शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

पत्थर की खदानों में क्यों जान गंवाते हैं मजदूर ?


विंध्य क्षेत्र का सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, सिंगरौली (म0प्र0), गढ़वा (झारखंड), भभुआ (बिहार) आदि जनपद आदिवासी बहुल जनपद है। विंध्य क्षेत्र में निवास करने वाले ज्यदातर आदिवासी-दलित परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इन परिवारों में शिक्षा और सरकारी योजनाओं के प्रति जागरुकता का घोर अभाव है। साथ ही क्षेत्र में कल-कारखानों की स्थापना के बाद विस्थापन और भूमिहीनता का दंश झेल रहे आदिवासियों, परंपरागत वन निवासियों, दलितों समेत मजलूमों के सामने रोजगार का सबसे बड़ा संकट खड़ा है। 

तकनीकी क्षेत्र में कुशलता का अभाव, सरकार की वादा खिलाफी और भ्रष्टाचार में डूबी नौकरशाही के चलते विंध्य क्षेत्र के निवासियों के सामने रोटी की जुगाढ़ की समस्या, सुरसा के मुह की तरह खड़ी है। बेरोजगारी, जिम्मेदारी और लाचारी से बेहाल विंध्य क्षेत्र बाशिदों के लिए मौत का कूआं बन चुकी पत्थर, बालू, मोरम आदि की अवैध खदानें अपने और अपने परिवार के पेट में लगी आग को शांत करने के जुगाड़ के रूप में सहायक सिद्ध हो रही है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना समेत केन्द्र और राज्य सरकार की अन्य योजनाएं भ्रष्ट नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी के कारण विंध्य क्षेत्र के परिवारों को राहत नहीं दे पा रही हैं। इन कारणों के चलते बेबश एवं लाचार विंध्य क्षेत्र के गरीब पत्थर, मोरम और बालू की खदानों में दम तोड़ने को मजबूर हैं।

पत्थर की खदानों में काम करते समय परिवार के दोनों व्यक्तियों की कब मौत हो जाए और पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो जाए, इस बात का भय पूरे परिवार को हमेशा सालता रहता है। खनन माफिया पुलिस की मिलीभगत से पूरे मामले को ही रफा-दफा कर देते हैं। पत्थर की खदानों में मरने वाले सैकड़ों मजदूरों के परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं और भूखमरी की कगार पर हैं। अगर समय पर इन परिवार के सदस्यों को रोजगार और सरकारी योजनाओं की सहायता नहीं मिली तो विंध्य क्षेत्र में भूखमरी और कुपोषण से मरने वाली संख्या में इजाफा हो सकता है ।

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