उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की अनपरा तापीय
परियोजना हेतु सोनभद्र के दुध्दी तहसील के ग्राम कुलडोमरी, पिपरी,
बेलवादह, औडी, अनपरा, ककरी आदि गांवो मे भूमि अधिग्रहण कानुन-1894 के तहत्
भूमियो के अधिग्रहण हेतु अधिसूचना जारी की गयी थी परन्तु 31 जनवरी 1979 को
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिग्रहण कि अधिसूचना से ग्राम कुलडोमरी व अनपरा
की कुछ भूमियो को बाहर कर दिया गया था। ग्राम कुलडोमरी मे अधिग्रहण की
अधिसूचना से पृथक की गयी भूमियां भारतीय वन अधिनियम - 1927 की धारा-4 की
उपधारा-1 (ए) के तहत् विग्यापित थी जिसे लीज पर दिये जाने हेतु भी अनपरा
तापीय परियोजना द्वारा वन विभाग को प्रस्ताव दिया गया परन्तु कुलडोमरी की
उपरोक्त धारा-4 कि भूमियो पर भौमिक अधिकार के लिये किसानो, वन विभाग व
राज्य सरकार के मध्य प्रकरण सर्वे सेटलमेन्ट के न्यायालयो मे
विवादित(लम्बित) होने के कारण वन विभाग द्वारा उपरोक्त भूमियो को लीज पर
नही दिया गया जिसकी पुष्टि प्रभागीय वनाधिकारी, रेणुकुट वन प्रभाग द्वारा
तमाम किसानो को सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत् उपलब्ध कराई गयी
सूचना से होती है। अर्थात अनपरा तापीय परियोजना के भूमि अधिग्रहण की
कार्यवाही से भी यह भूमिया पृथक है और ना ही वन विभाग द्वारा अनपरा तापीय
परियोजना को लीज पर दी गयी है और अनपरा तापीय परियोजना द्वारा इन पर कब्जा
किया गया है। अधिग्रहण कि अधिसूचना से ग्राम कुलडोमरी की यह भूमिया पृथक
होने के बाद इन भूमियो पर इनके मुल किसानो का नाम राजस्व अभिलेखो मे दर्ज
होना था परन्तु जिम्मेदारो के लापरवाही के कारण आज तक मुल किसानो का नाम
अधिग्रहण की कार्यवाही से पृथक भूमियो पर राजस्व अभिलेखो मे दर्ज नही हो
पाया है।
अनपरा तापीय परियोजना के ग्राम बेलवादह मे स्थित राख बन्धे के पुर्णतया
भर जाने व राख बन्धे से किसी भी हालत मे रिहन्द जलाशय मे राख न छोडे जाने
की एनजीटी द्वारा गठित ओवर साईट कमेटी के सख्ती भरे लहजे जिसमे यह तक कहा
जा चुका है कि इन परियोजनाओ को बन्द किया जाये के बाद अनपरा तापीय परियोजना
द्वारा आदिवासी व दलित किसानो की ग्राम कुलडोमरी मे स्थित भूमियां जिन्हे
राज्य सरकार उत्तर प्रदेश द्वारा 31 जनवरी 1979 को अधिग्रहण की कार्यवाही
से पृथक कर दिया गया है व दलित आदिवासी किसान जिस पर वर्तमान मे खेती करते
है मे बेलवादह राख बन्धे मे राख जाने वाले पाईप लाईन से एक अलग से पाईप
जोडकर बगैर राख निस्तारण हेतु लैण्ड युज के बाबत् प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड
से अनुमति व पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरणीय
अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किये राख मिश्रित जल(स्लरी) को छोडा जा रहा
है जिससे किसानो की खेती प्रभावित हो रही है व उत्तर प्रदेश प्रदुषण
नियंत्रण बोर्ड तथा जिला प्रशासन मौन बनकर सरकारी उम्भा घटना के घटित होने का इंतजार कर रहा है।
जानकारी के लिये बता दिया जाये कि कोयला आधारित ताप विद्युत
गृहो से कोयले के जलने के उपरान्त उत्पन्न होने वाली राख को किसी भी हाल मे
खुले स्थान पर नही डाला जा सकता है और यदि राख बन्धे का निर्माण किया जाता
है तो इसके लिये लैण्ड युज हेतु अनुमति व राख निस्तारण हेतु पर्यावरणीय
अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पडती है परन्तु अनपरा तापीय परियोजना द्वारा
मनमाने तरीके से बगैर किसी अनुमति व अनापत्ति प्रमाण पत्र लिये किसानो के
खेती वाली भूमियो पर राख डाली जा रही है। अनपरा तापीय परियोजना द्वारा
मनमाने तरीके से किया जा रहा राख निस्तारण सर्वप्रथम भारतीय संविधान द्वारा
प्रदत्त सम्पत्ति के अधिकार जो पहले मौलिक अधिकारो मे निहित था परन्तु
जनता पार्टी की केन्द्र मे सरकार होने पर जिसे विधिक अधिकार मे निहित कर
दिया गया है अर्थात अनुच्छेद 300ए के तहत् किसानो को प्राप्त अधिकार का हनन
है व उपरोक्त भूमिया वन अधिनियम-1927 की धारा 4 के तहत् भी पुर्व मे
विग्यापित रही है व सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशो व निर्देशो के अनुसार
डिम्ड फारेस्ट मानी जाती है जिस पर कोई कार्य करने हेतु अनपरा तापीय
परियोजना को फारेस्ट विभाग से क्लियरेन्स लेना चाहिए था परन्तु यहा अनपरा
तापीय परियोजना द्वारा वन विभाग से क्लियरेन्स नही लिया गया है जो वन
संरक्षण अधिनियम-1980 का भी उल्लंघन है।
अनपरा तापीय परियोजना द्वारा जिस तरह से खुले मे राख मिश्रित जल
आबादी के मध्य स्थित किसानो की भूमि पर छोडा जा रहा है उसमे मिश्रित जल
सुखने के बाद राख वायु मे मिश्रित होकर उडेगी जो अत्यधिक भयावह होगा तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 व वायु (प्रदूषण का बचाव व नियंत्रण) कानून सन 1981 का व संशोधन, 1987
का उल्लंघन है। जिन किसानो की भूमियो पर राख का निस्तारण किया गया है
उन्होने फसल क्षतिपुर्ति दिये जाने व पर्यावरणीय क्षतिपुर्ति के एवज मे
अनपरा तापीय परियोजना से जुर्माना दिये जाने तथा आबादी के मध्य कृषक भूमियो
पर राख निस्तारण रोके जाने की मांग की है वरना उन्होने मामले को अनुसूचित
जनजाति आयोग व अनुसूचित जाति आयोग तथा एनजीटी के समक्ष खडा करने की चेतावनी
दी है।
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