शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

ट्रेनों में सिसकता बचपन सरकार लापरवाह


बचपन बचाओ अभियान में हाल में सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर उत्प्रेरक का काम किया है कि सरकार बच्चों को मजदूरी करने पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाये। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में सरकार कागजों पर बालश्रम रोकने के प्रयास में लग चुकी है। पर हकीकत ये है कि केन्द्र सरकार इसे अपने ही रेलवे के अंदर रोक पाने का कोई प्रयास करती नजर नहीं आ रही है। देश भर के ट्रेनों में आज भी बचपन सिसकता हुआ नजर आता है। ट्रेनों में झाड़ू लगाते बच्चे काम के एवज में खुशनामा मांगते ये बताने का प्रयास करते हैं कि हम शौक से ये काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि हमारी भी कुछ पारिवारिक मजबूरियां हैं। इन बच्चों का ये काम कई तरह से केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं की पोल खोल रहा है। पहली बात तो ये भीख नहीं मांग रहे बल्कि दिखा रहे हैं कि हम गंदगी साफ कर आपको स्वच्छ जगह बैठा देखना चाहते हैं। बात साफ है रेल मंत्रालय ट्रेनों को हमेशा स्वच्छ रखने में सक्षम नहीं है। दूसरी कि अभी भी केन्द्र व राज्य की सरकारी योजनाएं इनके परिवार का पेट नहीं चला पा रही हैं। बचपन बचाने में पूरी तरह नाकामयाब सरकार के पास कोई ऐसा उपाय नहीं दीख पड़ता है जिसके द्वारा पढ़ने और खेलने की उम्र में इन बच्चों को ऐसे काम करने से रोका जा सके। एक तरफ जहाँ देश का अरबों रूपये काला धन विदेशों में जमा है वहीं एक-दो रूपये के लिए मुंहताज ये बच्चे सरकार के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है। 

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