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चालीस से ज्यादा आदिवासी परिवार ऐसे है जिनके जोत-कोड व कब्जे कि भूमि कि
अधिभोग के हक के बाबत् वनाधिकार के दावे ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति से
अग्रेसित होकर उपखण्ड स्तरीय समिति दुध्दी के समक्ष लम्बित है व दावो के
सत्यापन तथा मान्यता दिये जाने की प्रक्रिया लम्बित है इसी बीच अनपरा तापीय
परियोजना द्वारा अपने राख बन्धे का उच्चीकरण का कार्य शुरु कर दिया गया
जिससे इन आदिवासियो को वनाधिकार के तहत् अधिभोग मे प्राप्त भूमि व अधिभोग
के हक के बाबत् लम्बित दावो कि भूमिया उस पर की गयी खेती व उन पर स्थित
मकान प्रभावित होने लगे है व राख बन्धे के उच्चीकरण से राख मिश्रित जल तेजी
से आदिवासियो कि भूमि व उन पर स्थित मकानो की ओर बढ रहा है तथा जिससे
आदिवासियो की खेती आंशिक प्रभावित हो गयी है व आने वाले दिनो मे उनकी भूमि,
भवन पुर्णतः राख बन्धे के राख मिश्रित जल मे समाहित हो जायेंगे तथा इन
भूमियो को लिये जाने हेतु कोई विधिक प्रक्रिया नही अपनाई गयी है व बगैर
प्रतिकर एवं पुर्नवास के वह अपनी भूमि व मकानो से बेदखल कर दिये जायेंगे
तथा उनके पारम्परिक कुंये के राख बन्धे के राख मिश्रित जल मे समाहित होने व
उनके पास पेयजल का अन्य कोई साधन न होने के कारण वह राख बन्धे के समीप
अपनी भूमियो पर चुंआड खोदकर राख मिश्रित जल जिसमे मर्करी, आर्सेनिक,
फ्लोराईड जैसे विषाक्त तत्व होते है व हड्डियो का टेढापन, बांझपन, मानसिक
विकृतियो जैसे रोग होते है को पीने को मजबुर है उन्होने मानवाधिकार आयोग व
राष्ट्रीय अनुसुचित जनजाति आयोग के सदस्यो की एक उच्च समिति बनाकर जांच
किये जाने तथा फौरी राहत के तौर पर आदिवासियो को शुध्द पेयजल उपलब्ध कराये
जाने तथा आदिवासियो को उन्हे वनाधिकार मे दी गयी भूमि और उस पर स्थित मकानो
का प्रतिकर, पुर्नवास लाभ व पुर्नवास प्लाट देकर पुर्नवासित न किये जाने
तक राख बन्धे के उच्चीकरण का कार्य रोके जाने हेतु मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश
शासन व मैनेजिंग डायरेक्टर, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को
निर्देशित किये जाने तथा राख बन्धे के उच्चीकरण से जोत-कोड व कब्जे कि
भूमियो व मकानो के प्रभावित होने उपरान्त भी प्रतिकर व पुर्नवास लाभ तथा
पुर्नवास प्लाट देकर पुर्नवासित न करते हुये राख बन्धे के 10 मीटर समीप
अमानवीय परिस्थितियो मे रहने हेतु मजबुर किये जाने बाबत् सम्बन्धितो के
विरुध्द आवश्यक कार्यवाही करने की मांग की है। अंकुश दुबे ने कहा है कि
ग्राम बेलवादह के आदिवासियो को कांग्रेस के लाये कानुन के तहत् जोत-कोड व
कब्जे के आधार पर अधिभोग हेतु हक मे दी गयी भूमि आज योगी सरकार द्वारा जबरन
छीनी जा रही है व शुध्द पेयजल की प्राप्ति, सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार
मौलिक अधिकार है व किसी भी व्यक्ति के सम्पत्ति को बगैर विधिक प्रक्रिया
के लिया जाना संविधान के अनुच्छेद 300(ए) का हनन है व आशा है कि मानवाधिकार
आयोग व अनुसुचित जनजाति के आयोग के हस्तक्षेप के उपरान्त आदिवासियो को
न्याय व शुध्द पेयजल प्राप्त हो सकेगा।
ग्राम बेलवादह के कैम्हाडांण के आदिवासी परिवार अनपरा तापीय परियोजना के
राख बंधे के 10 मीटर दुर अमानवीय परिस्थितियो मे रहने को मजबुर है व इन
आदिवासी परिवारो के पारम्परिक कुंये के राख बन्धे मे समाहित होने व अन्य
पेयजल के साधन न होने के कारण पचास से ज्यादा आदिवासी परिवार राख बन्धे के
राख मिश्रित जल जमाव के समीप अपनी भूमियो पर चुंआड खोदकर जिससे राख मिश्रित
जहरीला जल निकलता है को पीने पर मजबुर है। इस प्रकरण पर सामाजिक
कार्यकर्ता अंकुश दुबे ने मानवाधिकार आयोग व अनुसूचित जनजाति आयोग को पत्र
भेजकर हस्तक्षेप किये जाने की मांग की है। दुबे ने अपने पत्र मे बताया है
कि ग्राम बेलवादह मे भारतीय वन अधिनियम - 1927 की धारा-4 की उपधारा-1 (ए) के
तहत् विग्यापित भूमियां जिन पर आदिवासी परिवारो का 13 दिसम्बर, 2005 के
पुर्व जोत-कोड व कब्जा था व मकान बनाकर निवास कर रहे थे पर आदिवासियो के
जोत-कोड को मान्यता देते हुये इनके जोत-कोड व कब्जे कि भूमि के अधिभोग के
बाबत् इन्हे अनुसूचित जाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारो की
मान्यता) अधिनियम-2006 के तहत् हक देते हुये अभिलिखित कर दिया गया है
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