सोमवार, 4 अगस्त 2014

जानवरों से बत्तर जीवन जी रहे जलजलिया खटाल के रहवासी

:— मुह चिढ़ा रहा है नीजि कम्पनी का सीएसआर कार्यक्रम
:— 5 वर्षों से आबाद बस्ती नहीं मिल पा रही मूलभूत सुविधाएं 

आरपी सिंह/अजय जौहरी 

नाला बना जीने खाने का लाइफ लाईन।
केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जनता के विकास के लिए हजारों करोड़ रूपये खर्च कर बहायी जा रही विकास रूपी गंगा का सीधा लाभ जनता से कोषों दूर है। विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाले राजनीतिक दल व सरकार आजादी के 67 साल बाद भी लोगों को बिजली पानी जैसी मुलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा सकी है। औद्योगिक क्षेत्र का दर्जा प्राप्त यह क्षेत्र आज भी आदिमानव की तरह जीवन यापन करने को बाध्य है। जिससे चौमुखी विकास का दावा करने वाले राजनीतिक दल व औद्योगिक संस्थानों द्वारा कागजों पर कार्य पूरा कर अपने ही हाथों से अपनी पीठ थपथपा कर वाहवाही लुटते रहे है। जिनका जनता की समस्याआें से कोई सरोकार नहीं है। 

हिण्डालकों इडस्टी्रज लिमिटेड रेनुकूट
विदित हो कि विश्व पटल पर अपनी ख्याति बटोरती हिण्डालकों इडस्टी्रज लिमिटेड रेनुकूट से सटा जलजलिया खटाल की बस्ती परियोजना के स्थापना काल से ही दुध का व्यवसाय कर लोग किसी तरह अपन जीविकोपार्जन करते रहे है। समय के साथ जहां लगातार कालोनियों का विकास होता गया। वहीं जलजलिया खटाल की स्थिति दिन प्रतिदिन खस्ताहाल होती चली गयी। दशकों से झोपड़ी बनाकर रहे स्थानीय लोग आज भी बिजली पानी व शुलभ शौचालय जैसे मुलभूत सुविधाआें से कोषों दूर है। कालोनियों के निरंतर विकास के कारण स्थानीय जनता के लिए आने—जाने का मार्ग भी बंद कर दिया गया। जिससे लोगों को आवागमन करने में काफी परेशानियों को सामना करना पड़ता है। वहीं यहां निवास कर रहे हजारों लोग आज भी नाले का पानी पीने को मजबूर है। जबकि नगर में स्थित विश्व स्तर की तीन परियोजनाआें द्वारा सीएसआर कार्यक्रम के तहत करोड़ों रूपये खर्च कर विकास कार्य किया जाता है। बावजूद जमीनी स्तर पर इस विकास का असर दिखायी नहीं पड़ता। जिससे ''दीपक तले अंधेरा" की कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। वहीं इस मामले पर स्थानीय लोगो का कहना है कि परियोजना दूर-दराज के गांवों में जाकर विकास कार्य को अंजाम देती है लेकिन परियोजना के बगल में स्थित यह क्षेत्र आज भी सीएसआर कार्यक्रम की बाट जोह रहा है। जिससे लोगों को पीने योग्य शुद्ध पानी व बिजली जैसी मूलभूत सुविधाआें का लाभ मिल सकें। पांच दशकों से आबाद जलजलिया खटाल के लोगों का नाम 19९7 के नगर पंचायत चुनाव में शामिल किया गया था और यह मुहल्ला वार्ड नम्बर 7 के रूप में जाना गया परन्तु जब से औद्योगिक नगर घोषित हुआ तब से यह एरिया औद्योगिक नगर एवं नगर पंचायत के विकास से अछुता रह गया। 

रहवासियों को मुंह चिढ़ाता सटा हिण्डालकों कालोनी।
लोकसभा व राज्य सभा का चुनाव आते ही नेताआें की बड़ी—बड़ी फ ौज जलजलिया में पहुच लोगों को विकास के बड़े-बड़े सपने दिखा मतदान करा तो लेते है लेकिन चुनाव समाप्त होते ही न तो प्रतिपक्ष न ही विपक्ष के लोग इन बस्ती में आना पसन्द करते है। जबकि प्रतिनिधियों को स्थानीय लोगों ने पेयजल, शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, आवास, शौचालय इत्यादि मूलभूत समस्याआें के विषय में कई बार अवगत कराया लेकिन आश्वासनों के अलावा बस्ती को कुछ भी हाथ नहीं लगा। लोगों का कहना है कि एनजीटी द्वारा जारी वर्तमान आदेश के अनुसार बस्ती में आरआे सिस्टम लग जाता तो लोगों को कम से कम पीने योग्य पानी तो उपलब्ध हो जाता। रहवासियों में प्रमुख रूप से चन्द्रकेश यादव, राधा यादव, बिजली शाह, राकेश, अशोक, विजय, दिनेश्वर, परमेश्वर, प्रवीण, अरबिंद, उपेन्द्र, वीर दयाल, गावर्धन गुप्ता, सुग्रीव आेझा, लल्लू यादव, भोला सहित सैकड़ों लोगों ने सरकार का ध्यान आकृष्ठ कराते हुए मूलभूत सुविधा के लिए गुहार लगाई है। वहीं जिला प्रशासन को मामले की जानकारी के बावजूद भी चुप्पी साधे बैठे है।

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