सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

क्यों कम्पनियाँ कतराती है मेडिकल सूविधा उपलब्ध कराने से


कम्पनियों में काम करने वाला मजदूर अपना खुन पसीना एक कर कम्पनी को हर माह करोड़ों का लाभ कमा कर देता है, इस बाबत कम्पनी खुस होकर दावा करती है कि कम्पनी हर मजदूर के लिए हर सुविधाए उपलब्ध करायी जायेगी। लेकिन जब मजदूर कार्य के दौरान घायल हो जाता है, तब वहीं मजदूर कम्पनी के लिए बोझ बना जाता है इस स्थिति में कम्पनी किसी भी तरीके से अपना पीछा छुड़ाने में लगी रही है। कम्पनियों के द्वारा मजदूरों का उपेक्षा इतनी हद तक बढ़ गयी है कि कम्पनियों में लगातार स्थिति बिगड़ती जा रही है। मजदूरों को अपने हक के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ रही है। 

ज्ञात हो कि लैंकों परियोजना के अधिनस्त कार्य करा रही टेप्रो सिस्टम में कार्य कर रहे मजदूर राम सजीवन चैबे कार्य के दौरान गढ़ढा में उतर रहे थे तभी अचानक से पैर फिसलने से गिर पड़े और हल्की सी खरोच लग गयी कार्य समाप्त होने के बाद जब वह अपने घर आये तो उनके एक पैर में सूजन हो गयी थी। अपने इस सूजन एवं लेगे चोट को दिखाने के लिए अपने पड़ोस के छोला-छाप डाॅक्टर के पास गये डाॅक्टर ने कार्य के दौरान लगे चोट को देखा और कहा ये एक फोड़ा है यह एक-दो दिन मंे ठीक हो जायेगा। डाॅक्टर ने उन्हे कुछ दवाये लिखी और इंजेक्सन लगाते कहा कि आप ठीक हो जायेगें। दूसरे दिन जब स्थिति ज्यादा खराब होने लगी तो इस उम्मीद में वे स्थानीय सरकारी चिकित्साल मंे इलाज के लिए गये, अच्छे डाॅक्टर उनका इलाज कर जल्द ही कर देगें, सरकारी अस्पताल के डाॅक्टर ने घाव को देखते ही कहा कि यह तो सेप्टीक है मैं आप को कुछ दवाये व इंजेक्सन लिख देता हूँ इसे आप किसी डाॅक्टर से लगवा लेना जो दवाये आप को दी जा रही हैं उनकों आप ठीक टाईम से खा लिजीएगाँ। तीसरे दिन जब घाव में काफी ज्यादा मात्रा में सूजन के साथ ही उनके पेट और गले में भी सूजन दिखने लगी इस कारण से उनको सांस लेने में परेषानी आने लगी तो रात में 12 बजे गाड़ी बुक कर वाराणसी के लिए रवाना हुए। 

जानकारी के अनुसार वाराणसी में लगभग एक माह से अपना ईलाज करा रहे राम सजीव चैबे को काफी आर्थिक एंव षारिरिक छती उठानी पड़ी, इस बिमारी के दौरान हुए घाव ने उनको लगभग पूरी तरह अपाहिज बना दिया है। परिवार का बड़ा पुत्र अपने पिता के इलाज के लिए वाराणसी के कई अस्तपालों का चक्कर काटने के बाद एक निजी अस्पताल में अपने पिता का इलाज करा रहे संदीप चैबे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक छोटी सी दुकान चलाते है लेकिन पिता की बिमारी ने इस दुकान को भी बन्द करा दिया है। जिससे उनके सामने भूखों मरने की स्थिति बन चुकी है। चैबे जी जिस कम्पनी के अन्दरगत् कार्य कर रहे थे उस कम्पनी द्वारा हाथ खड़ा कर लिए जाने के बाद स्थिति और भी चिन्ताजनक हो गयी है। जब कि उनका इलाज लगातार जारी है डाॅक्टरों के द्वारा काफी पैसों की मांग आये दिन होती ही रही है। उनके साथ काम करने वाले अन्य मजदूरों द्वारा कम्पनी के पीएम के पास इस बात की सूचना दे दी गयी है कि चैबे जी कार्य के दौरान चोट लगने से काफी दिनों से बिमार चल रहे इस कारण से अपने कार्य पर नहीं आ पा रहे, लेकिन कम्पनी के आलाधिकारी इस बात को मानने लिए तैयार नहीं है। इसी क्रम में अनपरा परियोजना में कार्य करने वाले मजदूर सोनू कुमार निवासी डिबुलगंज कार्य के दौरान गम्भीर रूप से घायल हो गया संविदा कम्पनी द्वारा तत्काल किसी निजी चिकित्सालय में भर्ती कराया लेकिन भर्ती कराने साथ ही कम्पनी अपने जिम्मेदारियों से भागने लगी। 

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