अनपरा तापीय परियोजना के राख बन्धे की उंचाई बढाये जाने का
कार्य ग्राम बेलवादह के आदिवासी ग्रामीणो के लिये परेशानी का कारण बन गया
है। अनपरा तापीय परियोजना द्वारा ग्राम बेलवादह मे स्थित राख बन्धे की
उंचाई बढाये जाने का कार्य करवाया जा रहा है जिससे राख बन्धे का राख
मिश्रित पानी ग्राम बेलवादह मे स्थित बैगा समुदाय के आदिवासियो के घरो की
ओर लगातार बढ रहा है तथा इन आदिवासियो के घर जमींदोज होने की स्थिति मे है व
एक-दो आदिवासियो के मकान ध्वस्त भी हो चुके है।
आप सोच रहे होंगे के राख बन्धे के पास यह आदिवासी क्यो निवासरत
है, यह इन आदिवासियो का शौक नही बल्कि मजबुरी है क्योकि अनपरा तापीय
परियोजना द्वारा इन आदिवासियो के मकानो का अधिग्रहण किये जाने के बाद
पुर्नवास प्लाट नही आवंटित किया गया, अधिग्रहण के उपरान्त अनपरा तापीय
परियोजना द्वारा अपने राख बन्धे का निर्माण तो कर लिया गया परन्तु इन
आदिवासियो के पुर्नवास प्लाट के विषय मे 20 वर्ष से ज्यादा का समय व्यतीत
होने के उपरान्त भी कोई चर्चा नही की गयी, अब यह निरीह आदिवासी राख बन्धे
के एक ओर स्थित अपने घरो मे रहते है तथा दुसरी ओर राख बन्धे का राख मिश्रित
पानी है। आपको गांधीवाद का इससे बडा उदाहरण और कही शायद न देखने को मिले
सोचिये की इनमे से कई आदिवासियो के पुर्व के घर इस राख मिश्रित पानी से
वर्षो पुर्व जमींदोज हो चुके जिसके बाद इन आदिवासियो ने कुछ दुरी पर नये घर
बनाये अब वह घर भी चपेट मे है और इतनी प्रताडना, अमानवीयता के बाद भी यह
आदिवासी शान्ति से है और कभी परियोजना के किसी कार्य का विरोध नही करते है
और इतनी ज्यादती के बाद भी जिम्मेवार सरकार मौन है।
आप अक्सर पढते होंगे के कोयले से जलने से उत्पन्न राख भयावह व
विषाक्त होती है जिसके मानवीय जीवन पर अनेक दुष्प्रभाव है। बेलवादह मे आलम
यह है कि यह आदिवासी और इनका परिवार राख बांध के बीच से होकर आवागमन करते
है इनके द्वारा पेयजल हेतु प्रयोग किये जाने वाले हैण्डपम्प से महज 20 मीटर की दुरी पर राख मिश्रित जल का जमाव है, जिसके कारण इनका पेयजल भी प्रदुषित हो चुका है तथा दुषित पेयजल का दुष्प्रभाव भी इनके उपर आप साफ देख सकते है।
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