गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

प्रदुषण से अजीज हो चुके है उर्जांचल के निवासी


ः-स्थानीय विस्थापित प्रतिनिधियों ने बनाई आन्दोलन की रणनीति। 
ः-जिला पंचायत सदस्य, प्रधान  व ग्राम पंचायत सदस्य एवं प्रबुध वर्ग  भी खुलकर आये सामने। 
ः-परियोजनाओं के विरूद्ध बनाई जा रही है कड़ी रणनिती। 
ः-प्रदुषण व ओबर लोड वाहनों से राजमार्ग पर चलना हुआ दुश्वार। 
ः-राख-कोयले की धुल से पट रहे है उर्जान्चल की सड़क। 
ः-रिहन्द डैम बना जहरीले पानी का प्याला। 

उर्जान्चल परिक्षेत्र में स्थित विस्थापित बस्तियों व इससे सटे आस-पास के गाँवो में प्रदुषण का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अनपरा तापीय परियोजना के विभिन्न ईकाईयों के लिये किये गये भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवार अधिकतर अनपरा तापीय परियोजना से सटे ग्रामों में बसे है, जिन्होंने अपनी पुस्तैनी जमीन देशहित में समर्पित कर दिया। आज उन्हें इसके बदले इन परियोजनाओं से निकलने वाली फ्लाई ऐश (राख) एवं परियोजनाओं की वजह से बढ़ते औद्योगिक यातायात के कारण सड़कों पर धुल-मिट्टी के गुबार से सामना करना पड रहा है। आने वाले कुछ दिनों में स्थानीय जनों के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों व राजनितिक नेताओं ने इसके विरूद्ध रणनीति बनाकर एक साथ आन्दोलन करने की बात कही है,

पंकज मिश्रा
इस सन्दर्भ में कांग्रेसी नेता पंकज मिश्रा का कहना है कि सड़क पर बढ़ते प्रदुषण को रोकने के लिये परियोजनाओं द्वारा अपने निगमिय सामाजिक दायित्यों के तहत लाखों रूपये के खर्चे का बजट तो दिखाया जाता है, परन्तु वास्तव में इसके पीछे सच्चाई क्या है, ये तो उर्जान्चल के वातावरण से ही पता चल जाता है।

ओंकार केशरी
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष ओंकार केशरी का कहना है कि परियोजनाओं द्वारा रिहन्द बाँध में बहाये जा रहे राख से यह डैम एक जहरीला प्याला बन गया है, जिसके जल से आस-पास के ज्यादातर गाँवों के लोग अपनी दैनिक कार्यो व पीने के प्रयोग में लाते है, प्रदुषित जल पीने से तरह-तरह के अज्ञात रोगों से ग्रसित यहा की ग्रामीण जनता प्रत्येक वर्ष सैकड़ों की संख्या में काल कवलित होते जा रहे रहे है। 

बालकेश्वर सिंह
बालकेश्वर सिंह, जिला पंचायत सदस्य- कुलडोमरी का कहना है कि परियोजना अपने द्वारा उत्सर्जित राख व कोयले को खुले में उडाना बन्द नहीं करती है तो जल्द ही उनके विरूद्ध बड़ा जन आन्दोलन खड़ा किया जायेगा। 

रामचन्द्र जायसवाल
कुलडोमरी ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रामचन्द्र जायसवाल का कहना है कि ये परियोजनायें विस्थापित बस्तियों में जन सुविधा तो देने से रहे, बल्कि उन्हें प्रदुषण से हो रहे तरह-तरह के गम्भीर रोग देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है।

शक्ति आनन्द
ग्राम पंचायत औड़ी के सदस्य शक्ति आनन्द का कहना है कि परियोजनाओं के आस-पास सटे गाँवों के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर शक्तिनगर से डिबुलगंज विस्थपित बस्ती तक परियोजनाओं से निकलने वाले राख व कोयले के अभिवहन में उपयोग की जाने वाली मालवाहकों से राख व कोयले की धुल उड़कर मार्ग से सटे गाँवों के वातावरण को इतना प्रदुषित कर दे रही है की लोगों को छोटी उम्र में ही सांस, ब्लड प्रेशर जैसे गम्भीर रोग होते जा रहे है, जो असमय मौत का कारण भी बनते जा रहे है। 

 रामदुलारे पनिका 
मूल निवासी संविदा श्रमिक यूनियन के नेता रामदुलारे पनिका का कहना है कि परियोजनाओं की वजह से बढ़ते प्रदुषण के कारण लोगों का राह में चलना दुश्वार हो गया है। 

हरदेव सिंह
हरदेव सिंह, ग्राम प्रधान-बेलवादह ने आरोप लगाया कि परियोजना द्वारा ग्राम बेलवादह में ऐश डाईक बनाकर उसमें व्यापक रूप से परियोजना से निकलने वाली राख को पानी के साथ लगातार बहाया जा रहा है। जिससे कुछ वर्षो में इस ग्राम का नामों-निशा मिट जायेगा। 

 विजय कुमार सिंह 
एलगी कम्पनी के ईन्जीनियर विजय कुमार सिंह का कहना है कि प्रदुषण का मुख्य कारण मालवाहकों द्वारा ओवर-लोड कर राख व कोयले को ढ़ोने की वजह से हो रहा है। जिसके कारण रोड़ पर उनके द्वारा गिराये जा रहे राख व कोयले की धुल की परत सारे आवोहवा को प्रदुषित कर देती है। जिसके रोकथाम के लिये प्रशासन के साथ-साथ परियोजनाओं को भी ठोस कदम उठाने चाहिए। 

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही दाने-दाने के लिए तरस रहा है अपंग


शासन के विभिन्न जन हितकारी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में शासकीय मिशनरी किस हद तक लापरवाही बरत सकती है इसका जीता जागता उदाहरण भाठ क्षेत्र के ग्रामीणों के बिच जाने पर पता चलता है, जहाँ के ग्रामीण जो जीवन जीने को मजबूर, जहाँ कई लोग वृद्ध एवं बेसहारा है, कई दाने-दाने के लिए तरस रहे है, एवं सैकड़ो अपंग है। किन्तु प्रदेश शासन की निराश्रित पेंशन योजना, सामाजिक सुरक्षा योजना, विकलांग सहायता कार्यक्रम, गरीबी रेखा कार्ड, वृद्धों के लिए सहायता कार्यक्रम के विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के हितग्राहियों के लिस्ट में कई लाभार्थीयों का नाम अभी तक दर्ज नहीं हो पाया है। घास-फूस से बनी झोपडी में कई दिनों भूखे रहकर घुट-घुट कर जिदगी बिताने को मजबूर यहा के आदिवासी एवं ग्रामीण आदिम जीवन जीने के लिये बाध्य है। 

मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर भाठ के ग्रामों के निवासी जंगल में घास-फूस से बनी झोपडी में रहते है। फिलहाल इस जिले में यहा से दुरूह क्षेत्र कोई नहीं है। यहा के लोग शासन के रोजगार गारंटी योजना का फायदा मिले बिना छुट-फुट मजदूरी से जीवन तो चला रहे है, किन्तु बकाया मजदूरी एवं अधिकारियो, कर्मचारियों तथा भ्रष्टाचार के चलते उनकी मजदूरी भी मार ली जाती है। हां शासन की किताबों में गरीबी रेखा कार्ड, स्मार्ट कार्ड, इंदिरा आवास, बेसहारा पेंशन, विकलांग सहायता, सामाजिक सुूरक्षा, ये सभी योजनाएं इन्हीं लोगों के लिए ही है। शासन की सभी योजनाएं जरूरत मंदो के लिए ही है। परन्तु शायद शासन की नजर यहा पड़ती ही नहीं। राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी शायद यहाँ के लोगों के घुट-घुट के मर जाने चिन्ता नहीं है। 

घटने की बजाय बढ़ती गईं समस्याएं


जनसंख्या में कम, लेकिन राजनीति में अहम स्थान रखने वाले प्रदेश के सबसे पुराने टाउन एरिया के रूप में घोरावल नगर पंचायत को जाना जाता है। इसके बाद भी यहां समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। कम होने की बजाय समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं। साढ़े सात हजार की आबादी वाले घोरावल नगर पंचायत में पिछले कार्यकाल में कार्य तो जरूर हुए, लेकिन नाकाफी रहे। नगर का विकास तो दूर की बात पहले तो समस्याओं को दूर करना है। ऐसे में नगर का विकास कराने का जिम्मा नगर अध्यक्ष को ही उठाना होगा। दस वार्डों में फैले इस नगर पंचायत में सबसे ज्यादा पानी की समस्या बनी हुई है। हर वार्ड में पानी नहीं पहुंच पा रहा है और जल निकासी का समुचित प्रबंध भी नहीं किया गया है।

नई बस्तियों में तो पानी की सप्लाई के लिए पाइप अभी बिछाई ही नहीं गई है। कुछ वार्डों में नालियां बनी ही नहीं हैं और जिन वार्डों में बनी भी हैं, तो वह या तो टूटी हुई हैं या फिर कूड़ों के ढेर से पट चुकी हैं। सफाई कर्मियों की कमी के चलते नगर पंचायत में साफ सफाई का कार्य भी ठप है। वहीं नगर में जहां खड़ंजा लगाया गया है, वह आधे से अधिक निकल कर इधर उधर बिखर गए हैं। उनकी मरम्मत कराना भी अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगी। नगर में कुछ ऐसी बस्तियां बाकी हैं, जहां बरसात के दिनों में यहां के रहवासियों को आने जाने के लिए कीचड़ से जंग लड़ना पड़ता है। ऐसे में इन बस्तियों में खड़ंजा लगाने की तत्काल आवश्यकता है।वहीं नगर के हैंडपंपों की स्थिति दयनीय है। जलस्तर इतना गिर चुका है कि वे पानी देना तो दूर की बात मरम्मत के अभाव में शो पीस बन कर रह गए हैं। ऐसे में सबमर्सिबल से पानी की आपूर्ति कराने के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं बचता। व

नगर पंचायत के विकास के संदर्भ में नगर के अध्यक्ष संजय कुमार जायसवाल का कहना है कि नगर की समस्याओं को मैंने बहुत नजदीक से देखा है। समस्याओं के क्रम में पानी की आपूर्ति व जल निकासी की समस्या सबसे अहम मुद्दा है। उन्होंने कहा कि नगर में पानी की आपूर्ति के लिए सबमर्सिबल की व्यवस्था की जायेगी। जहां तक पानी की निकासी की बात है, तो इसके लिए 56 लाख का प्रोजेक्ट बनाकर भेजा गया था। वह पैसा जैसे ही मिलता है, पानी निकासी की समस्या दूर कर दी जाएगी। नालियों की साफ सफाई पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। जरूरत पड़ने पर सफाईकर्मी को भी रखा जाएगा। सुलभ शौचालय की बात करते हुए उन्होंने कहा कि नगर में कम से कम दो सुलभ शौचालय का निर्माण कराया जाएगा। जो भी कार्य अधूरे रह गए हैं, उसे पूरा करने का यथासंभव प्रयास किया जाएगा।

आबादी बढ़ने के साथ सुरसा होती गईं समस्याएं


तीन प्रदेशों के बीच बसा दुद्धी नगर पंचायत जनपद में अपना एक अहम स्थान रखता है। यहां तहसील मुख्यालय होने के बाद भी नगर पंचायत में समस्याओं का अंबार लगा है। जिले में इसे पुरानी तहसील के रूप में जाना जाता है। नगर की आबादी जैसे-जैसे बढ़ती गई वैसे-वैसे वह समस्याओं से ग्रसित होता चला गया। करीब दस हजार छह सौ अड़सठ की आबादी वाले दुद्धी नगर पंचायत में पिछले कार्यकाल में कार्य तो हुए जरूर, लेकिन वह नाली, गली, खड़ंजा, इंटर लाकिंग तक ही सीमित रह गया। आज भी नगर पंचायत के रहवासियों को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नगर के विकास की बात तो दूर पहले समस्याओं से ग्रसित नगर को समस्याओं से उबारना होगा। 11 वार्डों में फैले इस नगर पंचायत में आज तक सबसे बड़ी समस्या पेयजल की बनी हुई है। नगर की इस समस्या को दूर करने की दिशा में आज तक किसी चेयरमैन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। गर्मी के दिनों में तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है। परिणामस्वरूप नगरवासियों को पानी के दर दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। स्थिति ऐसी है कि आज भी कई क्षेत्रों में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। वहीं जल निकासी की व्यवस्था को दूर की बात है।

नगर की नालियों का यह हाल है कि वह टूटी-फूटी तो हैं ही साथ ही पूरी तरह जाम हो गई हैं। जाम नालियों में जगह-जगह कूड़ों का अंबार लगा है। नगर के महत्वपूर्ण स्थानों में बस स्टैंड की भी गिनती की जाती है, लेकिन नगर स्थित बस स्टैंड कूड़ों और कीचड़ों का ढेर बन चुका है। ऐसी जगहों से लोगों को आने-जाने के लिए कीचड़ में से होकर जाना पड़ता है। वहीं नगर के घनी बस्तियों में खड़ंजा, नालियों की सफाई आदि का टोटा दिख रहा है। नगर में बने शौचालय, पेशाब घर सफाई के अभाव में बास मार रहे हैं। ऐसे में नगर वासियों का कहना है कि नगर में पहले तो पेयजल की व्यवस्था करनी होगी। इसके बाद आधुनिक परिवेश को ध्यान में रख कर नगर का विकास करना होगा। नगर के गरीबों के विकास के लिए ठोस प्रयास की जरूरत है।

नगर पंचायत के विकास एवं समस्याओं के संदर्भ में नगर की अध्यक्ष सुनीता कमल का कहना है कि वह नगर के विकास के लिए समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए विकासशील कार्य करेंगी। मैंने नगर की गलियों की हालत अपनी आंखों से देखा है। जहां तक पेयजल, जल निकासी और सफाई की बात है तो यह सब मेरे ध्यान में हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए यथासंभव प्रयास किया जाएगा। वहीं नगर के बंद पड़े शौचालयों और गलियों की टूटी नालियों, जाम नालियों की बात करते हुए श्रीमती कमल ने कहा कि समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए कार्य किया जाएगा। नगर को एक अच्छे और विकसित नगर के रूप में संवारने की, मेरी भी दिली इच्छा है। ऐसे में पुराने कार्यकाल में जो भी कार्य अधूरे रह गए हैं, उसे पूरा किया जाएगा।

बाजार में जाने से भी लोग कतराने लगे हैं


ऊर्जांचल के सबसे बड़े बाजार के रूप से विख्यात अनपरा बाजार का मेन आने जाने का तिराहा कूड़ा घर के रूप में तब्दील नजर आ रहा है। अनपरा बाजार तथा साप्ताहिक बाजार के अवशिष्ट पदार्थों से पटे अनपरा तिराहे से भयंकर बदबू के चलते वहा से गुजरने वालों के शरीर से सिहरन पैदा हो जाती है। रुमाल अथवा हथेलियों से नाक बंद करने के बाद भी सड़े मांस की मानिंद कूड़े से उठती बदबू के चलते लोगों ने बाजार में आना ही बंद कर दिया है।
अनपरा व्यापार मंडल के अध्यक्ष गोपाल गुप्ता ने आक्रोश जताते हुए कहा कि जिला पंचायत विभाग पर अनपरा बाजार से तहबाजारी वसूलने तथा साफ सफाई कराने की जिम्मेदारी है लेकिन पिछले कई माह से अनपरा बाजार में सफाई के रूप में एक धेला भी इधर से उधर नहीं किया गया है। बाजार निवासीयों ने कहा कि अगर अनपरा तिराहे के अलावा भी पूरे बाजार में दर्जनों स्थान कूड़े से पट गए है, आलम यह है कि लोगों को खुद अपने आसपास के सड़क की सफाई करनी पड़ती है। अनपरा बाजार में ही व्यवसाय करने वाले व्यापारियों ने गंदगी से नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा कि बाजार का मेन तिराहा सहित अधिकांश भाग गंदगी से पट गया है। इसके चलते व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। बाजार में दुकान चलाने वाले व्यक्ति ने कहा कि जिला पंचायत अधिकारी को खुद आकर अनपरा बाजार का हाल देखना चाहिए। कहा कि राजस्व की वसूली ही जिला पंचायत की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि साफ-सफाई कराना भी जिला पंचायत का दायित्व है। लोगों ने चेताया कि अगर शीघ्र गंदगी से पट चुके अनपरा बाजार की सफाई नहीं कराई गई तो गंदगी से पट चुकी नालियों का पानी ओवर फ्लो होकर लोगों के दुकानों तथा घरों में प्रवेश कर जाएगा।

अवैद्य खननकर्ताओं पर लगेगा गैंगेस्टर


  • पुलिस प्रशासन ने खननकर्ताओं की उड़ाई नींद।
  • दोषियों को चिह्नित करने में जुटी पुलिस।

पुलिस अधीक्षक ने क्षेत्राधिकारियों व प्रभारियों को खननकर्ताओं के खिलाफ गैंगेस्टर की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। पुलिस प्रशासन का कड़ा रुख अख्तियार होने के बाद संबंधित लोगों में हड़कंप मच गया है। जिले में गत माह पूर्व हुए खनन हादसे के बाद से वैध-अवैध पत्थर और बालू की खदानें पूरी तरह से बंद रहीं। जिला प्रशासन अवैध तरीके से खदान संचालित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पूरी तरह से सक्रिय है। बभनी थाना क्षेत्र के पांगन नदी में कुछ दबंगों द्वारा बालू का अवैध खनन किए जाने की सुचना पर पुलिस ने खननकर्ताओं की तलाश शुरू कर दी। मामले को गंभीरता से लेते हुए एसपी, सोनभद्र ने सभी सीओ, थाना व चैकी प्रभारियों को बिना अनुमति के खनन कराने की चेष्टा रखने वालों के खिलाफ गैंगेस्टर की कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। 

आलाधिकारी का कड़ा रुख अख्तियार होने के बाद प्रभारियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में होने वाले खनन का पता लगाने के साथ ही कार्रवाई के लिए दोषियों को चिह्नित करना शुरू कर दिया है। अचानक पुलिस की कार्यशौली में बदलाव आने से वर्षों से खनन करा रहे खननकर्ताओं में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया है। एसपी का कहना है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में मातहतों द्वारा जरा भी कोताही बरती गई, तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। पुलिस अधीक्षक ने ओबरा एसओ को तत्काल खनन हादसे में नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया है। पुलिस अधीक्षक का कहना है कि कुछ अभियुक्त अरेस्टिंग स्टे लेकर घूम रहे हैं। दोषियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होगी। कहा कि कानून के साथ खिलवाड़ करने वाले तनिक भी बख्शे नहीं जाएंगे।

रविवार, 2 दिसंबर 2012

निजाम बदलने के साथ थानों पर दिखा असर


सूबे में बीएसपी के शासन के बाद अस्तित्व में आई सपा की सरकार में कई तरह के फेरबदल के साथ ही थानों के साइनबोर्ड पर हिंदी के साथ ही उर्दू लब्जों में थाने का नाम तथा सत्यमेव जयते लिखने का आदेश मिलते ही ऊर्जांचल के थानों पर ऊर्दू पेंटर की खोजबीन शुरू हो गई। मंगलवार को चमचमाते साइनबोर्ड पर उर्दू तथा हिंदी में थाने का नाम लिखा गया। स्थानीय लोगों में यह दिनभर चर्चा का विषय बना रहा।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

ब्रेकर निर्माण में सोनभद्र अव्वल


विगत वर्ष से ‘‘किलर रोड‘‘ की संज्ञा प्राप्त वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर  सड़क दुर्घटना रोकने के लिए ताषड़ तोड़ बनाए जा रहे ब्रेकरों की संज्ञा दिन दुनी रात चैगुनी रफ्तार से बढ़ने लगी है। एक सप्ताह के अन्दर जिला मुख्यालय से गुजरने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर आठ नये ब्रेकर बनाये जा रहे है अधिकांश कार्य भी पूरा हो चुका है। दैनिक पात्रियों की माने तो भारत में सर्वाधिक ब्रेकरों वाला नेशनल हाईवे वाराणसी-षक्तिनगर मार्ग बन चुका है। अकेले अनपरा थाना क्षेत्र में करहिया से लेकर ककरी खादान मोड़ तक कुल 10 किमी में 29 ब्रेकर बना दिये गये है। 

रोडवेज चालकों की माने तो राबट्र्सगंज के नव निर्मित ब्रेकरों को छोड़कर पूर्व में वाराणसी से बैठ़न तक 116 ब्रेकर थे। रोडवेज चालकों व कर्मचारियों की माने तो नेशनल हाईवे के नियमावली के मुताबिक ब्रेकर का स्लोप सही नहीं है। ब्रेकरों पर किसी प्रकार का निशान न होना भी दुर्घटना का कारण होता है। जानकारों के मुताबिक राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर गति अवरोधकों का निर्माण राज्य सरकार की संस्तुति पर की जाती है। किसी भी ब्रेकर से 50 मीटर पूर्व संकेतकों के जरिए चालकों को सचेत करने के लिए बोर्ड गाड़ा जाता हैै। वाराणसी-शक्त्निगर मार्ग रेलवे क्रासिंग के अलावा कही भी ब्रेकर संकेतक बोर्ड नहीं लगाया गया है। दुर्घटना रोकने के लिए बनाए गये ब्रेकर दूसरी तरह के दुर्घटनाओें का सबब बनते जा रहे है। इसमे किसी अन्य को नहीं बल्कि वाहन चालकों को स्वनुकसान ज्यादा हो रहा है। रोडवेज चालक तो इतने खिन्न हो चुके है के वे इस रोड पर चलना ही नहीं चाहते। 

ऊर्जांचल में तेल की हेराफेरी



ऊर्जांचल में मिट्टी तेल व जन वितरण प्रणाली में उपलब्ध होने वाली राशन के गोलमाल का मामला उजागर होने के बाद जहाँ हेराफेरी करने वाले के पैरों तले जमीन खीसक गयी है वहीं इस मामले में लिप्त अधिकारियों की नीद हराम हो गयी है। राष्ट्रीय सहारा के मजबूत पहल के बाद तेल में हो रही हेराफेरी के बाद कई लोगों द्वारा जिलें में यह भी पता किया जा रहा है कि सालवेन्ट का थोक एवं फुटकर विक्री कहा और कितनी मात्रा में की जाती है। ऊर्जांचल में बड़े पैमाने पर केरोसिन तेल का कालाबाजारी की बात समाने आने पर इस मुद्दे पर कई कोटेदारो से जानकारी ली गयी पहले तो कोटेदार आना-कानी एवं इधर-उधर की बात बतायी जब उनसे यह पूछा गया कि विभिन्न परियोजनाओं में जारी किया गया राशन कार्ड पर मिलने वाले मिट्टी तेल एवं खाद्यय सामाग्री कितनी मात्रा में मिल रही है तो इस बाबत नाम न छापने की शर्त पर बताया पूरे मामले की जानकारी जिले स्तर के अधिकारी से मांगे। जब परियोजना कर्मी तेल व खाद्यान नहीं लेगें तो कोटेदार क्या उनके घर को पहुचा दिया करेगा? अगर सरकारी कोटे से मिलने वाली सामाग्री को कालोनी के रहवासी नहीं लेते है तो क्या मैं सामाग्रीयों को फेक दूँ? कई परियोजनाओं के सोसाइटी के लोगों द्वारा विभाग से पहले ही आग्रह कर इस पर रोक लगाने की मांग की थी। फिर न जाने यह तेल का खेल कब से होते चला आ रहा है। ज्ञात हो तेल को खपाने का काम अधिकांशतः पेट्रोल टंकियांे में किये जाने की चर्चा आम हो चली है। अनपरा व शक्तिनगर थाने में इस तरह के मामले कई बार सामने आये आपूर्ति विभाग द्वारा जांच एवं सेम्पेल लेकर लेब्रोटी में भेजा गया पर नतीजा क्या निकाला इसके बारे में कोइ बताने का तैयार नहीं है। आने वाले दिनो में मामले की जांच को लेकर कई राजनीतिक दल कसरत शुरू कर दी है। अब तो समय ही बतायेगा इस तेल के खेल में हो रही हेराफेरी को बन्द कराकर गरीब व नक्सल क्षेत्र में जनप्रतिनिधि कितना लाभ दिला पाता है।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

कौन लेगा इन रास्तों की सुध


काषी मोड़ तिराहा गंदगी से पटे होने के कारण आने-जाने वाले लोगों के लिए सिरदर्द बन गया है। आलम यह है कि सड़क के दोनों तरफ नाली का गंदा पानी रोड पर जमा होने से जहाँ राहगीरों को काफी समस्याआंे का सामना करना पड़ रहा है वही जनप्रतिनिधियों को ये गंदगी दिखाई नहीं देती। बरसात के समय में ये रास्ते और भी ज्यादा बजबजाने लगते है। वाराणसी से षक्तिनगर मुख्य मार्ग से होकर वाहनंे और आम नागरिक तक गुजरते है लेकिन इस मार्ग का सुध लेने वाला कोई नहीं है जिसके कारण इस मार्ग पर साईकिल एवं पैदल यात्रियांे को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों वाहन व पैदल यात्री अनपरा (काषीमोड़) से ही गुजरते है एवं अधिकाष जनप्रतिनिधि व नेता इसी अनपरा, काषीमोड़ पर ही रहते है लेकिन इन नेताओं की अनदेखी की वजह से  इस मार्ग पर पड़ी गंदगी की सफाई नहीं हो पा रही है। जिला पंचायत की तरफ से बाजार तथा अन्य जगहों पर पैसे की वसुली तो होती रहती है लेकिन साफ-सफाई पर इन लोगों के द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता जिससे आम जनता को कुछ राहत पहुचाई जा सके। स्थानीय लोगांे ने काषीमोड़ तिराहे के पास साफ-सफाई व गड्डे को मिट्टी से पाटने के लिए अनपरा परियोजना प्रबंधन एवं जिला प्रषासन से मांग की हैं। 

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

कहुआ नाला श्मशान ओबी से पटा, शव फूंकने में दिक्कत


ऊर्जांचल का सर्वाधिक दाह-संस्कार वाला कहुआ नाला श्मशान की भूमि एनसीएल की ओबी (ओवर बर्डेन) से पटकर अपना वजूद खो चुका है। स्थानीय सम्भ्रान्त नागरिको की समिति ने इस शमशान की भूमि पर एक मंडप तथा शवदाह करने वाले स्थल के पक्के निर्माण कार्य पर लाखों खर्च किया था। आम लोगों के सहयोग से बने इस श्मशान भूमि का ओबी के विशालकाय सिल्ट आदि क्षेत्र में पड़ने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। स्थानीय लोगों ने एनसीएल प्रबन्धन सहित जिला प्रशासन को पत्र लिखकर यहां के निवासियों के लिए शमशान को बचाने की गुहार लगाई थी। इस शमशान का अस्तित्व ओबी के सिल्ट से पटती जा रही है। आलम यह है कि लगभग दो वर्ष से यहां से बहने वाला कहुआ नाला पट गया इस वजह से यहां शव जलाना भी स्थानीय निवासियों ने बंद कर दिया। शव रखने का मंडप भी भारी-भरकम ओबी सिल्ट की चपेट में आने से धराशायी हो गया है। वर्तमान में भारी-भरकम चट्टानों के बीच से शमशान भूमि में कदम रखना ही जोखिम भरा हो गया है। एनसीएल ककरी परियोजना के महाप्रबंधक एसके झा ने बताया कि श्मशान वाली भूमि रेलवे की सरकारी भूमि है अभी इस मसले पर विभागीय जांच चल रही है शीघ्र ही जांच पूरी कर इस बारे में कोई निर्णय लिया जाएगा। लेकिन क्या पत्रा जब तक कोई सार्थक पहली की जायेगी तब तक शायद इस शमषान का अन्तिम संस्कार ओबी की बड़ी-बड़ी चट्टानों के हाथों हो चुका होगा। 

मनरेगा के कार्यों में गड़बड़ी


गांव में मनरेगा के कार्यों में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। रही मृतकों को काम देने की बात तथा हिंदू जाबकार्ड पर मुसलमानों के नाम होने की तो यह सब कंप्यूटर फीडिंग में गड़बड़ी की वजह से हुई है। कागज में सब कुछ ओके है। मामले की जांच कराने के बाद ही सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। शीघ्र ही पूरे मामले की जांच कर सच्चाई को उजागर किया जाएगा। रही बात हिंदू के जॉबकार्ड पर मुसलमान सदस्यों के नाम की तो यह वन विभाग द्वारा कराए गए कार्यों में गड़बड़ी की वजह से हुआ था। वन विभाग ने ही इन नामों का जोड़ा था। हिंदू के जाबकार्ड में मुसलिम भी, गांव में नहीं रहता है कोई भी मुसलिम परिवार। चोपन विकास खंड में मनरेगा कार्यों में बड़े पैमाने पर धांधली की जा रही है। यहां तक कि वर्षों पहले मर चुके लोगों से मनरेगा के तहत काम कराए जा रहे हैं। यही नहीं जाब कार्ड पर सदस्यों के नाम में भी हेराफेरी की जा रही है। विकास खंड के पिपरखाड़ गांव की यही स्थिति है। यहां हिंदू धर्मावलंबी ग्रामीण के जाबकार्ड पर सदस्यों में मुस्लिम नाम डाले गए हैं, जबकि गांव में मुस्लिम परिवार ही नहीं हैं। गांव में मृतकों से भी काम लिया गया है। प्रधान इसे कंप्यूटर की गड़बड़ी मान रहे हैं। ग्रामीण गरीबों को सौ दिनों का सुनिश्चित रोजगार मुहैया कराने के लिए चल रही मनरेगा योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। गांव में तेजू के नाम से जाब कार्ड संख्या यूपी 63-005-001-626 बनाया गया है। इनका इलाहाबाद बैंक में खाता संख्या 38055 है। इन्होंने आठ दिसंबर 2008, चैदह फरवरी 2009 को काम भी मांगा है, जबकि तेजू की तीन चार वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है। इसी तरह मोतीलाल के नाम से जाब कार्ड संख्या यूपी 63-005-005-001ध्26 बनाया गया। इन्होंने नौ जून, 29 दिसंबर 2008, पांच जनवरी, बारह जनवरी, चैदह फरवरी को काम मांगा है, जबकि इनकी मृत्यु भी कई वर्ष पूर्व हो चुकी है। जाबकार्ड की अनियमितताओं की बात करें तो गांव के बहादुर के नाम से जाबकार्ड संख्या यूपी 63-005-005-001ध्664 बना है। इनके सदस्यों में गुलशन, इरफान, जाकिर आदि के नाम डाले गए हैं। इसी तरह उषा के नाम से जाबकार्ड संख्या 737 बना है। जाब कार्ड पर रामकेश, जितेन्द्र, कलावती के अलावा आज मुहम्मद, खुशबिंसी, नौराएकुद्दीन, हरीश आदि के नाम हैं। आज मुहम्मद ने काम भी मांगा है। गांव के ही अवध बिहारी के नाम से जाबकार्ड संख्या 774 बना है। इसमें अवध बिहारी के अलावा सदस्यों में अब्दुल कलाम, शामोहम्मद, अफसाना, फातमा आदि के नाम दिए गए हैं। अब्दुल कलाम, अफसाना, शामोहम्मद ने काम भी मांगा है। हिंदू घर में मुसलमान सदस्य हो सकता है लेकिन जब गांव में मुस्लिम परिवार ही नहीं हैं, तो कहां से सदस्य हुए यह समझ के परे है। यह पूरी लिस्ट इंटरनेट पर उपलब्ध है। बावजूद अधिकारियों की नजर इस ओर नहीं गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि इसकी विस्तृत जांच कराई जाए तो बड़ी गड़बड़ी मिल सकती है।

विस्थापित काम न मिलने पर भड़के


सिंगरौली जिले के नौगढ़ इलाके में निर्माणाधीन अनिल धीरू भाई अंबानी ग्रुप (एडीएजी) के रिलायंस पावर प्रोजेक्ट के लिए बन रहे कन्वेयर बेल्ट का काम नहीं मिलने से नाराज विस्थापितों ने बुधवार की सुबह रास्ता रोकते हुए अन्य काम ठप करा दिया। विस्थापितों द्वारा आंदोलनात्मक कदम उठाए जाने की जानकारी के बाद कंपनी प्रबंधन के लोगों में खलबली मच गई। इसकी सूचना जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ पुलिस को दी गई। दोपहर 12 बजे के करीब पहुंचे सिंगरौली के तहसीलदार ने नाराज लोगों को भरोसा दिलाया की उनकी जायज मांगों को पखवारे भर के अंदर पूरा कर दिया जाएगा तब जाकर बात बनी और कंपनी का कार्य शुरू हो पाया। बताते हैं कि रिलायंस पावर अपने आवंटित कोल ब्लाक से पावर प्रोजेक्ट तक कोयला ले जाने के लिए कन्वेयर बेल्ट का फाउंडेशन आदि तैयार करा रहा है। इस कार्य को को संविदा कंपनी आईटीबी अंजाम दे रही है। इस बीच पड़ने वाले गांव अमलोरी, नौगढ़ व भकुआर के लोगों का कहना है कि कंपनी के लोग उनकी जमीन अधिग्रहण आदि से मसले को अभी तक नहीं सुलझा सकी है। ऊपर से विस्थापितों को कार्य नहीं देकर बाहरी लोगों को कार्य पर लगाया गया है। इन्हीं मुद्दों को लेकर पार्षद रामगोपाल पाल की अगुवाई में बुधवार की सुबह कई सौ विस्थापित कंपनी कार्यालय की तरफ जाने वाले मार्ग को जाम कर दिया और कंपनी के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इसकी जानकारी होने के बाद तहसीलदार विकास सिंह मौके पर पहुंचे और लोगों को समझाना शुरू किया। काफी मशक्कत के बाद इस बात पर सहमति बनी पखवारे भर के अंदर विस्थापितों से जुड़ी सभी समस्याओं का हल निकाल लिया जाएगा। इस मौके पर रिलायंस व संविदा कंपनी के अधिकारी भी मौके पर मौजूद थे। बताया गया कि तहसीलदार विकास सिंह ने कंपनी के लोगों को दो टूक आदेश दे दिया है कि इनकी जायज समस्याओं का निस्तारण समयबद्व तरीके से किया जाए। आंदोलन की अगुवाई कर रहे रामगोपाल पाल से भी विस्थापित बेरोजगारों की सूची मांगी गई है ताकि सूची और वरीयता के हिसाब से लोगों को कार्य दिया जा सके। इस मौके पर जगप्रसाद, रामरक्षा, प्रहलाद व विजय पांडेय प्रमुख रूप से मौजूद थे।

चुनार किला

उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर मिर्जापुर जिले में विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा तट पर चुनार किला स्थित है। इसका प्राचीन नाम चरणाद्रि था। चैदहवीं शताब्दी में यह दुर्ग चंदेलों के अधिकार में था। सोलहवीं शताब्दी में चुनार को बिहार तथा बंगाल को जीतने के किए पहला बड़ा पढ़ाव समझा जाता था। शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार किले को ताज खाँ की विधवा श्लाड मलिका से विवाह करके इस शाक्तिशाली किले पर अधिकार कर लिया। 1532 ई. में हुमायूँ ने चुनार किले पर कब्जे के इरादे से घेरा डाला परंतु चार महीने तक कडे़ प्रयास एवं घेरे के बाद भी सफलता हाथ न लगी। अंत में हुमायूँ ने शेरशाह सूरी से सन्धि कर ली और चुनार का किला शेरशाह के पास ही रहने दिया। 1538 ई. में हुमायूँ ने अपने चालाकी तथा तोपखाने की सहायता से छह महीनों के प्रयास के बाद चुनारगढ़ एवं उसके किले पर अधिकार कर लिया। अगस्त, 1561 ई. में अकबर ने चुनार को अफ्गानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुगल साम्राज्य का पूर्व दिषा में रक्षक दुर्ग बन गया। 

चुनार का दुर्ग सातवीं सदी के काल का निर्मित बताया जाता है। यह एक विशाल और सुदृढ़ दुर्ग है, इसके दो ओर गंगा बहती है तथा एक गहरी खाई है। यह दुर्ग चुनार के प्रसिद्ध बलुआ पत्थर का बना हुआ है और भूमि तल से काफी ऊँची पहाड़ी पर बना है। इसका मुख्य द्वार लाल रंग के पत्थर का है, जिस पर काफी कलात्मक नक्काशी की गयी है। किले के अन्दर गहरे तहखाने एवं रहस्यमय सुरंगें बनी हुई हैं। इस किले में कई स्मारक आज भी उसी दषा में है जैसे कि पूर्व में थी। इनमें कामाक्षा मन्दिर, भर्तहरि का मन्दिर, दुर्गाकुण्ड आदि प्रमुख रूप से प्रसिद्ध हैं। यहाँ की ज्यादातर प्रसिद्ध मस्जिद मुअज्जिन है, जिसमें मुगल सम्राट फर्रुखसियर के समय में मक्का से लाये हसन-हुसैन के पहने हुए वस्त्र सुरक्षित हैं। गुप्तकाल से लेकर अठारहवीं सदी तक के अनेक अभिलेख यहाँ से प्राप्त हुए हैं। मौर्यकालीन स्तम्भ चुनार के भूरे बलुआ पत्थर को तराशकर बनाये गये थे। अनुमान किया जाता है कि चुनार के आस-पास मौर्यकाल में एक बड़ा कला केन्द्र स्थापित था, जो मौर्य सरकार के सरंक्षण में काम करता था। चुनार में लकड़ी, चीनी मिट्टी, पत्थर एवं मिट्टी की सुन्दर कलात्मक वस्तुएँ उस समय बनती थीं। जो आज लगभग विलुप्त होती जा रही है। 

रविवार, 17 जून 2012

कनहर नदी की एक दशक में पांच से सात फीट गहराई बढ़ी


अवैध खनन जारी होने से आज हो रही है दिक्कत 
भविष्य क्षेत्र में बढ़ सकता है घोर पेयजल संकट
देखते ही देखते कनहर की बढ़ गई गहराई

दुद्धी तहसील मुख्यालय से महज चार किमी दूर कनहर नदी में लगभग एक दशक से कास्त की छह एकड़ रकबे से बालू का खनन दिखाया जा रहा है लेकिन हकीकत तो यह है कि कास्त की मिट्टीयुक्त बालू कभी उठाया ही नहीं गया। कनहर नदी में ग्राम सभा की भूमि से यहां बालू का खनन बदस्तूर जारी है। गलत तरीके से हो रहे खनन को रोकने के लिए यहां प्रशासनिक स्तर से आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके नतीजतन कनहर पिछले वर्षों में पांच से सात फीट गहरी हो गई है। दुद्धी-विंढ़मगंज मार्ग पर स्थित कनहर ब्रिज और रेलवे ब्रिज के बीच कनहर नदी को देख कर आसानी से इसकी पुष्टि की जा सकती है। बरसात में आई तीव्र बाढ़ से पूरी बालू बह कर नीचे चला गया और वहां केवल पत्थर ही नजर आ रहे हैं। लोगों का मानना है कि अगर खनन नहीं रुका तो ब्रिज की नींव कमजोर पड़ जाएगी और कभी भी अनहोनी भी हो सकती है। नदी के तटवर्ती गांवों हीराचक, कोरगी, पकरी, टेंढा, देवढ़ी, कलिंजर सहित दर्जन भर गांव के लोगों ने बताया कि कनहर नदी गहरी होने से यहां के गांवों में जलस्तर काफी तेजी से नीचे सरक रहा है ऐसे में भविष्य में पेयजल की भी बड़ी समस्या उत्पन्न होने के आसार नजर आने लगे हैं। चैड़ी सड़कों को बनाया जा रहा संकरा, महुली के डा. अंबेडकर ग्राम विकास योजना के अंतर्गत महुली में कराए जा रहे विकास कार्यों से लोग आक्रोशित हैं। पांच मीटर तक की चैड़ी सड़कें महज दो से ढाई मीटर तक सिमट जा रही हैं। सीसी रोड का निर्माण कराए जाने से बस्ती में बड़े वाहनों का आना जाना मुश्किल हो गया है। बताया जा रहा है कि महुली की भीतरी बस्ती में जहां तीन से पांच मीटर तक की खंड़जायुक्त चैड़ी सड़कें थीं, वहां अब सीसी रोड का निर्माण कराया जा रहा है। ठेकेदार के मुताबिक सीसी रोड एक से ढाई मीटर चैड़ी ही बनाया जाना है। इधर ग्रामीणों का कहना है कि खंड़जा बिछाए गए सड़क पर बड़ी आसानी से बस्ती में स्थित अपने अपने दरवाजे तक पहुंचा जा सकता था, लेकिन खंड़जा उखाड़ कर सड़क को संकरा कर दिया।

परियोजनाओं को खोखला करते जा रहे है, कबाड़ चोर

1. कबाड़ चोर गिरोहों की सक्रियता से परियोजनाओं कि सुरक्षा पर लग रहा प्रष्नचिन्ह
2. परियोजनाओं को लग रहा है प्रतिदिन लाखों का चूना।
3. प्रतिदन होती हैं, कबाड़ चोरी बेखबर पुलिस महकमा। 

कबाड़ी व चोर गिरोहों की सक्रियता से औद्योगिक परियोजनाओं कि सुरक्षा पर प्रष्नचिन्ह लग गया है। परियोजनाओं बेषकिमती कल-पुर्जे व अन्य सामान रातों-रात चोरी कर बेच दिये जा रहे है। वहीं इससे पुलिस बेखबर है। चोरी की घटनाओं से लाखों की चपत सहने वाली परियोजनाए आए दिन खोखली होती जा रही है। औद्योगिक परियोजनाओं में बढ़ती चोरी की घटनाओं से इनकी सुरक्षा पर सवालिया निषान लग गया है। आरोप है कि पुलिस के लिए कोयला के अलावा कबाड़ की दुकाने अवैध कमाई व वसूली का जरिया बनती जा रही है। कबाड़ी गिरोह की बढ़ती सक्रियता से इन परियोजनाओं को प्रतिदिन लाखों रूपये का चूना लग रहा है, और पुलिस के संरक्षण में बे-रोकटोक चल रहे इस धन्धे से जुड़े लोग अपनी नींव मजबूत करते जा रहे है। इस वजह से इस धन्धे को आसानी से हिला पाना सम्भव नहीं दिखता। बताते है कि एनसीएल की ककरी, बीना व उत्तर प्रदेष पावर कारपोरेषन के अनपरा व रेनुसागर परियोजनाओं को चोरी से प्रतिदिन लाखों की चपत लगती है। कबाड़ी गिरोह परियोजनाओं के बेषकिमती स्पेयर पार्ट्स, रोप, केबिल सहित सक्रिय व निष्क्रय पड़ी लौह वस्तुओं पर हाथ साफ करते है। इस चोरी से पुलिस को मोटी रकम प्राप्त होती है। जिसके फलस्वरूप यह धन्धा फल-फूल रहा है। वैसे तो औद्योगिक क्षेत्र के हर हिस्से में प्रतिदिन छोटी-बड़ी चोरी की घटनाएँ प्रकाष में आती रहती है। मगर यह चोरिया संगठित तरिके से हो रही है। इसके लिए औद्योगिक क्षेत्र व स्वयं की कार्य संस्कृति भी काफी हद तक जिम्मेवार बताई जाती है। लंुज-पुंज सुरक्षा इंतजाम भी चोरी को बढ़ावा देते है। जबकि एनटीपीसी इस मामले में काफी सख्त है। पता चला है कि क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन कई लाखों रूपये की किमती सामानों की चोरी होती है। बीते महिनों में एनसीएल की बीना व ककरी परियोजनाओं से लाखों के बड़े विदेषी डम्परों के रेडिवाटर व बैटरी सहित कई अन्य प्रकार के पाटर््स की चोरियों ने परियोजना अधिकारियों की नींद हराम कर दी है। 

जहरीला तेल नाश्ते के साथ बीमारी को भी देता है दावत


सोनभद्र के होटलों, ठेले खोमचों पर स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ बीमारियां मुफ्त में मिल रही हैं। ठेलों और होटलों पर एक ही तेल और घी में पूड़ी, कचैड़ी, बाटी के अलावा जलेबी छन रही है। बार बार तेल गर्म कर उसे जहरीला बनाया जा रहा है, वहीं धूल की परत भी बीमारियों को न्योता दे रही है। एक तरफ तो जनपद मे लोग घातक बीमारियों के शिकार होकर काल के गाल में समा रहे हैं तो दूसरी तरफ बीमारियों को दावत दी जा रही है। प्रतिदिन लोग सुबह के नास्ते व खाने के लिये होटलों की शरण लेते हैं। यही नहीं औद्योगिक प्रतिष्ठानों की ओर जा रहे लोग नाश्ते के लिए छोटे मोटे होटलों और ठेलों की शरण लेते हैं। जनपद में हजारों ठेलों पर पूड़ी, जलेबी, बाटी, चोखा आदि बेची जाती है। जनपद में जगह-जगह कई स्थानों पर ठेले खोमचों पर नाश्ते के लिए भीड़ जुटती है। यहंा मानक के विपरीत बार बार एक ही तेल में पूड़ी, कचैड़ी, समोसा, पकौड़ी आदि तले जा रहे हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह साबित हो चुका है कि तेल को बार बार गर्म करने पर वह जहरीला हो जाता है तथा इसके प्रयोग से कैंसर का खतरा होता है, लेकिन आदिवासी इलाके में लोग इस बात से अंजान हैं। यही नहीं वाराणसी शक्तिनगर मार्ग, राबर्ट्सगंज मिर्जापुर मार्ग, घोरावल खलियारी मार्ग पर हमेशा धूल उड़ती रहती है। यह धूल खाने के सामान पर पड़ती है। इन सब के प्रयोग से लोगों के बीमार पड़ने का खतरा बना हुआ है लेकिन इस ओर स्वास्थ्य विभाग का ध्यान नहीं है। एक तरफ तो जिले में संक्रामक बीमारियों की वजह से लोगों की मौत हो रही है। वही बीमारियों को दावत दे रहे ठेले खोमचों और होटलों पर कार्रवाई नही की जा रही है। एक ही तेल में बार बार सामान छानने और उसका सेवन करने से पेट से संबंधित अनेक बीमारियां होती हैं। शरीर की अधिकांश बीमारियों की जड़ दूषित भोजन ही है। ऐसे में लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए। 

दुर्व्यवस्था की भेंट चढ़ा आवासीय विद्यालय


गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं के लिए महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत चल रहे कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में दुर्व्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है। विद्यालय प्रबंधन के मनमाने कार्यप्रणाली का नतीजा है कि ठंड में छात्राएं फटे चिथड़े व गंदे बिस्तरों पर सोने के लिए मजबूर हैं। मानकों की अनदेखी कर छात्राओं को मिलने वाले सुख सुविधाओं की कटौती करके अपने जेबें गर्म करने में प्रबंधन लगा हुआ है। वहीं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में हो रही भारी कमी से उनका भविष्य अंधकार में जा रहा है। रेणुकापार के दुर्गम क्षेत्र जुगैल में स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में भारी अनियमितता व लापरवाही के कारण छात्राओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सौ बालिकाओं को रहने व पढ़ने की व्यवस्था के तहत चल रहे इस विद्यालय में मात्र साठ छात्राएं मौके पर दिखाई पड़ीं, जबकि कागजों पर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। एनजीओ के संरक्षण में चल रहे इस विद्यालय में स्थायी व अस्थायी रूप से छह शिक्षक नियुक्त हैं, लेकिन पूरा विद्यालय आया और एक जूनियर महिला शिक्षक के भरोसे चलाया जा रहा है, जिससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यालय में शिक्षा का स्तर क्या होगा। वहीं विद्यालय में छात्राओं के भोजन व नाश्ते में भी भारी कटौती की जा रही है। विद्यालय परिसर में खेल मैदान न होने के कारण बालिकाओं को किसी भी प्रकार के खेल-कूद से वंचित रहना पड़ रहा है। जनपद के शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी धन पर्याप्त रूप से खर्च किए जाने के बावजूद भी आदिवासी अंचल के बच्चों को अच्छी शिक्षा नसीब नहीं हो पा रही है। जिले के आला अधिकारियों का इन शिक्षा केंद्रों पर जब तक नजरें इनायत नहीं होगी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।

बुधवार, 13 जून 2012

अपने ही आवास में नहीं रहना चाहते रेनुसागर ताप विद्युत गृह के कर्मचारी।

सीएचपि के पास बने एस.एफ. आवास
अपने ही आवास में नहीं रहना चाहते रेनुसागर ताप विद्युत गृह के कर्मचारी। यह बात तो थोड़ा सा अटपटा सा लगता होगा, लेकिन सच्चाई यही है। दबें जुबान से लोग कहते नहीं चुकते? ज्ञात हो की रेनुसागर पावर डिवीजन के कोल हैण्डलिंग प्लांट के पास बने एस. एफ. आवास में सैकड़ों परिवार अपने बच्चों के साथ परियोजना के द्वारा आवंटित आवास पर रहते है। ये कर्मचारी फैक्ट्री में काम करके जब अपने घर जाते है तो न उन्हें शुद्ध पानी मिल पाती है, न हवा, न वातावरण क्योंकि उनके आवास के कुछ ही दूरी पर सी.एच.पी. कै्रसर, डोजर चलता है। जहाँ से कोयला का धुल उड़कर रहवासियों को घर में रहना हराम कर दिया है। ये धुल खाना, पानी एवं कपड़े में तो लगता ही है। जमीन पर कोयले की धुल की परत जम जाती है। कर्मचाररी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि इस बात को कही उठा सके। इन कर्मचारियों की जिन्दगी पषुवत की तरह बीत रहा है। इस सम्बन्ध में गैर सरकारी संगठन ‘‘सहयोग’’ के सचिव एवं युवा कांग्रेस नेता पंकज मिश्रा ने बताया कागजी आकड़े पेष कर अवैध तरीके से पर्यावरण प्रदूशण का प्रमाण-पत्र हासिल कर परियोजना सरकार व जनता के आँख में धूँल झोक रही है। वर्तमान परिवेष में रेनुसागर परियोजना परिसर एवं आस-पास की सड़के जिनसे परियोजना के लिए कोयले एवे राख का अभिवहन होता है। उसकी स्थिति यह है मनुश्य तो मनुश्य पषु भी नारकीय जीवन जीने को बाध्य है। प्रबन्धन के गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के कारण रेनुसागर परियोजना एवं आस-पास के क्षेत्र का पानी, हवा एवं वातावरण इतना प्रदुशित हो चुका हैं कि लाखो जनमानस इसकी पीड़ा झेल रहा है। एैसे में आई.एस.ओ.-14001 की सार्थकता पर ही प्रष्न चिन्ह खड़ा होता है, जिसे प्र्यावरण मित्र एवं पर्यावरण हितैसी कम्पनी को ही जारी किया जात है। भ्रश्टाचार के इस दौर में इससे आगे भी इससे बेहतर पर्यावरण मित्र एवं पर्यावरण हितैसी कम्पनी होने का प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं। उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस पूरे प्रकरण की जाँच कर, पर्यावरण संरक्षण से सम्बघित प्रमाण पत्र जारी करने वाली संस्था एवं सम्बन्धित कम्पनी के विरूद्ध कार्यवाही कर प्रमाण पत्र निरस्त किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में व्यापार मण्डल के अध्यक्ष गोपाल गुप्ता का ह? कहना है कि बारूद के ढेर पर बसा है यह नगर। राँख बाँध से जब कभी धुल उड़ता है चारो तरफ फैलकर पर्यावरण को पूरी तरह से दूशित कर रहा है। वही गरबन्धा के ग्राम प्रधान पति गंगाराम बैसवार ने हम लोगों की खेती-बाड़ी सब उजड़ते जा रही है। गाँव में बर्फबारी की तरह परियोजना की चिमनीयों से निकलता राख गिरकर लोगों का जीना हराम कर कर रहा है। सुविधा के नाम पर परियोजना द्वारा केवल इसके निवारण का आष्वासन दिया जाता है। यदि परियोजना इस पर कोई कार्यवाही नहीं करती है तो यह समस्या जल्द ही लोगो के आक्रोष को एक विकराल आन्दोलन का रूप धारण करने पर विवष कर देगी।

सोमवार, 7 मई 2012

अवैध गिट्टी और रेत से हो रहे है सरकारी निर्माण


जिले में खनिज का अवैद्य उत्खनन एवं तस्करी बदस्तूर जारी है। जिले के लुंज-पुंज प्रशासनिक व्यवस्था के चलते कई वषों से हो रही बहुमूल्य खनिज की तस्करी चल रही है। जिसमें चूना पत्थर, के्रसर गिट्टी बोल्डर जैसे कीमती खनिज हैं। काफी दिनों से नेशनल हाईवे से अवैद्य खनिज बड़े पैमाने से परिवहन हो रहे हैं। इस पर प्रशासन द्वारा पकडने अथवा रोक लगाने की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। अवैद्य परिवहन के अलावा जिले में खनिज के अवैद्य उत्खनन एवं चोरी बड़े पैमाने पर की जा रही है। जिला मुख्यालय से लगभग 20 कि.मी. दूर बिल्ली-मुारकुण्डी में नेशनल हाईवे के किनारे पर गिट्टी एवं बोल्डर का अवैद्य उत्खनन हो रहा है।  काफी तादाद में यहां से गिट्टी एवं बोल्डर अन्यत्र सप्लाई की जा रही है।  काफी दिनों से उत्खनन जारी है, परंतु सम्बंधित विभाग  बिलकुल मौन है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यंहा से निकली जा रही गिट्टी स्थानीय परियोजनाओं एवं पंचायत में ही निर्माण कार्यों में खपाया जा रहा है। वहीं जिले में हो रही इस मनमानी पर प्रशासन की चुप्पी से अवैद्य उत्खनन को प्रोत्साहन मिल रहा है। इसके अलावा जिले के चोपन, डाला एवं चुर्क क्षेत्र में भी पत्थर, गिट्टी, मुरूम आदि खनिजों के उत्खनन एवं परिवहन हो रहे हैं। ज्ञात हुआ है कि जिले में करोड़ों रूपयों के लागत पर हो रहे विभिन्न निर्माणों में ये खनिज उपयोग में लाये जा रहे हैं। जहां मनमाफिक दर पर निर्माणों के टेंडर होने के बावजूद भी ठेकेदारों द्वारा खनिज की चोरी कर रायल्टी राशि की बचत कर सरकार के लाखों रूपये की राजस्व की हानि हो रही है। खनिज विभाग एवं प्रशासन द्वारा खनिज के अवैद्य उत्खनन एवं चोरी पर कार्रवाई नहीं किये जाने के परिणाम स्वरूप तस्करों के हौसले और बुलंद होते जा रहे हैं।    

चैथी बार विस्थापन का भय


डाला स्थित सीमेंट बनाने वाली कंपनी द्वारा स्थानीय भलुआ टोला में मलिन बस्ती के लगभग दो दर्जन मकानों में रहने वाले लोगों को बेदखल करने के उद्देश्य से बाउंड्री का निर्माण कराया जा रहा है, जिसका स्थानीय लोगों ने जम कर विरोध किया। रहवासियों ने बताया कि सीमेंट कंपनी का कहना है कि उक्त क्षेत्र भलुआ माइंस के परिधि में आती है इसलिए उक्त स्थान पर बाउंड्री का निर्माण कराया जा रहा है। विगत 40 वर्षों से निवास कर रहे दलितों को अपने आशियाना उजड़ जाने की खौफ सताए जा रहा है। रहवासियों की मांग है कि उक्त कंपनी व प्रशासन द्वारा आवास व पीने के लिए पानी की व्यवस्था कराई जाए तब जाकर बाउंड्री का कार्य कंपनी द्वारा कराया जाय अन्यथा बड़े पैमाने पर आंदोलन होगा। जिले में दलितों का उत्पीड़न हो रहा है। कहा कि जेपी समूह द्वारा बाउंड्रीवाल कार्य को रोकते हुए सर्वप्रथम इनके रहने के लिए घर व पीने के लिए पानी की व्यवस्था करे। इसके पूर्व भी जेपी समूह द्वारा यह बस्ती उजड़वाने का प्रयास किया जा चुका था लेकिन जन आक्रोश को देखते हुए जेपी समूह पीछे हट गया। भलुआ टोला में लगभग चालीस वर्षों से तीसरी बार विस्थापित होकर रह रहे दलित आदिवासियों को फिर एक बार उजाड़ कर उन्हें बेघर कर दिया गया। ओबरा विद्युत नगरी से सटे भलुआ टोला क्षेत्र में लगभग एक हजार से भी अधिक दलित आदिवासियों को अपना आशियाना उजाड़े जाने का भय खाए जा रहा है। वर्तमान स्थिति में भलुआ माइंस के अस्तित्व में आने के पहले ही यह बस्ती आबाद हो चुकी थी। उधर जेपी समूह के सीनियर मैनेजर सुधीर मिश्रा ने बताया कि जिन लोगों को बाउंड्री से तकलीफ है वे हमसे मिले हम मामले को समझ कर मैनेजमेंट को बताएगें। रही बात पानी और अन्य जन कल्याण कार्यक्रमों की तो इसके लिए जेपी समूह हर समय तैयार है।

मरने के कगार पर खड़ा है ऊर्जांचल का संयुक्त चिकित्सालय


ऊर्जांचल मंे अच्छे अस्पताल के अभाव में यहां के निवासी कुछ नामी डाॅक्टरों व छोलाछाप डाॅक्टरों के हाथों  हमेषा से लूटे जा रहे है। जबकि ऊर्जांचल औद्योगिक क्षेत्र के रूप में सम्पूर्ण भारत में विख्यात है। इन औद्योगिक संस्थानों से देष के लगभग सभी राज्यों में ऊर्जां के संसाधनों का निर्यात किया जाता है। चाहे वह बिजली के रूप में हो या फिर कोयले के रूप में। क्षेत्रफल को देखे तो ऐसा प्रतित होता कि परियोजनाओं के अतरिक्त यहां कुछ भी नहीं है। देष को अरबों रूपये का राजस्व देने वाला यह क्षेत्र आज भी एक अच्छे अस्पताल के अभाव मंे निरन्तर जूझ रहा है।  

जब अनपरा परियोजना के निमार्ण कराया गया था तब अनपरा परिक्षेत्र के डिबुलगंज में सरकार द्वारा यहा के लोगों को चिकित्सकिय सुविधा प्रदान करने के लिये एक उच्च तकनिकी सुविधाओं से लैस अस्पताल के निमार्ण का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया। कार्य सम्पन्न होने मंे ज्यादा समय नहीं लगा जैसे अस्पताल की आवष्यकता यहां के निवासियों को थी, वह उनके सामने बनकर खड़ा था लेकिन आज भी इसकी जर्जर हालत को देख कर लगता है मानों यह बस खड़ा ही है। जिसका सबसे मूल कारण राज्य सरकार एवं परियोजना की उदासिनता भरा रवैया है। इस अस्पताल का उद्घाटत बड़े-बड़े नेताआंे के द्वारा दो बार किया गया। लेकिन आज तक यह अस्पताल अपने आवष्यक चिजों के लिए तरस रहा है। उपकरणों के अभाव मंे यह अस्पताल दम तोड़ रहा है, कुछ सरकारी दुवाआंे एवं गिने चुने डाॅक्टरों के अलावा यहां कुछ भी नहीं है। कहने के लिए तो यहां हर इमर्जेंसी से निबटने के लिए सारे कक्ष उपलब्ध है लेकिन उपकरणों एवं डाक्टरों का टोटा है। जिससे यहां के निवासी या परियोजनाओं में कार्य करने वाले लोग एक छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए भी नीजि अस्पताल के डाॅक्टरों द्वारा लूटे जा रहे है। गम्भीर दुर्घटना की स्थिति में यहां के लोगों की मौत भी लगातार कई वर्ष हो रही है इसका प्रमुख कारण यहां एक अच्छे अस्पताल का अभाव रहा है। इस सरकारी अस्पताल की उपेक्षा ने इसमें घी का काम किया। जिससे यहां के रहवासी काल के गाल में लगातार प्रवेष कर रहे है। ज्यादतर दुर्घटनाएं रोड पर चलने वाले बड़े वाहनों से होता है जो परियोजनाओं के कार्यों में संलग्न है। मौत का दूसरा प्रमुख कारण यहां बढ़ती प्रदूषण की समस्या है। ऊर्जांचल के इस क्षेत्र में इतना प्रदूषण है कि यह भारत का साँतवा सबसे प्रदूषित स्थान बन चुका है जिससे यहां निवास करने वाले लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है। जिसमें कैंसर से लेकर बल्डपे्रसर, बल्डकैंसर, टीवी, तथा मलेरियाँ यहां के प्रमुख बीमारियों में एक है यहाँ निवास करने वाले लोग लगभग 40 प्रतिषत गैंस की बीमारी से प्रभावित है। 

कुछ यही हाल यहा पर बने चीरघर (पोस्टमार्टम हाऊस) का है। जिसे उर्जान्चल परिक्षेत्र में दो पुलिस चैकियों एवं दो थानों को मद्देनज़र रखते हुए शवों के अन्त्यपरिक्षण करने के उद्देष्य से बनवाया गया था। अस्पताल के साथ-साथ चीरघर के निमार्ण मंे भी परियोजना एवं सरकार द्वारा करोड़ों रूपये खर्च की गये परन्तु सुविधाओं, उपकरणों एवं चिकित्सकों की अभाव में इस चीरघर में आज तक किसी शव का अन्त्यपरिक्षण नहीं किया जा सका है। जिससे पुलिस को शवों के अन्त्यपरिक्षण करने के लिये उर्जान्चल से लगभग 100 किमी दूर दुद्धी जाना पड़ता है। जिससे शवों को लाने-ले जाने में काफी असुविधा उत्पन्न होती है। 

परियोजना के इस अस्पताल के निमार्ण मंे परियोजना एवं सरकार द्वारा करोड़ों रूपये खर्च की गये लेकिन अस्पताल चलाने के लिए जिसकी आवष्यकता सबसे ज्यादा होती उनकों उपलब्ध कराने में राज्य सरकार एवं परियोजना दोनों ही कतराती रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि यहां के वासिंदे लगातार बीमारियों की गिरफ्त में फसते जा रहे है। 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सड़क पर फिर चलने लगा मौत का खेल

  • सड़क पर बने ब्रेकरो से दुर्घटनाओं की दर हुई थी कम। 
  • ट्रैफिक पुलिस की मांग कर रहे है, स्थानीय लोग।
  • प्रशासन एवं पुलिस की उदासीनता से दुर्घटनाओं पर नहीं लग रहा है अंकुष। 

अनपरा। उर्जानचल क्षेत्र के अन्तर्गत डिबुलगंज से लेकर शक्तिनगर तक राष्ट्रीय राजमार्ग 75 ई पर स्थानीय नागरिको एवं पुलिस के हस्तक्षेप से सड़क पर दुर्घटनाओं पर अंकुष लगाने के इरादे से जगह-जगह पर ब्रेकर बनाये गये थे, जिससे कुछ दिनों तक दुर्घटनाओं पर माने थोड़ा बहुत अन्तर जरूर लगा था परन्तु जब इन ब्रेकरों को तोड़ दिया गया तब वाहन चालको द्वारा रफ्तार पर अंकुष लगना बिल्कुल बन्द हो गया है। महत्वपूर्ण है कि डिबुलगंज से लेकर शक्तिनगर तक तक यह सड़क बहुत ही आवा-जाही वाला मार्ग है। जिस पर स्कूली बच्चो से लेकर स्थानीय लोगो परियोजनाओं में कार्य करने वाले मजूदरों का इस सड़क पर रोज का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन जब से इन ब्रेकरों को उनके जगह से तोड़कर हटा दिया गया है तब से वाहनों की रफ्तार को कम करा पाना प्रषासन के लिये बड़ा सवाल बनता जा रहा है। विगत सप्ताह में इसी राह पर सील सीलेवार दुर्घटनाओं के होने के बाद लगता है कि किलर रोड़ के नाम से विख्यात यह रोड़ फिर से उर्जान्चल में मौत का खेलने लगी है। जिसे कुछ हद तक नागरिको एवं पुलिस के हस्तक्षेप के बाद बने ब्रेकरो से रोकने का प्रयास सही साबित हो रहा था।


पंकज मिश्रा
उक्त सड़क पर होने वाले दुर्घटनाओं के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के विरूद्ध मुकदमा लड़ रहे पंकज मिश्रा, सचिव, सहयोग (गैर संरकारी संगठन) का कहना है कि सिर्फ ब्रेकरो के माध्यम से ही वाहनों की गति सीमा को कुछ हद रोके जाने का प्रयास करने से नहीं कार्य चल सकता था फिर भी यह एक सफल तरीका था जिससे वाहनों से होने वाली दुर्घटना दर कम हुई थी। 
शक्ति आनन्द 


ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी शक्ति आनन्द एवं स्थानीय लोगों का कहना है कि उर्जानचल के भीड़-भाड़ वाले इलाको में वाहनों की गति सीमा को कम करने के लिये प्रषासन को जगह-जगह पर ट्रैफिक पुलिस तैनात करनी चाहिए, जो ब्रकरो से भी सफल कार्य साबित होगी। जिससे भविष्य में भी लगातार होने वाले दुर्घनाओं को रोका जा सकेगा। ज्ञात हो कि उक्त सड़क पर मालवाहकों के साथ-साथ सवारी गाड़ियों की भरमार हमेषा बनी रहती है। उक्त मार्ग उर्जान्चल का सर्वाधिक व्यस्ततम एवं लोगो के लिए लाईफ-लाईन कही जाने वाली सड़क है। 

शनिवार, 31 मार्च 2012

सोनांचल में पड़ने जा रही एक और संघर्ष की बुनियाद


कहीं भट्टा परसौल न बन जाए बभनी क्षेत्र
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विस्थापन के दर्द को लेकर शायद सेानभद्र में एक और संघर्ष की बुनियाद पड़ने वाली है। यदि विस्थापितों की समस्याओं का समाधान कर लिया जाएगा तो बभनी इलाके को एक और भट्टा परसौल बनाने से बचाया जा सकता है। इसकी प्रमुख वजह धारा बीस (वन भूमि) की जमीनें जिस पर पुरखों से काबिज आदिवासी एवं वनवासी साबित होंगी। इन जमीनों का मुआवजा अधिग्रहण के लिये तय न किए जाने को लेकर पावर प्लांट के निर्माण में प्रभावित हो रहे परिवारों की वजह से पेंच फंस सकता है। अंदर ही अंदर ग्रामीणों द्वारा आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। 

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन द्वारा बभनी में बनाए जाने वाले 1980 मेगावाट के पावर प्लांट के निर्माण की प्रक्रिया भले ही बड़ी तेजी से अमल में लाई जाती हो, लेकिन यहां से विस्थापित होने वाले भी बिना मुआवजा मिले उसी तेजी से घरों के उजाड़े जाने को लेकर लामबंद हो रहे हैं। बभनी के कई ग्राम पंचायतों में करीब तीन सौ एकड़ धारा बीस की जमीनें भी निर्माण के दायरे में आ रही हैं। इन जमीनों पर रिहंद से विस्थापित होकर आए करीब पंद्रह सौ आदिवासी वर्षों से काबिज हैं। बाप दादा की इन जमीनों पर उनका घर, कुआं, खेत, बागीचा और खलिहान है। केंद्र सरकार ने धारा बीस की जमीनों पर काबिज लोगों को अधिकार देने के लिए वनाधिकार कानून लागू किया है। इस कानून के तहत यहां काबिज लोगों ने वनाधिकार समितियों के सामने अपने-अपने दावे भी कर दिए हैं। जिन्हें अब इन जमीनों का अधिकार पत्र देने की तैयारी चल रही है।

इसी बीच पावर प्लांट के निर्माण के लिए भी प्रशासन पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहा है। धारा बीस की जमीनों पर काबिज तथा विस्थापित होने वालों का कहना है कि प्रशासन द्वारा उनकी जमीनों का जब मुआवजा तय ही नहीं होगा तो वे जाकर आखिर बसेंगे कहां। इन जमीनों पर काबिज लोगों को न्याय दिलाने के लिए तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी कमर कस ली है। इसके अलावा इलाके में पड़ने वाले पर्यावरण प्रदूषण को भी लेकर लोगों में उबाल है। सोनभद्र में रिहंद बांध के विस्थापन के बाद लोग आज भी सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। बभनी में बनाए जाने वाले 1800 मेगावाट के पावर प्लांट के निर्माण की प्रक्रिया भले ही बड़ी तेजी से अमल में लाई जाती हो, लेकिन यहां से विस्थापित होने वाले भी बिना मुआवजा मिले उसी तेजी से घरों के उजाड़े जाने को लेकर लामबंद हो रहे हैं।

सोमवार, 26 मार्च 2012

पच्चीस ग्राम हिरोइन के साथ दो गिरफ्तार


अर्तंराष्ट्रीय बाजार में किमत दो लाख 
अनपरा पुलिस ने पायी कामयाबी

अनपरा-स्थानीय थाना क्षेत्र में नशे सौदागरों को रंगे हाथ गिरफ्तार कर अनपरा पुलिस ने बड़ी कामयाबी हासिल की। मिली जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष शिवानन्द मिश्रा ने मुखबिर कि सूचना पर दो अलग-अलग जगहों पर छापा मारकर दो हिरोइन बेचने वाले को गिरफ्तार कर जेल भेजा। जानकारी के मुताबिक राजेश पाठक उर्फ राजू पिता राम दूलारे उम्र 26 वर्ष व संतोष कुमार पटेल पिता अशोक कुमार अनपरा कालोनी को पुलिस ने 25 ग्राम हिरोइन व पीने के सामग्री के साथ गिरफ्तार कर दोनों को थानाध्यक्ष शिवानन्द ने पत्रकारों के सामने पेश किया। पूछ ताछ के दौरान आरोपी संतोष ने बताया कि इस क्षेत्र में हिरोइन जैसे नशे को फैलाने वाला राजेश पाठक उर्फ राजू है। जिसके द्वारा बड़े पैमाने पर नशे की खेप लोगों तक पहुचायी जाती रही है। राजेश पाठक द्वारा ओबरा व रेनूकूट से इसकी खेप उठाता था। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बाद जब उसकी तलाशी ली गयी तो मोजे और जूते के शोल में छिपाकर रखे लगभग 70 पुडि़या हिरोइन को बरामद किया गया। आरोपियो ने हिरोइन के इस कारोबार का तार मुगलसराय से जुड़े होने की बात कबुली। आरोपियों की माने तो इस क्षेत्र में लगभग एक हजार लोग इस नशे का सेवन करने वाले है। जब इतने लोग ऐसा नशा करने वाले है ंतो बेचने वाले आये दिन पैदा होते रहेगें। क्षेत्र में बढ़ते नशे की लत के कारण जहाँ युवा अपने जीवन गर्त मे डाल रहे है वहीं नशे के सौदागर इस युवाओं के नशे के कुए में डाल मोटी रकम इक्ठठा कर रहे है। पुलिस काफी दिन से इस कारोबार का खुलासा करने मे लगी थी जिसके अतंर्गत कुछ दिन पूर्व राजू पाठक को पकड़ा गया था लेकिन तलाशी के दौरान माल बरामद नहीं हो सका था। गुरूवार को मुखबिर की सूचना पर की गयी घेराबंदी में राजू पटेल को आरपीएल औड़ी पेट्रोल पम्प से पकड़ा गया। मौके पर ली गयी तलाशी के दौरान जहाँ राजू के पास से लगभग 70 पुडि़या हिरोइन बरामद हुयी वहीं आवासीय परिसर से पकड़ा गया आरोपी संतोष के पास से लगभग 25 पुडि़या हिरोइन बरामद हुयी। पकड़ने वाले टीम मे वंशराज पटेल, विवेेक दूबे, अरूण यादव, राजेश विश्वकर्मा आदि मौजूद रहे, तथा आरोपियों को पुलिस ने 8/21 एनडीपीएस एक्ट में जेल भेज दिया। 

सोमवार, 19 मार्च 2012

पेट की आग ने बना दिया कलाकार


यह बिल्कुल सच है की पेट की आग किससे क्या ना करवा दे। इसका जीता जागता उदाहरण है राजस्थान के रहने वाले अनील उर्फ थाणाराम जो एक खानाबदोष मूर्ति बनाकर बेचने वाले कारीगर है। ये मुर्तिया वह वाइट सिमेन्ट एवं प्लास्टर आफ पेरिस की सहायतता से सांचे में ढाल कर बनाते है। वर्तमान में उर्जान्चल में अपना डेरा डाले यह अनील अपनी पत्नी, छोटे भाई व दो बच्चो के साथ लगभग एक माह के लिये यहा अपनी बनाई मुर्तिया बेचने आये है। उनका कहना है कि बेरोजगारी व गरीबी के चलते वह अपने परिवार के पालने के लिये इस क्षेत्र में कार्य करना प्रारम्भ किया और धीरे-धीरे अपने भाई व पत्नी को भी इस काय से जोड़ा, जिससे तीनों मिलकर एक दिन में कम से कम 10 मुर्तिया बना लेते है। इनके द्वारा बनाये गये मुर्ति की बाजार में किमत ज्यादा तो नहीं पर इतना जरूर है, जिससे इन्हे दो वक्त की रोटी तो मिल ही जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि हमारा परिवार साल के हर माह में कभी उत्तर प्रदेष, मध्य प्रदेष, छत्तिसगढ़ तथा गुजरात के कई शहरो में खानाबदोषों की तरह तम्बू लगाकर अपने इस कलाकारी की बदौलत रोजी-रोटी कमाने घुमती रहती है। अनील की पत्नी बताती है कि जब मेरे पति ने यह कार्य करना प्रारम्भ किया तब मैं भी इनके साथ हाथ बटाने के लिये इनके साथ यह काम करने लगी। जिससे हम एक दिन में ज्यादा मुर्तिया बना पाते है। लेकिन इन सबका कहना है कि उदनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों की सही किमत आज भी बाजार में नहीं मिलती जिससे धीरे-धीरे इ स कला का पतन हो रहा हैै और आजकल फैन्सी जमाने में इन मुर्तियों की पहचान खत्म हो रही है। जिससे उनके तरह ढे़रो कलाकरों के सामने बेरोजगार हो जाने का डर बना रहता है। 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

सड़क को बनाया सवारी स्टैंड लोग परेशान, अधिकारी बेपरवाह


बीना पुलिस चैकी के ठीक सामने का रोड ड्राइवर और खलासियों का अड्डा बन चुका है। विभिन्न प्रकार की बड़ी और छोटी गाडियां बस स्टैंड की बजाय सड़क पर ही खड़ी मिलती है और पैसेंजर यहीं से बैठकर गंतव्य स्थान की ओर जाते हैं। नतीजा ये है कि आम लोगों को पैदल या निजी वाहनों से इस सड़क से गुजरने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कभी-कभी तो जाम इस कदर लग जाता है कि जरूरतमंदों को यहाँ से निकलने के लिए लंबे समय का इन्तजार करना पड़ता है, और ये जाम लगभग बीना पुलिस चाकी के गेट से बीना स्टेडियम तक लगा रहता है। हैरत की बात तो ये है कि पुलिस  के अधिकारीगण भी यहाँ से रोज ही गुजरते हैं, पर लगता है कि उन्हें लोगों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ खड़ी गाडि़यों की चिल्ल-पों पुलिस अधिकारियों के कान तक नहीं पहुँचती और इन सवारियों की वजह से अक्सर लगा जाम उन्हें नजर नही आता, दूसरी तरफ गाड़ी खड़ी करने तथा बुकिंग के उद्देश्य से बीना परिसर में कोई व्यवस्था मेन रोड़ पर नहीं है। बस स्टैंड के ना होने की दषा में सवारी वाहने अक्सर रोड़ को स्टैण्ड बना देती है। इस सम्बन्ध में एक आटो के ड्राइवर का कहना है कि यहाँ सड़क पर गाड़ी जल्द भर जाती है। उधर बस वाले का कहना है कि हमें मना नही किया गया है इसलिए सब जायज है। चलिए हम भी मान लेते हैं, पुलिस चैकी के सामने ही पुलिस ही अंधी और बहरी हो जाए वहां लोगों की परेशानी तो जायज ही मानी जा सकती है।

ऊर्जांचल की ऐश प्लांटों की राख बन रही जहरीली


  • वल्कर राख सड़क पर उड़ेलकर वातावरण कर रहे है प्रदूषित।
  • क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ही इनकी नकेल कसने के लिए कुछ करती।
  • कई बीमारियों के होने का बन रही वजह।


ऊर्जांचल की ऐश प्लांटों से वल्करों में इतना अधिक राख भर दिया जा रहा है वे इसे ले जाने में असहज महसूस करते है तथा ऊर्जांचल की सड़कों पर उड़ेलकर यहां के फिजा को जहरीला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनसे जब आम लोग राख को बीच सड़क पर गिराने का वजह पूछते है तो ये रटी-रटाई एक ही बात कहते है कि ओवरलोड हो गया है। गौरतलब है कि ऊर्जांचल के तापीय परियोजनाओं में जलने वाले कोयले की राख सीमेंट आदि उद्योगों में प्रयुक्त होने के लिए एमपी, बिहार सहित अन्य प्रदेशों में भी जाती है। कई परियोजनाएं अपने यहां ऐश रिफाइन कर ट्रकों में लोड करा कर बाहर भेजती है। अनपरा सहित पूरे ऊर्जांचल में इसे ढोने वाले वल्करों में न जाने किस अनुपात में राख भर दिया जाता है कि कुछ दूर जाने के बाद चालकों द्वारा इसमें से कुछ भाग को खुले सड़क पर नीचे उड़ेल दिया जाता है। सड़क पर गिरने के बाद ये राख के बारीक कण पूरे क्षेत्र में कुहरे की तरह हवा छा जाते है। प्रदूषण के मामले में गंभीर चल रहा ऊर्जांचल इन राख के कणों पर से गाडि़यों के गुजरने से उड़ने वाली धूल से और प्रदूषित हो जाता है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इसपर नकेल कसने के लिए कुछ नही करती है। मनमाने तरीके से राख का ढेर लगाना इनके आदतों में शुमार हो गया है। विदित हो कि सिंगरौली-अनपरा मार्ग पूर्व में ही इस राखड़ के ढेर से पट गया है लेकिन अब बिहार तथा यूपी के अन्य भागों में राख ढोने वाले वल्कर वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर राख का ढेर गाज कर इस मार्ग पर भी दुश्वारियों का ढेर लगा रहे है।

जनससमया को हल करने वाला प्रत्याषी चाहिए।


इस बार विधान सभा चुनाव में मतदाता जागरूकता अभियान महिलाओं के भी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। प्रत्याषीयों को महिलाओं की भी की समस्याओं को हल कराना होगा। महिलओं की मुख्य समस्या महंगाई कम करने, गैस की किल्लत, बिजली, पानी की समस्या, प्रदुषण एवं महिला के उपर हो रहे उत्पीड़न/अत्याचार को प्रमुखता से हल करने वाले प्रत्याशी को ही महिलाये एवं सम्मानित मतदाताओं का मत मिलेगा। 

आरती देवी
ओबरा विधान सभा क्षेत्र की निवासी आरती देवी कहती है कि हम महंगाई सहित कई समस्याओं प्रति जागरूक प्रत्याशी को वोट देंगे। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो।

पिंकी सिंह
पिंकी सिंह का कहना है कि महिलाये ज्यादातर पानी, बिजली की समस्या से जूझती हैं। इस प्रकार की समस्याओं को एवं महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले को वोट दिया जाएगा।

बुच्ची देवी
बुच्ची देवी पूर्व ग्राम पंचायत सदस्य-औड़ी का कहना है कि बिजली, पानी आदि जैसी कई समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ता है। प्रत्याशी चुने जाने के बाद समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो प्रत्याशी इन समस्याओं से निजात दिलाएगा, वोट उसी को दिया जाएगा। 

राधा देवी 
राधा देवी कहती हैं कि महिला एवं दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा। जनता की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उसका निदान करे ऐसे प्रत्याशी को अपना मत देंगी। 

रन्नों देवी
रन्नों देवी का कहना है कि विधान सभा में महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए आवाज उठाने वाले प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने की जरूरत है। कहा कि जीतने के बाद वे हर तबके के लोगों की समस्या के साथ ही साथ क्षेत्र की बेरोजगारी दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाएं, ऐसे प्रत्याशी को मत देना चाहिए। हम अपना बहुमूल्य मत उसे देंगे जो कर्मठ हो और जनहित में जिसका योगदान रहा हो। क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक उम्मीदवार को भी वरीयता मिलेगी।

फुलमनी देवी
फुलमनी देवी का कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टियां और उनके प्रत्याशी लंबे-चैड़े वायदे ऐसे करते हैं जैसे जीत के बाद विकास की गंगा बहा देंगे। लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ पहले जैसा ही दिखता है। अब हम सोच समझकर ही प्रत्याषीयों को देंगे तरजीह देंगी। 

पार्वती देवी 
पार्वती देवी कहती हैं कि ऐसे प्रत्याशी जो गांव और शहरों में रहने वाले मतदाताओं की महिलाये ज्यादातर पानी, बिजली की समस्याओं को हल करन वालेे प्रत्याशी को वोट देना चाहिए। 

सरला देवी
सरला देवी कहती हैं कि हमे क्षेत्र का ऐसा प्रतिनिधि चुनना चाहिए जो घरेलू गैस, पानी, बिजली की समस्याओं का समाधान करते हुए आम जनमानस की भावनाओं की कद्र करे। 

छोटी देवी 
छोटी देवी विकास को अहमियत देती हैं। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि ऐसा हो जो रोजगार परक शिक्षा के लिए राजकीय कालेज की स्थापना कराए। जिससे हमारे बच्चे उच्च षिक्षा के लिये बाहर ना जाने पाये।