सोमवार, 21 जुलाई 2014

आँखों देखी सोनेभद्र की तस्वीर ! कुछ हाल बुरा सा है, कुछ हालात भी बुरे है

सोनभद्र में सबसे ज्यादा ऊर्जा के संसाधन है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी की सपना था कि इसे विकास की मुख्य धारा के साथ जोड़कर एक विकसीत क्षेत्र बनाया जाय। सोनभद्र में पूरे हिन्दूस्तान में सबसे ज्यादा भूमि का अधिग्रहण आधारभूत सुविधा एवं औद्यागिक विकास के लिये किया गया। सोनभद्र की 40 प्रतिषत आबादी विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण के लिये दो से तीन बार अपनी जमीनों से विस्थापित होना पड़ा है। पिछले 22-23 सालों से प्रदेष में जितनी भी सरकारे रही, उन्होंनेे प्रभावित किसानों के साथ न्याय नहीं किया है। तत्समय समय भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों को पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन लाभ (Rehablitation & Resettlement) देने के लिये जो कानून बनाये थे, परन्तु सत्ताधारी लोगों ने भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों के अधिकारों को छिनकर कार्पोरेट को लाभ देने वाली नितियाँ बनाई। 

(अनपरा तापीय परियोजना के प्रभावित किसानों को न्याय दिलाने की लड़ाई 2008 से पंकज मिश्रा गैर सरकारी संगठन ‘सहयोग’ के माध्यम से मा. उच्च न्यायलय एवं सर्वोच्च न्यायलय में लड़ी है।)
(17 मार्च 2010 से उत्तर प्रदेष युवा कांग्रेस (पूर्वी जोन) के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानो न्याय दिलाने के लिये 15 दिवसीय सत्याग्रह किया गया। जिसमे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को प्रदेष सरकार ने जबरन जेल भेजा)।
(06 सितम्बर 2011 को प्रदेष सरकार की पुलिस द्वारा भूमि अधिग्रहण से प्रभावित दलित-आदिवासी किसानो पर अपनी आवाज उठाने पर लाठिया बरसाकर उनके आवाज को दबाने का प्रयास किया गया)।
(06 सितम्बर 2011 से अनपरा तापीय परियोजना के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों ने पंकज मिश्रा के नेतृत्व में ऐतिहासिक सामुहिक भुख हड़ताल कर प्रदेष सरकार को कड़ी चुनौती दी)।
(16 सितम्बर 2011 को प्रदेष सरकार ने आन्दोलनकारियो के सामने घुटने टेक दिये, 21 सितम्बर, 2011 को प्रदेष सरकार ने अनपरा तापीय परियोजना के प्रभावितों को नई भूमि अधिग्रहण नीति 2011 के अन्तर्गत आवासीय प्लाट, मुआवजा एवं वार्षिकी देने की घोषणा की, परन्तु नई भूमि अधिग्रहण नीति के अन्तर्गत समस्त लाभ ना देकर आधी-अधूरे लाभ की घोषणा प्रदेष सरकार की नीति से ज्यादा नियम में खोट दर्षाता है)।

यहाँ के हालात कालाहाण्डी से भी ज्यादा बद्तर है। प्रदेष सरकार किसानों के साथ धोखा और गुण्डागर्दी कर रही है व गुंगी-बहरी बनी बैठी है। हक मांगने वालों को गोलियाँ और लाठियाँ मिल रही है। प्रदेष सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति चुनावी घोषणा पत्रों तक सिमित है। क्योंकि अगर सरकार की नियत में खोट नहीं होता तो चालिसों हजार अनपरा के दलित-आदिवासी किसानों को आज न्याय मिल गया होता।  अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे - विष्ठापितो की दयनीय हालात 

केन्द्र सरकार ने आदिवासी-दलित-किसान एवं बेरोजगारों को मनरेगा कानून बनाकर हर परिवार को 100 दिनों का गारण्टी रोजगार देने का कानून बनाया। सोनभद्र को मनरेगा के कार्यक्रम को लागू करने के लिये प्रथम चरण के महत्पूर्ण जिलों के रूप में सम्मिलित किया गया था। परन्तु प्रदेष की सरकारों ने आम आदमी, जरूरतमन्दों को रोजगार देने के इस कानून को गलत तरीके से पैसा बनाने की मषीन बना लिया। सोनभद्र में 322169 परिवार आज मनरेगा जाॅब कार्डधारी है। जिसमें एक लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति एवं 75 हजार अनुसूचित जनजाति के जाॅबकार्ड धारी है। वित्तिय वर्ष 2011-2012 समाप्त होने में केवल 40 दिन ही बचे है, पर सरकारी आकड़े बताते है कि अब तक सिर्फ 3296 परिवारों को ही 100 दिनों का रोजगार मिल सका है। हमारी योजना जो तीन लाख से ज्यादा परिवारों के घरों में चुल्हे जला सकती थी, उनकी भूख मिटा सकती थी, उनके बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकती थी परन्तु प्रदेष में हमारी सरकार ना होने के कारण सिर्फ 1 प्रतिषत (3296) परिवार ही 100 दिनों का रोजगार पा सका। प्रदेष की मुख्मंत्री कहती है कि मनरेगा से किसी को फायदा नहीं पहुँचता। यह बात यहाँ तो 100 प्रतिषत लागू है, क्योंकि यहा मनरेगा 1 प्रतिषत लागू है। सोनभद्र को पूरे हिन्दूस्तान में मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार एवं मजदूरी के लूट के लिये जाना जाता है। यहाँ मनरेगा में भ्रष्टाचार एवं बकाया मजदूरी की बात उठाने पर लोगो को गोलिया मारी जा रही है। 
(अमरनाथ देव पाण्डेय, आरटीआई कार्यकर्ता पर जनवरी 2011 में हुआ जानलेवा हमला) जब हमारे युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मनरेगा के भ्रष्टाचार और लाखों दलित-आदिवासी मनरेगा मजदूरों की बकाया मजदूरी की आवाज उठानी चाही तो उनपर लाठियाँ बरसाई गई।) पूरी जानकारी के लिए वीडियो देखे 

(31 मार्च 2011 को राबर्टसगंज में युवा कांग्रेस द्वारा आयोजित दलित-आदिवासी अधिकार रैली में युवा कांग्रेस कार्यकताओं के साथ-साथ हजारों दलित-आदिवासियों पर लाठियाँ चलाई गई और पूरे जिले को पुलिस छावनी में बदलकर लोगों को गिरफ्तार किया गया)। 
देष के अन्य प्रदेषों में जहाँ हमारी सरकार है वहाँ मनरेगा लोगो के जीवन में खुषहाली ला रहा है। उनका विकास हो रहा है तथा अपने घर में उन्हें रोजगार के साथ-साथ एक मजबूत बुनियादी सुविधाओं के विकास का कानून मिल गया है। जिससे वहाँ सड़क, सिंचाई के साधन विकसित किये जा रहे है। जो रोजगार के साथ-साथ लोगों को बेहतर भविष्य भी दे रहे है। वही दूसरी ओर सोनभद्र पिछड़ा जिला होने के बाद भी मनरेगा में मजदूर काम करने से घबड़ा रहा है। पूरा धन बसपा सरकार के मंत्री एवं कार्यकर्ता अपनी निजी सम्पति की तरह इस्तमाल कर रहे है। पूरे हिन्दूस्तान मे अगर मनरेगा की सबसे बड़ी जरूरत किसी क्षेत्र को है तो उसमें सोनभद्र सबसे आगे होना चाहिए। 

केन्द्र में यूपीए की सरकार ने अदिवासियों को एवं अन्य परम्परागत वन पर आश्रित परिवारों को न्याय देने के लिये वनाधिकार कानून-2006 में बनाया ताकि हम आदिवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़कर उन्हें बेहतर भविष्य के साथ-साथ आजिविका के संसाधन से सीधे जोड़े, पर प्रदेष में हमारी सरकार ना होने के कारण जहाँ तीस हजार से ज्यादा अनुसूचित जनजाति के परिवार जो वनाधिकार पा सकते थे, उसमे से सिर्फ 10069 परिवार ही इसका लाभ पा सके है। आदिवासियों को दिये गये वनाधिकार में भी पद्रेष सरकार ने अपनी नियत दिखाई है। आज 80 प्रतिषत आदिवासियों को उनके कब्जे की जमीन पर सिर्फ 10 से 20 प्रतिषत भूमि का ही वनाधिकार दिया गया है। अगर यह ही लाभ किसी निजी कार्पोरेट को देना होता तो प्रदेष सरकार उसे 200 प्रतिषत लाभ देती। सोनभद्र में भी इसके कई ऐसे उदाहरण देखे जा सकते है। जहाँ प्रदेष की सरकार ने आदिवासियों को हित एवं कानूनों का ताक पर रखकर हजारों हेक्टेयेर वन भूमि निजी कार्पोरेट को भेट की है। 
(जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड, को डाला एवं चुर्क में आदिवासियों के कब्जे की भूमि पर आदिवासियों के वनाधिकार देने की बजाय जबरन प्रदेष सरकार द्वारा जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड, को डाला एवं चुर्क में दिया गया है)
(प्रदेष सरकार द्वारा अनपरा के बेलवादह ग्राम में रहने वाले आदिवासी जिन्हे वनाधिकार कानून के तहत वनाधिकार दिया गया है। उनकी भूमियों पर आज प्रदेष सरकार जबरन अतिक्रमण कर रही है और उन्हें न्याय देने की बजाय यह फरमान जारी कर रही है कि उन्हें ऐसे भूमियों पर प्रतिकर एवं पुर्नवास/पुर्नस्थापन लाभ पाने का अधिकार भी नहीं है)।
सोनभद्र में किसानों के टमाटर सड़को पर बिखरे पड़े है किसानों के धानों को प्रदेष सरकार नहीं खरीद रही है। किसानों के हालात सबसे ज्यादा दयनीय है। हमने किसानों को सीधे बाजार एवं आधार भूत सुविधाओं से जोड़ने के लिये एफडीआई सदन में लाया। परन्तु एनडीए एवं बसपा ने इसका विरोध किया। आज जब सोनभद्र को किसान अपनी फसल सड़कों पर फेंक रहा है। उसके धानों का कोई खरीदार नहीं है, तो विपक्ष क्यों ? मौन है। 

सोनभद्र में सड़क के हालात ऐसे है कि यहा की सडक को किलर रोडऋ कहा जाता है। यहाँ कि सड़कों की हालात ऐसी है कि विकास का पहियाँ थम गया है। इसे गति देने की जरूरत है। प्रदेष की आर्थिक व्यवस्था महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला यह जिला अपने लिये एक अच्छी सड़क के लिये तरस रहा है। आप हमें अवसर दे ताकि उत्तर प्रदेष के विकास का पहियाँ अच्छी सड़को पर घूमें। 

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