के राजस्व की क्षति पहुँचायी जा रही है। अंग्रेजी शराब के दुकानदार के मुताबिक किसी को 2 बोतल से ज्यादा शराब नहीं दिया जा सकता, लेकिन लोग जबरजस्ती ले जाते है तो हम क्या करें। नाम ना छापे जाने पर एक अंग्रेजी शराब के विक्रेता ने बताया कि कोई लाख उपाय करले जब तक अधिकारी हर पेटी पर अपनी निर्धारित कमिषन माफ नहीं कर देते तब तक हमें ग्राहको से मूल्य से अधिक पैसे लेना मजबूरी बन जाती है। इस सम्बन्ध में जिला आबकारी के पी सी पाल, आबकारी निरीक्षक सुदर्षन का कहना है कि अधिक मूल्य एवं नकली शराब बेचने वाले के खिलाफ समय-समय पर अभियान चलाकर अंकुष लगाया जाता है। फिर भी तथ्यपूर्ण षिकायत मिलने पर कार्यवाही की जायेगी। 

रविवार, 10 मार्च 2013

प्रषासन के संरक्षण मंे उर्जान्चल में चल रहे ढग्गामार वाहन

ऽ-घट सकती है कभी भी बड़ी दुर्घटना। 
ऽ-नषे मंे धूत ड्राईवर कर रहे हैं जीपों का संचालन।
ऽ-इसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी गाली-गलौज की घटनाएं हो चली है आम।
ऽ-फिक्स भाड़े से ज्यादा वसुले जाते है पैसे

अनपरा के डिबुलगंज से षक्तिनगर तक जाने वाली ढ़ग्गामार वाहन दुर्घटना को दे रहे है दावत। इन ढ़ग्गामार वाहनों को संचालित करने वाले मालिकों एवं ड्राईवरों के पास न तो परमीट है न तो लाईसेंस साथ में अनपरा पुलिस का हाथ जो उन्हें खुलेआम कानून का उलंघन करने के लिए प्रेरित कर रहा है। अनपरा थाने के सामने से रोजाना लगभग 40 ढ़ग्गामार वाहन गुजरते है लेकिन पैसे की लालच ने उन्हें रोकने की बजाय उन्हें और ज्यादा मात्रा में प्रोत्साहित करने का कार्य किया है। ज्ञात हो कि डिबुलगंज से षक्तिनगर जाने वाले इस मार्ग पर लगभग 40 जीप चलती है। इन वाहनों में लगभग 90 प्रतिषत वाहन ऐसे है जो इस बड़े राजमार्ग पर चलने के लायक नहीं है जिनकी समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है साथ ही इनके कुछ ड्राईवरों के पास लाईसेंस तक नहीं उम्र भी काफी कम लेकिन अनपरा पुलिस ने इन गाड़ियों को रोक कर पुछते की जहमत भी नहीं उठाती की गाड़ी का एंसुरेन्स है कि नहीं ड्राईवरों के पास लाईसेंस है कि नहीं,  इस मार्ग पर चलने के लिए परमीट है कि नहीं ऐसे कई सारे सवाल है जिनका उत्तर सिर्फ प्रषासन के पास है। 
ड्राईवरों की माने तो इस राजमार्ग पर चलने के लिए उनके द्वारा प्रषासन को प्रतिमाह धन उपलब्ध कराया जाता है, इसी कारण से प्रषासन भी उन्हें देखकर आखे बन्द कर लेती है। इन ढ़ग्गामार वाहन पर जब भारी संख्या में लाग बैठते है तो यह वाहन एक तरफ झुक सा जाता है जिसे देखकर ऐसा लगता है कि कहीं ये वाहन पलट न जायंे इसके अतरिक्त ड्राईवर ऐसे बैठकर गाड़ी चलाता है कि जैसे वह अब जीप से बाहर ही गिरने वाला हो ऐसी स्थिति में वह गाड़ी का इस्टेरिंग न पकड़े तो वह निष्चित ही गिर जायेगा। लेकिन संचालक होने के कारण वह उसे पकड़ा रहता है। ऐसी स्थिति में वाहन अगर पलट जाये तो भारी संख्या मंे लोगांे को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। मगर प्रषासन को इन सब की चिंता कहा जब दुर्घटना होगी तो देखा जायेगा। उनका ऐसा मानना है। ऐसा कई बार देखा जा चुका है कि ड्राईवर द्वारा राजमार्ग पर जब अप-डाउन के दौरान उनके मँुह से दारू की बास आती है जिससे मालुम होता है कि ड्राईवर नषे मंे हैै। जबकि इस राजमार्ग पर लगभग कई सौं गाड़ियाँ परियोजनाओं एवं वाराणसी मंडी मंे कोयला ले जाने का कार्य करती है। नषे मंे धुत ड्राईवर द्वारा एक छोटी सी गलती पर भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है जबकि इस राजमार्ग पर आये दिन दुर्घटना होती रहती हैं। जिसमें कई हजार लोगों की जाने जा चुकी है। इसके अतिरिक्त इन ढ़ग्गामार वाहनों में बैठे सवारियांे के साथ गाली-गलौज एवं मारपीट की घटनाएं आम हो चली है। लेकिन लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर ये ढ़ग्गामार वाहन इस मार्ग पर खुलेआम प्रषासन के संरक्षण मंे अपने वाहनों का संचालन कर रहे हैं। थाने मंे पैसे देने के कारण उनकों किसी का डर नहीं सब जानते है कोई भी मामला होगा वह थाने ही पहुचेगाँ जिसे पैसा देकर हल कराया जा सकता है। अगर समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो किसी बड़ी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता ऐसी स्थिति में प्रषासन इन जिम्मेदारियों से अपना मुहँ मोड़ नहीं सकता है। बड़ी दुर्घटना की स्थिती मंे लोगों द्वारा किये जाने वाले जाम एवं राजमार्ग बाधित होने से देष को करोड़ों रूपये के राजस्व का नुकषान पहुचेगाँ। इसकी पूर्ति किसके द्वारा की जायेगी। इसके बारे मंे प्रषासन को ही जबाब देना होगा। 

रेगिस्तान में बदल रहा हैं, उर्जान्चल


उत्तर प्रदेष वि़द्युत विभाग का नवनिर्माणाधिन अनपरा ‘‘डी’’ तापीय परियोजना जिसकी कुल उत्पादन क्षमता 1000 मेगावाट है। निर्माणाधिन अनपरा ‘‘डी’’ परियोजना के निर्माण से कई वर्ष पूर्व में ही एक निष्चित योजना के अंतर्गत यहां के मूल निवासियों की भूमि को जिसे सरकार ने अधिग्रहण कर उनको सरकारी नौकरी तथा मुआवजा देकर इसे खाली करा लिया बाद में सरदार गोविन्द वल्लभ पन्त सागर के आस-पास के भू-भाग को एक व्यवस्थित तरीके के साथ बांध बनाकर उसमें अनपरा ए और बी की इकाईयों द्वारा प्रयुक्त हो चुके कोयला जो जलने के उपरान्त सिर्फ राख मात्र बचता है। इस राख को कई वर्षों तक इसमें भरा गया,  जिससें एक विषाल भू-भाग का निर्माण हुआ। इस भू-भाग को तैयार करने में लगभग 50 फिट राख को इस बाध के अन्दर भरा गया था जो पहले ही सरदार गोविन्द वल्लभ पंत सागर (डैम) के द्वारा छीनी गयी जमीन थी। जिससे एक ऐसे भूमि स्थल का निर्माण किया गया जहाँ पर एक पावर प्लांट का निर्माण किया जा सके, जब प्लांट के निर्माण कार्य करने की समय सीमा तय होने के पष्चात उत्तर प्रदेष सरकार ने इसे ठेके के तौर पर प्लांट निर्माण का कार्य बी.एच.ई.एल (भेल) को षौप दिया ।

‘‘डी’’ परियोजना का प्लंाट निर्माण कार्य षुरू करने से पूर्व राख के उपर तीन फिट मिट्टी डाली गयी ताकि कार्य करने के दौरान राख न उड़े लेकिन जैसे-जैसे इस भू-भाग पर पाइलिंग का कार्य आगे बढ़ा तो तीन फिट मिट्टी जो राख न उड़े इसके लिए डाली गयी थी वह भारी वाहनों एवं भारी मषीनों के द्वारा रौदकर इस मिट्टी को भी राख मे मिला दिया। अब आलम यह है कि जहाँ इस बड़े भू-भाग पर प्लांट का निर्माण हो रहा है। वह राख से भरी है। कार्य करने आये श्रमिकेां को इस राख रूपी भूमि पर कार्य करना पड़ रहा है जो गर्मीयेां के समय में जब हल्की सी भी हवा चलती है तो ऐसा प्रतित होता है कि रेगिस्तान में तुफान आ गया। बरसात के मौसम में यह भूमि दलदल का रूप धारण कर लेती है अनपरा ‘‘डी’’ में कार्य करने वाले मजदूरों की माने तो यहाँ कार्य करना एक बड़ी चुनौती है क्योकि गर्मियों के समय में हल्की सी हवाएँ चलती है तो इतनी राख उड़ती है कि एक-दूसरे के बगल में खड़ा मजदूर अपने दूसरे साथी को नहीं देख सकता। प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रूपये कम्पनियों वसुलती है लेकिन ये सुरक्षा के उपकरण मजदूरों तक नहीं पहुच पाते जिसमें करोड़ों की हेर-फेर प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर किया जा रहा है।

प्रदूषण से सुरक्षा के नाम पर इन मजदूरों के पास ऐसा कोई भी उपकरण नहीं है जो राख या किसी अन्य प्रदूषित वस्तुओं से इन्हे बचा सके जब कि यह क्षेत्र प्रदूषण के मामले में भारत का नवां सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र घोषित है। इस परियोजना की लागत कई सौ करोड़ों रूपये में है लेकिन यहाँ कार्य करा रही कम्पनियों केा यहाँ कार्य करने वाले मजदूरों से कोई लगाव नहीं है। कम्पनियों को सिर्फ अपने कार्य से ही मतलब है। बावजूद मजदूर चाहे राख खाये या गन्दा पानी पीये सुरक्षा के नाम पर कम्पनियों की तरफ से राख से बचने व पीने के पानी की भी सही व्यवस्था नहीं है तथा जो संसाधन मजदूरों को सुरक्षा के लिए आते भी है वेा कम्पनी अपने तरीके से बेच खाती है या मजदूरों तक ही नहीं पहुच पाती। कम्पनी के लोग आपस में मिल बाटकर खा जाते है। सूत्रों की माने तो कम्पनियाँ यहाँ कार्य तो करा ही रही है लेकिन अब तक करोड़ों के वारे-न्यारे फर्जी तरीके के साथ हो चुका है। 

भविष्य में भी इस तरह के गतिविधियाँ होती रहेगी। कम्पनियों के अधिकारीयों को बैठने के लिए आवास बने है जब कि मजदूर जो दिन भर धुप व राख खाता है उसे पीने के पानी की भी व्यवस्था डैम के द्वारा की जाती है। जो पहले ही काफी प्रदुषित हो चुका है क्योकि इन औद्योगिक संस्थानों के द्वारा इतने रसायनिक कचरे इस गोविन्द वल्लभ पन्त सागर में बहाया जा चुका है कि इसका जल काफी हद तक जहरीला हो चुका हैं। ऐसी कई घटनाये समाने आ चुकी है कि डैम का प्रदूषित पानी पीकर यहां के लोग अपनी जान भी गवा चुके है। लेकिन यहां के कम्पनियों के लोग आज तक इस समस्या के समाधान एवं मजदूरों की सुरक्षा पर किसी तरह की चिंता दिखाई नहीं देती अगर भविष्य में  सरकार इन समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं देती तो ऐसी घटनाए आम हो जायेगी।