by Shiv Das Prajapati
गौतमबुद्धनगर की उप जिलाधिकारी (सदर) दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के पीछे राज्य की अखिलेश सरकार निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार को ढहाने और उससे सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का तर्क भले ही दे रही हो लेकिन सूबे में धड़ल्ले से संचालित हो रहे अवैध खनन के मामले में उसकी पिछली कारगुजारियों को देखकर ऐसा नहीं लगता। विधायकों, राजनीतिक पार्टियों के पदाधिकारियों और पत्रकारों सरीखे सफेदपोशों के खनन पट्टों और इसकी आड़ में अवैध खनन को अंजाम दे रहे खनन माफियाओं के दबाव में सूबे की सरकार पूर्व में कई ईमानदार अधिकारियों का तबादला और निलंबन कर चुकी है। उन अधिकारियों की गलति केवल इतनी थी कि वे सूबे के विभिन्न खनन-क्षेत्रों में धड़ल्ले से चल रहे अवैध खनन पर अंकुश लगाने और इसके लिए जिम्मेदार सफेदपोशों एवं खनन माफियाओं को कानून के कटघरे में लाने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे ही ईमानदार अधिकारियों की सूची में शामिल हैं आईएएस अधिकारी सुहाष एल. वाई और उनकी पत्नी ऋतु सुहाष जो सूबे के सफेदपोश खनन माफियाओं और सत्ता के गलियारे में काबिज नुमाइंदों की सांठगांठ का शिकार पिछले साल हुए।
ये दोनों अधिकारी उस समय सूबे के राजकोष में हर साल 10 अरब से ज्यादा का राजस्व देने वाले सोनभद्र जनपद में तैनात थे। उस समय सुहाष एल वाई वहां जिलाधिकारी के पद पर और उनकी पत्नी ऋतु सुहाष डिप्टी कलेक्टर के पद पर तैनात थे। उन्होंने अपनी तैनाती के साथ ही डोलो स्टोन, सैंड स्टोन, बालू, मोरम, बजरी और लाइम स्टोन आदि खनिज पदार्थों का अवैध खनन कर बिल्ली-मारकुंडी और सुकृत खनन क्षेत्र में मौत का कुआं (पत्थर की खदानों) तैयार करने वाले खनन माफियाओं और सफेदपोशों के खिलाफ कड़ा अभियान छेड़ दिया। इससे खनन माफियाओं और सफेदपोशों से लेकर सत्ता के गलियारे में बैठे उनके आकाओं में हड़कंप मच गया और वे अपनी गर्दन फंसता देख सूबे की अखिलेश सरकार पर दबाव बनाने लगे। उनके इस डर के पीछे एक वाजिब वजह भी थी जो उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा सकती थी। उसी साल 27 फरवरी को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा मंदिर के पीछे स्थित अराजी संख्या-4452 और वन विभाग की जमीन पर हुए अवैध खनन की वजह से एक पहाड़ी धंस गई थी और 10 मजदूरों की मौत हो गई थी। राजस्व अभिलेखों में अराजी संख्या-4452 बिल्ली निवासी इंद्रजीत मल्होत्रा और हंसराज सिंह आदि के नाम से दर्ज है। खनन माफियाओं ने इसके पास के अराजी संख्या-4471 की 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर भी अवैध खनन किया था जिसमें 6 हेक्टेयर सुरक्षित वन भूमि भी शामिल थी।
इस हादसे को लेकर स्थानीय नागरिकों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन के दबाव में आकर तत्कालीन जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत ने मुख्य विकास अधिकारी, सोनभद्र की अध्यक्षता में मजिस्ट्रीयल जांच गठित कर दी। साथ ही शासन स्तर पर सोनभद्र में खनन पर रोक लगा दी गई और जिले में अवैध खनन की जांच शुरू हो गई। इन दोनों कदमों ने सफेदपोश खनन माफियाओं और उनके आकाओं को सकते में ला दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर दबाव बनाकर 30 मार्च को विजय विश्वास पंत का तबालदला करा दिया। उनके तबादले के 52 दिनों बाद सोनभद्र के जिलाधिकारी पद पर आईएएस अधिकारी सुहाष एल वाई और डिप्टी कलेक्टर के पद पर उनकी पत्नी ऋतु सुहाष की तैनाती हुई। दोनों अधिकारियों ने अपनी नियुक्ति के साथ जिले में छापेमारी अभियान शुरू कर दिया। इससे अवैध खनन माफियाओं और लकड़ी तस्करों के साथ-साथ उनके सफेदपोश आकाओं और नौकरशाहों की नींदे उड़ गईं।
अवैध खनन और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी सुहाष एल. वाई. द्वारा 31 अगस्त, 2013 को ओबरा वन प्रभाग के प्रभारी वनाधिकारी, कैमूर वन्यजीव वन प्रभाग, मिर्जापुर के प्रभागीय वनाधिकारी, जिला खान अधिकारी और अपर जिलाधिकारी को दिए गए लिखित दिशा-निर्देश से राजनेताओं, खनन माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों में हड़कंप मच गया। जिलाधिकारी सुहाष एल वाई ने अराजी संख्या-4471 में सुरक्षित वन भूमि पर हुए अवैध खनन के मामले में एफआईआर दर्ज कराने, इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ दंडनात्मक कार्रवाई करने और इससे हुई राजस्व क्षति को वसूलने का आदेश दिया।
तत्कालीन जिलाधिकारी के इस कदम ने सफेदपोश खनन माफियाओं के होश उड़ा दिए। उन्होंने सुहाष एल वाई का तबादला कराने के लिए विपक्षी नेताओं के साथ गोलबंदी शुरू की और पंचम तल में विराजमान सोनभद्र के पूर्व जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री के विशेष सचिव पनधारी यादव की मदद से चार महीने बाद उन्हें मुख्यालय से संबद्ध करा दिया। हालांकि बाद में उन्हें जौनपुर के जिलाधिकारी का पद मिल गया। 100 दिनों (तीन महीने से ज्यादा) तक सोनभद्र के जिलाधिकारी पद पर पूर्णकालिक जिलाधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई। बाद में ऋतु सुहाष का भी तबादला हो गया। इसका नतीजा यह रहा कि वहां एक बार फिर अवैध खनन का कारोबार शुरू हो गया और पिछले साल की 27 फरवरी को हुए हादसे के लिए जिम्मेदार सफेदपोश खनन माफियाओं का चेहरा आजतक उजागर नहीं हो पाया। मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में गठित मजिस्ट्रीयल जांच भी अभी पूरी नहीं हो पाई है और ना ही हादसे में मरने वाले 10 मजदूरों के परिजनों को मुआवजा और न्याय मिल पाया है।
इलाहाबाद के आयुक्त हिमांशु कुमार का दबादला दो दिनों के अंदर किया जाना भी राज्य की अखिलेश सरकार पर सवाल खड़े करती है। हिमांशु कुमार ने अपनी तैनाती के साथ ही क्षेत्र में अवैध खनन माफियाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई का अभियान छेड़ दिया। इससे भयभीत राजनेताओं के दबाव ने सपा सरकार ने दो दिनों के अंदर ही उनका तबादला अन्यत्र कर दिया था।
अवैध खनन और इस धंधे में लिप्त सफेदपोशों और राजनेताओं का दबदबा सूबे की अखिलेश सरकार में भी वैसे है, जैसे पूर्ववर्ती बहुजन समाज पार्टी की सरकार में देखने को मिली थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चुनाव के समय जनता के हितों की रक्षा की दुहाई देने वाली विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, खासकर, भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की रक्षा के लिए किस कदर तक पूंजीपतियों के दबाव का सामना कर सकती हैं।
मूल लेख स्त्रोत:-
द पब्लिक लीडर मीडिया ग्रुप, राबर्ट्सगंज, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
ई-मेल: thepublicleader@gmail.com, मोबाइल- 09910410365
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