:— बुधेला गांव में संचालित विद्यालय के बच्चो को छ: भाषाआें की है जानकारी
:— लिमका बुक रिकार्ड ने भी विद्यालय का किया निरीक्षण
दोनों हाथों से लिखने का गुण सिखते बच्चे। |
जनपद सोनभद्र की सीमा से सटे मध्य प्रदेश के सिंंगरौली जिला मुख्यालय से 15 किमी दूरी पर स्थित बुधेला गांव में संचालित मॉ वीणा वादिनी स्कूल में अध्ययनरत सभी बच्चे दोनो हाथो से अलग-अलग भाषाआे में लिख कर विश्व भर में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे है। विद्यायल के सफल प्रयास का परिणाम रहा कि बच्चों को हिन्दी, इंगलिश सहित कुल छ: भाषाआे का ज्ञान प्राप्त है। सरकारी अनुदान से वंचित यह विद्यालय क्षेत्र में जहां अपनी अलग पहचान रखता है, वहीं अशिक्षा के अभाव में वंचित क्षेत्र के बच्चों के बीच शिक्षा की ज्योत भी जला रहा है।
देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डा.राजेन्द्र प्रसाद |
बुधेला गांव में संचालित मॉ वीणा वादिनी स्कूल 8 जुलाई 1998 में स्थापना के साथ ही कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा शुरू की गयी। इसके बाद से क्षेत्र में शिक्षा से वंचित बच्चों ने शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की। स्थापना के बाद से ही विद्यालय ने अनेक प्रतिभावान छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर देश ही नहीं विदेशों में भी अपने कार्य कुशलता का जौहर दिखा। विद्यालय के प्रधनाचार्य वीपी सिंह ने बताया कि सरकारी अनुदान से वंचित यह विद्यालय अपने सामर्थ के बल पर लगातार बढ़ रहा है। मात्र नौ शिक्षकों के बल पर चल रह यह विद्यालय जहां बच्चों को कई भाषाआें को ज्ञान प्रदान करता है वहीं बच्चे दोनों अलग—अलग हाथों से दो भाषाआेें में लिखकर अपनी अलग पहचान बनाता है। विद्यालय के बच्चें हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, अरबी, रोमन, क ला आदि भाषाआें में बेहतर शिक्षा प्राप्त कर इस अर्थ प्रधान युग में आर्थिक रूप से सब बनता है। श्री सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में विद्यालय में लगभग तीन सौ बच्चो को दोनों हाथों से लिखने व कई भाषाआें पारंगत बनने का सफल प्रयास शिक्षकों द्वारा जारी है। विद्यायल के प्रधानाचार्य ने कहा कि अगर विद्यालय को सरकारी अनुदान मिल जाता तो सम्भव था कि आगें की कक्षाआें के लिए जहां भवनों का निर्माण होता वहीं आगें की शिक्षा के लिए बच्चों को भाग दौड़ से मुक्ति मिलती।
दोनों हाथों से लिखने का गुण सिखते बच्चे। |
विद्यालय के संचालक दुर्गा प्रसाद शर्मा ने बताया कि देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डा.राजेन्द्र प्रसाद दोनो हाथो से लिखते थे, उन्ही की प्रेरणा लेकर दोनो हाथो से लिखने की कला बच्चों को सिखाया गया। फिर देखा गया कि बच्चे दोनो हाथो से अलग—अलग भाषाआे में लिख सकते है। जो कला बच्चो को सिखाने का निर्णय लिया गया था वह सफल होती नजर आ रही है। उन्होनें बताया कि गांव में 8 प्रतिशत से अधिक लोग अशिक्षित थे, उन्हे शिक्षा देकर आगे बढ़ाने के उद्देश्य से गांव में ही अंग्रेजी मिडियम स्कूल खोलने का निर्णय लिया। पहली से आठवीं कक्षा तक संचालित माध्यमिक विद्यालय में तीन सौ से अधिक बच्चे अध्ययनरत है। बच्चो को दोनो हाथो से अलग—अलग भाषाआे में लिखने की शिक्षा दी जा रही है। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, रोमन, उर्दू आदि की शिक्षा ग्रहण कर रहे है। सन् 2१२ में विद्यालय के बच्चों की प्रतिभा देखकर लिमका बुक रिकार्ड की टीम भी आकर इसका निरीक्षण किया था लेकिन निरीक्षण का क्या हुआ इस बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी। अगर यह रिकार्ड विद्यालय के नाम दर्ज हो गया होता तो विद्यालय की कायाकल्प ही बदल गया होता। उम्मीद है कि सरकार इन प्रतिभावान बच्चों के प्रतिभा को निखारने के लिए सरकारी अनुदान की व्यवस्था करेगी। जिससे इन बच्चों को और भी बेहतर अवसर उपलब्ध हो सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें