सोमवार, 21 जुलाई 2014

धीरे-धीेरे फैल रहा है उर्जान्चल की वादियों में मीठा जहर

  • विकास की किमत चुकानी पड़ रही पेड़ पौधो व वन्य जीवों कों
  • कई वन्य जीव व पेड़़ो की प्रजातिया अब है सोनान्चल की भूमि से विलुप्ति के कगार पर
प्राकृतिक वादियों के गोद में स्थित ऊर्जांचल आने वाले दषकों में भारत का सबसे बड़ा ऊर्जां हब बनेगा। जिससे देष के विकास में बढ़ोत्तरी की उम्मीद तो की जा सकती है और रोजगार के नये अवसर का सृजन भी बड़े पैमाने पर होने की उम्मीद को नकारा नहीं जा सकता। परन्तु विकास की रफ्तार में सरपट दौड़ती मानव जिन्दगी आज सुख सूविधा से परिपूर्ण तो है लेकिन विकास की रफ्तार के बीच प्रदूषण की समस्या धीरे-धीरे ही सही अपने पाँव पसारना प्रारम्भ कर चुकी है। जो गाहे -बगाहे आम जनजीवन को धीरे-धीरे प्रभावित कर रही है।

उर्जानगरी के नाम से विख्यात ऊर्जांचल जो प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच स्थित किसी द्विप से कम नहीं जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता प्रदेश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश में अलग दर्जा दिलाने से नकारा नहीं जा सकता है। इन प्राकृतिक सम्पदाओं के दशकों से हो रहे अन्धा-धुन्ध दोहन करने में राज्य एवं केन्द्र सरकार की नीतियाँ दिन-प्रतिदिन तेज होती जा रही है। वहीं लापरवाही से किये जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से होने वाले प्रदूषण पर सरकारों की ओर से जारी उदासीन रवैया, रोकथाम के अभाव में प्राकृति की अमूल्य सम्पदा को भारी नुकसान तो हो ही रहा है साथ ही प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्रिय मानव जीवन को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा। वनो से अच्छादित इन क्षेत्रों में कभी शांति एवं वन्य जीवों का वास हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे विकास की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी जंगलों मंे निवासरत पषु-पक्षियों ने भी स्थान बदल कर पलायन करने के साथ-साथ विलुप्ति के कगार पर ला खड़ा किया। आलम यह है कि लोगों के साथ जलीय जीव जन्तु का भी अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। प्रदूषण के इस शान्त ज्वालामुखी ने धीरे -धीरे ही सही अपना रूप दिखाना प्रारम्भ कर दिया है। जिसकी चपेट में आकर लोग आये दिन तरह-तरह के सक्रमित बिमारियो के चलते मौत के मुहँ मे समा रहें। 

जबकि ऊर्जांचल मे जहाँ नई परियोजनाओं का निर्माण जोरों पर है। वहीं पुरानी पड़ चुकी परियोजनाओं का जिर्णोंधार जोरों पर जारी है। ऐसे में प्रदूषण पर लगाम लगाया जा सकता है यह टेढ़ी खीर है। खदानों का बढ़ता क्षेत्र प्राकृति के सौन्दर्य को समाप्ति की ओर धकेल रहा है। जबकि नई परियोजनाओं का निमार्ण हो रहा है, उन्हें चलाने के लिए कोयले की और अधिक मात्रा की जरूरत पड़ेगी। जिसे पूरा करने के लिए नई खदानों का शुभारम्भ होगा और प्रदूषण में कई गुना का इजाफा होगा। जिसका खामियाजा प्रकृति के गोद में रहने वाले स्थानीय नागरिको को अपनी जिन्दगी देकर ही पूरी होगी। प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए स्थानीय नागरिकों द्वारा ऊर्जांचल जनकल्याण समिति का गठन कर रोक-थाम के लिए आवाज उठायी गयी। प्रारम्भिक प्रयास काफी सफल भी रहे कुछ समय बितने के बाद जनकल्याण समिति का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। प्रदूषण पर लगी रोक-थाम बेअसर हो अपने पुराने ढर्रें पर आ गयी। जिससे न केवल लोग प्रभावित है बल्कि काफी हद तक उनकी चपेट में है। जो नये-नये बिमारियों का कारण बन रही। समय रहते प्रदूषण रूपी इस ज्वालामुखी पर काबू पाने के प्रयास नहीं किये गये तो वह दिन दूर नही जब आदमी के साथ प्रकृति के गोद में स्थित वनपस्तियों एवं जीवों का अस्तित्व का अन्त हो जायेगा। जिसे बचाने की जिम्मेदारी ऊर्जांचल की जनता का है।  

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