ऽ अधिकारी परियोजनाओं पर नकेल कसने में है असक्षम।
ऽ चिमनियों से निकल रहा धुआं बीमारियों का बन रहा कारण।
ऽ चिमनियों की उड़ती राख सेे जीना दुश्वार।
ऽ घर के बाहर कपड़े तथा गेहूं आदि सूखना भी हुआ मुश्किल।
---------------------------------------------------------------------------------
अनपरा में लगातार प्रदूषण से आजिज आम लोगों का कहना है कि चिमनियों से निकल रहे धुएं से लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। कोई ऐसा घर नहीं है जिसमें एक दो लोग दमा अथवा टीबी के रोगी न हो गए हो। कहा गया कि अगर शीघ्र प्रदूषण पर रोक नहीं लगाया जाता तो वह दिन दूर नहीं जब आम जनता सड़क पर उतर कर चिमनियों को ही बंद करने पर बाध्य होंगी। लोगों ने प्रश्न उठाया कि प्रदूषण नियंत्रण विभाग का आखिर परियोजनाओं से कौन सा संबंध है जिसकी एवज में अधिकारी इन परियोजनाओं पर नकेल नहीं कस रहे है। उनका कहना है कि प्रदूषण की वजह से उनकी दुकानें रसातल में मिलती जा रही है, प्रदूषण की वजह से अनपरा कालोनी से लेते हुए बाजार, गांव तथा दूरदराज के जंगल भी तबाह होते जा रहे है। लोगों ने मांग किया कि प्रदूषण से बीमार लोगों के चिकित्सा की व्यवस्था वातावरण को जहरीला बनाने वाली इन परियोजनाओं द्वारा किया जाना चाहिए। विस्थापितों ने देश के विकास के लिए अपनी संपत्ति देश को दे दिया लेकिन हम लोगों को विकास के नाम पर जहरीला वातावरण दिया जा रहा है जिसमें सांस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए शुद्ध पानी भी दुर्लभ हो गया है।
पिछले दो दिसंबर, 2012 को अनपरा परियोजना के वीआईपी गेस्ट हाउस मेें विभिन्न परियोजनाओं के आलाधिकारियों तथा जिला प्रशासन तथा क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रक अधिकारी के साथ प्रदूषण को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर बातचीत हुई थी। उसमें परियोजनाओें के अधिकारियों ने अपनी चिमनियों में लगी ईएसपी सिस्टम को अत्याधुनिक बताया था। लेकिन अनपरा में पिछले कुछ दिनों से आकाश से बरस रहे राख के बारीक कणों से लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। सड़क के किनारे रहने वाले तो परेशान है ही कालोनीवासी भी अजिज आ गए है। गंदे कपड़े को साफ करने के बाद बाहर सूखाने पर वे चिमनियों से आ रहे राख से और गंदे हो जा रहे है। दिन भर घर की सफाई करने के बाद सुबह उठने के बाद घरों पर गंदगी का सैलाब उमड़ा हुआ दिखता है।
महत्वपूर्ण है कि सभी परियोजनाएं अपने सिस्टम को प्रदूषण मुक्त होने की दावा कर रही है जबकि प्रदूषण रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी जांच कौन करेगा कि प्रदूषण किस परियोजना से फैल रही है। दो दिसंबर को प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी ने भी तमाम वायदे किए तथा परियोजनाओं से क्रमिक रूप से प्रदूषण नियंत्रण की बात कहीं लेकिन सब हवा-हवाई साबित हो रहा है। परियोजनाओं से लेकर प्रदूषण पर लगाम लगाने वाली संस्थाएं खामोश है।
प्रदेश सरकार अपने गुड वर्क को दिखाने के लिए जिस तरीके से पिछले दिनों आनन-फानन में बिजली परियोजनाओं को बिना तैयार हुए ही लोकार्पण की है इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है। चिमनियों की राख से छत पर कपड़े तथा गेहूं सूखाना दुश्वार हो गया है। कोई भी घरेलू वस्तु बाहर रखी जाती है तो सुबह तक वह धुंए के गर्द की वजह से गन्दी व पुरानी नजर आने लगती है। प्रदूषण की वजह से लगातार ऊर्जांचल खतरनाक स्थिति में पहुंचता जा रहा है। प्रतिवर्ष देश में प्रदूषण की भयावहता वाले औद्योगिक परिक्षेत्र सही होते जा रहे है जबकि ऊर्जांचल अब तो नौंवे से आठवें स्थान पर पहुंच चुका है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें