उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए ईंधन के तौर पर कोयला, केरोसिन और लकड़ी के इस्तेमाल पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। इसके लिए प्रदेश सरकार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पेट्रोलियम मंत्रालय से बातचीत कर रही है। दोनों से हरी झंडी मिलने के बाद तीनों पदार्थों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। राज्य सरकार के इस कदम को सही ठहराया भी जा सकता है और नहीं भी। प्रश्न यह उठता है कि क्या ईंधन के तौर पर उपरोक्त तीनों पदार्थों के इस्तेमाल पर रोक लगने मात्र से प्रदूषण पर नियंत्रण हो जाएगा? क्या वास्तव में राज्य सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए इतना प्रतिबद्ध है कि वह आम आदमी द्वारा ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले अवयवों पर नियंत्रण लगाने की जरूरत महसूस कर रही है? अब बात करते हैं प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड द्वारा पूर्व में उठाए गए कदमों के बारे में।
वास्तव में प्रदूषण नियंत्रण के प्रति बोर्ड एवं राज्य सरकार पूरी तरह विफल रही है। चाहे मामला गंगा एवं यमुना नदी के प्रदूषण का हो या सुदूर सोनभद्र में रेणु नदी और रिहंद बांध का। वायु प्रदूषण और पर्यावरण के मामले में तो राज्य सरकार और राज्य प्रदूषण बोर्ड ने प्रदूषण फैलाने वाले अवैध औद्योगिक इकाइयों और क्रशर प्लांटों के संचालन के लिए खुलेआम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के नियमों का उल्लंघन किया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोनभद्र में करीब सवा सौ अवैध क्रशर प्लांटों को नियमों के विरुद्ध अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ायीं। वहीं राज्य सरकार ने समाजसेवियों और पर्यावरणविदों की शिकायतों को कूड़े के छेर में डाल दिया और दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
जय प्रकाश एसोसिएट्स के मामले में तो राज्य सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों ने ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों समेत पर्यावरण संरक्षण के नियमों की धज्जियां उडाई हैं। गंगा प्रदूषण के मामले में तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अलग अपनी कार्ययोजना को अंजाम देने का मन बना लिया है, क्योंकि बोर्ड को बार-बार उच्चतम न्यायालय की फटकार सहनी पड़ रही है। कहने के लिए प्रदेश सरकार ने नई राज्य पर्यावरण नीति-2010 तैयार की है, जिसे कैबिनेट की मजूरी के बाद अमल में लाया जाएगा। लेकिन इसकी भी संभावना कागजों तक ही सीमित रहने की है, धरातल पर अमल की नहीं। राज्य सरकार गरीबों के पेट पर लात मारने की जुगत में लगी है।
कोयला, केरोसिन और लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग खासतौर पर गरीबों द्वारा किया जाता है। इनके इस्तेमाल पर रोक से इस वर्ग पर बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार रियायती दर पर एलपीजी कनेक्शन को उपलब्ध कराने की मांग कर रही है लेकिन भ्रष्टाचार के रूप में जकड़े तंत्र में यह संभव नहीं दिखाई देता है। गरीबी रेखा के नीचे जावन यापन करने वाले लाखों फर्जी राशन कार्डों के आगे गरीबों को इसका लाभ मिल पाएगा। यह दिखाई नहीं देता है। ईंधन के तौर पर कोयला, केरोसिन और लकड़ी के इस्तेमाल पर रोक से भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र द्वारा गरीबों का शोषण ही बढ़ेगा, प्रदूषण नियंत्रण की सही कवायद नहीं। गरीब तबके में इस्तेमाल होने वाले तीनों अवयवों पर रोक लगाने से पहले राज्य सरकार को सभी गरीबों को रियायती दर पर एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने की जरूरत है। राज्य सरकार पहले इसे अंजाम दे। फिर ईंधन के तौर पर कोयला, केरोसिन और लकड़ी के इस्तेमाल पर रोक लगाए।
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