रविवार, 16 फ़रवरी 2020

एनसीएल की ककरी कोयला खदान ने गलत तरीके से लीज पर दे दी धारा-4 कि भूमि

January 6, 2020 • ANKUSH KUMAR DUBEY • COAL MINES
नार्दर्न कोलफिल्डस लिमिटेड की ककरी कोयला खदान हेतु विभिन्न किसानो के साथ-साथ भारतीय वन अधिनियम-1927 कि धारा-4 की उपधारा-1(ए) के तहत् रक्षित वन भूमि बनाये जाने हेतु प्रस्तावित भूमियो का भी अधिग्रहण किया गया था व उन भूमियो पर सर्वे सेटलमेन्ट के दरम्यान एनसीएल को भौमिक आधार दे दिया गया। सर्वे सेटलमेन्ट की प्रक्रिया माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सोनभद्र की राबर्टसगंज व दुध्दी तहसील के आदिवासियो को धारा-4 कि भूमि पर कब्जे व जोत-कोड के आधार पर भौमिक अधिकार देने के लिये प्रारम्भ की गयी थी अर्थात सर्वे सेटलमेन्ट मे भूमि किसान, राज्य सरकार व वन विभाग मे से किसी एक को मिलनी थी परन्तु सर्वे सेटलमेन्ट मे इन तीनो के अतिरिक्त एनसीएल की ककरी समेत सोनभद्र मे स्थित बीना, कृष्णशिला, खडिया परियोजना को भौमिक अधिकार दिया गया।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई प्रकरणो मे स्पष्ट किया जा चुका है कि धारा-4 मे विग्यापित भूमि जिसे धारा-20 के तहत् रक्षित वन घोषित नही किया गया है डिम्ड फारेस्ट मानी जायेगी तथा उसके उपयोगार्थ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा सम्बन्धित राज्य के वन विभाग से लीज लेना होगा, जिसके कारण एनसीएल की ककरी परियोजना द्वारा भी इन भूमियो के उपयोग हेतु वन विभाग से लीज व अनुमति ली गयी तथा जिसके एवज मे एनसीएल द्वारा इस भूमि के समतुल्य वन विभाग को हरदोई मे वन भूमि उपलब्ध कराई गयी और प्रतिवर्ष लीज रेन्ट दिया जाता है। एनसीएल की ककरी परियोजना को यह धारा 4 कि भूमि 30 वर्षो हेतु लीज पर दी गयी थी जिसकी लीज अवधि समाप्त हो चुकी है और एनसीएल द्वारा वन विभाग को लीज नवीनीकरण हेतु प्रस्ताव प्रेषित किया गया है परन्तु लीज नवीनीकरण के बाबत् वन विभाग द्वारा अभी तक अनुमति नही दी गयी जिसके कारण एनसीएल की ककरी कोयला खदान कुछ दिनो के लिये बन्द भी रही थी परन्तु पुनः बगैर लीज नवीनीकरण आदेश के कोयला खनन का कार्य चालु है और वन विभाग के आला अधिकारी मौन है।

लीज नवीनीकरण के दरम्यान एक बात् सामने आई है कि एनसीएल की ककरी परियोजना के सम्बन्धित अधिकारियो द्वारा लीज पर ली गई इन धारा-4 कि भूमियो को गलत तरीके से बगैर वन विभाग की अनुमति के हिन्डालको की रेनुसागर पावर डिवीजन व लैंको अनपरा पावर लिमिटेड अनपरा को लीज पर दे दिया गया है व मुख्य वन संरक्षक मिर्जापुर ने अपने एक पत्र मे इसे वन संरक्षण अधिनियम-1980 की धारा-2 के विपरीत बताया है और यह प्रकरण उत्तर प्रदेश शासन के समक्ष लम्बित है।  

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