रविवार, 16 फ़रवरी 2020

लोझरा-खजुरा सडक निर्माण पर वन विभाग का ग्रहण, नही दिया जा रहा रास्ते का सामुदायिक अधिकार

January 28, 2020 • Banwasi weekly • TRIBAL ISSUE
ग्राम कुलडोमरी व आस पास गांवो के 40 हजार से आदिवासी परिवारो के आवागमन के मार्ग लोझरा-खजुरा मार्ग पर वन विभाग द्वारा पुर्व मे वनाधिकार कानुन के तहत् सामुदायिक अधिकार के रुप दिये गये सडक निर्माण हेतु आदेश को निरस्त करने के कारण लोझरा-खजुरा मार्ग निर्माण पर ग्रहण लग गया है तथा जिसके कारण एनसीएल के सीएसआर कार्यक्रम के तहत् उक्त सडक का निर्माण नही हो पा रहा है। आपकी जानकारी के लिये बता दिया जाये कि ग्राम कुलडोमरी मे लोझरा-खजुरा मार्ग के निर्माण को एनसीएल सीएसआर कार्यक्रम के तहत् किये जाने हेतु सम्मिलित किया गया था, उक्त सडक निर्माण मे एक हेक्टेयर से कम वन भूमि पड रही थी जिसके लिये ग्राम वनाधिकार समिति द्वारा रास्ते के रुप मे उक्त मार्ग का उपयोग 13 दिसम्बर, 2005 के पुर्व से करने के कारण वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत् रास्ते के अधिकार के रुप मे सामुदायिक अधिकार देने का प्रस्ताव पारित कर उपखण्ड स्तरीय समिति दुध्दी को भेज दिया गया था जिसके क्रम मे प्रभागीय वनाधिकारी, रेणुकुट वन प्रभाग द्वारा एक साल के भीतर रास्ते का कार्य प्रारम्भ किये जाने की शर्त के साथ रास्ते के निर्माण हेतु आदेश जारी किया गया था परन्तु उक्त रास्ते के अधिकार को सामुदायिक अधिकार के रुप मे अभिलिखित नही किया गया व अभिलिखित प्रति ग्राम वनाधिकार समिति को नही दी गयी तथा तकनीकी कारणो से एक वर्ष के अन्दर सडक निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ न होने के कारण आदेश की शर्त का उल्लंघन होने के कारण उक्त आदेश निरस्त कर दिया गया है जिससे सडक निर्माण का कार्य बाधित होता नजर आ रहा है। सोनभद्र मे सामुदायिक अधिकार के रुप मे दिये जाने वाले अधिकार गलत तरीके से दिये जा रहे जिससे इस तरह की समस्या खडी हो रही है व आदिवासियो के लिये मुलभुत सूविधा सडक, विद्यालय, चिकित्सालय आदि का निर्माण नही हो पा रहा है दरअसल वनाधिकार कानुन के तहत् जो सामुदायिक अधिकार दिया जाना है उसे पहले अभिलिखित कर मान्यता दी जानी है तथा जिसके आधार पर युजर ऐजेन्सी को निर्माण कार्य हेतु वन विभाग द्वारा अनुमति दी जानी है परन्तु सोनभद्र मे सामुदायिक अधिकार को बगैर मान्यता दिये व अभिलिखित किये सशर्त आदेश मात्र जारी किया जा रहा है तथा अधिकार की अभिलिखित प्रति ग्राम वनाधिकार समिति को नही दी जा रही है व सामुदायिक अधिकार सशर्त नही दिया जाना चाहिये क्योकि महुआ बीनने का अधिकार, जंगल मे पशु चराने का अधिकार, जंगल मे लकडी बीनने का अधिकार भी सामुदायिक अधिकार है व यदि इस तरह से से सशर्त आदेश के रुप मे अनुमति दी जायेगी तो वह सामुदायिक अधिकार दिया जाना नही कहा जायेगा व ग्राम वनाधिकार समिति को अभिलिखित प्रति न दिये जाने से इस अधिकार की पुष्टि करने मे ग्राम वनाधिकार समिति विफल रहेगी जिस कारणवश वन विभाग के अधिकारी सामुदायिक अधिकार के रुप मे रास्ते का प्रयोग, लकडी बीनने, पशु चराने आदि से आदिवासियो को रोकेंगे तथा विवाद के कारण निर्मित होंगे। इस सडक के निर्माण कार्य पर वन विभाग द्वारा पुर्व मे जारी आदेश को निरस्त किये जाने के प्रकरण पर विस्थापित नेता पंकज मिश्रा, एनएसयुआई जिला महासचिव अंकुश दुबे, हरिनाथ खरवार, लक्ष्मीकांत दुबे आदि कांग्रेसियो ने रोष जताते हुये कहा है कि वन विभाग यदि जल्द सडक निर्माण हेतु सामुदायिक अधिकार के रुप मे रास्ते के अधिकार को मान्यता व अभिलिखित करते हुये एक हेक्टेयर से कम पड रही वन भूमि पर निर्माण हेतु अनुमति नही देता है तो सैकडो आदिवासियो के साथ वन विभाग कार्यालय का घेराव किया जायेगा व प्रदेश सरकार वनाधिकार कानुन को विफल करने मे लगी है तभी आदिवासियो को सामुदायिक अधिकार के रुप मे रास्ते का अधिकार नही दिया जा रहा है तथा दुर्भाग्य है कि वनाधिकार कानुन लागु होने के एक दशक बाद भी आदिवासियो के सामुदायिक अधिकारो को मान्यता दिये जाने की प्रक्रिया पुर्ण नही की गयी है।

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